सोमवार, 6 नवंबर 2017

मध्‍यप्रदेश में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों का होनेवाला राज्य-स्तरीय सम्मेलन ?

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का राज्य-स्तरीय सम्मेलन 17-18 नवम्बर को भोपाल में आयोजित होने जा रहा है। इसे लेकर यहां तक तो ठीक है कि जिस परंपरा का आरंभ पिछले वर्ष ही राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन लघु उद्योग भारती के प्रयासों से हुआ है, उसे आगे सतत बनाए रखने के लिए इस वर्ष भी इस तरह का यह आयोजन राज्‍य में हो रहा है। सम्मेलन में आकर्षक प्रदर्शनी में राज्य के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमी अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के साथ ही वृहद उद्योगों एवं सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम भी यहां अपने स्टॉल लगाएंगे। सरकार उम्‍मीद कर रही है कि यह प्रदर्शनी वृहद उद्योगों एवं एमएसएमई उद्योगों के लिए एक ऐसा प्लेटफार्म होगा, जहाँ दोनों तरह की इकाइयों को आपसी संवाद के अवसर मिलेंगे। इन इकाइयों के बीच व्यापार की व्यापक संभावनाएँ बढ़ेंगी। किंतु जिस तरह की चिंताएं लघु उद्योग के सामने जीएसटी की जटिलता और राज्‍य में अब तक सिंगल विंडो सिस्टम पूरी तरह खड़ा न होने से बनी हुई है, ऐसे में क्‍या यह संभव है कि सरकार अपने जिन उद्देश्‍यों को लेकर यह आयोजन कर रही है वह सफल हो सकेगा ?

यहां राज्‍य सरकार प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का राज्य-स्तरीय सम्मेलन करने के पूर्व उद्यमी विकास योजना प्रशिक्षण का शुभारंभ भी करने जा रही है, जिसमें कि प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के शिक्षित युवाओं को स्वयं का उद्यम लगाने और उद्यमी बनाने के लिए एक माह का प्रशिक्षण दिया जाना है। प्रशिक्षण के बाद प्रदेश में प्रचलित योजनाओं के माध्यम से ऋण दिलाकर उद्यम स्थापित कराए जाने है। किंतु इस पर प्रश्‍न यही है कि क्‍या इन नए खोले गए उद्यमों की आगे चलते रहने की भी कोई गारंटी होगी ?  यदि जीएसटी में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों को ध्‍यान में रखकर आवश्‍यक सुधार जीएसटी कांउन्‍सिलिंग द्वारा नहीं किए जाते हैं तो सच यही है कि प्रदेश में हो रहा यह सम्‍मेलन अपनी पूर्णता को प्राप्‍त करनेवाला बिल्‍कुल नहीं है।

लघु उद्योग भारती के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जितेंद्र गुप्‍ता, राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष डॉ. अजय नारंग और राष्‍ट्रीय सह महामंत्री सुधीर दाते जोकि मध्‍यप्रदेश के ही उद्यमी हैं, बार-बार केंद्र से लेकर राज्‍य सरकार के समक्ष सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमियों की चिंताओं को रख चुके हैं और निरंतर रख भी रहे हैं, लेकिन कहना यही होगा कि जितनी सफलता उन्‍हें अब तक मिलजानी चाहिए थी वह उनसे अभी भी बहुत दूर है।


वस्‍तुत: मध्‍यप्रदेश में ऐसे हज़ारों छोटे कारखाने हैं जिनकी सालाना कमाई 20 लाख से कम है और वे जीएसटी से बाहर हैं लेकिन वर्तमान में इन उद्योगों को कोई भी काम इसलिए देना नहीं चाहता क्योंकि इनके पास जीएसटी नंबर नहीं है। यदि यह जीएसटी का नंबर लेते हैं तो वह सरकारी व्‍यवस्‍था के झंझट में पड़ते हैं। जीएसटी में लेखा प्रणाली की जटिलता, बड़े उद्योगों के समान कर दर एवं इन्सेंटिव का बंद होना, कम्प्यूटर की अनिवार्यता जीएसटी रिटर्न में विभिन्न सूचनाएं जैसे स्टॉक विवरण, वेट वैल्यू, दोनों, विभिन्न प्रकार की सप्लाई में सप्लायर संबंधी अनेकों सूचनाएं बड़ी कम्पनियों के बराबर मांगी गई है। छोटे उद्यमियों के लिए इसकी एचसीएन कोड के अनुसार कर दरें समझ से परे हैं। अब तक छोटी इकाईयों के उत्पाद पर सरकार इन्सेंटिव के जरिये सहायता प्रदान कर रही थी, किंतु एक जुलाई से सभी छूट बंद हो चुकी है। वस्‍तुत: यह ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिनके कारण से प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों पर आज संकट के बादल छाए हुए हैं। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि  जीएसटी काउंसिल स्वयं संज्ञान लेकर राहत प्रदान करे।

सरकार को यह समझना होगा कि लघु उद्यमी वन मैन आर्मी होता है। जैसे सरकार ने इनकम टैक्स में 6 प्रतिशत नेट प्रोफिट दिखाने पर लेखा संबंधी छूट दी हुई है। इसी प्रकार जीएसटी में भी 15 प्रतिशत ग्रोस प्रोफिट दिखाने वाले लघु उद्यमियों को वेट और वैल्यू दोनों की जगह केवल वैल्यू आधारित विवरणी प्रस्तुत करने की छूट दी जाए। इस संबंध में यहां सीधा कहना है कि मध्‍यप्रदेश के वित्‍तमंत्री जयंत मलैया जीएसटी कांउन्‍सिल के सदस्‍य हैं, क्‍या वह सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के हित में केंद्र स्‍तर पर आवश्‍यक परिवर्तन कराएंगे ? यदि हां तो निश्‍चित ही इसका लाभ मध्‍यप्रदेश सहित समुचे देश को होगा।

देखाजाए तो सरकार को चाहिए कि वह इंटर स्टेट विक्रय को सरल बनाए, व्‍यवस्‍था ऐसी हो कि कम्पोजिट व्यवसायी भी अन्तरराज्यीय विक्रय कर सके। छोटे निर्माताओं को आरसीएम में छूट जारी रखी जाए। अंग्रेजी के साथ राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में भी विवरणी का ऑप्शन हो ताकि छोटे उद्यमी भी स्वयं विवरणी भर सके। अत: यह आवश्‍यक हो जाता है‍ कि मध्‍यप्रदेश में पहले एक खड़की योजना पर शीघ्र अमल हो, जिससे कि एक ही स्‍थान से सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों में आनेवाले लोग सरलता और सहजता से अपने सभी शासकीय कार्यों की खानापूर्ति करवा सकें। दूसरा यह कि मध्‍यप्रदेश के वित्‍तमंत्री जयंत मलैया एवं स्‍वयं मुख्‍यमंत्री जीएसटी की जटिलताओं पर ध्‍यान देकर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उदाहरण सहित इससे जुड़ी समस्‍याओं से अवगत कराएं। एक देश एक कर कोई बुरा नहीं, किंतु इसमें पर्याप्‍त सुधार की आज भी आवश्‍यकता है। वस्‍तुत: तभी आगे चलकर इस तरह के प्रदेश में होनेवाले कार्यक्रमों की सफलता है, नहीं तो यह भी अन्‍य कई आयोजनों की तरह ही सिर्फ एक पूर्ति आयोजन बनकर ही रह जाएगा ? जिसका कोई भले ही राजनीतिक उद्देश्‍य निकलता हो लेकिन सामाजिक समृद्धि‍ तो कतई नहीं होगा।

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हाल ही में  अमेरिका प्रवास से लौटे हैं, वे वहां एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता पर व्याख्यान के लिये वहां आमंत्रित किये गये थे । उनके अनुसार अब दुनिया में एकात्म मानववाद का विचार ही आशा का केन्द्र है। पं. दीनदयाल उपाध्‍याय का यह दर्शन वह भी जानते हैं कि पूंजीवाद का समर्थन नहीं करता और विकास में पीछे छूट चुके अंतिम व्‍यक्‍ति की चिंता की सीख देता है। आज सोचनीय यही है कि क्‍या मध्‍यप्रदेश में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के स्‍तर पर यह सोच दिखाई दे रही है ?

शनिवार, 4 नवंबर 2017

आर्थ‍िक मोर्चे पर प्रधानमंत्री

: डॉ. मयंक चतुर्वेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर प्रतिपक्ष एवं अपनी पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा लगाए गए आरोपों का जिस तरह से एक के बाद एक उत्‍तर दिया हैउसके बाद उन सभी लोगों को अवश्‍य ही यह समझ जाना चाहिए कि केंद्र की भाजपा सरकार मोदी नेतृत्‍व में जो भी निर्णय ले रही हैवह देश को स्‍थायी शक्‍ति सम्‍पन्‍न एवं अर्थ व्‍यवस्‍था की दृष्‍ट‍ि से मजबूत बनाने वाले ही हैं। सच यही है कि केंद्र में मोदी सरकार अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही राष्‍ट्र को हर मोर्चे पर तकतवर बनाने की दिशा में स्‍थायी कार्य कर रही है ।

आज विपक्ष जो केंद्र पर सबसे बड़ा आरोप लगा रहा हैवह है कि देश की अर्थव्‍यवस्‍था पटरी से नीचे उतर गई हैजिसके कारण से रोजगार के अवसर कम हुए है। जीडीपी का बुरा हाल है। महंगाई चरम पर है। इस बार इन सभी आरोपों के उत्‍तर प्रधानमंत्री ने पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन के सहारे देकर अपने आलोचकों को बिन्दुवार जवाब देने का प्रयास किया है। इस प्रस्‍तुतिकरण में प्रधानमंत्री मोदी ने कई पैरामीटर्स का जिक्र किया हैजिससे कि वर्तमान में देश की अर्थव्यवसथा की मजबूत स्थितिसरकार की निर्णय शक्ति और विकास की दिशा और गति को साक्ष्‍य सहित समझाया जा सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आलोचकों से प्रश्‍न किया है कि क्या ऐसा पहली बार हुआ है जब देश के जीडीपी की वृद्धि किसी तिमाही में 5.7 प्रतिशत पर पहुंची है पिछली सरकार में छह साल में आठ बार ऐसे अवसर आए,जब विकास दर 5.7 प्रतिशत या उससे नीचे गिरी थी। इतना ही नहीं तो देश की अर्थव्यवस्था ने ऐसी तिमाही भी देखी हैं जब विकास दर 0.2 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत थी और उस समय भारत की मुद्रास्फीति और चालू खाते का घाटा भी अधिक था। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की स्थिति इतनी नाजुक हो गई थी कि भारत को "फ्रेजाइल फाइव" ग्रुप का सदस्य कहा जाने लगा था। उस समय बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के रहते ऐसा कैसे हो गयाहमारे देश में जीडीपी से ज्यादा महंगाई की दर थी और बढ़ते राजकोषीय घाटे तथा बेकाबू चालू खाते के घाटे पर ही चर्चा होती थी।

प्रधानमंत्री ने यूपीए और एनडीए सरकार के तीन सालों के कार्यकाल की कुछ इस तरह से तुलना प्रस्‍तुत की कि उसे पढ़ लेने के बाद कोई यह नहीं कह सकताकि इस सरकार में देश आर्थ‍िक सुधारों की ओर अग्रसर न होकर एक पल के लिए भी अर्थ की कमजोर स्‍थ‍िति में आया दिखाई दिया हो। तुलनात्‍मक रूप से देखे तो पिछली सरकार के आखिरी तीन सालों में गांवों में 80 हजार किलोमीटर सड़क बनी थी और वर्तमान सरकार ने तीन साल में 1 लाख 20 हजार किलोमीटर सड़क बनाई है। यानि 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण सड़कों का निर्माण हुआ है। पिछली सरकार आखरी के तीन साल में 15 हजार किलोमीटर राष्‍ट्रीय राजमार्ग बनाने के काम कियाजबकि भाजपा सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में 34 हजार किलोमीटर से ज्यादा राष्‍ट्रीय राजमार्ग बनवाया है।

इसी तरह रेलवे सेक्टर में पिछली सरकार के आखिरी तीन वर्षों में लगभग 1100 किलोमीटर नई रेल लाइन का निर्माण हुआ था और भाजपा शासन में 2100 किलोमीटर से ज्यादा तक पहुंच गए । वहीं इतने समय में पिछली सरकार ने 1300 किलोमीटर रेल लाइनों का दोहरीकरण किया तो मोदी सरकार में 2600 किलोमीटर रेल लाइन का दोहरीकरण किया गया है। पिछली सरकार के आखिरी के तीन वर्षों में 1 लाख 49 हजार करोड़ का पूंजीगत व्यय किया था तो इतने ही वर्षों में लगभग 2 लाख 64 हजार करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय एनडीए के कार्यकाल में संभव हुआ है । नवीकरणीय ऊर्जासौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा क्षेत्र में पिछली सरकार के बीते तीन वर्षों के कुल कार्यकाल में 12 हजार मेगावॉट की नई क्षमता जोड़ने के स्‍थान पर आज  इतने ही समय में 22 हजार मेगावॉट से ज्यादा ऊर्जा की नई क्षमता को ग्रिड पावर से जोड़ने में मोदी सरकार सफल रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि देश में विमुद्रीकरण के बाद सकल घरेलू उत्पाद अनुपात नकद में  नौ प्रतिशत आ गया हैजबकि यह पहले 12 प्रतिशत था । 10 प्रतिशत से ज्यादा की मुद्रास्फीति कम होकर अब इस साल औसतन 2.5 प्रतिशत पर आ गई है। केंद्र सरकार अपना राजकोषीय घाटा पिछली सरकार के 4.5% प्रतिशत से घटाकर 3.5% प्रतिशत पर ले आई है। भारत का विदेशी मुद्रा भण्‍डार आज 40 हजार करोड़ डॉलर के पार पहुंच गया है। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि अगली तिमाही के जो आने वाले आंकड़े हैं उसमें जीडीपी ग्रोथ 7.7 तक होने की संभावना है ।

आंकड़ों को देखें तो कोयलाबिजलीस्‍टील और प्राकृतिक गैस से प्राप्‍त आय में भी काफी अच्छी वृद्धि दर्ज की जा रही है। देश में लोन के क्षेत्र में ग्रोथ देखने योग्‍य है। केपिटल मार्केटम्‍युचल फंड और बीमा क्षेत्र आज तेजी से प्रगति पथ पर है। कंपनियों ने आइपीओ के द्वारा इस साल पहले 6 महीने में ही 25 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि मोबलाइज की है। गैर-वित्तीय संस्थान में कॉरपोरेट बॉन्ड और निजी नियुक्तियों के द्वारा सिर्फ चार महीने में ही 45 हजार करोड़ रुपयों का निवेश किया जा चुका है। मोदी कहते हैं कि ये ये सारे आंकड़े देश की मजबूत आर्थ‍िक स्‍थिति को दर्शाते हैं । इस सरकार ने समय और संसाधन  दोनों के द्वारा उसके सही इस्तेमाल पर लगातार जोर दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस एक बात पर विशेष ध्‍यान दिलाया हैवह हैहमें देश में निराशा का माहौल पैदा करने से बचना चाहिए। इस वक्‍त देश आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हैजिसमें हमें चाहिए कि देश के आम नागरिक होने के नाते हम अपने प्रधानमंत्री को इस रास्‍ते पर चलने के लिए और अधिक प्रोत्‍साहित करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थ‍िक मोर्चे पर कही सभी तार्किक बातों को समझकर यदि हम सभी व्‍यवहार करेंगे तो निश्‍च‍ित मानिए वह दिन भी अतिशीघ्र आएगा जब देश विकासशील देशों की सूची से बाहर निकलकर विकसित देशों की श्रेणी में आ खड़ा होगा। 

जीएसटी की समस्‍या से निपटने के लिए सरकार की तैयारियाँ

: डॉ. मयंक चतुर्वेदी


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी दरें घटाने का जिस तरह से संकेत दिया हैउसके बाद लगने लगा है कि देश में जीएसटी लागू होने के बाद से जैसी परिस्‍थ‍ितियां केंद्र सरकार के विरोध में निर्मित हुई हैंउनको सरकार बहुत ही गंभीरता से ले रही है। शायद सरकार को भी यह उम्‍मीद नहीं होगी कि इसके लागू होने के तीन माह बाद ही ऐसी स्‍थ‍िति आ जाएगी कि सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक पुनर्विचार करना पड़े। वस्‍तुत: जब इसकी गहराई में जाएं तो स्‍थ‍िति बहुत स्‍पष्‍ट हो जाती है। असल में आज हो यह रहा है कि देश में 1 जुलाई से टैक्स की नई व्‍यवस्‍था तो लागू कर दी गईकिंतु लोभियों पर कैसे लगाम लगेइसकी पुख्‍ता व्‍यवस्‍था नहीं की गई। परिणामस्‍वरूप देश का आम नागरिक जीएसटी के नाम पर पहले से ज्‍यादा लूटा जा रहा है और बदनाम केंद्र की मोदी सरकार हो रही है।

जीएसटी को लेकर देश में किस तरह का वातावरण निर्मित किया जा रहा हैइसके दो उदाहरण यहां दृष्टव्‍य हैं। जब देश का आम उपभोक्‍ता दाम अधिक मांगे जाने पर दुकानदार से पूछता है कि इतना दाम क्‍यों लिया जा रहा हैतो उसे दुकानदार बतलाता है कि इस पर जीएसटी लग गया है इसलिए दाम बढ़े हैं। यही बात जब एक उपभोक्‍ता से उसके केबल नेटवर्क वाले ने अचानक 50 रुपए की बढ़ोत्‍तरी करते हुए कही तो उपभोक्‍ता ने पलटकर सवाल  किया-कितना लगा है जीएसटीवह बोला 28 प्रतिशत । उसके बाद जब उससे फिर कहा गया कि टैक्स तो पहले भी लगता था अब एकदम 50 रूपए क्यों बढ़ाएतो केवल नेटवर्क वाले का उत्‍तर था कि पहले 12 प्रतिशत था अब 28 हो गया। इस पर जब उससे कहा गया कि 28 प्रतिशत होने के बाद भी आपका 50 रुपए लेना नहीं बनता तो उस केबल नेटवर्क वाले का उत्‍तर था कि आपको जो देना है सो दे दीजिए। यह हुई एक जागरुक उपभोक्‍ता की बातलेकिन क्‍या देश का हर नागरिक इतना ही जागरूक है?

इस के इतर दूसरा उदाहरण देखिए- कहा जा रहा है कि जीएसटी के कारण मऊ का हैण्डलूम साड़ी उद्योग बर्बाद हो गया। ऐसा प्रचारित करने वालों का तर्क है कि पहले जहाँ रोज़ाना 10-12 ट्रक साड़ियां मऊ से बाहर जाती थीअब सिर्फ एकाध ट्रक ही बाहर जा रहा है। बताया जा रहा हैहैंडलूम की साड़ी पर सरकार ने 12 प्रतिशत तक टैक्‍स लगा दिया है। किंतु ऐसा बिल्‍कुल नहीं हैहैंडलूम की सस्ती साड़ि‍यों पर जीएसटी है ही नहीं। सच यही है कि जीएसटी का हौव्वा बताकर देश में आज बहुत से व्यापारी जनता की जेब पर सीधा डाका डाल रहे हैं और जनता में दुष्प्रचार यह फैला रहे हैं कि मोदी सरकार ने देश को आर्थ‍िक कमजोरी के रास्‍ते पर ढकेल दिया है। उसके सत्‍ता में आने के बाद से लगातार देश में महंगाई बढ़ रही है और जीएसटी लागू होने के बाद से देश की अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैवगैरह..वगैरह। ऐसा माहौल बनाने में कुछ मीडिया संस्‍थान और भाजपा संगठन तथा सत्‍ता से जुड़े यशवंत सिन्हा जैसे असन्तुष्टों का भी बहुत बड़ा हाथ है।

ऐसे में जीएसटी के ढांचे में सुधार की गुंजाइश को लेकर वित्‍तमंत्री अरुण जेटली की कही बात को अवश्‍य ही हमें समझना चाहिए। वे कह रहे हैं कि रेवेन्यू न्यूट्रल” होने की स्थिति में दरें घटाएंगे। छोटे करदाताओं के लिए जेटली के संकेत अवश्‍य ही जहां राहत भरे हैंअर्थात् सरकार जल्‍द ही छोटे करदाताओं को कागजी खानापूर्ति के बोझ से मुक्त करने की तैयारी में है। यहां वित्त मंत्री की इस बात पर अवश्‍य ही गौर किया जाना चाहिए कि जो लोग देश के विकास की मांग करते हैंमौका आने पर उन्हें उसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी।’ स्‍वभाविक हैविकास के लिए पैसों की जरूरत होती हैइसके संकेत अभी-अभी सरकार ने दिए भी हैं । सरकार टैक्स की चोरी करने वालों के प्रति और सख्त होगी। टैक्स अथॉरिटी आने वाले समय में सोशल मीडिया की मदद से टैक्स चोरों की पहचान करेगी। इसके लिए सोशल मीडिया ऐनालिटिक्स परियोजना का 650 करोड़ रुपए का ठेका लारसन एंड टूब्रो इन्फोटेक कंपनी को दिया गया है। वस्‍तुत: यह कंपनी टैक्स चोरी करने वालों को पकड़ने के लिए वेब पेज तैयार कर रही हैजो यह बता सकेंगे कि आपके पास कितना धन हैउस हिसाब से आप सरकार को कर अदा कर रहे हैं या नहीं। जिसके बाद आपकी जानकारी टैक्स अथॉरिटी को दे दी जाएगी।

इस सब के बीच हमें यह अवश्‍य ही जानना चाहिए कि भारत आज जीएसटी लागू कर दुनिया के उन 140 देशों की सूची में शामिल हो गया हैजिनमें जीएसटी पहले ही लागू है। भारत ने जीएसटी के कनाडियन मॉडल को चुना हैजिसमें डबल जीएसटी का मॉडल चलता है। डबल जीएसटी में केन्‍द्र और राज्‍य को कर वसूलने की शक्‍ति दी जाती है। वहीं यह भी सच है कि भारत में जो जीएसटी दर देश के आम उपभोक्‍ता से ली जा रही हैवह विश्‍व के कई देशों की तुलना में अधिक है जैसे कि फ्रांस और यूके में जीएसटी की दर 20 प्रतिशत है। अभी कनाडा में जीएसटी की दर 13 से 15 प्रतिशत के बीच है। न्‍यूजीलैंड में जीएसटी को 15 प्रतिशत की दर से तथा मलेशिया में जीएसटी की दर 6 प्रतिशत और सिंगापुर में जीएसटी की दर मात्र 7 प्रतिशत है। इसी प्रकार की स्‍थ‍िति कम-ज्‍यादा जीएसटी लागू करने वाले अन्‍य देशों की है। जबकि इसके इतर भारत में जीएसटी की चार प्रभावी दरें 51218 व 28 फीसदी तक रखी गई हैं। जिसमें कि चुनिंदा वस्तुओं पर कर के अलावा जीएसटी मुआवजा उपकर भी लगाया गया है।

इन्‍हीं सब तथ्‍यों के बीच वित्‍त मंत्री आज सही कह रहे हैं कि राजस्व सरकार की जीवन रेखा होती है। इसके माध्यम से ही देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र में तब्दील किया जा सकता है। एक बार बदलाव स्थापित हो जाएंगेफिर हमारे पास सुधार के लिए जगह होगी। भारत में अप्रत्यक्ष करों से सरकार की कमाई बढ़ रही है।अर्थव्यवस्था भी विकास कर रही है इसीलिए हमने जरूरी चीजों पर सबसे कम टैक्स लगाने का फैसला किया है।

वस्तुतः जीएसटी की दरों को लेकर सरकार के समग्र  विचार से लोगों में यह संदेश गया है कि सरकार आम लोगोंछोटे व्यापारियों की समस्याओं को लेकर संवेदनशील है और इसीलिए ही देश में आर्थ‍िक मोर्चे पर आज आशा भी जगी है कि भविष्य में उन समस्याओं और आपत्तियों का कोई न कोई निदान खोज लिया जाएगाजिनके लिए मोदी सरकार को व्यर्थ ही कटघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया जा रहा है।

भारत का विश्‍व गौरव, आत्‍ममंथन करें

 : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

श्रीराम ने जिस तरह से विपरीत परिस्‍थ‍ितियों के दौरान भी जैसा साहस दिखाया और कम संसाधन होने एवं रावण जैसी प्रशिक्षित सेना के अभाव में भी युद्ध को अपने पक्ष में कर लिया था, देखाजाए तो वैसी ही स्‍थ‍िति आज दुनियाभर में भारत को लेकर दिखाई दे रही है।  भारत की शक्‍ति का डंका आज विश्‍वभर में बज रहा है, हालांकि जितने भी प्रकार के दबाव हो सकते हैं,जनसंख्‍या घनत्‍व, स्‍वास्‍थ इत्‍यादि के वह भी हमारे सामने चुनौतियां हैं इसके बाद भी भारत जिस गति से विश्‍व में आगे बढ़ रहा है, उसे देखकर यही कहना होगा कि आजादी के 70 सालों बाद शायद ही यह स्‍वर्ण‍िम समय पूर्व में कभी आया हो। वस्‍तुत: यही निष्‍कर्ष  दुनिया के सबसे बड़े जनसंगठन राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ का भी है।

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहनराव भागवत कहते हैं कि हम 70 साल से स्वतंत्र हैं फिर भी पहली बार अहसास हो रहा है कि भारत की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। सारी दुनिया में हमारी साख बढ़ी है। भारत पहले भी था, हम सब भी थे, लेकिन भारत को गंभीरतापूर्वक देखना और भारत में दखल देने से पहले दस बार विचार करना, यह बातें केवल आज सामने ही आई हैं। सीमाओं पर सुरक्षा को चुनौती देने वालों को हमने जवाब दिया। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उन्हें जवाब मिला है। कश्मीर में देश विरोधी ताकतों की आर्थिक रूप से कमर टूट गई है। यदि हम सभी गंभीरतापूर्वक संघ सर संघचालक की कही इन बातों को समझें तो यह सभी बातें पूर्व सत्‍य प्रतीत होती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में सामरिक, आर्थ‍िक, विदेश सभी मोर्चों पर भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। दुनिया जितनी गंभीरता से आज भारत की कही बातों को ले रही है, उतना उसने कभी पहले नहीं लिया है।

इसी के साथ संघ प्रमुख यह कहने से भी नहीं चूके हैं कि हमारी सुरक्षा के लिए सीमा पर जवान जान की बाजी लगाकर कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। उनको कैसी सुविधाएं मिल रही हैं। उनको साधन संपन्न बनाने के लिए हमें अपनी गति बढ़ानी होगी। शासन के अच्छे संकल्प तो हैं, मगर इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है। कश्मीर घाटी में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं जैसी चाहिए वैसी नहीं पहुंच रही है।शासन-प्रशासन और समाज के समन्वयित प्रयास से राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई जारी रखते हुए सामान्य जनता को भारत की अत्मीयता का अनुभव कराना चाहिए। इस काम में अगर कुछ पुराने प्रावधान आड़े आ रहे हैं तो उनको बदलना पड़ेगा।

यहां वे स्‍वयंसेवक नरेंद्र मोदी एवं अन्‍य जो आज शासन तंत्र में स्‍वयंसेवक संचालन की भूमिका में हैं उनसे यह कहने से भी पीछे नहीं हटे कि शासन के अच्छे संकल्प तो हैं लेकिन इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है। लोगों के लाभ के लिए अनेक योजनाएं चलीं, साहस करने में भी शासन कम नहीं है। लेकिन जो किया है उसका हो क्या रहा है, इसे समझना चाहिए। आर्थिक सुधार के लिए देश के लिए एक मानक सही नहीं हो सकता है। देश में हर हाथ को काम मिलना चाहिए। स्वरोजगार, लघु, मध्यम और कुटीर उद्योग से सबसे ज्यादा काम मिलता है, इसलिए ही अब तक विश्व के आर्थिक भूचालों का असर भारत पर सबसे कम हुआ है । अत: इन सभी के पूर्व विकास पर अवश्‍य ध्‍यान दिया जाए।  

वहीं केरल और पश्‍चिम बंगाल राज्‍यों को लेकर भागवत का कहना सही है कि वहां जिहादी और राष्ट्र विरोधी ताकतें अपना खेल खेल रही हैं। शासन प्रशासन वहां का वैसा ध्यान नहीं देता है। वह भी उन्हीं का साथ देता है। राजनीति में वोटों की खुशामद करनी पड़ती है, पर हमें यह अवश्‍य ध्‍यान रखना चाहिए कि समाज मालिक है। अत: उस समाज को हम सभी को जागरूक बनाना चाहिए। उन्‍होंने  यह प्रश्‍न भी सही खड़ा किया है कि म्यांमार से रोहिंग्या आ क्यों गए ? उनकी अलगाववादी, हिंसक गतिविधियां जिम्मेदार हैं। इन लोगों को अगर आश्रय दिया गया तो वे सुरक्षा के लिए चुनौती बनेंगे। इस देश से उनका नाता क्या है? मानवता तो ठीक है, लेकिन इसके अधीन होकर कोई खुद को समाप्त तो नहीं कर सकता। प्रशासन और समाज के समन्वयित प्रयास से राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई जारी रखते हुए सामान्य जनता को भारत की अत्मीयता का अनुभव कराना चाहिए। इस काम में अगर कुछ पुराने प्रावधान आड़े आ रहे हैं तो उनको बदलना चाहिए।

वस्‍तुत: राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सर संघचालक ने आज अपने उद्बोधन में दो बातें बहुत स्‍पष्‍ट तरीके से स्‍वयंसेवकों और देश के समक्ष रखी है पहली यह कि देश की जनता के लिए यह बहुत गौरव का क्षण है, दुनिया आज भारत की कही बातों को बहुत गंभीरता से ले रही है और दूसरी जो सबसे महत्‍वपूर्ण बात है, वह यही है कि हम स्‍वयं का आत्‍ममंथन करें, हमने जो पिछले 70 वर्षों में प्राप्‍त किया है, क्‍या हम इतने वर्षों की सतत यात्रा में इतनाभर ही प्राप्‍त करने के अधिकारी हैं ? इसी के साथ यह कि देश में आज भी तमाम मोर्चों पर आंतरिक संघर्ष एवं चुनौतियां हैं, जिनसे सिर्फ जनता के वैचारिक जागरण से ही विजय प्राप्‍त की जा सकती है,  कुल मिलाकर भागवत संदेश यही है हम उन तमाम चुनौतियों पर विजय प्राप्‍त करने में सफल हों जो देश को कमजोर बनाती हैं।

लेखक, हिन्‍दुस्‍थान समाचार के वरिष्‍ठ पत्रकार एवं फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं ।  

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

भारत का आतंकवाद निर्मूलन के लिए सुझाव : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ महासभा में भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्‍वराज ने जिस तरह से अपनी बात रखी है उससे दुनिया यह ठीक से जान गई कि भारत सरकार गरीबी मिटाने के लिए काम कर रही है। मानव अधिकार संरक्षण के लिए कार्य कर रही है। इन्‍फॉरमेंशन टेक्‍नोलॉजी में वैश्‍विक ताकत बनने के लिए काम कर रही है और तो और डाक्‍टरइंजीनियरप्रबंधक बनाने के लिए कार्य कर रही है। कुल मिलाकर भारत के पास विश्‍वभर को देने के लिए अपनी पर्याप्‍त ऊर्जा हैजो उसके नागरिकों के माध्‍यम से आज चहुंओर अभिव्‍यक्‍त हो रही है।

यहां सुषमा स्‍वराज ने जोर देकर विश्‍वभर के देशों के बीच पूछा कि कौन है आतंकवाद का शौकीन देशआतंकियों के कोई बैंक खाते नहीं हैंउनकी कोई फैक्ट्री नहीं हैफिर उन्हें हथियार कौन देता हैकौन धन मुहैया कराता हैकौन सहारासंरक्षण देता हैवास्‍तव में दुनिया में कुछ ऐसे देश हैं जो आतंकियों को बोतेउगाते और पालते हैं। आतंकवाद का निर्यात भी करते हैं। आतंकवाद के ऐसे शौकीन देशों की पहचान होनी चाहिए। औरउन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए।  वस्‍तुत: अपने भाषण के दौरान भारत की विदेश मंत्री स्‍वराज का सीधे तौर पर जोर इस बात पर था कि विश्व समुदाय में ऐसे देशों को कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए जो आज आतंक को प्रश्रय देते हैं। दुनिया को यह देखना होगा कि जिनके द्वारा भी आतंकियों को पैसाहथियार मुहैया कराए जा रहे हैंउन्‍हें चिन्‍ह‍ित कर ऐसे देशों पर सख्‍त कार्यवाही की जाए।

यूएनओ के मंच पर भले ही पाकिस्‍तान को ध्‍यान में रखउसके आतंक प्रोषित क्रिया कलापों को लेकर ये सभी बाते कही गई होंकिंतु हैं तो यह सभी सच । वर्तमान में इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत ने विश्‍व के इस शक्‍तिशाली मंच पर अपनी जो-जो भी बातें पाकिस्‍तान को लेकर कही हैं उनमें से कुछ भी झूठ हो । सुषमाजी का यह तर्क भी बहुत सत्‍य था कि हमने दुश्मनी छोड़ मित्रता के आधार पर सारे मसले सुलझाने की कोशिश की। हमने पिछले दो बरस में मित्रता का पैमाना खड़ा कियालेकिन हमें मिला क्यापठानकोटउड़ी और बहादुर अलीबहादुर अली तो जिंदा सुबूत है कि सीमा पार से आतंकी आया है।

इसमें भी जो सबसे ज्‍यादा जोर सुषमा स्‍वराज ने दियावह बात यही है कि आतंकवाद पर दुनियाभर में दो प्रकार के नियम नहीं हो सकते हैं। किसी देश के लिए कुछ और किसी देश के लिए कुछ । इसलिए भारत ने यूएनओ में इस बात को एक बार फिर दोहराया कि आतंकवाद के खिलाफ व्यापक वैश्विक संधि (सीसीआईटी) का जो प्रस्ताव पिछले 20 सालों से लंबित है उस पर गंभीरतापूर्वक अमल हो और विश्‍व के सभी देश मिलकर कार्य करना आरंभ करें । वास्‍तव में आज आतंकवाद के खिलाफ कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं जो आतंकवादियों को सजा दे सकेइसका फायदा आतंकी गुट उठा रहे हैंइसलिए विश्‍व के देशों को आतंकवाद के मुद्दे पर एक हो जाना चाहिए

सुषमा स्‍वराज ने जो दूसरी महत्‍वपूर्ण बात यूएनओ के मंच से रखी वह है कि संयुक्त राष्ट्र का निर्माण 1945 में कुछ ही देशों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। किंतु आज की वास्तविकता और परिस्थितियों में पिछले 72 सालों में बहुत बदलाव आया हैइसलिए इसे ध्‍यान में रखते हुए सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी सदस्यता का विस्तार होना चाहिए। देखाजाए तो संयुक्त राष्ट्रएक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाने का तत्‍कालीन उद्देश्‍य यही रहा था कि यह संगठन अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोगअन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षाआर्थिक विकाससामाजिक प्रगतिमानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्य करेगा। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में  विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश हैं। इस संस्था की संरचना में आम सभासुरक्षा परिषदआर्थिक एवं सामाजिक परिषदसचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मिलित हैं। किंतु कहीं न कहीं यहां भी शक्‍ति सम्‍पन्‍न देशों अमेरिकाचीनफ्रांसरूस और यूनाइटेड किंगडम की मनमानी देखने को मिलती है।

भारत की विदेश मंत्री स्‍वराज का यहां सीधा यही कहना था कि कुछ देशों की बपौती नहीं बनना चाहिए इस अंतरराष्‍ट्रीय मंच को । ऐसा नहीं होना चाहिए कि आतंकवाद पर यदि भारत के समर्थन में अमेरिका खड़ा होता है तो चीन सुरक्षा परिषद का स्‍थायी सदस्‍य होने का नाजायज फायदा उठाए और हमारा विरोध यह कहकर करे कि आतंकवाद पर पाकिस्‍तान से त्रस्‍त होने की भारत की बातें सच नहीं। वस्‍तुत: आतंकवाद तो आतंकवाद हैवह हर देश का एक सा सच होगाउसे अलग तरह से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए।  

वास्‍तव में यह हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज का संयुक्त राष्ट्र के मंच से पाकिस्तान की आतंकियों को पालने की मंशा पर एक करारा प्रहार है। श्रीमती स्वराज ने इस मंच से पाकिस्तान को बिंदुवार जवाब दिया है। वहीं उसे यह भी जता दिया‍ कि जो स्‍वयं ही मानवाधिकारों पर अमल नहीं करता उसे भारत को लेकर मानवाधिकार की बातें करने का कोई नैतिक हक नहीं। पहले पाकिस्‍तान आतंक को पालना बंद करे तब मानवाधिकारों की पैरवी करे।

इस सब के बीच सच यही है आतंकवाद भारत या फ्रांसअमेरिका या किसी अन्‍य एक देश का दुश्‍मन नहीं हैयहपूरी दुनिया और मानवता का दुश्मन है । इसे उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्प और प्रबल इच्छाशक्ति चाहिए जोकि आज यूएनओ के सदस्‍य देशों के बीच स्‍थायी एकमत स्‍वरूप में दिखाई नहीं देती है। शायदसुषमाजी यही कहना चाहती थीं कि आतंकवाद पर सभी देश एकमत हों और जो देश आतंकवादी गतिविधियों में सम्‍मलित पाया जाएउसका सार्वजनिक वहिष्‍कार हो। यदि आज यह सुझाव दुनिया के देश स्‍वीकार कर लें तो संभवत: अलग-थलग पड़ने के भय से हो सकता है कि विश्‍व में आतंकवाद गतिविधियों में कमी आ जाए।

केंद्र का सबके लिए आवास पर काम : डॉ. मयंक चतुर्वेदी



भारत में 80 के दशक में एक फिल्‍म आई थी रोटीकपड़ा और मकान । इस फिल्म में अभिनेता शशिकपूर का एक प्रसिद्ध डायलॉग है, किसी भले आदमी ने कहा है कि ये मत सोचो कि देश तुम्‍हें क्‍या देता हैसोचो ये कि तुम देश को क्‍या दे सकते हो और जब तक हम सब ये नहीं सोचते हमारा कुछ नहीं हो सकता । इसी के साथ इस फिल्‍म की पटकथा यह भी बताती है कि इंसान की सबसे पहली आवश्‍यकता उसकी पेट की आग का शांत होना और उसके बाद तन ढंकने के लिए कपड़े फिर आवास यानि की सिर पर छत का होना है। आज पुन: इस फिल्‍म की याद इसलिए हो आई क्‍योंकि केंद्र सरकार ने फैसला ही कुछ ऐसा लिया है। केंद्र सरकार ने आज किफायती आवास के लिए नई सावर्जनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) नीति की घोषणा की है। इसके अंतर्गत अब से निजी भूमि पर भी प्राइवेट बिल्‍डरों द्वारा निर्मित किए जाने वाले प्रत्‍येक मकान के लिए 2.50 लाख रुपये तक की केंद्रीय सहायता दी जाएगी। जिसके बाद कि अब उम्‍मीद की जा सकती है कि शहरी क्षेत्रों में सरकारी भूमि पर क्रियान्वित होने वाली किफायती आवास परियोजनाओं में निजी निवेश की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ जाएंगी।

वास्‍तव में काले धन की गिरावट और सरकारी सिस्‍टम के समकक्ष खड़ी हो चुकी नई भ्रष्‍ट अर्थ व्‍यवस्‍था का ध्‍वस्‍त होता समयआज सीधे तौर पर बता रहा है कि अब वे दिन दूर नहीं जब भारत अपनी प्रगति की उड़ान भरने में दुनिया के किसी भी देश से पीछे रहेअर्थात समय के साथ वह तेजी से वैश्‍विक क्ष‍ितिज पर आगे बढ़ रहा है । वस्‍तुत: यह इसलिए भी कहा जा रहा है कि इन दिनों केंद्र एवं राज्‍य सरकारें देश की आम जनता को रोटी मुहैया कराने के बाद अपने देश की जनता को उसी के टैक्‍स के रूप में दिए पैसे से किसी दूसरे रूप में उसी तक अपनी सेवाएं निरंतर पहुंचा रही है । फर्क सिर्फ इतना है कि पूर्व की तुलना में विकास का सूचकांक यहां नया सेट किया गया है।

केंद्र सरकार द्वारा जनता तक पहुंचाई जानेवाली सुविधाओं में एक नई व्‍यवस्‍था यह जुड़ी है कि आवास और शहरी नीति के अंतर्गत किफायती आवास वर्ग में निवेश करने के वास्‍ते निजी क्षेत्र को आठ पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) विकल्प दिए गए हैं। इस नीति का उद्देश्‍य सरकारडेवलपर्स और वित्तीय संस्थानों के समक्ष मौजूद जोखिमों को उन लोगों के हवाले कर देना हैजो उनका प्रबंधन बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त जो सीधतौर पर समझ आता हैवह यह भी है कि इस नीति के अंतर्गत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए अल्‍प प्रयुक्‍त एवं अप्रयुक्‍त निजी और सार्वजनिक भूमि का उपयोग भी किया जा सकेगा ।

निजी भूमि पर किफायती आवास में निजी निवेश से जुड़े दो पीपीपी मॉडलों में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के ऋण संबंधी सब्सिडी घटक (सीएलएसएस) के तहत बतौर एकमुश्‍त भुगतान बैंक ऋणों पर ब्‍याज सब्सिडी के रूप में प्रति मकान लगभग 2.50 लाख रुपये की केन्‍द्रीय सहायता देना भी इसमें शामिल है। दूसरे विकल्‍प में अगर लाभार्थी बैंक से ऋण नहीं लेना चाहता है तो निजी भूमि पर बनने वाले प्रत्‍येक मकान पर डेढ़ लाख रुपये की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी। वस्‍तुत: सरकार ने यहां राज्यप्रमोटर निकायों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद आठ पीपीपी विकल्प तैयार किए हैं जिनमें से छह विकल्‍प सरकारी भूमि का उपयोग करते हुए निजी निवेश के जरिए किफायती आवास को बढ़ावा देने से संबंधित हैं।

सरकारी भूमि के इस्तेमाल वाले छह मॉडलों में डीबीटी मॉडल को प्रमुखता से लिया गया है जोकि यह कहता है कि  प्राइवेट बिल्‍डर सरकारी भूमि पर आवास की डिजाइनिंग के साथ-साथ इसका निर्माण कर इन्‍हें सरकारी प्राधिकारियों को हस्‍तांतरित कर सकते हैं। निर्माण की सबसे कम लागत के आधार पर सरकारी भूमि आवंटित की जाएगी। तय पैमाने पर आधारित सहमति के अनुरूप परियोजना की प्रगति के आधार पर सरकारी प्राधिकारी द्वारा बिल्‍डरों को भुगतान किया जाएगा और खरीदार सरकार को भुगतान करेगा।

यहां जो दूसरा मॉडल लाया गया है वह है क्रॉस-सब्सिडी वाले आवास का मिश्रित विकासजिसके अनुसार प्राइवेट बिल्‍डरों को दिए गए प्‍लॉट पर निर्मित किए जाने वाले किफायती आवासों की संख्‍या के आधार पर सरकारी भूमि का आवंटन किया जाएगा। ऊंची कीमतों वाले भवनों अथवा वाणिज्यिक विकास से अर्जित होने वाले राजस्‍व से इस सेगमेंट के‍ लिए सब्सिडी दी जाएगी। इसी का एक पीपीपी विकल्प वार्षिकी आधारित रियायती आवास योजना हैजिसके अनुसार सरकार के स्थगित वार्षिकी भुगतान के सापेक्ष बिल्‍डर निवेश करेंगे। बिल्‍डरों को भूमि का आवंटन यहां आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है।

केंद्र सरकार की ओर से आम जनता को सस्‍ते एवं शीघ्र समय में मकान उपलब्‍ध हो सके इस‍के लिए चौथे विकल्‍प के रूप में वार्षिकी सह-पूंजी अनुदान आधारित किफायती आवास को चुना हैजिसके अंतर्गत वार्षिकी भुगतान के अतिरिक्‍त बिल्‍डरों को एकमुश्‍त भुगतान के रूप में परियोजना लागत के एक हिस्‍से का भुगतान किया जा सकता है। वहीं प्रत्‍यक्ष संबंध स्‍वामित्‍व वाले आवास के अंतर्गत प्रमोटर सीधे खरीदार के साथ सौदा करेंगे और लागत राशि वसूलेंगे। दूसरी तरफ सार्वजनिक भूमि का आवंटन आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है। सरकार ने जो अपना अंतिम पीपीपी विकल्प चुना है वह है प्रत्‍यक्ष संबंध किराये वाले आवास । वस्‍तुत: इससे सरकारी भूमि पर निर्मित आवासों से प्राप्‍त किराया आमदनी के जरिए बिल्‍डरों द्वारा लागत की वसूली किया जाना संभावित है।

यहां निष्‍कर्ष रूप से समझ सकते हैं कि सरकारी भूमि आधारित इन छह पीपीपी मॉडलों के अंतर्गत लाभार्थी प्रति मकान 1.00 लाख से लेकर 2.50 लाख रुपये तक की केन्‍द्रीय सहायता पा सकते हैं। वसतुत: देखाजाए तो आवास संबंधी इस निर्णय से देश के हर उस व्‍यक्‍ति को लाभ होगा जो अपना छोटा सा आशियाना चाहता है। इस निर्णय के बाद अब कहा जा सकता है कि सरकार ने आज अनेक तरह की रियायतों और प्रोत्‍साहनों के जरिए अनुकूल स्थितियां रियलस्‍टेट क्षेत्र में भी बना दी हैं।

यहां पुनश्‍च शशि कपूर को रोटीकपड़ा और मकान फिल्‍म के जरिए याद करते हुए कहना होगा कि वह जो कहता है,वह आज देशभर में जीएसटी जैसे कानून और उसके अनुपालन में आम जनता पर भी हूबहू लागू हो रहा है। इससे जनता जनार्दन को मिलनेवाले लाभ को जोड़कर भी देखा जा सकता है। देश में एक टैक्स-एक देश-एक मार्केट का सपना भले ही यर्थाथ हो रहा है लेकिन इसके विरोध में स्‍वर अभी भी तेज हैं। कारण लोगों के मन में कई तरह के कन्फ्यूजन का होना तथा टैक्स के सिस्टम में एकदम से आया बदलाव है।  परन्‍तु इसी के साथ सच यह भी है कि भारत सरकार के पास अब पहले जैसी धन की कोई कमी नहीं रही है। आमजन का पैसा उसके पास टैक्‍स के रूप में कई स्‍तरों पर तेजी के साथ पहुंच रहा हैयह अंतर पूर्व की तुलना में इतना अधिक है कि देश में चहुंओर होनेवाले द्रुत गति से विकास की सहज कल्‍पना की जा सकती हैइससे इस बात के लिए भी पूरी तरह से आशान्‍वित हुआ जा सकता है कि भविष्‍य में भारत का विकास बहुत तेजी से होगाजिसके लक्षण इस एक निर्णय से भी सीधेतौर पर दिखाई दे रहे हैंरोटी के बाद आवास देश के हर नागरिक की पहली जरूरत जो है।

गौ-उवाच, प्रश्‍न खड़े करती है, संवाद का मर्म बताती है : डॉ. मयंक चतुर्वेदी


    गौ-के बारे में हम सभी अपने बचपन से कुछ जानते-समझते आए हैंवहीं कुछ लोगों को ये सौभाग्‍य भी मिला है कि वे उसके साथ वक्‍त गुजारतेकुछ ने तो अब भी गौ-सेवा को अपना लक्ष्‍य बना रखा है। इसलिए गाय माता को लेकर सबकी अपनी-अपनी अनुभूतियां हैं। प्राचीन वैदिक वांग्‍मय में गोमाता का सन्दर्भ 1331 बार आया है। जिसमें कि ऋग्वेद में 723 बारयजुर्वेद में 87 बारसामवेद में 170 बार और अथर्ववेद में 331 बार गौ का किसी न किसी रूप में स्‍मरण किया गया है। ऋग्वेद में कहा गया है कि जिस स्थान पर गाय सुखपूर्वक निवास करती है वहां की रजत पवित्र हो जाती है ।  अथर्ववेद में रुद्रों की मातावसुओं की दुहिताआदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि-संज्ञा से गौ को विभूषित किया गया है ।  वेदों में गाय के लिए गोधेनु और अघ्न्या ये तीन शब्द सबसे अधिक हैं । वेदों को समझने के लिये छः वेदांग शास्त्रों में से एक निरुक्त शास्त्र में वैदिक शब्दों के अर्थों को विस्‍तार से बताया गया है जिसे निर्वचन कहते हैंयहां हन हिंसायाम्’ धातु से हनति,  हान आदि शब्द बनते हैं जिसका अर्थ हिंसा करना मारना है।  गौ के लिए यहां अघ्न्या कहा गया है अर्थात् जिसकी कभी भी हिंसा न की जाये।

इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण में (7/5/2/34) में कहा गया है-सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ: अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदरसत्यसरसऔर उपयोगी यह गौ है।  इसमें भी गाय को अघ्न्या बताया गया है। वस्‍तुत: यह वेदों में गाय का महत्व है।  सभी ऋषियों ने एक स्‍वर में बोला है कि गाय की हत्या नहीं करनी चाहिए। इस धरती पर विचरण करने वाले जीव-जन्तुओं में संभवत: गाय ही एकमात्र ऐसी है जिसे देवतुल्य व पूज्य माना गया है।

वेदों से आगे पुराणों एवं श्रीमद्भगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कामधेनु की महत्ता बताई है। केवल हिन्दू धर्म में ही नहींअन्य मत-पंथों में भी इसकी महत्ता और पवित्रता को स्वीकार किया गया है। गोसेवा को पुण्य कर्म माना गया है। ऐसी पापनाशिनीसमस्त जगत का कल्याण चाहने वाली गाय की धार्मिकआध्यात्मिक,सांस्कृतिकआर्थिक एवं औषधीय महत्ता को समेटे हुए और वर्तमान में गाय से जुड़े जनमानस के बीच के अंतर्विरोध को रेखांकित करती हुए पुस्तक 'गौ-उवाचडॉ. देवेन्‍द्र दीपक की एक श्रेष्‍ठ कृति है। कुल 30 कविताओं के माध्‍यम से पुस्तक में गाय की महत्ता का विस्तार से विवेचन एवं समाज की कमियों को प्रमुखता से उठाया गया है।  

डॉ. देवेन्‍द्र दीपक की पुस्‍तक गौ-उवाच अपने आप में वर्तमान समाजिक और प्रशासनिक व्‍यवस्‍था के साथ उस समुची प्रणाली के प्रति प्रश्‍न खड़े करती है जोकि गाय के प्रति दिखावे की संवेदना तो दिखाती हैंकिंतु व्‍यवस्‍था सुधार के लिए अपने ईमानदार प्रयत्‍न करते दिखाई नहीं देती है।

प्रश्‍न यह है कि वर्तमान में गौ भारतीयों के लिए क्‍या रही है पशुदूध देनेवाला यंत्र या इससे बहुत व्‍यापक भिन्‍न......गौ- वैदिक काल में देव... उत्‍तर वैदिक काल में माता... मध्‍यकाल में पशु.... और आधुनिक काल में ?स्‍वयं एक भोजन...मांस का लूथड़ाजिसकी चर्बीसींग और नाखूनों की कीमत उसकी देह से अधि‍क है। वस्‍तुत: यह पुस्‍तक हम सभी के बीच आज सोचने के लिए एक समान भावधारा पैदा करती है और विमर्श के लिए जमीन। इस पुस्‍तक की पहली कविता ही बहुत कुछ स्‍पष्‍ट कर देती है :

पक्षपात तुम करते होमैं नहीं करती...छुआ-छूत तुम मानते हो...मैं नहीं मानती...मुझे बीच में खड़ा कर ..तुम लड़ते हो...लड़ने-लड़ाने की शैली...तुम्‍हारी हैमेरी नहीं। पुस्‍तक राजनीतिक स्‍तर पर कांग्रेस जैसी राष्‍ट्रीय पार्टी से यह सवाल भी करती है कि क्‍या सोचकर तुमने..दो बैलों की जोड़ी को अपना चुनाव चिह्न बनाया ?..और क्‍या हुआ तुमने उसे छोड़ दिया पुस्‍तक देश के गद्दीदारों से पूछती है कि आखिर मेरे अपनत्‍व में कमी क्‍या रह गईजो वफा की उम्‍मीद अब तक अधूरी है। गौ-उवाच में वफा कविता में डॉ. देवेन्‍द्र ने बड़ी ही साफगोई से यह पूछा हैवह जो विदेशी था चला गया..ये जो देशज हैं.. यही तो अदल-बदल कर तख्‍त पर बैठे रहे...आरे के दांतों के नीचे.. हमारी गर्दन ज्‍यों की त्‍यों....हमारी चीख सुने कौन ?... प्राणों की भीख सुने कौन ?... दिल्‍ली की पंचायत अंधीबहरी... एक तरफा... हम गायों से कौन करे वफा ?.....

यहां गाय देश के कर्णधारों से सीधे पूछ रही है कि वे मुझे हिंसक नजरों से घूरते हैंमेरे प्रति घोर अवमानना है भीतर उनके.... वे ताल ठोककर कहते हैं....हम कुछ भी खाएं...यह हमारी मर्जी....कोई कौन होता है हमें टोकने वाला करुण कातर मैं टुकुर टुकुर देखती हूंमेरे भारत का यह कैसा संविधान इनके सब हैं अधिकारमेरे हित में क्‍या है समाधान गौ-उवाच में पंडित और ख्‍वाजा के सांकेतिक प्रतिरूपों के माध्‍यम से खासतौर पर इस पुस्‍तक में डॉ. देवेन्‍द्र दीपक  अवश्‍य यह पूछते दिखे कि अपने बुढ़ापे के लिए तुम्‍हें चाहिए अच्‍छी खासी पेंशन...हमारे लिए बूचड़खाने का दरवाजा... क्‍यों भाई पंडितक्‍यों भाई ख्‍वाजा ?...वास्‍तव में गाय का आज सबसे बड़ा दर्द यही है कि उसके बूढ़े होने के बाद सबसे ज्‍यादा उसे चारा और पानी देनेवाले ही दर दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं।

यह पुस्‍तक बड़ी ही बेवाकी से यह भी पूछने का साहस करती है कि वह जो खाता है मेरा मांस बड़ा सहिष्‍णु है,वह जो पीता है मेरा दूध वड़ा असहिष्‍णु है। मेरे भारत को ये क्‍या हो गया हैन्‍याय और औचित्‍य कहां खो गया है ?..... इतना ही नहीं तो आज समाज और सरकार दोनों स्‍तरों पर इन दिनों समाजिक समरसता की बातें बहुत हो रही हैंऐसे में यहां गौ देश के आम जन से पूछती हैं कि बीफ को जलसे जलूस में धमक के साथ खाना मेरे प्रेमी भक्‍तों को खुले आम चिढ़ाना...समाजिक समरसता के विरुद्ध यह एक नियोजित अभियान है।

डॉ. दीपक बड़ी चतुरायी से अपनी इस पुस्‍तक में गंगा-जमुनी तहजीब पर भी सवाल खड़े करते हैंइस संयुक्‍त संस्‍कृति पर गाय यहां आम जन से जनना चाह रही है कि राजनीतिकलासंस्‍कृति और शिक्षासब मंचों पर दशकों से गंगा जमुनी तहजीब तकिया कलाम की तरह चलन में है...अगर सच ऐसा है तो अच्‍छी बात है। एक बात हमें कहनी है...सदा के लिए यह बात तय हो जानी चाहिए.. हमें बतादी जानी चाहिए- गंगा जमुनी तहजीब में हम गायों को क्‍या जगह है ?.... और जो जगह हैउसकी क्‍या वजह है ?....

वास्‍तव में यह एक ऐसा प्रश्‍न है जहां हमारा संविधान भी मौन है..इसी बात को डॉ. दीपक अपनी हित नामक कविता में भावनात्‍मक स्‍हायी से शब्‍दों को उकेरते हैं और पूछते हैं कि मेरा मांस खानेवालों के सर्वाधिकार सुरक्षितमेरा दूध चाहनेवालों के हितकौन करे संरक्षित...संविधान में दिए अधिकार सब कुछसंविधान में दिए कर्तव्‍य कुछ भी नहीं।..... वस्‍तुत: पुस्‍तक गौ-उवाच की हर कविता सीधे ह्दय को छूती हैभावनाओं में सागर सा वेग पैदा करती है और हर बार हर कविता कहती है कि अपनी मर्यादाओं को लांघ जाओगाय जैसी अमृता को जीवन दान देने के लिए अपना सर्वस्‍व होम कर जाओ।....

अंत में इस पुस्‍तक की कविता वर्तमान शासन तंत्र के प्रति अपनी कृतज्ञता तो ज्ञापित करती ही है साथ में स्‍वयं में भय से लिपटी प्रसन्‍नता का बोध कराती हैकवि‍ कहता है कि भारत में सदियों के बादकुछ अनुकूलता आई गौ वंश के लिए।... एक सुखद अध्‍याय हमारी मुक्‍ति के खण्‍डित इतिहास में फिर जुड़ा.... प्रमाण उस कोटि जन को जो हमारी रक्षा के लिए हवन हो गया खुशी खुशी।.. हमें न्‍याय मिला हम प्रसन्‍न हैं लेकिन हमारी यह प्रसन्‍नता लिपटी है भय के काले रुमाल में.... कहीं ये चार दिन की चांदनी तो नहीं?... हमारा इतिहास साक्षी है हमारे वध पर प्रतिबंध लगते रहे… प्रतिबंध निरस्‍त होते रहे….. क्‍या पता इतिहास अपने को फिर दोहराए,,,

यहां इस पुस्‍तक की सबसे अच्‍छी बात यह है कि बेरोजगारी के कोहराम के बीच गौ इस पुस्‍तक में आह्वान कर रही है कि मैं गाय हूं एक माय हूं अवैध बूचड़खाने वालों बच्‍चों के पेट का सवाल है,,,, मैं कहती हूं,….. मेरे पास आओ दूध डेयरी के धंधे में लग जाओ,….आज तुम दिनभर देखते हो खून ही खून….. फि‍र तुम दिन भर देखोगे दूध ही दूध....

पुस्‍तक में भाषा शैलीशब्‍द विन्‍यास का बहुत ध्‍यान रखा गया हैसामान्‍य रोजमर्रा के बोलते शब्‍दों में डॉ. देवेन्‍द्र दीपक के माध्‍यम से गौ यहां अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त कर रही है। यह पुस्‍तक न केवल पढ़ने के बाद उसकी शब्‍द ऊर्जा को अपने अंदर में समेटने के लिए विवश करती हैंबल्कि यथार्थ जीवन में गौ सेवा के लिए प्रवृत्‍त भी करती है। सही पूछिए तो यही इस पुस्‍तक की सफलता है और डॉ. देवन्‍द्र दीपक की कलम की धन्‍यता भी.....

लेखक हिन्‍दुस्‍थान समाचार बहुभाषी न्‍यूज एजेंसी के मध्‍यप्रदेश ब्‍यूरो प्रमुख एवं फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं।