मध्यप्रेदश की राजधानी भोपाल में आज हिन्दी दिवस पर समन्वय भवन में अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित हिन्दी दिवस कार्यक्रम रखा गया, जिसमें कि राज्य के संस्कृति विभाग का भी योगदान रहा । मुझे याद है कि हर वर्ष जब भी हिन्दी दिवस आता है हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महोदय का भाषण अत्यधिक प्रवाहपूर्ण उत्तेजनात्मक और श्रोताओं को आत्ममुग्ध कर देनेवाला होता है। हम भी जब जब इस आयोजन में उपस्थित रहे, ऐसा कभी नहीं हुआ कि मुख्यमंत्री बोलें औ तालियां न बजें। किंतु इस सब के बाद भी कुछ ज्वलंत प्रश्न हिन्दी और हमारे मुख्यमंत्री के साथ जुड़े हैं। जिनके उत्तर नहीं व्यवस्था में सुधार के साथ वह सभी व्यवहार में लागू होना चाहिए जिनकी कि हमारे मुख्यमंत्री हिन्दी दिवस पर वायदे एवं चर्चाएं करते रहे हैं।
आज जो उनका भाषण था उसमें उन्होंने कहा है कि हिन्दी अत्यंत समृद्ध भाषा है। इसके प्रति संकीर्णता ठीक नहीं है। हिन्दी छोड़कर अंग्रेजी बोलना मानसिक गुलामी है। हिन्दी बोलने, लिखने और पढ़ने में गर्व होना चाहिए। हिन्दी का मान-सम्मान बढ़ाने के लिये समाज को भी आगे आना होगा। वहीं निजी विश्वविद्यालयों को हिन्दी विभाग स्थापित करने के लिये निर्देशित किया जाएगा। प्रत्येक दो वर्ष में राज्य-स्तरीय हिन्दी सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा भी उन्होंने की है । उन्होंने कहा है कि सरकार किसी भी भाषा का विरोध नहीं करती, लेकिन हिन्दी की कीमत पर अंग्रेजी का उपयोग ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री के अनुसार अगले साल से हिन्दी दिवस का आयोजन भव्य होगा और इसमें सभी विश्वविद्यालय शामिल होंगे।
श्री चौहान ने आज यह भी कहा कि बाजारों में दुकानों पर नाम और सूचना पट्टिकाएं हिन्दी में लगाना अनिवार्य करने के लिये वैधानिक उपाय किये जाएंगे। हिन्दी की शक्ति, सामर्थ्य और क्षमता से समाज की नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिये समाज के सहयोग से निरंतर अभियान चलाना पढ़ेगा। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अपनी विदेश यात्राओं के संस्करण सुनाने से भी नहीं चूके और कहा कि हर जगह हिन्दी में ही भाषण दिया और संवाद किया। राष्ट्रभाषा का उपयोग करने से उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ी और सराहना भी मिली।
इस सब बातों के बीच जो अहम चिंता मेरी है वह यही है कि वर्ष 2015 में भोपाल में हुए अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने घोषणा की थी कि हिन्दी विश्वविद्यालय को वैश्विक स्तर का बनाएंगे । किंतु दो वर्ष बीत गए । वह अंतरराष्ट्रीय तो छोड़िए आज राष्ट्रीय स्तर का भी नहीं बन सका है। संसाधनों की कमी, धन का अभाव, प्रशासन की बेरूखी जैसी तमाम बातें हैं जिसके कारण से वह आज आगे ही नहीं बढ़ पा रहा है। पहले यहां कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा थे जो सदैव संसाधनों की कमी से परेशान थे किंतु आज यहां कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज हैं, जिनके पास भी सरकार द्वारा इतने धन की व्यवस्था नहीं की गई है कि वे इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर का भी बनाने की सोच सके।
मेरी एक चिंता यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी के विकास के लिए संकल्प पत्र लाया गया था, उसमें कुछ सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक बातें अमल के लिए दी गई थीं। क्या सरकार पिछले दो सालों में भी उन पर प्रशासनिक स्तर पर अमल कराने में सफल रही है ? नहीं रही । हमारे मुख्यमंत्री बहुत अच्छे हैं, वह सोचते भी बहुत श्रेष्ठ हैं किंतु क्या उनकी प्रशासनिक मशीनरी को उनकी इच्छाओं को शतप्रतिशत अमल में नहीं लाना चाहिए ? अंत में उनसे आग्रह इतनाभर है कि अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय श्रद्धेय सुदर्शनजी का एक वृहद स्वप्न का यथार्थ रूप है । वे भी एक स्वयंसेवक हैं, विद्यार्थी परिषद में उन्होंने देशसेवा और रीति-नीति का पाठ पढ़ा है। अत: वे श्रद्धेय सुदर्शनजी के इस यथार्थ स्वरूप के आकार एवं उसकी भव्यता में कोई कसर न छोड़े , इसके बाद यहां से निकले विद्यार्थी हिन्दी का भला स्वयं ही कर लेंगे । आज के दिन ये उम्मीद तो की ही जा सकती है ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
जवाब देंहटाएं"हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक