रविवार, 10 सितंबर 2017

जेएनयू में एबीवीपी नहीं हारी है : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

हां छात्र संघ चुनाव के आए परिणामों को देखें तो एकदम से ऐसा लगेगा कि जेएनयू के चुनावों में वामदल समर्थक छात्रों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र प्रत्‍याशियों को हरा दिया। जीत का जश्‍न आज उनके नाम है जो देश में विरोध की राजनीति करते आए हैं और जिनका विश्‍वास सिर्फ आन्‍दोलन एवं तोड़फोड़ के साथ दूसरों को गरियाने में है। लेकिन क्‍या वाकई में अभाविप यहां की यहां हार हुई है परिणाम आने के बाद से चले लगातार के मंथन से निष्‍कर्ष यही है कि कुछ कुत्‍ते भी मिलकर एक हाथी को पटक लेने हैं या जो एक कहावत ओर है कि शेर को भी संगठि‍त ताकत के सामने अपने शिकार से हाथ धोते एवं पलायन करते हुए देखा जाता है। वस्‍तुत: ये दो बातें जोकि जंगल की सत्‍ता पर सटीक बैठती हैं वे आज जेएनयू जैसे अध्‍ययन केंद्र पर सही बैठ रही हैं। यहां आज एबीवीपी नहीं हारी हैसच पूछिए तो जीतकर भी वे वामसंगठन हार गए हैं जिन्‍हें छात्र सत्‍ता पर काबिज होने के लिए एक दूसरे के धुर विरोधी होने के बाद भी एक साथ आना पड़ाजिससे कि भगवा रंग के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के झंडे को चुनाव में जीत के बाद गर्व से जेएनयू केंपस में फहराने से रोका जा सके।

इस बार जिन्‍होंने भी यहां छात्र संघ चुनावों से पहले हुए अभाविप एवं संयुक्‍त वाम मोर्चा गठबंधन (आईसाएसएफआई और डीएसएफ) के अध्‍यक्षों का भाषण गंभीरता पूर्वक सुना हैयदि तटस्‍थता के साथ विचार किया जाए तो जो किसी विचार के साथ नहीं सिर्फ भारत की प्रगति और राष्‍ट्रीय उत्‍थान से प्‍यार करते हैंवे अधिकतर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर से अध्‍यक्ष की उम्‍मीदवार बनाई गई निधि त्रिपाठी के समर्थन में ही नजर आए हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इन चुनावों में अभाविप के वाम छात्र दलों के ऊपर भय का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वैसे इसी परिसर में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा)स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) के छात्र-छात्राओं को कई बार आपस में लड़ते देखा गया है। ये वाम संगठन पं. बंगाल से लेकर दक्षिण के राज्‍यों में किस तरह से आपस में एक दूसरे की जूतमपैजार करते हैंयह बात भी आज किसी से छिपी नहीं हैं। किंतु यहां दिल्‍ली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परि‍षद को रोकने के नाम पर सभी एक मत हो गये । इसके बाद भी यदि अभाविप की ओर से छात्र प्रत्‍याशियों को प्राप्‍त मतों की गणना की जाए तो वे दूसरे स्‍थान पर है।

इन सब ने एबीवीपी को हराने के कैसे गठबंध करके चुनाव लड़ा जरा यह भी देखलीजिए, चुनाव परिणाम में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा) की गीता कुमारी को अध्यक्ष पद पर खड़ा किया गया । सिमोन जोया खान (आइसा) को उपाध्यक्ष के लिए इस चुनाव मैदान में उतारा गया। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के दुग्गीराला श्रीकृष्ण को महासचिव और शुभांशु सिंह डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) से संयुक्त सचिव पद पर इस छात्र संघ चुनाव में अपना प्रत्‍याशी बनाया गया। यानि की तीनों ही संगठन यह पहले ही जान गए थे कि अगर अलग-अलग चुनाव लड़े तो विद्यार्थी परिषद से पटखनी खाना तय है।

वस्‍तुत: कहना यही है कि आज उनके पास जो दो एवं एक-एक उम्‍मीदवारों की अलग-अलग संगठन के छात्र नेता की जीत मिली है वे इसमें से एक सीट भी लाने में सफल नहीं होते यदि अपने बूते स्‍वतंत्र अस्‍तित्‍व के साथ यहां चुनाव मैदान में उतरे होते। अध्‍यक्ष पद पर लड़े गए यहां के आए चुनाव परिणामों को इस संदर्भ में देखा जा सकता हैजिसमें कि संयुक्‍त वाम मोर्चे के बाद गीता कुमारी ने 1506 वोट हासिल किए जबकि अकेले के दम पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की उम्मीदवार निधि त्रिपाठी 1042 वोट प्राप्‍त करने में सफल रहीं। यानि की तीन संगठनों की यहां ताकत मिलाजुलाकर देढ़ हजार मत हैजबकि विद्यार्थी परिषद के अकेले एक अध्‍यक्ष की ताकत एक हजार से अधिक है। इसी प्रकार का आंकलन अन्‍य तीनों पदों पर हुए यहां के छात्र संघ चुनाव का रहा है।

वास्‍तव में इससे पता चल रहा है कि जेएनयू से अब शीघ्र ही वाम विचारधारा काजो कहते हैं कि चाहे जो मजबूरी हो मांग हमारी पूरी होजो अ‍भाविप की तरह ज्ञानशीलएकता में कतई विश्‍वास नहीं करते हैंजो सि‍र्फ विरोध के लिए विरोध और प्रश्‍न खड़े करने में ही भरोसा करते हैंउन सभी का किला शीघ्र ही ढहने वाला है। जो भारत को एक राष्‍ट्र नहीं कई राष्‍ट्रों का समूह मानते हैंजो भारत की विविधता में एकता नहीं देखते हैंउसे कई राष्‍ट्र कहते आए हैं और देश के भोले-भाले लोगों को कभी नक्‍सलवाद के नाम पर तो कभी मजदूर यूनियनों की हक की लड़ाई के नाम पर बरगलाते आए हैंअब उनका सच देश की जनता ठीक से जानने लगी है।

आनेवाले दिनों में आशा की जा सकती है कि जो प्रभाव ये वामदल इस वक्‍त संयुक्‍त गठबंधन के माध्‍यम से छोड़ने में सफल रहे हैं वे आगे बहुत दिनों तक इसे कायम नहीं रख पाएंगे। भविष्‍य में उनका यह प्रभाव संयुक्‍त होने के बाद भी अवश्‍य ही समाप्‍त होगा।  इसीलिए ये कहना गलत नहीं है कि जेएनयू के चुनावों में अभाविप आज हारी नहीं यहां के छात्रों के बीच दिल से और भाव स्‍तर पर जीत हासिल करने में पूरी तरह से सफल रही है।

विद्यार्थी प्ररिषद के सभी छात्र संघ प्रत्‍याशियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैंजिन्‍होंने हारकर भी आज यह बता दिया कि यहां के कई हजार छात्रों के दिल में उनके लिए सम्‍मान बरकरार हैयह सम्‍मान उनका तो है हीनिश्‍चि‍त तौर पर राष्‍ट्रवादी विचारधारा का भी हैजो यह कहती है कि तेरा वैभव अमर रहे माँहम दिन चार रहें ना रहें जो यह भी कहती है कि परम वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम समर्था भावत्वा शिषाते भृशम।।राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर सम्पूर्ण जीवन माँ भारती की उपासना करें और हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो सके।



1 टिप्पणी:

  1. देखो भाई साहब! अब वामपंथियों का भारत में अंतिम समय चल रहा है। घाव सही करने के लिए जब पेट्रोल डाला जाता है तो कीड़े बिलबिलाकर इधर—उधर भागते हैं, ठीक वैसे ही। इन लोगों का है। अभी तो सभी वाम संगठनों ने एक होकर चुनाव जीत लिया। आगे देखना इनको कैंडिडेट ढूंढे से भी नहीं मिलेंगे।

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