मंगलवार, 19 सितंबर 2017

देश पर कम होता ऋण भार : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

ण को विकास के लिए जितना अधिक अपरिहार्य माना गया हैउतना ही लगातार इससे डूबे रहने को जनमानस में घोर विपत्‍ति‍कारक स्‍वीकार्य किया गया है। भारत पर आज दुनियाभर का कितना कर्ज हैयह जानकर जितनी अधिक चिंता होती हैवहीं इन दिनों इससे भी सतुष्‍टी का भा जाग्रत होता है कि कम से कम यह ऋणभार मोदी सरकार में कम होना तो शुरू हुआ। वित्त मंत्रालय की भारत पर विदेशी ऋण: स्थिति हालिया आई रिपोर्ट 2016-17’ बता रही है कि पुराने ऋण को समाप्‍त करने में केंद्र सरकार कितनी अधि‍क सक्रिय है। 

एक दृष्‍ट‍ि में देखाजाए तो मार्च 2017 के आखिर में भारत पर 471.9 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी ऋण थायह मार्च 2016 के आखिर में आंके गए विदेशी ऋण की तुलना में 13.1 अरब अमेरिकी डॉलर (2.7 फीसदी) कम हुआ है। लगने को यह ऋण के कम होने का आंकड़ा एक दम से देखने पर अधि‍क नहीं लगता हैकिंतु इसके सांख्‍यीकि एवं व्‍यवहारिक पक्ष को देखाजाए तो देश के स्‍तर पर भारत के लिए अवश्‍य ही यह एक सुखभरी खबर है।  

भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा तैयार की गई भारत पर विदेशी ऋण: स्थिति रिपोर्ट इस बात को विस्‍तार से बताती है कि आखिर में किस तरह संभावनाओं के प्रयोग एवं नवाचारों से भारत पर विदेशी ऋण की स्थिति में सतत सुधार आ रहा है। रिपोर्ट तुलनात्‍मक रूप से भारत पर विदेशी ऋण के रुझानसंरचना और ऋण भुगतान का विश्लेषण करने के साथ ही अन्य देशोंविशेषकर विकासशील देशों के सापेक्ष भारत पर विदेशी ऋण की एक तुलनात्मक तस्वीर सफलता के साथ प्रस्‍तुत करने में भी सफल रही है ।

वस्‍तुत: केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद से लगातार आर्थ‍िक मोर्चों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जो निर्णय लिए गएउसमें विशेषकर नोटबंदी जैसे मुद्दों को लेकर यही प्रयास होता रहा है कि किसी न किसी तरह सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाए। विपक्ष ने इसके लिए कोई कसर भी नहीं छोड़ीकिंतु इसके बाद जो उसके सकारात्‍मक परिणाम अब सामने आ रहे हैं उससे लगने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदृष्‍टा हैंवे स्‍पष्‍ट जानते हैं कि हमें विकास के कौन से रास्‍ते पर चलकर देश को आगे ले जाना है और किस तरह से अपने ऊपर लगातार बढ़ते कर्ज को कम करने की दिशा में आगे बढ़ते रहना है। तभी तो मार्च 2017 के आखिर में भारत पर 471.9 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी ऋण थायह मार्च 2016 के आखिर में आंके गए विदेशी ऋण की तुलना में 13.1 अरब अमेरिकी डॉलर (2.7 फीसदी) कम हो गया है।

वास्‍तव में यह विदेशी ऋण में कमी दीर्घकालिक ऋण विशेषकर एनआरआई जमाराशि और वाणिज्यिक उधारियों में गिरावट की वजह से संभव हो पायी है।भारत पर विदेशी ऋण: स्थिति रिपोर्ट के आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि मार्च 2017 के आखिर में दीर्घकालिक विदेशी ऋण 383.9 अरब अमेरिकी डॉलर का थाजो कि मार्च 2016 के आखिर में आंके गए आंकड़े की तुलना में 4.4 फीसदी की गिरावट को दर्शाता है। मार्च 2017 के आखिर में कुल विदेशी ऋण का 81.4 प्रतिशत दीर्घकालिक विदेशी ऋण थाजो मार्च 2016 के अंत में 82.8 प्रतिशत । इसी प्रकार देश पर मार्च 2017 के आखिर में अल्‍पकालिक विदेशी ऋण 5.5 प्रतिशत बढ़कर 88.0 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। यह मुख्य रूप से व्यापार संबंधी क्रेडिट (ऋण) में वृद्धि के कारण हुआजो 98.3 प्रतिशत हिस्‍सेदारी के साथ अल्पकालिक ऋण का एक प्रमुख घटक है।

इस तरह यदि भारत पर विदेशी ऋण रिपोर्ट को ओर गंभीरता से देखें तो विदेशी मुद्रा भंडार कवर एवं ऋण के अनुपात के 74.3 प्रतिशत से बढ़कर 78.4 प्रतिशत हो जाने और विदेशी ऋण-जीडीपी अनुपात के 23.2 प्रतिशत से गिरकर 20.2 प्रतिशत पर आ जाने से भारत पर विदेशी ऋण इस वक्‍त बहुत ही नियंत्रित दायरे में गया है और वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 में विदेशी ऋण की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है

यह स्‍थ‍िति विश्व बैंक की "अंतर्राष्ट्रीय ऋण सांख्यिकी 2017"के ऋण आंकड़ों के संदर्भ में भी आगे आश्‍वस्‍त करती है कि हमारे देश भारत की गणना वर्तमान में विश्‍व के कम असुरक्षित’ देशों में की जा रही है। आज मोदी सरकार में भारत के विदेशी ऋण संकेतक अन्य ऋणी या ऋणग्रस्त विकासशील देशों की तुलना में बहुत ही अच्‍छी स्‍थ‍िति में हैं। भारत पर विदेशी ऋण और सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का अनुपात 23.4 प्रतिशत हैजो पांचवें न्‍यूनतम पायदान को दर्शाता है। इसी तरह विदेशी ऋण के लिए विदेशी मुद्रा भंडार द्वारा उपलब्ध कराए गए कवर के लिहाज से भी भारत इनदिनों बहुत ही श्रेष्‍ठ और उच्‍चावस्‍था में दिखाई दे रहा है।  अब इसके बाद भी आर्थ‍िक विषयों को लेकर जिन्‍हें केंद्र सरकार की आलोचना ही करना हैउनके लिए कुछ नहीं कहा जा सकता है।

रविवार, 17 सितंबर 2017

पेट्रोल दामों पर सरकार की नीयत : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

देखते ही देखते मोदी सरकार में पेट्रोल के दाम 3 साल में सर्वाधिक हो गए,  इस दौरान क्रूड 45 फीसदी सस्ता रहाकिंतु भारतीय उपभोक्‍ताओं से पेट्रोल की कीमत कम होने के स्‍थान पर बढ़ोत्‍तरी के साथ ली गई। यह जो कीमतों का विरोधाभास हैजिसमें की एक ओर अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कीमते कम हो रही हैं और देश में उपभोक्‍ता से कम कीमत के स्‍थान पर प्रति लीटर पूर्व की अपेक्षा अधिक राशि रोजमर्रा के हिसाब से सुनिश्‍च‍ित कर वसूली जा रही है उससे लगता यही है कि 16 जून से पेट्रोल के दाम घटाना-बढ़ाने का जो निर्णय केंद्र सरकार ने देशभर में यह कहकर लागू किया था कि रोज पेट्रोल के दाम तय करने से आम जनता को लाभ होगा कहीं यह जनता के साथ तो सीधा छलावा नहीं है?

मनमोहन सरकार में जबकि ऐसा नहीं थापिछली सरकार ने प्रतिदिन के हिसाब से कभी पेट्रो कीमतें निर्धारित नहीं कीजिसके कारण जनता की जेब पर सीधा इसका नकारात्‍मक असर कम-ज्‍यादा प्रतिदिन कभी नहीं पड़ता था। हालांकि वह भी लगातार अधिक कीमते रखकर पेट्रोल पर मुनाफा कमाती थी। उस समय वैश्‍विक स्‍तर पर अधिक कीमते होने पर देश में पेट्रो दाम अधिक होते ही थे किंतु कम होने के बाद भी लम्‍बे समय तक अधि‍क बने रहते थे,जिसका की समय समय पर देशभर में विरोध भी हुआ थालेकिन सोचनीय यह है कि आज के हालातों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार में इसे कितना सही ठहराया जा सकता है जिस पर की सबसे ज्‍यादा जोर वर्तमान केंद्र सरकार का पारदर्श‍िता पर ही है। वस्‍तुत: इसकी गंभीरता को देखें तो वर्तमान में इस निर्णय से लाभ के स्‍थान पर आमजन की जेब मनमोहन सरकार के वक्‍त से अधिक खाली हो रही है।

मुम्‍बई देश की आर्थ‍िक राजधानी कहलाती हैयहां 11 सितम्‍बर को पेट्रोल की कीमत 79.41 रुपए थीजबकि देश की राजधानी दिल्ली में 70.30 रुपए लीटरइसी तारतम्‍य में दो दिन बाद 13 सितम्‍बर की स्‍थ‍िति में मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रति एक लीटर पेट्रोल की कीमत देखें तो 79.52 रुपए पॉवर एवं 76.77 रुपए सादा पेट्रोल के दाम थेडीजल 65.17 रुपए के दाम पर था। जिसके लिए कहा जा सकता है कि यह कीमत भाजपा सरकार के केंद्र में आने के बाद पि‍छले तीन साल में सबसे अधिक है। वस्‍तुत: जब से पेट्रोल के दाम रोज तय किए जा रहे हैंतब से दाम 7% से ज्यादा बढ़ चुके हैं। यहां देश की आमजनता का अपनी चुनी हुई सरकार से पूछना यही कि ऐसी स्‍थ‍िति में पेट्रोल की खुदरा कीमतें तीन साल से उच्च स्तर क्‍यों रखी गई हैं, जबकि कच्चे तेल का भारतीय बास्केट 45% से ज्यादा सस्ता हुआ है।

इस संबंध में आंकड़े सीधे तौर पर कह रहे हैं कि पेट्रोलियम मंत्रालय ने अपनी जो दर संबंधी नीति बनाई है उसमें बहुत कमी है। अगस्त 2014 में क्रूड का भाव 6,291.91 रु. प्रति बैरल थाजिसके कारण से उस समय 1 अगस्त 2014 को मुंबई में पेट्रोल की कीमत 80.60 रुपए और 15 अगस्त 2014 को दिल्ली में 70.33 रुपए तक पहुँच गई थीकिंतु क्‍या वर्तमान में ऐसा हैजिसका उत्‍तर है नहीं। आज क्रूड का भाव 3,424.94 रु. है। जिसके की यह एक बैरल 159 लीटर के बराबर होता है। इसी के साथ ही भारतीय बास्केट में दुबई और ओमान के'सावर ग्रेडकी 73% हिस्सेदारी भी मौजूद है। शुरूआती स्‍तर पर देखें तो अप्रैल से 15 जून तक हर पखवाड़े पेट्रोल की कीमत घट-बढ़ रही थी। लेकिन दो जुलाई के बाद से इसके दाम लगातार बढ़ते रहे हैं।

माना कि सरकार को तेल कंपनियों को अपना खर्च निकालना है। केंद्र के साथ हर राज्‍य सरकार को इससे अपना मुनाफा कमाना हैपरन्‍तु उसका कोई सि‍स्‍टम तो होगा मुनाफा कितना और कैसे कमाया जाए पेट्रोल देश के हर आदमी की आज आवश्‍यक जरूरत बन चुका है। वह उसकी कहीं न कहीं मजबूरी भी है। इसलिए ऐसा नहीं होना चाहिए कि वह पेट्रोल के दामों में बेतहाशा वृद्ध‍ि को लेकर सरकार द्वारा स्‍वयं को ठगा हुआ महसूस करे। आम उपभोक्‍ता की जेब से इस तरह से उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर ज्‍यादा से ज्‍यादा रुपए विविधकर एवं खर्चे के नाम से पेट्रोल के माथे डालकर निकालने को कोई उचित नहीं ठहरा सकता है। स्‍वयं सरकार के अंदर भी लोग इस तरह से पेट्रोल दामों का आज घटना-बढ़ना सही नहीं मान रहे हैं।

इसी के साथ देश को यह भी जानना चाहिए कि भारत में पेट्रोल और डीजल का कुल उत्पादन घरेलू खपत से ज्यादा है । पिछले वर्ष अप्रैल से दिसंबर की अवधि में देश में 2.71 करोड़ टन पेट्रोल का उत्पादन किया गयाजबकि इस दौरान खपत 1.80 करोड़ टन रही। जहां तक डीजल की बात है इसका घरेलू उत्पादन 7.65 करोड़ टन और खपत 5.72 करोड़ टन रही थी । इस सब के बीच सच यह भी है कि आवश्‍यकता के अनुरूप भारत में पिछले चालू वित्त वर्ष अप्रैल से दिसंबर अवधि में कुल मिलाकर 8,20,000 टन डीजल का और 4,76,000 टन पेट्रोल का आयात किया गया।  इन नौ महीनों में सिंगापुर के मुकाबले यूएई ने सबसे अधिक 2,43,000 टन पेट्रोल की आपूर्ति की गई थी और डीजल में भी यूएई से सबसे अधिक 3,80,000 टन डीजल आयात किया गया थाजबकि सिंगापुर से 1,69,000 टन पेट्रोल आयात किया गया था।

अत: सरकार को वस्‍तुस्‍थ‍िति को देखते हुए करना यह चाहिए कि वह देश में अधिक से अधिक ऊर्जा के वैकल्‍पिक स्‍त्रोतों को बढ़ाएपेट्रोल के स्‍थान सस्‍ता ईंधन इथनॉल को भारत में भी अब बढ़ावा दिया जाना चाहिए । इसे जब वैज्ञानिकों ने पेट्रोल के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है और आज कई यूरोपीय देशों में जब इथनॉल का उपयोग भी सफलतापूर्वक शुरू कर दिया है तो भारत को फिर क्‍यों इसके उपयोग से अछूता रहना चाहिए। इसके अलावा बायोफ्यूलसौर ऊर्जा और हाईड्रोजन ईधन के भी कुछ विकल्प हमारे पास मौजूद हैं। यहपर्यावरण को जीवाश्म ईधन की तुलना में नुकसान भी कम पहुंचाते हैं

वस्‍तुत: केंद्र सरकार यदि जीवाश्‍म ईंधन की तुलना में इन्‍हें बढ़ावा देगी तो देश का बहुत सा धन भी खाड़ी एवं अन्‍य देशों को जाने से बचेगा और देश में नए रोजगार का भी बहुतायत में श्रृजन होगा। इसके अलावा पेट्रोल की कीमतें भी बहुत कम हो जाएगीइतना ही नहीं तो इन दिनों जो बढ़ती पेट्रोल कीमतों के कारण से सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं,उनका शमन भी अपने आप हो जाएगा। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान अब इस विषय पर गंभीरतापूर्वक ध्‍यान दें।

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री का हिन्‍दी प्रेम और ज्‍वलंत प्रश्‍न ? डॉ. मयंक चतुर्वेदी


ध्‍यप्रेदश की राजधानी भोपाल में आज हिन्दी दिवस पर समन्वय भवन में अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित हिन्दी दिवस कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कि राज्‍य के संस्‍कृति विभाग का भी योगदान रहा । मुझे याद है कि हर वर्ष जब भी हिन्‍दी दिवस आता है हमारे मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महोदय  का भाषण अत्‍यधिक प्रवाहपूर्ण उत्‍तेजनात्‍मक और श्रोताओं को आत्‍ममुग्‍ध कर देनेवाला होता है। हम भी जब जब इस आयोजन में उपस्‍थ‍ित रहे, ऐसा कभी नहीं हुआ कि मुख्‍यमंत्री बोलें औ तालियां न बजें। किंतु इस सब के बाद भी कुछ ज्‍वलंत प्रश्‍न हिन्‍दी और हमारे मुख्‍यमंत्री के साथ जुड़े हैं। जिनके उत्‍तर नहीं व्‍यवस्‍था में सुधार के साथ वह सभी व्‍यवहार में लागू होना चाहिए जिनकी कि हमारे मुख्‍यमंत्री हिन्‍दी दिवस पर वायदे एवं चर्चाएं करते रहे हैं। 

आज जो उनका भाषण था उसमें उन्‍होंने कहा है कि हिन्दी अत्यंत समृद्ध भाषा है। इसके प्रति संकीर्णता ठीक नहीं है। हिन्दी छोड़कर अंग्रेजी बोलना मानसिक गुलामी है। हिन्दी बोलने, लिखने और पढ़ने में गर्व होना चाहिए। हिन्दी का मान-सम्मान बढ़ाने के लिये समाज को भी आगे आना होगा। वहीं  निजी विश्वविद्यालयों को हिन्दी विभाग स्थापित करने के लिये निर्देशित किया जाएगा। प्रत्येक दो वर्ष में राज्य-स्तरीय हिन्दी सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा भी उन्‍होंने की है । उन्होंने कहा है कि सरकार किसी भी भाषा का विरोध नहीं करती, लेकिन हिन्दी की कीमत पर अंग्रेजी का उपयोग ठीक नहीं है। मुख्‍यमंत्री के अनुसार अगले साल से हिन्दी दिवस का आयोजन भव्य होगा और इसमें सभी विश्वविद्यालय शामिल होंगे।

श्री चौहान ने आज यह भी कहा कि बाजारों में दुकानों पर नाम और सूचना पट्टिकाएं हिन्दी में लगाना अनिवार्य करने के लिये वैधानिक उपाय किये जाएंगे। हिन्दी की शक्ति, सामर्थ्य और क्षमता से समाज की नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिये समाज के सहयोग से निरंतर अभियान चलाना पढ़ेगा। इस कार्यक्रम में मुख्‍यमंत्री अपनी विदेश यात्राओं के संस्‍करण सुनाने से भी नहीं चूके और कहा कि हर जगह हिन्दी में ही भाषण दिया और संवाद किया। राष्ट्रभाषा का उपयोग करने से उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ी और सराहना भी मिली। 

इस सब बातों के बीच जो अहम चिंता मेरी है वह यही है कि वर्ष 2015 में भोपाल में हुए अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी सम्‍मेलन में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह ने घोषणा की थी कि हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय को वैश्‍विक स्‍तर का बनाएंगे । किंतु दो वर्ष बीत गए । वह अंतरराष्‍ट्रीय तो छोड़िए आज राष्‍ट्रीय स्‍तर का भी नहीं बन सका है। संसाधनों की कमी, धन का अभाव, प्रशासन की बेरूखी जैसी तमाम बातें हैं जिसके कारण से वह आज आगे ही नहीं बढ़ पा रहा है। पहले यहां कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा थे जो सदैव संसाधनों की कमी से परेशान थे किंतु आज यहां कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज हैं, जिनके पास भी सरकार द्वारा इतने धन की व्‍यवस्‍था नहीं की गई है कि वे इस विश्‍वविद्यालय को राष्‍ट्रीय स्‍तर का भी बनाने की सोच सके। 

मेरी एक चिंता यह भी है कि अंतर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी सम्‍मेलन में हिन्‍दी के विकास के लिए संकल्‍प पत्र लाया गया था, उसमें कुछ सैद्धान्‍तिक एवं व्‍यवहारिक बातें अमल के लिए दी गई थीं। क्‍या सरकार पिछले दो सालों में भी उन पर प्रशासनिक स्‍तर पर अमल कराने में सफल रही है ? नहीं रही । हमारे मुख्‍यमंत्री बहुत अच्‍छे हैं, वह सोचते भी बहुत श्रेष्‍ठ हैं किंतु क्‍या उनकी प्रशासनिक मशीनरी को उनकी इच्‍छाओं को शतप्रतिशत अमल में नहीं लाना चाहिए ? अंत में उनसे आग्रह इतनाभर है कि अटल बिहारी वाजपेयी हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय श्रद्धेय सुदर्शनजी का एक वृहद स्‍वप्‍न का यथार्थ रूप है । वे भी एक स्‍वयंसेवक हैं, विद्यार्थी परिषद में उन्‍होंने देशसेवा और रीति-नीति का पाठ पढ़ा है। अत: वे श्रद्धेय सुदर्शनजी के इस यथार्थ स्‍वरूप के आकार एवं उसकी भव्‍यता में कोई कसर न छोड़े , इसके बाद यहां से निकले विद्यार्थी हिन्‍दी का भला स्‍वयं ही कर लेंगे । आज के दिन ये उम्‍मीद तो की ही जा सकती है ।   

रविवार, 10 सितंबर 2017

जेएनयू में एबीवीपी नहीं हारी है : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

हां छात्र संघ चुनाव के आए परिणामों को देखें तो एकदम से ऐसा लगेगा कि जेएनयू के चुनावों में वामदल समर्थक छात्रों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र प्रत्‍याशियों को हरा दिया। जीत का जश्‍न आज उनके नाम है जो देश में विरोध की राजनीति करते आए हैं और जिनका विश्‍वास सिर्फ आन्‍दोलन एवं तोड़फोड़ के साथ दूसरों को गरियाने में है। लेकिन क्‍या वाकई में अभाविप यहां की यहां हार हुई है परिणाम आने के बाद से चले लगातार के मंथन से निष्‍कर्ष यही है कि कुछ कुत्‍ते भी मिलकर एक हाथी को पटक लेने हैं या जो एक कहावत ओर है कि शेर को भी संगठि‍त ताकत के सामने अपने शिकार से हाथ धोते एवं पलायन करते हुए देखा जाता है। वस्‍तुत: ये दो बातें जोकि जंगल की सत्‍ता पर सटीक बैठती हैं वे आज जेएनयू जैसे अध्‍ययन केंद्र पर सही बैठ रही हैं। यहां आज एबीवीपी नहीं हारी हैसच पूछिए तो जीतकर भी वे वामसंगठन हार गए हैं जिन्‍हें छात्र सत्‍ता पर काबिज होने के लिए एक दूसरे के धुर विरोधी होने के बाद भी एक साथ आना पड़ाजिससे कि भगवा रंग के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के झंडे को चुनाव में जीत के बाद गर्व से जेएनयू केंपस में फहराने से रोका जा सके।

इस बार जिन्‍होंने भी यहां छात्र संघ चुनावों से पहले हुए अभाविप एवं संयुक्‍त वाम मोर्चा गठबंधन (आईसाएसएफआई और डीएसएफ) के अध्‍यक्षों का भाषण गंभीरता पूर्वक सुना हैयदि तटस्‍थता के साथ विचार किया जाए तो जो किसी विचार के साथ नहीं सिर्फ भारत की प्रगति और राष्‍ट्रीय उत्‍थान से प्‍यार करते हैंवे अधिकतर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से अध्‍यक्ष की उम्‍मीदवार बनाई गई निधि त्रिपाठी के समर्थन में ही नजर आए हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इन चुनावों में अभाविप के वाम छात्र दलों के ऊपर भय का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वैसे इसी परिसर में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा)स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) के छात्र-छात्राओं को कई बार आपस में लड़ते देखा गया है। ये वाम संगठन पं. बंगाल से लेकर दक्षिण के राज्‍यों में किस तरह से आपस में एक दूसरे की जूतमपैजार करते हैंयह बात भी आज किसी से छिपी नहीं हैं। किंतु यहां दिल्‍ली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परि‍षद को रोकने के नाम पर सभी एक मत हो गये । इसके बाद भी यदि अभाविप की ओर से छात्र प्रत्‍याशियों को प्राप्‍त मतों की गणना की जाए तो वे दूसरे स्‍थान पर है।

इन सब ने एबीवीपी को हराने के कैसे गठबंध करके चुनाव लड़ा जरा यह भी देखलीजिए, चुनाव परिणाम में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा) की गीता कुमारी को अध्यक्ष पद पर खड़ा किया गया । सिमोन जोया खान (आइसा) को उपाध्यक्ष के लिए इस चुनाव मैदान में उतारा गया। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के दुग्गीराला श्रीकृष्ण को महासचिव और शुभांशु सिंह डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) से संयुक्त सचिव पद पर इस छात्र संघ चुनाव में अपना प्रत्‍याशी बनाया गया। यानि की तीनों ही संगठन यह पहले ही जान गए थे कि अगर अलग-अलग चुनाव लड़े तो विद्यार्थी परिषद से पटखनी खाना तय है।

वस्‍तुत: कहना यही है कि आज उनके पास जो दो एवं एक-एक उम्‍मीदवारों की अलग-अलग संगठन के छात्र नेता की जीत मिली है वे इसमें से एक सीट भी लाने में सफल नहीं होते यदि अपने बूते स्‍वतंत्र अस्‍तित्‍व के साथ यहां चुनाव मैदान में उतरे होते। अध्‍यक्ष पद पर लड़े गए यहां के आए चुनाव परिणामों को इस संदर्भ में देखा जा सकता हैजिसमें कि संयुक्‍त वाम मोर्चे के बाद गीता कुमारी ने 1506 वोट हासिल किए जबकि अकेले के दम पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की उम्मीदवार निधि त्रिपाठी 1042 वोट प्राप्‍त करने में सफल रहीं। यानि की तीन संगठनों की यहां ताकत मिलाजुलाकर देढ़ हजार मत हैजबकि विद्यार्थी परिषद के अकेले एक अध्‍यक्ष की ताकत एक हजार से अधिक है। इसी प्रकार का आंकलन अन्‍य तीनों पदों पर हुए यहां के छात्र संघ चुनाव का रहा है।

वास्‍तव में इससे पता चल रहा है कि जेएनयू से अब शीघ्र ही वाम विचारधारा काजो कहते हैं कि चाहे जो मजबूरी हो मांग हमारी पूरी होजो अ‍भाविप की तरह ज्ञानशीलएकता में कतई विश्‍वास नहीं करते हैंजो सि‍र्फ विरोध के लिए विरोध और प्रश्‍न खड़े करने में ही भरोसा करते हैंउन सभी का किला शीघ्र ही ढहने वाला है। जो भारत को एक राष्‍ट्र नहीं कई राष्‍ट्रों का समूह मानते हैंजो भारत की विविधता में एकता नहीं देखते हैंउसे कई राष्‍ट्र कहते आए हैं और देश के भोले-भाले लोगों को कभी नक्‍सलवाद के नाम पर तो कभी मजदूर यूनियनों की हक की लड़ाई के नाम पर बरगलाते आए हैंअब उनका सच देश की जनता ठीक से जानने लगी है।

आनेवाले दिनों में आशा की जा सकती है कि जो प्रभाव ये वामदल इस वक्‍त संयुक्‍त गठबंधन के माध्‍यम से छोड़ने में सफल रहे हैं वे आगे बहुत दिनों तक इसे कायम नहीं रख पाएंगे। भविष्‍य में उनका यह प्रभाव संयुक्‍त होने के बाद भी अवश्‍य ही समाप्‍त होगा।  इसीलिए ये कहना गलत नहीं है कि जेएनयू के चुनावों में अभाविप आज हारी नहीं यहां के छात्रों के बीच दिल से और भाव स्‍तर पर जीत हासिल करने में पूरी तरह से सफल रही है।

विद्यार्थी प्ररिषद के सभी छात्र संघ प्रत्‍याशियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैंजिन्‍होंने हारकर भी आज यह बता दिया कि यहां के कई हजार छात्रों के दिल में उनके लिए सम्‍मान बरकरार हैयह सम्‍मान उनका तो है हीनिश्‍चि‍त तौर पर राष्‍ट्रवादी विचारधारा का भी हैजो यह कहती है कि तेरा वैभव अमर रहे माँहम दिन चार रहें ना रहें जो यह भी कहती है कि परम वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम समर्था भावत्वा शिषाते भृशम।।राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर सम्पूर्ण जीवन माँ भारती की उपासना करें और हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो सके।



हिन्‍दुस्‍थान समाचार की तरुणायीभरी वर्तमान टीम की ताकत

हिन्‍दुस्‍थान समाचार बहुभाषी न्‍यूज एजेंसी की हाल ही में द‍िल्‍ली में एक महत्‍वपूर्ण बैठक सम्‍पन्‍न हुई। वैसे जो कहा जाता है क‍ि देश में सबसे ज्‍यादा युवा तरुणाई यदि कहीं क‍िसी देश के पास है तो वह भारत वर्ष है, ऐसे ही संवाद स‍िमितियों के  व‍िषय में भी भारत में कहा जाए तो कोई अतिशयोक्‍ति नहीं होगी । देश में आज ज‍ितनी भी न्‍यूज एजेंसियां कार्यरत हैंं शायद ही क‍िसी के पास इस तरह की युवा टीम होगी जैैसी की वर्तमान में ह‍िन्‍दुस्‍थान समाचार बहुभाषी न्‍यूज एजेंसी के पास है। 

देश के प्राय:  अधिकतम राज्‍यों के ब्‍यूरो चीफ युवा हैं। द‍िल्‍ली राजधानी केंद्र की कमान भी एक युवा ज‍ितेंद्र त‍िवारी के कंधों पर दी गई है। मध्‍यप्रदेश में मैं डॉ. मयंक चतुर्वेदी, उत्‍तरप्रदेश में राजेश त‍िवारी, छत्‍तीसगढ़ में संजय दुबे, झारखण्‍ड में मंगल पाण्‍डेय, उत्‍तराखण्‍ड में धीरेंद्र प्रताप सि‍ंह और अनिल कुमार उपाध्‍याय, राजस्‍थान में डॉ. ईश्‍वर बेरागी, हरियाणा में पंकज म‍िश्रा, जम्‍मू-कश्‍मीर में बलवान स‍िंंह, ब‍िहार में रजनी शंंकर, असम में अरविंद राय और पूर्वी भारत में व‍िशाल गौरांग, टेगू नि‍ंंजी, नावेंदू भट्टाचार्य, संतोष मंडल,  उड़ीसा में संजय जैना एवं समन्‍वय नंद, गुजरात में हर्ष शाह, ह‍िमाचल प्रदेश में सुन‍िल कुमार, महाराष्‍ट्र में चंद्रहास म‍िरासदार, मनीष कुलकर्णी,  दक्षिण में महादेवन स्‍वामीनाथन, नागराज राव, पं. बंगाल में संताेेष मधूप यहां तक क‍ि समुचे व‍िपणन की ज‍िम्‍मेदारी भी युवा कुमार व‍िशाल स‍िन्‍हा तथा सुश्री भारती ओझा मुख्य प्रबंधक (विपणन एवं आयोजन) के हाथों में सौंपी गई है । यही बात आई टी ड‍िपार्टमेंट में सुमि‍त रावत और मानवसंसाधन में समीक्षा व‍िष्‍ट एवं अर्थ व‍िभाग में अमित पाण्‍डेेेय पर लागू होती है। इसके अलावा भी अन्‍य इतने हमारे युवा सहयोगी हैं, ज‍िनके बारे में यहां ल‍िखा जाए तो शायद स्‍थान भी कम पड़ जाएगा। 

ये सभी आज बहुभाषी न्‍यूज एजेंसी ह‍िन्‍दुस्‍थान समाचार को नए स्‍वरूप में गढ़ने का कार्य कर रहे हैं। सभी एक स्‍वर में बोलते हैं और एक स्‍वर में गाते हैं.....

ध्‍येय निष्‍ठ जीवन हमारा, करना हमको सतत कार्य
हिन्‍दुस्‍थान समाचार प्रगति, अंतिम जीवन ध्‍येय... 

अंत में यही क‍ि संगठन का निर्माण तब होता है जब एक से दो लोगों के विचार, उद्देश्य समान होते हैं । संगठन में दूसरे व्यक्ति की भावनाओं, विचारों तथा कार्यों का सम्मान किया जाता हैं तब संगठन बढ़ता है। जब संगठन में दूसरे व्यक्ति को सम्मान नहीं दिया जाता, जब उसके सुझावों, विचारों, कार्यों जो की संगठन के हित में होते हैं उन पर ध्यान नहीं दिया जाता, केवल खाना पूर्ति सदस्यो से काम लिया मात्र जाता है, उपयोग जैसा किया जाता है- तब विखण्डन विघटन प्रारंभ हो जाता है। इस विघटन का कारण होता है अभिमान। संयोग से ह‍िन्‍दुस्‍थान समाचार की वर्तमान टीम में यह अभ‍िमान अभी द‍िखाई नहीं देता है और यही बात इसके ल‍िए इन द‍िनों वरदान है.....

शनिवार, 9 सितंबर 2017

साक्षरता में आगे बढ़ता मध्यप्रदेश : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

देश में इन दिनों तेजी के साथ मध्यप्रदेश आगे बढ़ रहा है, यदि आज इस राज्‍य के बारे में यह कहा जाए तो कुछ गलत ना होगा। पिछले साढ़े तेरह सालों में जिस तरह से यहां भाजपा की सरकार आने के बाद से लगातार एक-एक जनहितैषी विषय पर ध्‍यान दिया गया है और स्‍वयं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कभी मध्‍यप्रदेश निर्माण, कभी संकल्‍प दिवस तो कभी विकसित मध्‍यप्रदेश की चाह में तेजी के साथ आगे बढ़ते रहने के लिए आम जन को प्रेरित कर रखा है, उससे अब लगने लगा है कि इस राज्‍य का जनसंख्‍या के घनत्‍व एवं विशालकाय होने के बाद भी आनेवाले दिनों में विकसित होना तय है। सही योजना फिर उसका सही क्रियान्‍वय हो जाए तो सकारात्‍मक लाभ दिखाई देते ही हैं। वस्‍तुत: यही आज मध्‍यप्रदेश में दिखाई दे रहा है।

हम सभी जानते हैं कि शिक्षा विकास की रीढ़ है, किसी भी देश या प्रदेश का व्‍यक्‍ति जितना अधिक शिक्षित एवं साक्षर होगा, वह अपने कल्‍याण के साथ अपने देश एवं समाज के पूर्ण विकास में अपना उतना ही अधिक योगदान दे सकता है। देखाजाए तो मध्‍यप्रदेश भी तेजी के साथ इस दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है। आज यही कारण है कि उसे भी देश के अन्‍य राज्‍यों के बीच 51वें अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर शिक्षा के क्षेत्र में तीन राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वर्ष 2016-17 में मध्यप्रदेश में 24 लाख 61 हजार से अधिक प्रौढ़ निरक्षरों को प्रशिक्षण के बाद साक्षरता परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हुई है तो वहीं राज्‍य के 31 सांसद आदर्श ग्रामों में लगभग 24 हजार प्रौढ़ निरक्षर नवसाक्षर बनकर सामने आये हैं।

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू एवं केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को जब वर्ष 2017 के लिए साक्षर भारत अवार्ड वितरित करने थे, तब मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में साक्षर भारत योजना में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाले राज्य, जिला और राज्य संसाधन केन्द्र के लिए मध्यप्रदेश को पुरस्कृत किया जाना वस्‍तुत: वर्तमान में यह बताता है कि राज्‍य की मशीनरी आमजन के जीवन में शिक्षा की अलख जगाने में विशेषकर बहुसंख्‍यक आदिवासी समाज के जीवन में आधुनिकतम शिक्षा को सफलतापूर्वक पहुँचाने में सफल हो रही है। इस दिशा में देश के उपराष्‍ट्रपति एम.वेंकैया नायडू सही कहते हैं कि साक्षरता लोगों को अधिकार संपन्‍न और जीवन को बेहतर बनाने के लिए महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। साक्षरता के आभाव में विकास के कोई मायने नहीं। हमें अभी लंबा रास्‍ता तय करना है, क्‍योंकि अभी लगभग 35 करोड़ युवा और वयस्‍क लोग साक्षर दुनिया से बाहर हैं।

केंद्रीय स्‍तर पर यदि देखें तो देश में 1947 में साक्षरता दर 18 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 81 प्रतिशत हो गई है। अगले वर्ष सरकार स्‍कूल चलो अभियान कार्यक्रम शुरू करेगी। इस प्रयास के तहत शेष 19 प्रतिशत साक्षरता विहीन आबादी को इसके दायरे में लाकर शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्‍त करने का लक्ष्‍य तय किया है। यह लक्ष्‍य 100 प्रतिशत डिजिटल साक्षरता सहित 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी का सपना है इस संदर्भ में मध्‍यप्रदेश के आंकड़े बताते हैं कि इसी वर्ष के प्रारंभ में ही प्रदेश में चल रही साक्षर भारत योजना के जरिये 15 वर्ष से अधिक आयु समूह के व्यक्तियों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने की दिशा में राज्‍य ने 80 प्रतिशत साक्षरता दर प्राप्त किये जाने के प्रयासों में बहुत हद तक सफलता प्राप्‍त कर ली है। इस योजना में अब तक 40 लाख से अधिक व्यक्तियों को साक्षर किया जा चुका है। इसके लिए साक्षरता कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये ग्राम पंचायत स्तर पर करीब 26 हजार प्रेरक नियुक्त किये गए, तो वहीं प्रदेश में 17 हजार 350 प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र संचालित किये जा रहे हैं। इन केन्द्रों के माध्यम से साक्षरता कक्षाएँ नियमित रूप से लगाये जाने का ही यह परिणाम है कि ग्राम पंचायत में महिला साक्षरता दर का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है।

वस्‍तुत: इसी के साथ यह आशा भी मुखर हुई है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश देश का नम्बर-1 राज्य अवश्‍य बनेगा, क्‍योंकि यहां विकास के सभी क्षेत्रों पर समानरूप से ध्‍यान दिया जा रहा है। आंकड़े देखें तो पिछले चार वर्ष से प्रदेश की कृषि विकास दर देश में सबसे अधिक है। मध्यप्रदेश में सड़कों के क्षेत्र में इतिहास रच गया है। सिंचाई में तेजी से विकास हो रहा है। उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने पर सरकार द्वारा फीस की व्यवस्था की जा रही है। गरीब को मकान देने के लिये सरकार कानून बनाने जा रही है। वर्ष 2022 तक कोई भी गरीब प्रदेश में बिना मकान के नहीं रहेगा।

कुल मिलाकर ऐसे नवाचारी प्रयोग इन दिनों राज्‍य सरकार बहुतायत में कर रही है, जो आमजन के कल्‍याण से सीधे जुड़े हुए हैं, वास्‍तव में इन्‍हें देखकर यही कहा जा सकता है कि राज्‍य का आनेवाला समय हर मामले में उत्‍कृष्‍ट है। किंतु इसके साथ कुछ बाते हैं जिन पर अभी भी सरकार को अपना ध्‍यान बनाए रखने की जरूरत होगी, साक्षरता की दृष्टि से इसे अवश्य ही देखना चाहिए वर्तमान में प्रदेश में अशिक्षा के मामले में सिंगरोली, एवं छतरपुर जिले शीर्ष पर हैं। यहां सबसे ज्यादा क्रमशः 98 हजार के लगभग निरक्षर हैं। बड़वानी में 88 हजार, देवास में 87 हजार, सागर में 82 हजार निरक्षर हैं। ऐसे ही कुछ कम-ज्‍यादा सभी जिलों की स्‍थ‍िति है, निरक्षरों की सुची में सबसे कम निरक्षर दतिया जिले में है। यहां महज 9 हजार 380 लोग ही निरक्षर है। अत: इन सभी को देश के विकास में अपना पूर्ण योगदान दिए जाने के लिए साक्षर बनाना अति आवश्‍यक है।

शनिवार, 2 सितंबर 2017

कश्‍मीर ईद पर भी क्‍यों जला ?

ह प्रश्‍न इसलिए कि ईद को इस्‍लाम में अमन चैन का त्‍यौहार कहा जाता हैईद भाईचारे का त्‍यौहार भी है इसके बाद भी कश्‍मीर से कई स्‍थानों पर ईद के दिन भी न भाईचारा नजर आया और न ही अमन चैन, जो दिखाई दिया वह पत्‍थरबाजी थी। इनके निशाने पर हमेशा की तरह वह भारतीय जवान थे जो उन्‍हें वक्‍त आने पर सदैव से अपनी जान जोखिम में डालकर बाढ़ के हालातों मेंकभी पहाड़ खिसकने या अन्‍य कोई आपदा आने पर अब तक साक्षात खुदा बनकर उनकी हिफाजत करते आए हैं।

ईद के दिन यहां जो सुरक्षा बल एवं पुलिस से झड़पों की खबरें आई हैं वे कश्‍मीर के तीन जिलों से हैंश्रीनगरअनंतनाग और सोपोर । इस पर भी विशेष यह है कि ये झड़पें ईद की सामूहिक नमाज पढ़े जाने के बाद हुईं।  यहां ईदगाह पर नमाज पूरी होने के तुरंत बाद युवकों के एक समूह ने सुरक्षा बलों पर पथराव शुरू कर दियाजबकि सुरक्षा बल कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए तैनात किए गए थे। हर बार देखा यही गया है कि ईद की ही नहींबल्कि जब-जब यहां नमाज का दायरा प्रति सप्‍ताह शुक्रवार या अन्‍य त्‍यौहार के दिन अधिक होता हैपत्‍थरबाज उस दिन को अपने लिए अवश्‍य चुनते हैं और देश की सेवा में रातदिन लगे सैनिकों व पुलिस कर्मियों को अपना निशाना बनाते हैं। अब तक भीड़ के कारण से पुलिस के कई जवान और सैनिक गंभीर रूप से जख्‍मी हो चुके हैं।

जब यहां पत्‍थरबाजों से पूछो तो सभी हम क्या चाहते- आज़ादी’ जैसे नारे लगाने लगते हैं।जब यहां की मस्जिद के लाउडस्पीकर चिल्‍लाते हैं - नारा-ए-तकबीर..’, मस्जिद के बाहर और भीतर मौजूद सभी लोग एक स्वर में कहते हैं अल्लाह हु अकबर’ इसके बाद फिर पुन:मस्जिद के लाउडस्पीकर से कुछ और नारे लगाए जाते हैं - हम क्या चाहते-आज़ादीबुरहान के सदके आज़ादीआज़ादी का मतलब क्याला इलाहा इल्लल्लाह और पाकिस्तान से रिश्ता क्याला इलाहा इल्लल्लाह’ । मस्जिद के भीतर जब ये नारे लग रहे हैं तो बाहर खड़े लड़के अपने चेहरों पर कपड़े बांधना शुरू करते हैंइसके बाद जो पत्‍थर फेंकने का दौर शुरू होता हैवह तब तक शांत नहीं होता जब तक कि उसकी प्रतिक्रिया स्‍वरूप पुलिस एवं सेना अपना आपा न खो दें और बदले में माहौल को शांत करने के लिए पत्‍थरबाजों पर आंसू गैस एवं पत्‍थर के बदले पत्‍थर बरसाना शुरू न कर दें।

इसके इतिहास में जाएं तो कहने के लिए बहुत कुछ हैकिंतु ज्‍यादातर लोग 90 के दशक का हवाला देते हैं1990 के दशक में और वर्तमान हालातों में अंतर सिर्फ इतना आया है कि हाथों में हथियारों की जगह आज पत्‍थरों ने ले ली है। इस सब के बीच दुखद यह है कि पहले सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तानपाकिस्तानी सेना तथा उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई को यहां के हालातों के लिए दोषी ठहराया जाता थाकिंतु आज इनके साथ हीभीतरी ताकतें भी अपने देश का विरोध करने में सबसे अधिक शामिल दिखाई दे रही हैं।

जब 90 के दशक में यहां की हवा में बंदूक की गूंज थी तो कहा जा रहा था कि बेरोजगारी के कारण ऐसा है। लेकिन क्‍या आज के समय में भी यही बात कही जाए ?  जबकि इतने सालों में स्‍थ‍िति में बहुत कुछ अंतर आ गया है। देश को कोसनेहिन्‍दू आस्‍था केंद्रों को निशाना बनानेचुनचुन कर कश्‍मीर घाटी से हिन्‍दुओं एवं सिखों को एक एक कर भगाने से लेकर वह सब कार्य यहां बदस्‍तूर जारी हैंजो सीधे देशद्रोह की श्रेणी में आते हैं। क्‍या आज भी कोई ये कहेगा कि बेरोजगारी के कारण यहां कश्‍मीरी युवक पत्‍थर फैकने को मजबूर हैं?जबकि केंद्र और राज्‍य सरकारों की इस वक्‍त विकासपरक इतनी अधिक योजनाएं खासकर भारत के सीमावर्ती राज्‍यों में संचालित हो रही हैं कि यदि स्‍थानीय निवासी चाहें तो अपनी बेरोजगारी इनसे जुड़कर स्‍वत: ही समाप्‍त कर सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि पत्‍थर फैकने का बेरोजगारी से कोई लेना-देना नहीं है।

इतना ही नहीं, बेरोजगारी के विरोध में तो यहां की परिस्‍थ‍ितियों को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि भारत में कौन सा राज्‍य आज ऐसा हैजहां शतप्रतिशत रोजगार मुहैया होयानि कि सीधेतौर पर कहा जाए कि बेरोजगारी तो कम ज्‍यादा सभी जगह मौजूद है,तो क्‍या सभी स्‍थानों पर लोग अपने सि‍स्‍टम को पत्‍थर मारने लगें ?

वस्‍तुत: कश्‍मीर की आज जो समस्‍या हैवह बेरोजगारी से ज्‍यादा पांथिक अधिक है। पांथिक इसलिए कि ईदगाह या दरगाह में आते तो यहां के लोग अल्‍लाह की इबादत के लिए हैं लेकिन जब उससे बाहर निकलते हैं तो वे प्रेम के आनन्‍द में डूबने के स्थान पर अपने अन्‍य देशवासियों के प्रति क्रोध से भर जाते हैं। उन्‍हें भारतीय सेना शत्रु के समान नजर आती है। आज ऐसे सभी लोगों के लिए नसीहत इतनी ही कि क्‍यों वे एक प्रेम सौहार्द्रभाईचारे के पंथ ईस्‍लाम को ईद के दिन भी पत्‍थर फैंककर बदनाम करने में लगे हुए थेपत्‍थर फैंकू कश्‍मीरियों को मानवीयता का ध्‍यान नहीं रखना है तो कम से कम अपनी धार्म‍िक मान्‍यताओं एवं मान बिन्‍दुओं का ही ध्‍यान कर लें।

इस्लाम को लेकर उसके मानने वालों की ओर से तर्क यही दिए जाते हैं कि अगर एक इंसान भूखा है और दूसरे के पास खाने को एक रोटी भी मौजूद है तो वह उस इंसान से अपनी रोटी को बाँट के खायेगा । इस्लाम आपस में मोहब्बत करना सिखाता हैं । यह लोगों को इंसानियत सिखाता हैं । इस्लाम सुफिसम को बढ़ावा देता हैंजो सुफिसम कहता है की आप अपनी ज़ात से किसी को भी दुःख न दोकिसी को नुकसान न पहुँचाओ। भूखे को रोटी खिलाओपियासो को पानी पिलाओ । जिसके पास रहने के लिए सही ठिकाना न हो उसको रहने के लिए आसरा दो।

कहनेवाले तो इस्‍लाम के समर्थन में यहां तक कहते हैं कि कोई भी पैगम्बर होचाहे वह मूसा अलेह अस्सलाम होईसा अलेह अस्सलाम होया इस्लाम धर्म के आखिरी पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलेह वस्सल्लम होसब ख़ुदा के मैसेज को ख़ुदा के बन्दों तक पहुंचाते थे। सब एक ही ख़ुदा को मानते हैंसभी पैगमबर के फॉलो करने वाले एक ही ख़ुदा का कलमा पढ़ते हैं और सभी इंसानीयत के लिए जीते हैं। इस्लाम धर्म में दहशतगर्दी के लिए कोई स्थान नहीं है। हमारे पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने सभी को आपसी भाईचारे के साथ रहने एवं नेकनीयती के साथ जीवनयापन करने का फरमान सुनाया था। मुल्क की सलामती एवं तरक्की में भागीदार होना हर मुसलमान का फर्ज है। मुल्क से गद्दारी करने वालों को खुदा कभी माफ नहीं करता है। किेंतु क्‍या यह पूर्ण सच है यदि यह सच है तो फिर यह नफरत कौन फैला रहा हैकश्‍मीर में अल्‍लाह के घर से ये अजान की जगह पत्‍थर फैंकने का हुक्‍म क्‍यों  ये कौन सी इस्‍लामियत है तो ईद के दिन भी मानवीयता को शर्मशार कर रही हैदेशभक्‍ति की जगह यह देशद्रोह किसलिए निश्‍चि‍त ही इस विषय पर हम सभी के गंभीर च‍िंंतन एवं गंभीर विमर्श की आज आवश्‍यकता है।