मध्यप्रदेश में
हाल ही के दिनों में जब शिवराज मंत्री मण्डल का विस्तार हो रहा था, तभी भारतीय जनता पार्टी
का आयु 75+ फार्मुला नियम यहां मंत्री मण्डल के सदस्यों को लेकर लागू किया गया
था, जिसमें कि दस बार के
विधायक व गृह मंत्री बाबूलाल गौर और 5 बार के सांसद और दो बार से विधायक रहे
पीडब्ल्यूडी मंत्री सरताज सिंह को उनकी आयु के कारण मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया
गया। जैसे ही शिवराज मंत्री मण्डल से गौर और सरताज बाहर हुए, दोनों ने ही अपना मुखर विरोध विभिन्न मंचों
विशेषकर मीडिया माध्यमों के जरिए व्यक्त करना शुरू किया। दोनों ने तब मोदी
कैबिनेट में कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्लाह जैसे हमउम्र मंत्रियों के बने रहने पर
सवाल उठाया था।
इन दोनों के हिसाब
से उनका बाजिव तर्क यह है कि सामाजिक कार्य करने की ललक को आप आयु में बांधकर कैसे
देख सकते हैं ? इस
दौरान सरताज का स्वर गौर की तुलना में ज्यादा मुखर था। उनके द्वारा केंद्रीय
नेताओं से इस संबंध में बात करने और अपने तर्कों से अवगत कराने की बात बार-बार कही
गई थी। बात सुनने में और एकदम देखने में सही प्रतीत भी होती है, लेकिन इसका दूसरा मजबूत पक्ष यह भी है कि यदि
पुराने लोग अपनी अंतिम आयु तक आते-आते भी विभिन्न पदों पर बने रहेंगे तो नए लोगों
को कब अवसर मिलेगा? सरकार
भी 60 और 62 की आयु पार करते ही आला अधिकारियों को नमस्ते कह देती है, तब राजनीति में खासकर पदों पर पहुंचने की उम्र
भी क्यों न निर्धारित होनी चाहिए? जहां
तक सामाजिक सेवा करने की बात है तो उसके लिए सिर्फ राजनीति तो माध्यम नहीं है, और भी कई रास्ते हैं, जिनके माध्यम से सेवा कार्य किए जा सकते हैं।
अब तो मोदी कैबिनेट
में भी 75+ फार्मुला लागू हो गया है। जिसके संकेत अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नजमा
हेपतुल्ला और कर्नाटक से आने वाले भारी उद्योग मंत्रालय में राज्यमंत्री जी. सिद्धेश्वरा की केंद्रीय
मंत्रीमण्डल से विदाई के रूप में सामने आया है। पिचहत्तर की आयु पार कर चुके
लोगों में बचे अब कलराज मिश्र हैं जिन्हें भी इस फार्मुले के तहत हटा देना चाहिए
था। पर राजनीति सिर्फ सेवा नहीं है, वह शक्ति का प्रतीक भी है और भी कई प्रतीक
उसमें समाहित रहते हैं शायद इसी वजह से उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले
उन्हें हटा कर मोदी सरकार यहां के ब्राह्मण वोटों को नाराज करने के खतरे को मोल
लेना नहीं चाहती होगी, लेकिन
देर सबेर उनका हटना भी तय है।
मोदी मंत्रीमण्डल
से यह दो इस्तीफे लेने के साथ अन्य दो छोटे मंत्रियों के मंत्रालय भी बदल दिए गए
हैं। संकेत साफ है कि मोदी जहां प्रशासनिक तौर पर कोई भी सुस्ती बर्दाश्त नही
करेंगे। वहीं, कुछ निश्चित मापदंडों से भी लंबे वक्त तक समझौता नहीं होगा। इन दो इस्तीफों के साथ ही मोदी मंत्रिपरिषद
में मंत्रियों की संख्या 76 हो गई है जो संप्रग काल के मुकाबले कम है। ध्यान रहे कि मोदी सरकार बनने के साथ ही 75 की
आयु पार कर चुके लोगों को मंत्रिमंडल व सक्रिय राजनीति से अलग रहने का संदेश दे
दिया गया था। अब यह संदेश दे दिया गया है कि देर-सबेर हर मापदंड पर सरकार भी खरी
उतरेगी और संगठन भी। मध्यप्रदेश से केंद्र तक और अब केंद्र से देश के अन्य सभी
राज्यों तक यह आयु का फार्मुला भाजपा सत्ता और संगठन दोनों पर लागू होने जा रहा
है।
मध्यप्रदेश के इन
दो पूर्व बुजुर्ग मंत्रियों के साथ उनकी आयु सीमा के कारण कैबीनेट से बाहर का रास्ता
दिखा देने को लेकर कहा जा सकता है कि अपने केंद्रीय नेतृत्व से उन्हें जो न्याय
चाहिए था या सही उत्तर मिलने की आस थी, वह
उत्तर जरूर केंद्र में हुए इस बदलाव से मिल गया होगा। शायद, अब सरताज और गौर यह शिकायत करते कहीं नजर नहीं
आएं कि उनके साथ बड़ी नाइंसाफी हुई है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-07-2016) को "आये बदरा छाये बदरा" (चर्चा अंक-2404) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'