शनिवार, 23 जुलाई 2016

कश्मीर समस्या पर प्रधानमंत्री को सुझाव

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बैठक में कश्मीर मुद्दे को लेकर शि‍वसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक उम्दा सुझाव दिया है । सुझाव यह था कि नवाज शरीफ के साथ तो चाय पर चर्चा हो गई, कभी कश्मीर के लोगों के साथ भी आप चाय पर चर्चा कीजिए। इस सलाह का महत्व ऐसे समय में और अधि‍क बढ़ जाता है, जब कश्मीर एक बार फिर किसी आतंकी के मारे जाने के बाद सुलग रहा है। यहां बात नवाज शरीफ के साथ मोदी के चाय पीने की तुलना नहीं हो रही, बल्कि बात इससे भी बहुत ज्यादा गंभीर है। वस्तुत: बात यह है कि हम उनके साथ तो चाय पी रहे हैं जो रात-दिन हमारे सीने में छुरा घोपनें का कार्य कर रहा हैं, लेकिन हम उनसे सीधा संवाद बनाने में सफल नहीं हो पा रहे जोकि हमारे देश का ही एक हिस्सा हैं। कश्मीर में कश्मीरियत के नाम पर हुर्रियत नेता यहां के युवाओं को बरगला सकते हैं तो क्यों नहीं सही और यथास्थ‍िति बयान कर इन युवाओं को देश के विकास में योगदान देने के लिए मुख्यधारा में जोड़ा जा सकता ? वास्तव में इस दिशा में एक नई पहल करने की जरूरत है।

आज यह सर्वविदित है कि कश्मीर में बिगड़े हालातों के लिए हमारा पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान पूरी तरह जिम्मेदार है।  पाकिस्तान की इसी दखलंदाजी के कारण ही विगत दिनों हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह को यहां तक कहना पड़ा था कि कश्मीर में आज जो कुछ हो रहा है वह सब पाकिस्तान प्रायोजित है और उसका नाम भले ही पाकिस्तान हो, लेकिन उसकी सारी हरकतें नापाक हैं। ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं, जब कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को हवा देने के लिए पाकिस्तान ने यहां के युवाओं को गुमराह किया हो, यह काम रह-रह कर वह करता ही रहता है । हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी बुरहान वानी हो या उस जैसे तमाम युवा जो उसके बहकावे में आकर अपने देश से ही गद्दारी करने में लग जाते हैं। लेकिन इसके वाबजूद भी हमें अपने विश्वास को बनाए रखना होगा। आज नहीं तो कल घाटी के उन सभी युवाओं को यह बात ठीक ढंग से समझ में आ जाएगी कि कौन उनका सच्चा हितैषी है। वैसे तो यह बात उन्हें तभी समझ जाना चाहिए था जब कश्मीर में बाढ़ आई थी और भारतीय सेना ने बिना भेदभाव किये उनके जानमाल की हिफाजत की थी। लेकिन शायद यहां के अलगाववादी तथा इनके बहकावे में आ जाने वाली आवाम इस अनुभव से कुछ सीखना नहीं चाहती, निश्चित ही प्रकृति उन्हें और अवसर अपने वतन भारत के प्यार को समझने के लिए अवश्य ही देगी।
दूसरी ओर यह भी एक तथ्य है कि कश्मीर का सच दुनिया आज जान चुकी है, भले ही कुछ स्वार्थ से पूर्ण होकर सच्चाई स्वीकार्य न करें किंतु कहना होगा कि इसके वाबजूद भी विश्व के कई देशों ने कश्मीर में आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की घेरेबंदी शुरू कर दी है, जिसके कि संकेत समय-समय पर पिछले दिनों देखने को मिले हैं। आने वाले दिनों में यह घेराबंदी ओर बढ़ेगी इतना तय है। लेकिन आज भी मूल बात यह है कि कश्मीर का अलगाववाद बंद कैसे हो और तत्काल में भारत विरोधी नारे तथा गतिविधि‍यों को कैसे समाप्त किया जा सकता है ? निश्चित ही वर्तमान परिस्थ‍ितियों में हमें कश्मीर को एक नए सिरे से देखना होगा। समस्या है तो उसका समाधान भी होगा । यह तो सुनिश्चित है‍ कि पाकिस्तान को कोसते रहने से काम नहीं चलने वाला, लेकिन उसकी अनदेखी भी संभव नहीं। इसलिए भारत सरकार को जो उपाए कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर करने हों वह करे किंतु इससे भी ज्यादा जरूरी है कि सबसे पहले वह कश्मीरियों से सीधे संवाद बनाने की व्यवस्था बनाए।
शिवसेना नेता संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सही सलाह दी है‍ कि कश्मीर के लोगों के साथ चाय पर चर्चाकरें। साथ में यह भी जरूरी है कि यह चर्चा एक बार की होकर न रह जाए, इस प्रकार के प्रयोजन सतत करने होंगे, क्योंकि कश्मीर में अलगाववादी और पाकिस्तान परस्त तत्व कश्मीरी युवाओं को बहकाने एवं बरगलाने में समर्थ हैं। उनकी यह समर्थता हो सकती है, धर्म के आधार पर हो, यह भी संभव है, कि कश्मीरियत यानि विशेष संस्कृति की दुहाई देकर इन्हें भारत से अलग रखने का षड्यंत्र चलाया जाता हो, यह भी हो सकता है कि बगैर काम किए ही इस क्षेत्र के अधि‍कांश नौजवानों को धन का लालच दिया जाता हो या अन्य कोई और कारण भी इसके पीछे संभव है। ऐसे तत्वों के समक्ष कश्मीर के राजनीतिक दल भी असहाय-अक्षम नजर आते हैं। कई बार तो यहां के राजनीतिक दलों के आए बयानों और भाषणों को सुनकर समझ नहीं आता कि राजनीतिक दल कौन सी भाषा बोल रहे हैं ? ये राजनीतिक दलों की भाषा है या भारत विरोधियों की। वास्तव में ये उन तमाम राजनीतिक दलों की अपनी साख बनाए रखने की मजबूरी भी हो सकती है। इसलिए सार्थक संवाद, बार-बार की बातचीत कश्मीर की जनता और यहां के छोटे-बड़े राजनीतिक दलों से साथ होती रहे यह बेहद जरूरी है।

कश्मीर के हालात बिगड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि जाने-अनजाने इस भाव को मजबूत किया गया कि यह भारतीय भू-भाग देश के अन्य हिस्सों से कुछ विशेष है। वस्तुत: अनुच्छेद 370 जिसके कारण से कश्मीर को कुछ खास रियायतें और सुविधाएं मिलती रही हैं, जिसके कारण कुछ हद तक यहां के लोगों में सुविधाभोगी होने का प्रचलन तेजी से पनपता रहा, जिसके परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं कि आगे चलकर यही अनुच्छेद 370 इसके अलगाववाद का मुख्य आधार बन गया । इसलिए भी चाय के बहाने लगातार संवाद की यहां आवश्यकता है। कश्मीर में यदि इस प्रकार की नई पहल की जाती है तो यह तय मानिए कि कश्मीरी जनता का एक बड़ा वर्ग खुद को भारत के साथ जोड़ने के लिए तैयार हो जाएगा। लगातार के संवाद के अलावा कश्मीरियों को लेकर फिलहाल तो अन्य कोई स्थायी हल यहां की शांति बहाली के लिए सूझता नहीं है।
: डॉ. मयंक चतुर्वेदी

शनिवार, 16 जुलाई 2016

मध्यप्रदेश में सफेद बाघ उद्यान

लम्बे समय के इंतजार और प्रत्याशाओं के बाद मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी पार्क अपने जीवंत रूप को प्राप्त कर जनता के लिए नियमित खुल गया है, इससे यह बात साफ हो गई है कि मध्यप्रदेश की सरकार सिर्फ विकास की बात नहीं करती, उसका ध्यान जैव विविधता और वन्य प्राणी संरक्षण तथा उनके विकास पर भी है। कहा जा सकता है कि इस मायने में यहां सफेद बाघ उद्यान का निर्माण तथा उसके विकास की सतत् प्रक्रिया का होना अपना कुछ विशेष महत्व रखता है।
 
सतना वन संभाग के मुकुंदपुर वन क्षेत्र में स्थि‍त ‘‘मांद रिजर्व’’ 643.71 हेक्टेयर में स्थपित है। इसके 100 हेक्टेयर क्षेत्र में से मुकुन्दपुर चिड़ि‍याघर 75 हेक्टेयर में तथा 25 हेक्टेयर में सफेद बाघ सफारी का निर्माण 2012 से शुरू किया गया था। यहां सिर्फ व्हाइट टाइगर ही रखे जाएंगे। शुरुआत में 4 टाइगर रहेंगे। इसी में बन रहे चिड़ि‍याघर में करीब 40 से ज्यादा छोटे-बड़े वन्य प्राणियों को भी रखा जाएगा। दर्शकों के घूमने के लिए दो बसें रखी गई हैं। इसके निर्माण में 54 करोड़ की लागत आई है। लगभग 40 वर्ष बाद मुकुंदपुर वन्य जीव पर्यटन केन्द्र के तौर पर विकसित हो रहा है जहां जियोलोजिकल पार्क, रेस्क्यू सेंटर, व्हाइट टाइगर सफारी और प्रजनन केंद्र आदि हैं।

सफेद बाघों का इति‍हास बताता है कि विश्व का पहला सफेद बाघ 1951 में सीधी के जंगलों में तत्कालीन महाराजा मार्तंड सिंह द्वारा पकड़ा गया था और उसे लाकर गोविंदगढ़ में रखा गया। धीरे धीरे इसी मोहन नामक सफेद बाघ के वशंज दुनियाभर के जंगलों और चिड़ियाघरों तक पहुंच गए, लेकिन वे रीवा और विंध्य क्षेत्र में लुप्तप्राय: हो गए थे। जिसे कि मध्यप्रदेश के जनसंपर्क और खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के अभि‍नव प्रयासों से वापिस उसके मूल प्रजनन क्षेत्र में लाया गया है। 

वास्तव में यह मध्यप्रदेश की धरती पर विंध्य क्षेत्र में उस प्राचीन विरारत को सहजने और पुन: अतीत को वर्तमान कर देने का प्रयास है, जिसे कुछ वर्ष पहले तक असंभव माना जा रहा था। अतीत बन चुकी सफेद बाघ की दहाड़ अब फिर से विन्ध्य की धरती पर गूँजने लगी है। वस्तुत: प्रदेशवासियों में खासकर विंध्यक्षेत्र के रहवासियों की यह प्रबल आकांक्षा थीं कि विश्वभर में सफेद बाघ से जो गौरव उसे कभी प्राप्त था, वह उसे पुनः मिलना चाहिए। आज मुकुन्दपुर में सफेद बाघ की वापिसी न केवल इस क्षेत्र के लिए बल्कि संपूर्ण मध्यप्रदेश के लिए एक भावनात्मक विषय है, क्यों कि पूरी दुनिया में सबसे पहले इसी अंचल में सफेद शेर पाया गया था और यह धरोहर समय के साथ इस क्षेत्र से विलुप्त हो गई थी। अब एक बार फिर सफेद शेर अपने घर पूरी शान-शौकत के साथ वापिस लौटा है, इस दृष्टि से भी यह टाइगर सफारी का निर्माण किया जाना महत्वपूर्ण हो गया है। 

विश्व के सिर्फ 12 देशों में ही बाघ पाए जाते हैं, जिन्हें शक्ति और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। बाघ वैश्विक विरासत है इसलिए बाघ संरक्षण की दिशा में किया गया मध्यप्रदेश सरकार का यह प्रयास आज अभि‍नव कहा जाएगा। यह अहम इसलिए भी हो गया है क्यों कि इंसानी दुनिया के जंगलों में किए गए अत्याधि‍क हस्तक्षेप के कारण आज दुनिया में बाघ की आठ प्रजातियों में से तीन प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। अब केवल पांच बची है, जिनमें बंगाल (रायल बंगाल टाइगर), साइबेरियन, साउथ-चाइना, इंडो-चायनीज और सुमात्रा प्रजाति के बाघ अभी शेष हैं, जबकि बाली, जावा एवं एक अन्य प्रजाति विलुप्त हो चुकी हैं। 

विश्व के वैज्ञानिकों ने पर्यावरण की दृष्टि से बाघ का महत्व जानकर इसका वैज्ञानिक संवर्धन वर्ष 1963 के बाद शुरू कर दिया था, जो अब तक जारी है। भारत में 1969 में बाघ के शिकार पर प्रतिबंध लगाकर 1972  में वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम के लागू होने से बाघ संरक्षण के काम को बल मिला। भारत के लिए यह गौरव की बात है कि दुनिया की संपूर्ण आबादी के 70  प्रतिशत बाघ भारत के हैं। देश में बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह मान्यता बाघ को भारत सरकार ने यूं ही नहीं दी है, वस्तुत: विश्वभर में आज प्राप्त होने वाले बाघों की संख्या का आंकड़ा 2 हजार 226 है, जिसमें से लगभग 2 हजार की संख्या में बाघ भारत में रहते हैं। 

मध्यप्रदेश के लिए गर्व की बात इसमें यह है कि भारत सरकार की योजना में टाइगर रिजर्व कान्हा को बाघ संरक्षण के लिए सबसे पहले चुना गया था। देश में वर्तमान में लगभग 49 टाइगर रिजर्व हैं, इनमें से सात मध्यप्रदेश में हैं, अब मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी का नाम जुड़ जाने के बाद बाघ संरक्षण का यहां आठवां स्थान हो गया है। 

मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी को लेकर केंद्र द्वारा की गई घोषणा भी विशेष मायने रखती है, जिसमें कहा गया है कि सफेद बाघ उद्यान का उनके मंत्रालय के सालाना बजट में सबसे पहला अधिकार होगा और जल्द ही इसे सेवन स्टार का दर्जा मिलेगा। यह मध्यप्रदेश वासियों के लिए निश्चित ही कम गौरव की बात नहीं है कि केंद्र सरकार से इस प्रकार का सहयोग मिले और दुनिया में मध्यप्रदेश राज्य का मान बढ़े। वास्तव में मध्यप्रदेश वासियों के लिए आज यह गौरव की बात है।
यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विंध्य वासियों से कही यह बात भी अहम है कि वे इसे एक साल के अंदर विश्व का सबसे पसंदीदा टाइगर सफारी बनाने के लिए वचनबद्ध हुए हैं। सच ही है यहां बाघ आया है तो पर्यटक भी आएंगे। जिससे युवाओं को रोजगार मिलेगा। यह एक काम ही मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में विकास के कई नए अवसरों का कारक बनेगा। मुख्यमंत्री ने रीवा हवाई पट्टी को अंतरराष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा बनाने की घोषणा के साथ सतना हवाई पट्टी का विस्तार करने की बात कही है, जिससे कि दुनियाभर से पर्यटक सफेद बाघों को देखने यहां आ सके। दुनिया के वन्यजीव प्रेमी और विशेषज्ञों में यह स्वाभाविक जिज्ञासा रही है कि सफेद बाघ के मूल स्थान को जाना जाए। इस दिशा में मुकुन्दपुर ऐसे सभी लोगों की सहज जिज्ञासाओं को शांत कर पाएगा, आज इसके शुरू हो जाने से यह आस बंध गई है। 

प्राणी जगत के लिए सफेद बाघ प्रकृति के दिए किसी उपहार से कम नहीं है। मध्यप्रदेश के लिए यह सौभाग्य की बात है कि इस प्रकार के बाघ को सबसे पहले यहीं देखा गया और यहां से होकर यह दुनिया के कई देशों में अपनी उपस्थि‍ति दर्ज कराने पहुंचा। निश्चित ही आज विश्वभर के वन्यप्राणी उद्यानों में जो भी सफेद बाघ विचरण कर रहे हैं, वे सभी मध्यप्रदेश की दुनिया को दी गई अनुपम सौगात है।

वस्तुत: स्वस्थ्य पर्यावरण के लिए प्रत्येक जीव का कितना महत्व है, आज यह बात किसी से छिपी नहीं है, किंतु यह कम ही देखने को मिलता है कि इसके संरक्षण के प्रयास संवेदनात्मक स्तर पर जाकर किए जाएं, इस दिशा में कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश का सफेद बाघ उद्यान एक अनुपम मिशाल के रूप में सभी के समक्ष प्रस्तुत हुआ है।  उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अभि‍नव प्रयोग और प्रयास का अनुसरण अन्य राज्य सरकारें भी करेंगी। 

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

पाक की आतंकी मंशा फिर जाहिर


पाकिस्‍तान एक ओर पूरी दुनिया में यह कहकर अमेरिका, चीन तथा अन्‍य यूरोपीय देशों का साथ पाने के लिए प्रयत्‍नशील रहता है कि वह अपने यहां आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध कर रहा है, लेकिन दूसरी ओर उसकी भारत के मामले में कश्‍मीर को लेकर जो नीति है, उससे एक बार नहीं बार-बार यही जाहिर होता आया है कि पाकिस्‍तान की मंशा आतंकवाद को सदैव पाले रखने की है। वह तमाम देशों से धन उगाही के लिए अपनी कोख में आतंक को पाले रखना चाहता है। आज पाकिस्तान ने जिस तरह आतंकी संगठन हिजबुल के मारे गए कमांडर बुरहान वानी और अन्य आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी बताया है उससे दुनिया के सामने पाक का चेहरा बेनकाब हो गया है।

आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक और जमात-उद-दावा संगठन के प्रमुख हाफिज सईद पाकि‍स्‍तान में खुलेआम घूमता है। अमेरिका ने सईद को आतंकी घोषित कर उसके सिर पर एक करोड़ डॉलर (करीब 67 करोड़ रुपये) का इनाम रखा है। उसके इस प्रकार बिना खौफ घूमने से भी यह साबित होता है कि पाकिस्‍तान आतंकवाद को लेकर दुनिया के सामने सि‍र्फ दिखावा करता है।

यह भी समझ के परे है कि ऐसी कौन सी कूटनीतिक विवशता है जिसके चलते अमेरिका बार-बार आतंक के सफाए के नाम पर उसे धन मुहैया कराता है, जबकि उसीके कई सांसद इस बात पर एतराज जता चुके हैं। इन सांसदों को भी लगता है‍ कि पाकिस्‍तान अमेरिका से मिलने वाले धन का उपयोग आतंक की समाप्‍ति के लिए नहीं बल्‍कि भारत विरोध और जम्‍मू-कश्‍मीर में आतंक को पालने के लिए करता है।

पाकिस्‍तान में इन दिनों बुरहान के मारे जाने के बाद से सरकारी और गैर-सरकारी स्‍तर पर स्‍यापा चल रहा है, तथा वह जिस तरह से आतंकवादियों को महिमामंडित करते हुए भारतीय सुरक्षा बलों पर कश्मीर में सरकारी आतंकवाद अंजाम देने का आरोप पाकिस्‍तान लगा रहा है, उसकी इस मंशा ने भी भारत के उन आरोपों को साबित कर दिया है, जिसमें भारत की ओर से कई बार यह बताया गया कि पाकिस्‍तान आतंकवाद को लगातार प्रश्रय देने तथा उसे बढ़ाने में लगा है तथा आजादी की आवाज भारत में नहीं सबसे ज्‍यादा उसी के यहां बुलंद है।

पाकिस्‍तान की नजर में जम्‍मू-कश्‍मीर में हिजबुल कमांडर वानी एवं अन्य आतंकवादियों द्वारा "आजादी की जंग " लड़ी जा रही थी, जिसमें कि वे शहीद हुए हैं। पाकिस्तान ओआईसी, पी-5 एवं ईयू के साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारतीय बलों द्वारा अत्याचार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के बारे में बता रहा है। लेकिन वह खुद क्‍या कर रहा है, यह किसी को बताना नहीं चाहता, जबकि सच्‍चाई यह है कि पाकिस्‍तान में लगातार कई इलाकों में आजाद होने के नारे लग रहे हैं।

वस्‍तुत: भारत के कश्‍मीर को लेकर दुनियाभर में रोने वाला, उसके खुद के यहां पाक अधिकृत कश्मीर में कश्मीरियों पर जुल्म ढाता है, ये आज सारी दुनिया जानती है। पाकिस्‍तान का सच ये है कि पंजाब प्रांत को छोड़कर उसके सभी सूबों में आजादी के लिए संघर्ष चल रहा है । सिंध प्रांत में नारे लग रहे हैं हम लेकर रहेंगे आजादी । यहां के लोगों ने यह नारा इसलिए बुलंद किया है, क्‍योंकि पाकिस्तान का 70 फीसदी टैक्स सिंध से आता है। सिंध में पाकिस्तान के प्राकृतिक गैस का 69 फीसदी उत्पादन होता है। पाकिस्तान के 75 फीसदी कच्चे तेल का उत्पादन सिंध करता है फिर भी सिंध पाकिस्तान के सबसे पिछड़े सूबों में से एक है।

आजादी का ये संघर्ष पाकिस्तान के सिंध से भी कहीं ज्यादा तीखा बलूचिस्तान में है। बलूचिस्तान में आए दिन पाकिस्तान विरोधी आंदोलन और आजादी की मांग को लेकर प्रदर्शन होते रहते हैं। ये बलूचिस्तान के वो लोग हैं जो किसी भी कीमत पर पाकिस्तान से अलग हो जाना चाहते हैं। ये पाकिस्तान को पाकिस्तान नहीं टेररिस्तान मानते हैं।

पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के साथ उपनिवेश की तरह बर्ताव करता है। चीन के साथ मिलकर एक सोची समझी साजिश के तहत वो इस जन्नत को लूट रहा है। इससे यहां के लोगों में जबर्दस्त गुस्सा है, जिसे पाकिस्तान ताकत से दबाता है। हाल ही में यहां के लोगों के बर्बर दमन की तस्वीरें भी सामने आई हैं। वहीं इसका सिंध, बलूचिस्तान, पीओके के अलावा फाटा भी महत्‍वपूर्ण क्षेत्र हैं जहां भी पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष चल रहा है। पाकिस्तान के इस उत्तरी-पश्चिमी इलाके में पाकिस्तानी सेना, स्‍थानीय लोगों और तालिबान के बीच कई सालों से संघर्ष चल रहा है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जिस तरह इस हिजबुल मुजाहिदीन के कुख्यात आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद उसकी मौत पर शोक जताया है, उससे साफ झलकता है कि पाकिस्‍तान की मंशा सिर्फ आतंकवाद को प्रश्रय देने और भारत की शांति को लगातार भंग करते रहने की ही है। उसके हालिया उठाए गए कदम एक बार फिर आतंकवाद के प्रति प्रेम को ही जग जाहिर करते हैं। 

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सूडान में फंसे भारतीयों की सफल स्वदेश वापिसी की राह

दक्षिण सूडान में जारी गृह युद्ध में फंसे सैकड़ों भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए अभियान 'ऑपरेशन संकट मोचन' की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम होगी। केंद्र की भाजपा सरकार के साथ विशेषकर सुषमा स्वराज और वी.के. सिंह भी इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्हें विदेश में रह रहे भारतीयों का दुख-दर्द तत्परता से दिखाई देता है, नहीं तो कई देश ऐसे भी हैं कि वे अपने नागरिकों की चिंता इतनी मुस्तैदी और त्वरितता से सभी संसाधन होने के बाद भी नहीं कर पाते हैं। 

'ऑपरेशन संकट मोचन' विदेश मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय के सहयोग से चलाया हुआ है। दक्षिण सूडान से भारतीयों को एयरलिफ्ट करने के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत अपनी टीम के साथ विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह जूबा में डटे हुए हैं। पिछले साल वे अपने सफल नैतृत्व के जरिए युद्धग्रस्त यमन से 5000 भारतीयों के साथ अपने पड़ौसी मुल्कों के नागरिकों को सुरक्षित निकाल पाने में सफल रह चुके हैं। ऐसा ही एक वाकया और पिछले वर्ष का है, जब हज के दौरान पवित्र शहर मक्का में 24 सितंबर को हुई भगदड़ में 769 जायरीनों की मौत हुई थी। जिसमें कि 58 भारतीय नागरिकों की मौत होने के साथ ही 78 लोग लापता हो गए थे, जो गायब थे उनकी खोज-खबर लेने और मृतकों के शरीर को सुरक्षित भारत लाने में जनरल वीके सिंह की भूमिका अहम रही थी । 

इस बार पहले दस्तेह में वे अपने 146 से अधिक नागरिकों को दक्षिण सूडान की राजधानी जूबा से सुरक्षित निकाल लाए हैं। एक अनुमान के मुताबिक, जूबा व इसके आसपास के इलाकों में 600 या अधिकतम 1000 भारतीय हो सकते हैं। हालांकि, अभी तक भारतीय दूतावास के पास सिर्फ 300 भारतीयों ने ही वापसी के लिए अपना पंजीयन कराया है।

इस बीच, सूडान में फंसे भरतीयों में से कई ऐसे भी हैं, जोकि इस मिशन के जरिए भारत आने में रूचि नहीं ले रहे हैं, लेकिन सच यही है कि जो हालात इन दिनों दक्षिण सूडान के हैं, उनको देखकर नहीं लग रहा कि आगामी कई दिनों बाद तक भी यहां की स्थिति सामान्य हों पाएंगी। विदेश मंत्रालय में पंजीयन कराने के बावजूद बहुत सारे भारतीय जो स्वदेश वापसी से इन्कार कर रहे हैं, उन्हें भी यह समझना होगा कि ज्यादा हालात खराब होने के बाद भारत सरकार भी चाहकर उन्हें यहां से बाहर नहीं निकाल पाएगी, क्यों कि हर देश की अपनी संप्रभुता होती हैं।

 विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा ट्विटर के जरिये की गई अपील पर उन सभी भारतीयों को गंभीरता से सोचना चाहिए जोकि अभी भी विपरीत परिस्‍थ‍ितियों के वाबजूद भी दक्षिण सूडान में रहने की जिद पर अड़े हुए हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सीधे ट्वीट के माध्यमों से इन सभी से जुड़कर यह कहने की कोशिश की है कि आगे हालात और खराब होने पर आपको निकाल पाना हमारे लिए संभव नहीं होगा, और यही वह सच्चाई है, जिसे दक्षिण सूडान में जान की कीमत पर रह रहे भारतीयों को समझनी होगी। क्यों कि जीवन से बढ़कर कुछ नहीं सिर्फ स्वदेश’  होता है। 

राज बब्‍बर से यूपी में कांग्रेस को कतनी मिलेगी प्राणवायु?

उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को मजबूती प्रदान करने के लिए यह सर्वविदित है कि राज बब्बर को मैदान में उतारा गया है। पार्टी ने उनसे अपेक्षा की है कि वे जातिगत समीकरणों का लाभ उठाकर उत्तरप्रदेश से उसका पिछले 27 सालों से चला आ रहा सियासी वनवास समाप्त कर देंगे। निश्चित ही उम्मीद रखना और स्वप्न देखना बुरा नहीं है, लेकिन इस हकीकत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जो वर्तमान यूपी के राजनीतिक समीकरण की तस्वीर अलग ढंग से प्रस्तुत करते हैं।

उत्तरप्रदेश का सही तथ्य यह भी है कि पार्टी का परंपरागत मुस्लिम एवं यादव वोट बैंक समाजवादी पार्टी की झोली में, दलित वोट बैंक बसपा में तथा सवर्ण वोट बैंक भाजपा के खाते में खिसका है। इसी वोट बैंक को फिर से हासिल करने की कोशिश में कांग्रेस ने संभवत: राज बब्बर को आगे किया हो। इसका दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि राज बब्बर की पृष्ठभूमि सिनेमायी है, इसलिए प्रदेश की तीस प्रतिशत युवा आबादी को लुभाने के लिए उन्हें प्रतिनिधि चेहरा बनाने की कोशिश की गई हो। नि:संदेह राज बब्बर का अपना ग्लैमर है। वे कुशल वक्ता होने के साथ हमेशा विवादों से परे रहने का हुनर जानते हैं। इसके बावजूद बब्बर की फिल्मी चकाचौंध कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने में कितनी कारगर सिद्ध होगी, अभी से कुछ कहना जल्दबाजी है।

वहीं गुलाम नबी आजाद को यूपी का प्रभारी बनाकर भी कांग्रेस की ओर से यही संदेश देने की कोशिश रही होगी कि यहां के अल्पसंख्यक वर्ग को पार्टी ज्यादा तरजीह देती है, वह इस वर्ग का ध्यान रखने में अन्य किसी राजनीतिक पार्टी से कमतर नहीं बल्कि इस मामले में कुछ ज्यादा ही सोचती है। लेकिन एक हकीकत कांग्रेस की अंदरूनी यह भी है कि राज्य में पार्टी के अन्य समुदाय सदस्य यहां से प्रियंका गांधी की प्रभावी मौजूदगी के लिए प्रयास कर रहे थे।

फिलहाल तो कांग्रेस को लग रहा है कि इस राज्य से तीन बार सांसद रह चुके तेजतर्रार राज बब्बर को पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने से बहुत कुछ हासिल करने में वह कामयाब हो जाएगी, पार्टी को यहां तक लगता है कि सत्ता के सिंहासन पर बैठने में भी उसको सफलता मिलेगी, किंतु यह इतना आसान भी नहीं है। भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी के साथ उत्तरप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का जोर कुछ कम नहीं है। सपा की सत्ता है और बहुत बड़े वर्ग का साथ नेताजी यानी कि मुलायम सिंह को मिला हुआ है।

तथ्‍य यह भी है कि उत्‍तर प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद जिस वर्ग से आते हैं, सपा सरकार की सत्ता में इस वर्ग के लोगों ने देखा है कि नेताजी के बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुजफ्फरपुर जैसे दंगों से लेकर अखलाक के केस में किस प्रकार इस विशेष समुदाय के प्रति अपनी भक्ति दिखाते हैं। स्वाभाविक है कि इस कारण से प्रदेश में इस समुदाय विशेष का बहुत बड़ा वर्ग अपने लाभ के चलते समाजवादी पार्टी का साथ छोडऩे से परहेज करेगा, जबकि इस पक्ष का एक सच यह भी है कि साक्षरता, शिक्षित और उच्च शिक्षा दर के मामले में यह अब भी बहुत पीछे है, हां, जो पढ़े लिखे हैं वे जरूर सत्ता के सिंहासन पर सपा पर दौबारा भरोसा करके बैठाने को लेकर अपने मत का प्रयोग किसी अन्य के पक्ष में कर सकते हैं, लेकिन इनकी संख्या काफी कम ही है।

वहीं इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि सपा सरकार के निर्णयों ने बहुसंख्यक समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को नाराज किया है। इस वर्ग को लगने लगा है कि वे समाजवादी पार्टी के राज्य में सुरक्षित नहीं है। यदि सूबे में कहीं भी धार्मिक विद्वेष के कारण दो समुदायों के बीच हिंसा की स्थिति बनती है तो ज्यादातर मामलों में शिकार यहां के बहुसंख्यक समाज के लोग ही होते हैं, जब तक सेना को नहीं बुलाया जाता, तब तक तो बहुत नुकसान हो ही चुका होता है। इसलिए राज्य में सत्ता के स्तर पर समाजवादी पार्टी से बहुत बड़ा वर्ग मुक्त होना चाहता है। जहां तक बहुजन समाज पार्टी का प्रश्न है, उसके प्रति भी आम जनता में तरह-तरह की राय है। राज्य में जातिगत समीकरणों से देखें तो बहुसंख्यक समाज यूपी में उन जातियों का है, जिनकी दम भरकर मायावती अभी तक सत्ता में आती रही हैं, बौद्धकि स्तर पर हिन्दू समाज के अगले लोगों का साथ भी समय-समय पर मायावती को मिलता रहा है। किंतु वर्तमान हालात बहुत कुछ बदल चुके हैं।

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के आ जाने के बाद और विशेषकर उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व मिलने से देश के आम लोगों की राय बहुत हद तक भाजपा के पक्ष में हैं। जीएसटी, एफडीआई, महंगाई जैसे कुछ मुद्दे अवश्य हैं, जिनके कारण मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया जाता है। लेकिन जो इन विषयों को उठा रहे हैं, उनमें से भी ज्यादातर लोगों का यही मानना है कि पूर्व में इंदिरा सरकार के रहते हुए तथा उसके पश्चात देश में मोदी सरकार के आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। भारत को जानने और समझने का आकर्षण इन दिनों इतना अधिक है कि गूगल से लेकर सभी सर्च इंजनों पर विश्व हमें ज्यादा से ज्यादा जानना और समझना चाहता है। अन्य राष्ट्रीय विकास के मुद्दों पर भी मोदी सरकार का फरफॉर्मेंस श्रेष्ठ है, भारत लगातार ऊंची विकास दर हासिल कर रहा है।

कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश का जो नौजवान है, पढ़ा लिखा वर्ग है, वह यह समझ रहा है कि यदि तेजी से अपने प्रदेश का विकास करना और करवाना है, तो हमें अपने राज्य में भारतीय जनता पार्टी को इस बार सरकार बनाने का मौका देना चाहिए। इससे होगा यह कि राज्य सरकार प्रदेश की जनता के सामने यह रोना नहीं रो सकती कि विकास के लिए केंद्र सरकार से फलां मदद चाही गई थी, लेकिन विचारधारा के स्तर पर साम्य नहीं होने तथा हमारी पार्टी की सरकार नहीं होने के कारण हमें मदद नहीं दी गई।

बुधवार, 13 जुलाई 2016

75+ गौर और सरताज को प्रधानमंत्री मोदी का जवाब

मध्‍यप्रदेश में हाल ही के दिनों में जब शिवराज मंत्री मण्‍डल का विस्‍तार हो रहा था, तभी भारतीय जनता पार्टी का आयु 75+ फार्मुला नियम यहां मंत्री मण्‍डल के सदस्‍यों को लेकर लागू किया गया था, जिसमें कि दस बार के विधायक व गृह मंत्री बाबूलाल गौर और 5 बार के सांसद और दो बार से विधायक रहे पीडब्ल्यूडी मंत्री सरताज सिंह को उनकी आयु के कारण मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया। जैसे ही शिवराज मंत्री मण्‍डल से गौर और सरताज बाहर हुए, दोनों ने ही अपना मुखर विरोध विभिन्‍न मंचों विशेषकर मीडिया माध्यमों के जरिए व्‍यक्‍त करना शुरू किया। दोनों ने तब मोदी कैबिनेट में कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्लाह जैसे हमउम्र मंत्रियों के बने रहने पर सवाल उठाया था।

इन दोनों के हिसाब से उनका बाजिव तर्क यह है कि सामाजिक कार्य करने की ललक को आप आयु में बांधकर कैसे देख सकते हैं ? इस दौरान सरताज का स्‍वर गौर की तुलना में ज्‍यादा मुखर था। उनके द्वारा केंद्रीय नेताओं से इस संबंध में बात करने और अपने तर्कों से अवगत कराने की बात बार-बार कही गई थी। बात सुनने में और एकदम देखने में सही प्रतीत भी होती है, लेकिन इसका दूसरा मजबूत पक्ष यह भी है कि यदि पुराने लोग अपनी अंतिम आयु तक आते-आते भी विभिन्‍न पदों पर बने रहेंगे तो नए लोगों को कब अवसर मिलेगा? सरकार भी 60 और 62 की आयु पार करते ही आला अधिकारियों को नमस्‍ते कह देती है, तब राजनीति में खासकर पदों पर पहुंचने की उम्र भी क्‍यों न निर्धारित होनी चाहिए? जहां तक सामाजिक सेवा करने की बात है तो उसके लिए सिर्फ राजनीति तो माध्‍यम नहीं है, और भी कई रास्‍ते हैं, जिनके माध्‍यम से सेवा कार्य किए जा सकते हैं।

अब तो मोदी कैबिनेट में भी 75+ फार्मुला लागू हो गया है। जिसके संकेत अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नजमा हेपतुल्ला और कर्नाटक से आने वाले भारी उद्योग मंत्रालय में राज्यमंत्री जी. सिद्धेश्वरा की केंद्रीय मंत्रीमण्‍डल से विदाई के रूप में सामने आया है। पिचहत्‍तर की आयु पार कर चुके लोगों में बचे अब कलराज मिश्र हैं जिन्‍हें भी इस फार्मुले के तहत हटा देना चाहिए था। पर राजनीति सिर्फ सेवा नहीं है, वह शक्‍ति का प्रतीक भी है और भी कई प्रतीक उसमें समाहित रहते हैं शायद इसी वजह से उत्‍तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें हटा कर मोदी सरकार यहां के ब्राह्मण वोटों को नाराज करने के खतरे को मोल लेना नहीं चाहती होगी, लेकिन देर सबेर उनका हटना भी तय है।

मोदी मंत्रीमण्‍डल से यह दो इस्तीफे लेने के साथ अन्‍य दो छोटे मंत्रियों के मंत्रालय भी बदल दिए गए हैं। संकेत साफ है कि मोदी जहां प्रशासनिक तौर पर कोई भी सुस्ती बर्दाश्त नही करेंगे। वहीं, कुछ निश्‍चि‍त  मापदंडों से भी लंबे वक्त तक समझौता नहीं होगा। इन दो इस्तीफों के साथ ही मोदी मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की संख्या 76 हो गई है जो संप्रग काल के मुकाबले कम है। ध्यान रहे कि मोदी सरकार बनने के साथ ही 75 की आयु पार कर चुके लोगों को मंत्रिमंडल व सक्रिय राजनीति से अलग रहने का संदेश दे दिया गया था। अब यह संदेश दे दिया गया है कि देर-सबेर हर मापदंड पर सरकार भी खरी उतरेगी और संगठन भी। मध्‍यप्रदेश से केंद्र तक और अब केंद्र से देश के अन्‍य सभी राज्‍यों तक यह आयु का फार्मुला भाजपा सत्‍ता और संगठन दोनों पर लागू होने जा रहा है। 


मध्यप्रदेश के इन दो पूर्व बुजुर्ग मंत्रियों के साथ उनकी आयु सीमा के कारण कैबीनेट से बाहर का रास्‍ता दिखा देने को लेकर कहा जा सकता है कि अपने केंद्रीय नेतृत्‍व से उन्‍हें जो न्‍याय चाहिए था या सही उत्‍तर मिलने की आस थी, वह उत्‍तर जरूर केंद्र में हुए इस बदलाव से मिल गया होगा। शायद, अब सरताज और गौर यह शिकायत करते कहीं नजर नहीं आएं कि उनके साथ बड़ी नाइंसाफी हुई है।

व्‍यंग्‍य: मुख्‍यमंत्री जी, फंडे बहुत बताते हैं साहब !

रामभुलावन हर रोज की तरह सुबह, दूध लेता हुआ घर आया। मैंने दरवाजा खोला और जैसे ही उसने मुझे सामने देखा वह तपाक से बोला, आपको पता है साहब? मैंने कहा क्‍या? इस पर उसने उत्‍सुकता और उत्‍साह से कहा, हमारे प्रदेश के मुख्‍यमंत्री जी, मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सभी मंत्रियों को टीमवर्क के फंडे बताएंगे।

रामभुलावन की बात सुनकर मैं बोला, इसमें अचरज की क्‍या बात है ? वे प्रदेश के मुखिया हैं, उनका मार्गदर्शन सभी को समय-समय पर मिलना ही चाहिए, तभी तो प्रदेश का समुचित विकास होगा। इसमें इतना आश्‍चर्य क्‍यों होना चाहिए। अब, रामभुलावन का चेहरा देखने की बारी थी, लग रहा था कि उसे मुझसे इस प्रकार के उत्‍तर की उम्‍मीद तो कतई नहीं थी। उसने मासूमियतभरे लहजे में कहा, साहब मेरा मतलब वो नहीं है। मैं तो बस आपसे......

अरे भाई आपसे क्‍या, सही-सही बोलो, क्‍या कहना चाहते हो रामभुलावन ।

अब रामभुलावन की बारी थी अपने मन की व्‍यथा कथा एक स्‍वर में और एक ही बार में कह देने की। बड़ी ही हड़बड़ाहट के साथ जल्‍दी-जल्‍दी उसने कहना शुरू किया।
मैंने कहा, आराम से अपनी बात कहो, रामभुलावन हम कहीं भाग नहीं रहे हैं, तुम्‍हारी कही बात सुने वगैर मैं ऑफिस नहीं जाने वाला हूं। इतना सुनते ही उसने अपनी बोलने की स्‍पीड को धीरे कर दिया और कहना जारी रखा....

उसने कहा, देखो साहब, मुख्‍यमंत्री जी, किसी को पहली बार तो यह बता नहीं रहे हैं, कि क्‍या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए और क्‍यों करना चाहिए। इससे पहले भी वे कई बार प्रदेश के मंत्रियों, अपनी पार्टी के नेताओं और अधिकारियों को यह बता चुके हैं कि प्रदेश के विकास के लिए किस प्रकार से काम करने की जरूरत है। कोई आपात स्‍थ‍िति आ जाए तो उससे कैसे बचा जा सकता है। लेकिन साहब... अटकते और संकोचभरे बहुत ही धीमें स्‍वर में रामभुलावन ने कहा, उनकी सुनता कौन है, साहब?  

मैंने कहा, ऐसे नहीं कहते अपने मुख्‍यमंत्री जी के लिए। वे प्रदेश के मुखिया हैं, कोई उनकी क्‍यों नहीं सुनेगा। सभी सुनते हैं, उनकी।

रामभुलावन को लगा कि शायद मुझे उसका यह कहना पसंद नहीं आया कि मुख्‍यमंत्री जी की कोई सुनता नहीं । उसने अपनी बात में सुधार करते हुए कहा, साहब मैं तो यह कह रहा था कि फंडे बताना अच्‍छी बात है मगर...... ?

मगर क्‍या? यह पूछे जाने पर उसने संवाद को निरंतर बनाते हुए कहा, साहब, मुख्‍यमंत्री जी, ने तो कई दफा, अपने मंत्रीमण्‍डल के साथियों समेत सभी को बताया है कि प्रदेश को किस रास्‍ते पर चलाकर देहिक, दैविक और भौतिक ताप से उसे बचाना है। पर क्‍या आपने नहीं देखा कि कितनी बार उनकी कही बातों को गंभीरता से लिया गया है। चलो इस बार टीमवर्क, टीमस्प्रिट, गुड गवर्नेंस, पारदर्शी व्यवस्था और प्रभार के जिले में काम करने को लेकर मुख्‍यमंत्री अपने साथियों से बात करेंगे। इसके पहले का क्‍या ?

मैंने कहा, भाई रामभुलावन पहले की बातों को गोली मारो, आगे की सोचो और वर्तमान को जीओ, मैं आगे कुछ ओर बोल पाता उससे पहले ही उसने मेरी बात को बीच में काटते हुए कहा....

साहब, यह तो सरासर गलत बात है, आप भूल गए कि अतीत से वर्तमान और आज से ही हमारा कल बनेगा। मैंने कहा, नहीं भूला हूं, अबकि बार मेरे डिफेंस होने का मौका था, उसने अपना बोलना जारी रखा...

साहब, आपको पता है जब मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ था, उसके तुरंत बाद ही मुख्यमंत्री जी ने सभी मंत्रियों से बेहतर कार्य करने की सख्त हिदायत देते हुए कहा था कि उन्हें हर तीन माह में अपने विभाग की प्रगति रिपोर्ट देनी होगी और उनके कार्य निष्पादन की समीक्षा भी की जाएगी। साथ ही मंत्रियों को महीने में दो दिन अपने प्रभार वाले जिलों में रहने का आदेश भी दिया गया । क्‍योंकि गत ढाई साल में बड़ी तादाद में इस बात की शिकायतें मिलीं कि मंत्री अपने प्रभार वाले जिले में नहीं जाते हैं। उस समय उन्‍होंने यह भी कहा था कि प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के हित में काम करना सरकार की जिम्मेदारी है। किसी का कोई व्यक्तिगत एजेंडा नहीं होना चाहिए।

साहब जी, इसके पहले मुख्यमंत्री जी ने सरकारी विभागों पर मंत्रियों को पकड़ मजबूत करने के लिए कहा था। मुख्यमंत्री खुद विभागों की समीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि अब पहले मंत्री जनता से जुड़े विभागों में कसावट लाएं। क्‍यों कि जब मुख्यमंत्री पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की समीक्षा कर रहे थे तो वे ग्रामीण विकास विभाग की व्यवस्थाओं से नाखुश थे। तब, मुख्‍यमंत्री जी ने यहां तक कह दिया था कि योजनाएं तो हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन कितना हो रहा है यह देखना जरूरी है। मैदान में जा रहा हूं तो वहां जुदा हाल दिख रहा है।

रामभुलावन ने अपनी बात पर जोर देते हुए और बातों से बातें मिलाकर मुझसे तेज आवाज में कहा, साहब आपको पता नहीं, इससे पहले सीएम ने अधिकारियों का काम के दौरान सोशल साइट्स के प्रयोग पर नाराजगी जाहिर की थी। मुख्‍यमंत्री जी ने अधिकारियों को सख्त हिदायत दी थी कि वो काम के समय सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखें।

साहब, यदि हम इससे भी ओर पहले की बात करें तो मुख्यमंत्री जी ने सभी विधायकों  को विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की हिदायत दी थी। उन्‍होंने तो सीधे-सीधे यहां तक कहा था कि वे शिकायतों से ज्यादा काम पर ध्यान दें।

इन सभी से इतर मुख्‍यमंत्री जी ने सभी विभाग, संचालनालय, निगम, उपक्रम या अर्ध शासकीय संस्थान में कोई भी कार्यवाही अंग्रेजी में होती पाई जाती है तो उसे शासन के आदेशों की गंभीर अवहेलना तथा कदाचरण माना जाकर संबंधित अधिकारी के विरुद्ध सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात कही थी। उक्त हिदायत सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से सभी विभागों, संभागायुक्तों, जिला कलेक्टरों एवं सीईओ जिला पंचायतों को जारी की गई थी। जिसमें यह भी कहा गया था कि दैनिक सरकारी कामकाज, पत्र-व्यवहार,निमंत्रण पत्र, नामपट्ट, सूचनायें, समाचार-पत्रों में निविदायें, विज्ञप्तियां आदि के प्रकाशन तथा केंद्र और राज्यों से सम्पर्क में अंग्रेजी का उपयोग नहीं होगा। सभी शासकीय कार्य, पत्रव्यवहार अनिवार्यत: राजभाषा हिन्दी में ही किया जायेगा।

रामभुलावन इतना सब कहने के बाद भी चुप नहीं हुआ, वह बोले ही जा रहा था... उसने आगे कहा साहब, मुख्‍यमंत्री जी ने तो भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस रखने के इरादे जाहिर किए हैं। प्रदेश सरकार ने हर काम को पूरा करने की समय सीमा तय की है। ईमानदार अधिकारियों को प्रोत्साहन देने की बात कही जाती रही है और उन्‍होंने वित्तीय अनुशासन की अनदेखी नहीं किए जाने की अपनी इच्‍छा भी जाहिर की है।  स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन की व्‍यवस्‍था बनाने का वह स्‍वप्‍न देखते हैं और इसे हकीकत में बदलने के लिए रात-दिन प्रयासरत हैं। विभागीय जांच समय-सीमा में निपटाए जाने की बात वे कई बार कर चुके हैं।  निर्माण कार्यों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा यह भी हमारे मुख्‍यमंत्री जी कई बार कह ही चुके हैं । मुख्यमंत्री जी ने कई बार सभी कलेक्टरों से कहा है कि सरकारी योजनाओं का लाभ निचले स्तर पर सभी पात्र लोगों को मिलना चाहिए। इन योजनाओं के क्रियान्वयन में यदि निचले स्तर पर अनियमितता और भ्रष्टाचार की शिकायत मिलती है तो इसके लिए जिला पंचायतों के सीईओ और कलेक्टरों की जिम्मेदारी तय की जाएगी।

इसके वाबजूद आज का सच क्‍या है साहब, बारिस के मौसम ने एक झटके में निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की पोल खोल दी है। अब, ज्‍यादा मत कहलवाओ साहब, जनता सब जानती है।