शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

भारत का आतंकवाद निर्मूलन के लिए सुझाव : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ महासभा में भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्‍वराज ने जिस तरह से अपनी बात रखी है उससे दुनिया यह ठीक से जान गई कि भारत सरकार गरीबी मिटाने के लिए काम कर रही है। मानव अधिकार संरक्षण के लिए कार्य कर रही है। इन्‍फॉरमेंशन टेक्‍नोलॉजी में वैश्‍विक ताकत बनने के लिए काम कर रही है और तो और डाक्‍टरइंजीनियरप्रबंधक बनाने के लिए कार्य कर रही है। कुल मिलाकर भारत के पास विश्‍वभर को देने के लिए अपनी पर्याप्‍त ऊर्जा हैजो उसके नागरिकों के माध्‍यम से आज चहुंओर अभिव्‍यक्‍त हो रही है।

यहां सुषमा स्‍वराज ने जोर देकर विश्‍वभर के देशों के बीच पूछा कि कौन है आतंकवाद का शौकीन देशआतंकियों के कोई बैंक खाते नहीं हैंउनकी कोई फैक्ट्री नहीं हैफिर उन्हें हथियार कौन देता हैकौन धन मुहैया कराता हैकौन सहारासंरक्षण देता हैवास्‍तव में दुनिया में कुछ ऐसे देश हैं जो आतंकियों को बोतेउगाते और पालते हैं। आतंकवाद का निर्यात भी करते हैं। आतंकवाद के ऐसे शौकीन देशों की पहचान होनी चाहिए। औरउन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए।  वस्‍तुत: अपने भाषण के दौरान भारत की विदेश मंत्री स्‍वराज का सीधे तौर पर जोर इस बात पर था कि विश्व समुदाय में ऐसे देशों को कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए जो आज आतंक को प्रश्रय देते हैं। दुनिया को यह देखना होगा कि जिनके द्वारा भी आतंकियों को पैसाहथियार मुहैया कराए जा रहे हैंउन्‍हें चिन्‍ह‍ित कर ऐसे देशों पर सख्‍त कार्यवाही की जाए।

यूएनओ के मंच पर भले ही पाकिस्‍तान को ध्‍यान में रखउसके आतंक प्रोषित क्रिया कलापों को लेकर ये सभी बाते कही गई होंकिंतु हैं तो यह सभी सच । वर्तमान में इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत ने विश्‍व के इस शक्‍तिशाली मंच पर अपनी जो-जो भी बातें पाकिस्‍तान को लेकर कही हैं उनमें से कुछ भी झूठ हो । सुषमाजी का यह तर्क भी बहुत सत्‍य था कि हमने दुश्मनी छोड़ मित्रता के आधार पर सारे मसले सुलझाने की कोशिश की। हमने पिछले दो बरस में मित्रता का पैमाना खड़ा कियालेकिन हमें मिला क्यापठानकोटउड़ी और बहादुर अलीबहादुर अली तो जिंदा सुबूत है कि सीमा पार से आतंकी आया है।

इसमें भी जो सबसे ज्‍यादा जोर सुषमा स्‍वराज ने दियावह बात यही है कि आतंकवाद पर दुनियाभर में दो प्रकार के नियम नहीं हो सकते हैं। किसी देश के लिए कुछ और किसी देश के लिए कुछ । इसलिए भारत ने यूएनओ में इस बात को एक बार फिर दोहराया कि आतंकवाद के खिलाफ व्यापक वैश्विक संधि (सीसीआईटी) का जो प्रस्ताव पिछले 20 सालों से लंबित है उस पर गंभीरतापूर्वक अमल हो और विश्‍व के सभी देश मिलकर कार्य करना आरंभ करें । वास्‍तव में आज आतंकवाद के खिलाफ कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं जो आतंकवादियों को सजा दे सकेइसका फायदा आतंकी गुट उठा रहे हैंइसलिए विश्‍व के देशों को आतंकवाद के मुद्दे पर एक हो जाना चाहिए

सुषमा स्‍वराज ने जो दूसरी महत्‍वपूर्ण बात यूएनओ के मंच से रखी वह है कि संयुक्त राष्ट्र का निर्माण 1945 में कुछ ही देशों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। किंतु आज की वास्तविकता और परिस्थितियों में पिछले 72 सालों में बहुत बदलाव आया हैइसलिए इसे ध्‍यान में रखते हुए सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी सदस्यता का विस्तार होना चाहिए। देखाजाए तो संयुक्त राष्ट्रएक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाने का तत्‍कालीन उद्देश्‍य यही रहा था कि यह संगठन अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोगअन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षाआर्थिक विकाससामाजिक प्रगतिमानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्य करेगा। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में  विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश हैं। इस संस्था की संरचना में आम सभासुरक्षा परिषदआर्थिक एवं सामाजिक परिषदसचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मिलित हैं। किंतु कहीं न कहीं यहां भी शक्‍ति सम्‍पन्‍न देशों अमेरिकाचीनफ्रांसरूस और यूनाइटेड किंगडम की मनमानी देखने को मिलती है।

भारत की विदेश मंत्री स्‍वराज का यहां सीधा यही कहना था कि कुछ देशों की बपौती नहीं बनना चाहिए इस अंतरराष्‍ट्रीय मंच को । ऐसा नहीं होना चाहिए कि आतंकवाद पर यदि भारत के समर्थन में अमेरिका खड़ा होता है तो चीन सुरक्षा परिषद का स्‍थायी सदस्‍य होने का नाजायज फायदा उठाए और हमारा विरोध यह कहकर करे कि आतंकवाद पर पाकिस्‍तान से त्रस्‍त होने की भारत की बातें सच नहीं। वस्‍तुत: आतंकवाद तो आतंकवाद हैवह हर देश का एक सा सच होगाउसे अलग तरह से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए।  

वास्‍तव में यह हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज का संयुक्त राष्ट्र के मंच से पाकिस्तान की आतंकियों को पालने की मंशा पर एक करारा प्रहार है। श्रीमती स्वराज ने इस मंच से पाकिस्तान को बिंदुवार जवाब दिया है। वहीं उसे यह भी जता दिया‍ कि जो स्‍वयं ही मानवाधिकारों पर अमल नहीं करता उसे भारत को लेकर मानवाधिकार की बातें करने का कोई नैतिक हक नहीं। पहले पाकिस्‍तान आतंक को पालना बंद करे तब मानवाधिकारों की पैरवी करे।

इस सब के बीच सच यही है आतंकवाद भारत या फ्रांसअमेरिका या किसी अन्‍य एक देश का दुश्‍मन नहीं हैयहपूरी दुनिया और मानवता का दुश्मन है । इसे उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्प और प्रबल इच्छाशक्ति चाहिए जोकि आज यूएनओ के सदस्‍य देशों के बीच स्‍थायी एकमत स्‍वरूप में दिखाई नहीं देती है। शायदसुषमाजी यही कहना चाहती थीं कि आतंकवाद पर सभी देश एकमत हों और जो देश आतंकवादी गतिविधियों में सम्‍मलित पाया जाएउसका सार्वजनिक वहिष्‍कार हो। यदि आज यह सुझाव दुनिया के देश स्‍वीकार कर लें तो संभवत: अलग-थलग पड़ने के भय से हो सकता है कि विश्‍व में आतंकवाद गतिविधियों में कमी आ जाए।

केंद्र का सबके लिए आवास पर काम : डॉ. मयंक चतुर्वेदी



भारत में 80 के दशक में एक फिल्‍म आई थी रोटीकपड़ा और मकान । इस फिल्म में अभिनेता शशिकपूर का एक प्रसिद्ध डायलॉग है, किसी भले आदमी ने कहा है कि ये मत सोचो कि देश तुम्‍हें क्‍या देता हैसोचो ये कि तुम देश को क्‍या दे सकते हो और जब तक हम सब ये नहीं सोचते हमारा कुछ नहीं हो सकता । इसी के साथ इस फिल्‍म की पटकथा यह भी बताती है कि इंसान की सबसे पहली आवश्‍यकता उसकी पेट की आग का शांत होना और उसके बाद तन ढंकने के लिए कपड़े फिर आवास यानि की सिर पर छत का होना है। आज पुन: इस फिल्‍म की याद इसलिए हो आई क्‍योंकि केंद्र सरकार ने फैसला ही कुछ ऐसा लिया है। केंद्र सरकार ने आज किफायती आवास के लिए नई सावर्जनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) नीति की घोषणा की है। इसके अंतर्गत अब से निजी भूमि पर भी प्राइवेट बिल्‍डरों द्वारा निर्मित किए जाने वाले प्रत्‍येक मकान के लिए 2.50 लाख रुपये तक की केंद्रीय सहायता दी जाएगी। जिसके बाद कि अब उम्‍मीद की जा सकती है कि शहरी क्षेत्रों में सरकारी भूमि पर क्रियान्वित होने वाली किफायती आवास परियोजनाओं में निजी निवेश की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ जाएंगी।

वास्‍तव में काले धन की गिरावट और सरकारी सिस्‍टम के समकक्ष खड़ी हो चुकी नई भ्रष्‍ट अर्थ व्‍यवस्‍था का ध्‍वस्‍त होता समयआज सीधे तौर पर बता रहा है कि अब वे दिन दूर नहीं जब भारत अपनी प्रगति की उड़ान भरने में दुनिया के किसी भी देश से पीछे रहेअर्थात समय के साथ वह तेजी से वैश्‍विक क्ष‍ितिज पर आगे बढ़ रहा है । वस्‍तुत: यह इसलिए भी कहा जा रहा है कि इन दिनों केंद्र एवं राज्‍य सरकारें देश की आम जनता को रोटी मुहैया कराने के बाद अपने देश की जनता को उसी के टैक्‍स के रूप में दिए पैसे से किसी दूसरे रूप में उसी तक अपनी सेवाएं निरंतर पहुंचा रही है । फर्क सिर्फ इतना है कि पूर्व की तुलना में विकास का सूचकांक यहां नया सेट किया गया है।

केंद्र सरकार द्वारा जनता तक पहुंचाई जानेवाली सुविधाओं में एक नई व्‍यवस्‍था यह जुड़ी है कि आवास और शहरी नीति के अंतर्गत किफायती आवास वर्ग में निवेश करने के वास्‍ते निजी क्षेत्र को आठ पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) विकल्प दिए गए हैं। इस नीति का उद्देश्‍य सरकारडेवलपर्स और वित्तीय संस्थानों के समक्ष मौजूद जोखिमों को उन लोगों के हवाले कर देना हैजो उनका प्रबंधन बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त जो सीधतौर पर समझ आता हैवह यह भी है कि इस नीति के अंतर्गत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए अल्‍प प्रयुक्‍त एवं अप्रयुक्‍त निजी और सार्वजनिक भूमि का उपयोग भी किया जा सकेगा ।

निजी भूमि पर किफायती आवास में निजी निवेश से जुड़े दो पीपीपी मॉडलों में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के ऋण संबंधी सब्सिडी घटक (सीएलएसएस) के तहत बतौर एकमुश्‍त भुगतान बैंक ऋणों पर ब्‍याज सब्सिडी के रूप में प्रति मकान लगभग 2.50 लाख रुपये की केन्‍द्रीय सहायता देना भी इसमें शामिल है। दूसरे विकल्‍प में अगर लाभार्थी बैंक से ऋण नहीं लेना चाहता है तो निजी भूमि पर बनने वाले प्रत्‍येक मकान पर डेढ़ लाख रुपये की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी। वस्‍तुत: सरकार ने यहां राज्यप्रमोटर निकायों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद आठ पीपीपी विकल्प तैयार किए हैं जिनमें से छह विकल्‍प सरकारी भूमि का उपयोग करते हुए निजी निवेश के जरिए किफायती आवास को बढ़ावा देने से संबंधित हैं।

सरकारी भूमि के इस्तेमाल वाले छह मॉडलों में डीबीटी मॉडल को प्रमुखता से लिया गया है जोकि यह कहता है कि  प्राइवेट बिल्‍डर सरकारी भूमि पर आवास की डिजाइनिंग के साथ-साथ इसका निर्माण कर इन्‍हें सरकारी प्राधिकारियों को हस्‍तांतरित कर सकते हैं। निर्माण की सबसे कम लागत के आधार पर सरकारी भूमि आवंटित की जाएगी। तय पैमाने पर आधारित सहमति के अनुरूप परियोजना की प्रगति के आधार पर सरकारी प्राधिकारी द्वारा बिल्‍डरों को भुगतान किया जाएगा और खरीदार सरकार को भुगतान करेगा।

यहां जो दूसरा मॉडल लाया गया है वह है क्रॉस-सब्सिडी वाले आवास का मिश्रित विकासजिसके अनुसार प्राइवेट बिल्‍डरों को दिए गए प्‍लॉट पर निर्मित किए जाने वाले किफायती आवासों की संख्‍या के आधार पर सरकारी भूमि का आवंटन किया जाएगा। ऊंची कीमतों वाले भवनों अथवा वाणिज्यिक विकास से अर्जित होने वाले राजस्‍व से इस सेगमेंट के‍ लिए सब्सिडी दी जाएगी। इसी का एक पीपीपी विकल्प वार्षिकी आधारित रियायती आवास योजना हैजिसके अनुसार सरकार के स्थगित वार्षिकी भुगतान के सापेक्ष बिल्‍डर निवेश करेंगे। बिल्‍डरों को भूमि का आवंटन यहां आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है।

केंद्र सरकार की ओर से आम जनता को सस्‍ते एवं शीघ्र समय में मकान उपलब्‍ध हो सके इस‍के लिए चौथे विकल्‍प के रूप में वार्षिकी सह-पूंजी अनुदान आधारित किफायती आवास को चुना हैजिसके अंतर्गत वार्षिकी भुगतान के अतिरिक्‍त बिल्‍डरों को एकमुश्‍त भुगतान के रूप में परियोजना लागत के एक हिस्‍से का भुगतान किया जा सकता है। वहीं प्रत्‍यक्ष संबंध स्‍वामित्‍व वाले आवास के अंतर्गत प्रमोटर सीधे खरीदार के साथ सौदा करेंगे और लागत राशि वसूलेंगे। दूसरी तरफ सार्वजनिक भूमि का आवंटन आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है। सरकार ने जो अपना अंतिम पीपीपी विकल्प चुना है वह है प्रत्‍यक्ष संबंध किराये वाले आवास । वस्‍तुत: इससे सरकारी भूमि पर निर्मित आवासों से प्राप्‍त किराया आमदनी के जरिए बिल्‍डरों द्वारा लागत की वसूली किया जाना संभावित है।

यहां निष्‍कर्ष रूप से समझ सकते हैं कि सरकारी भूमि आधारित इन छह पीपीपी मॉडलों के अंतर्गत लाभार्थी प्रति मकान 1.00 लाख से लेकर 2.50 लाख रुपये तक की केन्‍द्रीय सहायता पा सकते हैं। वसतुत: देखाजाए तो आवास संबंधी इस निर्णय से देश के हर उस व्‍यक्‍ति को लाभ होगा जो अपना छोटा सा आशियाना चाहता है। इस निर्णय के बाद अब कहा जा सकता है कि सरकार ने आज अनेक तरह की रियायतों और प्रोत्‍साहनों के जरिए अनुकूल स्थितियां रियलस्‍टेट क्षेत्र में भी बना दी हैं।

यहां पुनश्‍च शशि कपूर को रोटीकपड़ा और मकान फिल्‍म के जरिए याद करते हुए कहना होगा कि वह जो कहता है,वह आज देशभर में जीएसटी जैसे कानून और उसके अनुपालन में आम जनता पर भी हूबहू लागू हो रहा है। इससे जनता जनार्दन को मिलनेवाले लाभ को जोड़कर भी देखा जा सकता है। देश में एक टैक्स-एक देश-एक मार्केट का सपना भले ही यर्थाथ हो रहा है लेकिन इसके विरोध में स्‍वर अभी भी तेज हैं। कारण लोगों के मन में कई तरह के कन्फ्यूजन का होना तथा टैक्स के सिस्टम में एकदम से आया बदलाव है।  परन्‍तु इसी के साथ सच यह भी है कि भारत सरकार के पास अब पहले जैसी धन की कोई कमी नहीं रही है। आमजन का पैसा उसके पास टैक्‍स के रूप में कई स्‍तरों पर तेजी के साथ पहुंच रहा हैयह अंतर पूर्व की तुलना में इतना अधिक है कि देश में चहुंओर होनेवाले द्रुत गति से विकास की सहज कल्‍पना की जा सकती हैइससे इस बात के लिए भी पूरी तरह से आशान्‍वित हुआ जा सकता है कि भविष्‍य में भारत का विकास बहुत तेजी से होगाजिसके लक्षण इस एक निर्णय से भी सीधेतौर पर दिखाई दे रहे हैंरोटी के बाद आवास देश के हर नागरिक की पहली जरूरत जो है।

गौ-उवाच, प्रश्‍न खड़े करती है, संवाद का मर्म बताती है : डॉ. मयंक चतुर्वेदी


    गौ-के बारे में हम सभी अपने बचपन से कुछ जानते-समझते आए हैंवहीं कुछ लोगों को ये सौभाग्‍य भी मिला है कि वे उसके साथ वक्‍त गुजारतेकुछ ने तो अब भी गौ-सेवा को अपना लक्ष्‍य बना रखा है। इसलिए गाय माता को लेकर सबकी अपनी-अपनी अनुभूतियां हैं। प्राचीन वैदिक वांग्‍मय में गोमाता का सन्दर्भ 1331 बार आया है। जिसमें कि ऋग्वेद में 723 बारयजुर्वेद में 87 बारसामवेद में 170 बार और अथर्ववेद में 331 बार गौ का किसी न किसी रूप में स्‍मरण किया गया है। ऋग्वेद में कहा गया है कि जिस स्थान पर गाय सुखपूर्वक निवास करती है वहां की रजत पवित्र हो जाती है ।  अथर्ववेद में रुद्रों की मातावसुओं की दुहिताआदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि-संज्ञा से गौ को विभूषित किया गया है ।  वेदों में गाय के लिए गोधेनु और अघ्न्या ये तीन शब्द सबसे अधिक हैं । वेदों को समझने के लिये छः वेदांग शास्त्रों में से एक निरुक्त शास्त्र में वैदिक शब्दों के अर्थों को विस्‍तार से बताया गया है जिसे निर्वचन कहते हैंयहां हन हिंसायाम्’ धातु से हनति,  हान आदि शब्द बनते हैं जिसका अर्थ हिंसा करना मारना है।  गौ के लिए यहां अघ्न्या कहा गया है अर्थात् जिसकी कभी भी हिंसा न की जाये।

इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण में (7/5/2/34) में कहा गया है-सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ: अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदरसत्यसरसऔर उपयोगी यह गौ है।  इसमें भी गाय को अघ्न्या बताया गया है। वस्‍तुत: यह वेदों में गाय का महत्व है।  सभी ऋषियों ने एक स्‍वर में बोला है कि गाय की हत्या नहीं करनी चाहिए। इस धरती पर विचरण करने वाले जीव-जन्तुओं में संभवत: गाय ही एकमात्र ऐसी है जिसे देवतुल्य व पूज्य माना गया है।

वेदों से आगे पुराणों एवं श्रीमद्भगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने कामधेनु की महत्ता बताई है। केवल हिन्दू धर्म में ही नहींअन्य मत-पंथों में भी इसकी महत्ता और पवित्रता को स्वीकार किया गया है। गोसेवा को पुण्य कर्म माना गया है। ऐसी पापनाशिनीसमस्त जगत का कल्याण चाहने वाली गाय की धार्मिकआध्यात्मिक,सांस्कृतिकआर्थिक एवं औषधीय महत्ता को समेटे हुए और वर्तमान में गाय से जुड़े जनमानस के बीच के अंतर्विरोध को रेखांकित करती हुए पुस्तक 'गौ-उवाचडॉ. देवेन्‍द्र दीपक की एक श्रेष्‍ठ कृति है। कुल 30 कविताओं के माध्‍यम से पुस्तक में गाय की महत्ता का विस्तार से विवेचन एवं समाज की कमियों को प्रमुखता से उठाया गया है।  

डॉ. देवेन्‍द्र दीपक की पुस्‍तक गौ-उवाच अपने आप में वर्तमान समाजिक और प्रशासनिक व्‍यवस्‍था के साथ उस समुची प्रणाली के प्रति प्रश्‍न खड़े करती है जोकि गाय के प्रति दिखावे की संवेदना तो दिखाती हैंकिंतु व्‍यवस्‍था सुधार के लिए अपने ईमानदार प्रयत्‍न करते दिखाई नहीं देती है।

प्रश्‍न यह है कि वर्तमान में गौ भारतीयों के लिए क्‍या रही है पशुदूध देनेवाला यंत्र या इससे बहुत व्‍यापक भिन्‍न......गौ- वैदिक काल में देव... उत्‍तर वैदिक काल में माता... मध्‍यकाल में पशु.... और आधुनिक काल में ?स्‍वयं एक भोजन...मांस का लूथड़ाजिसकी चर्बीसींग और नाखूनों की कीमत उसकी देह से अधि‍क है। वस्‍तुत: यह पुस्‍तक हम सभी के बीच आज सोचने के लिए एक समान भावधारा पैदा करती है और विमर्श के लिए जमीन। इस पुस्‍तक की पहली कविता ही बहुत कुछ स्‍पष्‍ट कर देती है :

पक्षपात तुम करते होमैं नहीं करती...छुआ-छूत तुम मानते हो...मैं नहीं मानती...मुझे बीच में खड़ा कर ..तुम लड़ते हो...लड़ने-लड़ाने की शैली...तुम्‍हारी हैमेरी नहीं। पुस्‍तक राजनीतिक स्‍तर पर कांग्रेस जैसी राष्‍ट्रीय पार्टी से यह सवाल भी करती है कि क्‍या सोचकर तुमने..दो बैलों की जोड़ी को अपना चुनाव चिह्न बनाया ?..और क्‍या हुआ तुमने उसे छोड़ दिया पुस्‍तक देश के गद्दीदारों से पूछती है कि आखिर मेरे अपनत्‍व में कमी क्‍या रह गईजो वफा की उम्‍मीद अब तक अधूरी है। गौ-उवाच में वफा कविता में डॉ. देवेन्‍द्र ने बड़ी ही साफगोई से यह पूछा हैवह जो विदेशी था चला गया..ये जो देशज हैं.. यही तो अदल-बदल कर तख्‍त पर बैठे रहे...आरे के दांतों के नीचे.. हमारी गर्दन ज्‍यों की त्‍यों....हमारी चीख सुने कौन ?... प्राणों की भीख सुने कौन ?... दिल्‍ली की पंचायत अंधीबहरी... एक तरफा... हम गायों से कौन करे वफा ?.....

यहां गाय देश के कर्णधारों से सीधे पूछ रही है कि वे मुझे हिंसक नजरों से घूरते हैंमेरे प्रति घोर अवमानना है भीतर उनके.... वे ताल ठोककर कहते हैं....हम कुछ भी खाएं...यह हमारी मर्जी....कोई कौन होता है हमें टोकने वाला करुण कातर मैं टुकुर टुकुर देखती हूंमेरे भारत का यह कैसा संविधान इनके सब हैं अधिकारमेरे हित में क्‍या है समाधान गौ-उवाच में पंडित और ख्‍वाजा के सांकेतिक प्रतिरूपों के माध्‍यम से खासतौर पर इस पुस्‍तक में डॉ. देवेन्‍द्र दीपक  अवश्‍य यह पूछते दिखे कि अपने बुढ़ापे के लिए तुम्‍हें चाहिए अच्‍छी खासी पेंशन...हमारे लिए बूचड़खाने का दरवाजा... क्‍यों भाई पंडितक्‍यों भाई ख्‍वाजा ?...वास्‍तव में गाय का आज सबसे बड़ा दर्द यही है कि उसके बूढ़े होने के बाद सबसे ज्‍यादा उसे चारा और पानी देनेवाले ही दर दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं।

यह पुस्‍तक बड़ी ही बेवाकी से यह भी पूछने का साहस करती है कि वह जो खाता है मेरा मांस बड़ा सहिष्‍णु है,वह जो पीता है मेरा दूध वड़ा असहिष्‍णु है। मेरे भारत को ये क्‍या हो गया हैन्‍याय और औचित्‍य कहां खो गया है ?..... इतना ही नहीं तो आज समाज और सरकार दोनों स्‍तरों पर इन दिनों समाजिक समरसता की बातें बहुत हो रही हैंऐसे में यहां गौ देश के आम जन से पूछती हैं कि बीफ को जलसे जलूस में धमक के साथ खाना मेरे प्रेमी भक्‍तों को खुले आम चिढ़ाना...समाजिक समरसता के विरुद्ध यह एक नियोजित अभियान है।

डॉ. दीपक बड़ी चतुरायी से अपनी इस पुस्‍तक में गंगा-जमुनी तहजीब पर भी सवाल खड़े करते हैंइस संयुक्‍त संस्‍कृति पर गाय यहां आम जन से जनना चाह रही है कि राजनीतिकलासंस्‍कृति और शिक्षासब मंचों पर दशकों से गंगा जमुनी तहजीब तकिया कलाम की तरह चलन में है...अगर सच ऐसा है तो अच्‍छी बात है। एक बात हमें कहनी है...सदा के लिए यह बात तय हो जानी चाहिए.. हमें बतादी जानी चाहिए- गंगा जमुनी तहजीब में हम गायों को क्‍या जगह है ?.... और जो जगह हैउसकी क्‍या वजह है ?....

वास्‍तव में यह एक ऐसा प्रश्‍न है जहां हमारा संविधान भी मौन है..इसी बात को डॉ. दीपक अपनी हित नामक कविता में भावनात्‍मक स्‍हायी से शब्‍दों को उकेरते हैं और पूछते हैं कि मेरा मांस खानेवालों के सर्वाधिकार सुरक्षितमेरा दूध चाहनेवालों के हितकौन करे संरक्षित...संविधान में दिए अधिकार सब कुछसंविधान में दिए कर्तव्‍य कुछ भी नहीं।..... वस्‍तुत: पुस्‍तक गौ-उवाच की हर कविता सीधे ह्दय को छूती हैभावनाओं में सागर सा वेग पैदा करती है और हर बार हर कविता कहती है कि अपनी मर्यादाओं को लांघ जाओगाय जैसी अमृता को जीवन दान देने के लिए अपना सर्वस्‍व होम कर जाओ।....

अंत में इस पुस्‍तक की कविता वर्तमान शासन तंत्र के प्रति अपनी कृतज्ञता तो ज्ञापित करती ही है साथ में स्‍वयं में भय से लिपटी प्रसन्‍नता का बोध कराती हैकवि‍ कहता है कि भारत में सदियों के बादकुछ अनुकूलता आई गौ वंश के लिए।... एक सुखद अध्‍याय हमारी मुक्‍ति के खण्‍डित इतिहास में फिर जुड़ा.... प्रमाण उस कोटि जन को जो हमारी रक्षा के लिए हवन हो गया खुशी खुशी।.. हमें न्‍याय मिला हम प्रसन्‍न हैं लेकिन हमारी यह प्रसन्‍नता लिपटी है भय के काले रुमाल में.... कहीं ये चार दिन की चांदनी तो नहीं?... हमारा इतिहास साक्षी है हमारे वध पर प्रतिबंध लगते रहे… प्रतिबंध निरस्‍त होते रहे….. क्‍या पता इतिहास अपने को फिर दोहराए,,,

यहां इस पुस्‍तक की सबसे अच्‍छी बात यह है कि बेरोजगारी के कोहराम के बीच गौ इस पुस्‍तक में आह्वान कर रही है कि मैं गाय हूं एक माय हूं अवैध बूचड़खाने वालों बच्‍चों के पेट का सवाल है,,,, मैं कहती हूं,….. मेरे पास आओ दूध डेयरी के धंधे में लग जाओ,….आज तुम दिनभर देखते हो खून ही खून….. फि‍र तुम दिन भर देखोगे दूध ही दूध....

पुस्‍तक में भाषा शैलीशब्‍द विन्‍यास का बहुत ध्‍यान रखा गया हैसामान्‍य रोजमर्रा के बोलते शब्‍दों में डॉ. देवेन्‍द्र दीपक के माध्‍यम से गौ यहां अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त कर रही है। यह पुस्‍तक न केवल पढ़ने के बाद उसकी शब्‍द ऊर्जा को अपने अंदर में समेटने के लिए विवश करती हैंबल्कि यथार्थ जीवन में गौ सेवा के लिए प्रवृत्‍त भी करती है। सही पूछिए तो यही इस पुस्‍तक की सफलता है और डॉ. देवन्‍द्र दीपक की कलम की धन्‍यता भी.....

लेखक हिन्‍दुस्‍थान समाचार बहुभाषी न्‍यूज एजेंसी के मध्‍यप्रदेश ब्‍यूरो प्रमुख एवं फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं।