राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक में कश्मीर मुद्दे को लेकर शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक उम्दा सुझाव दिया है । सुझाव यह था कि नवाज शरीफ के साथ तो चाय पर चर्चा हो गई, कभी कश्मीर के लोगों के साथ भी आप चाय पर चर्चा कीजिए। इस सलाह का महत्व ऐसे समय में और अधिक बढ़ जाता है, जब कश्मीर एक बार फिर किसी आतंकी के मारे जाने के बाद सुलग रहा है। यहां बात नवाज शरीफ के साथ मोदी के चाय पीने की तुलना नहीं हो रही, बल्कि बात इससे भी बहुत ज्यादा गंभीर है। वस्तुत: बात यह है कि हम उनके साथ तो चाय पी रहे हैं जो रात-दिन हमारे सीने में छुरा घोपनें का कार्य कर रहा हैं, लेकिन हम उनसे सीधा संवाद बनाने में सफल नहीं हो पा रहे जोकि हमारे देश का ही एक हिस्सा हैं। कश्मीर में कश्मीरियत के नाम पर हुर्रियत नेता यहां के युवाओं को बरगला सकते हैं तो क्यों नहीं सही और यथास्थिति बयान कर इन युवाओं को देश के विकास में योगदान देने के लिए मुख्यधारा में जोड़ा जा सकता ? वास्तव में इस दिशा में एक नई पहल करने की जरूरत है।
आज यह सर्वविदित है कि कश्मीर में बिगड़े
हालातों के लिए हमारा पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान पूरी तरह जिम्मेदार है। पाकिस्तान की इसी दखलंदाजी के कारण ही विगत
दिनों हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह को यहां तक कहना पड़ा था कि कश्मीर में आज जो
कुछ हो रहा है वह सब पाकिस्तान प्रायोजित है और उसका नाम भले ही पाकिस्तान हो, लेकिन
उसकी सारी हरकतें नापाक हैं। ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं, जब
कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को हवा देने के लिए पाकिस्तान ने यहां के युवाओं
को गुमराह किया हो, यह काम
रह-रह कर वह करता ही रहता है । हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी बुरहान वानी हो या उस
जैसे तमाम युवा जो उसके बहकावे में आकर अपने देश से ही गद्दारी करने में लग जाते
हैं। लेकिन इसके वाबजूद भी हमें अपने विश्वास को बनाए रखना होगा। आज नहीं तो कल घाटी
के उन सभी युवाओं को यह बात ठीक ढंग से समझ में आ जाएगी कि कौन उनका सच्चा हितैषी
है। वैसे तो यह बात उन्हें तभी समझ जाना चाहिए था जब कश्मीर में बाढ़ आई थी और
भारतीय सेना ने बिना भेदभाव किये उनके जानमाल की हिफाजत की थी। लेकिन शायद यहां के
अलगाववादी तथा इनके बहकावे में आ जाने वाली आवाम इस अनुभव से कुछ सीखना नहीं चाहती, निश्चित
ही प्रकृति उन्हें और अवसर अपने वतन भारत के प्यार को समझने के लिए अवश्य ही देगी।
दूसरी ओर यह भी एक तथ्य है कि कश्मीर का सच
दुनिया आज जान चुकी है, भले ही
कुछ स्वार्थ से पूर्ण होकर सच्चाई स्वीकार्य न करें किंतु कहना होगा कि इसके
वाबजूद भी विश्व के कई देशों ने कश्मीर में आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की घेरेबंदी
शुरू कर दी है, जिसके कि
संकेत समय-समय पर पिछले दिनों देखने को मिले हैं। आने वाले दिनों में यह घेराबंदी
ओर बढ़ेगी इतना तय है। लेकिन आज भी मूल बात यह है कि कश्मीर का अलगाववाद बंद कैसे
हो और तत्काल में भारत विरोधी नारे तथा गतिविधियों को कैसे समाप्त किया जा सकता
है ? निश्चित
ही वर्तमान परिस्थितियों में हमें कश्मीर को एक नए सिरे से देखना होगा। समस्या है
तो उसका समाधान भी होगा । यह तो सुनिश्चित है कि पाकिस्तान को कोसते रहने से काम
नहीं चलने वाला, लेकिन
उसकी अनदेखी भी संभव नहीं। इसलिए भारत सरकार को जो उपाए कूटनीतिक स्तर पर
पाकिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर करने हों वह करे किंतु इससे भी ज्यादा
जरूरी है कि सबसे पहले वह कश्मीरियों से सीधे संवाद बनाने की व्यवस्था बनाए।
शिवसेना नेता संजय राउत ने प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी को सही सलाह दी है कि कश्मीर के लोगों के साथ ‘चाय पर
चर्चा’ करें।
साथ में यह भी जरूरी है कि यह चर्चा एक बार की होकर न रह जाए, इस
प्रकार के प्रयोजन सतत करने होंगे, क्योंकि कश्मीर में अलगाववादी और पाकिस्तान
परस्त तत्व कश्मीरी युवाओं को बहकाने एवं बरगलाने में समर्थ हैं। उनकी यह समर्थता
हो सकती है, धर्म के
आधार पर हो, यह भी
संभव है, कि
कश्मीरियत यानि विशेष संस्कृति की दुहाई देकर इन्हें भारत से अलग रखने का षड्यंत्र
चलाया जाता हो, यह भी हो
सकता है कि बगैर काम किए ही इस क्षेत्र के अधिकांश नौजवानों को धन का लालच दिया
जाता हो या अन्य कोई और कारण भी इसके पीछे संभव है। ऐसे तत्वों के समक्ष कश्मीर के
राजनीतिक दल भी असहाय-अक्षम नजर आते हैं। कई बार तो यहां के राजनीतिक दलों के आए
बयानों और भाषणों को सुनकर समझ नहीं आता कि राजनीतिक दल कौन सी भाषा बोल रहे हैं ? ये
राजनीतिक दलों की भाषा है या भारत विरोधियों की। वास्तव में ये उन तमाम राजनीतिक
दलों की अपनी साख बनाए रखने की मजबूरी भी हो सकती है। इसलिए सार्थक संवाद, बार-बार
की बातचीत कश्मीर की जनता और यहां के छोटे-बड़े राजनीतिक दलों से साथ होती रहे यह
बेहद जरूरी है।
कश्मीर के हालात बिगड़ने का एक बड़ा कारण यह भी
है कि जाने-अनजाने इस भाव को मजबूत किया गया कि यह भारतीय भू-भाग देश के अन्य
हिस्सों से कुछ विशेष है। वस्तुत: अनुच्छेद 370 जिसके कारण से कश्मीर को कुछ खास रियायतें और
सुविधाएं मिलती रही हैं, जिसके
कारण कुछ हद तक यहां के लोगों में सुविधाभोगी होने का प्रचलन तेजी से पनपता रहा, जिसके
परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं कि आगे चलकर यही अनुच्छेद 370 इसके
अलगाववाद का मुख्य आधार बन गया । इसलिए भी चाय के बहाने लगातार संवाद की यहां
आवश्यकता है। कश्मीर में यदि इस प्रकार की नई पहल की जाती है तो यह तय मानिए कि
कश्मीरी जनता का एक बड़ा वर्ग खुद को भारत के साथ जोड़ने के लिए तैयार हो जाएगा।
लगातार के संवाद के अलावा कश्मीरियों को लेकर फिलहाल तो अन्य कोई स्थायी हल यहां
की शांति बहाली के लिए सूझता नहीं है।
: डॉ. मयंक चतुर्वेदी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-07-2016) को "सावन आया झूमता ठंडी पड़े फुहार" (चर्चा अंक-2414) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा आपने। शायद बातचीत ही वह रास्ता है जिसके जरिए इस समस्या का समाधान हो सकता है।
जवाब देंहटाएंबात चीत के लिये कश्मीरी की मानसिकता को बदलने का काम पहले करना होगा उसके लिये हमारे फौजियों को कष्ट सह कर भी उनके हित में काम करने होंगे। सरकार को भी यही रवैया कुछ दिनों तक अपनाना चाहिये।
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