रविवार, 2 अक्तूबर 2016

जिन्‍हें भारत पसंद नहीं, वे यहां क्‍या कर रहे हैं ?


भारत वर्ष के स्‍वाधीनता आंदोलन के वक्‍त राष्‍ट्रकवि‍ मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा था कि जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर हैजिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। आज देश की आजादी को 69 साल बीत चुके हैंलेकिन उनकी यह पक्‍तियां अपने समय में जितनी शाश्‍वत थी, उतनी ही वर्तमान में भी हैं तथा भविष्‍य में भी रहेंगी। क्‍यों कि जब तक पृथ्‍वी पर राष्‍ट्र और देश का भूगोल रहेगाअपने देश के प्रति देशभक्‍ति का अपार अनुराग होना उतना ही अपरिहार्य है। किंतु भारत में कुछ ऐसे तत्‍व हैंजो भारत की खाते हैंसुविधाएं भी तमाम भोगते हैं लेकिन जब देशभक्‍ति या स्‍वराज के प्रति सम्‍मान रखने और उसे प्रदर्श‍ित करने की बारी आती है तो वे सबसे ज्‍यादा अपने ही देश को कोसते हैं । यह सीधा और सपाट प्रश्‍न ऐसे ही लोगों के लिए हैक्‍या उन्‍हें एक पल भी भारत में बिताना चाहिए जिन्‍हें भारत पसंद नहींआखिर वे यहां कर क्‍या रहे हैं वस्‍तुत: जिस प्रकार से हाल ही में कश्‍मीर में घटनाक्रम हुआ हैयह बात आज देश का हर वो भारतवासी सोच रहा है जो अपने देश को तनमनधन और जीवन से ज्‍यादा प्रेम करता है। जिनके लिए राष्‍ट्र ही सर्वोपरि हैराष्‍ट्र का मान उनका मान और राष्‍ट्र का तिरस्‍कार उनका स्‍वयं का अपमान है।

देश की चुनी हुई मोदी सरकार को प्रतिपक्ष के नाते जो कांग्रेस कई मुद्दों पर कटघरे में खड़ा करती आई हैआज वह भी यह स्‍वीकार्य करने लगी है कि कश्‍मीर में जो हुआ वह गलत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद सही कहते हैं कि कश्मीर के अलगाववादियों को सिर्फ पाकिस्तान के उच्चायुक्त से नहीं मिलना चाहिए। सांसदों की बातचीत की पहल को हुर्रियत कांफ्रेस द्वारा ठुकराया जाना सही नहीं है। आज हर कोई कश्मीर मुद्दे का समाधान चाहता है। देश का प्रत्‍येक नागरिक यहां के बिगड़े हालातों को लेकर चिंतित है।

वास्‍तव में दुनिया के तमाम देशों के बीच यह भारत का ह्दय ही है जो यह कहता है कि बातचीत के लिए हमारे दरवाजे ही नहीं,हमारे रोशनदान भी खुले हैं। एक मर्तबा देखा जाए तो यदि यह स्‍थि‍ति दुनिया के किसी ओर देश में घटी होतीजहां देश के सर्वोच्‍च मंदिर लोकसभा का कोई सर्वदलीय प्रतिनिधि‍मंडल अपनी ही आवाम से बातचीत करने जाए और उसे आवाम के बीच ही बैठे अलगाववादि‍यों द्वारा खाली हाथ लौटा दिया जाए हमारा पड़ौसी मुल्‍क चीन होता तो ऐसी परिस्‍थ‍िति उत्‍पन्‍न होने पर क्‍या करता वह तत्‍काल सभी को उनके घरों से निकालकर जो सबक सिखाता उसकी यहां कल्‍पना करना भी दुष्‍कर है। लोग कल्‍पना करने के लिए आगे जीवित भी बचते यह भी नहीं कहा जा सकता। जबकि यही हाल युरोप के तमाम देशों अमेरिकाफ्रांस,जर्मनीइंग्‍लैण्‍ड से लेकर रूसआस्‍ट्रेलिया या किसी अन्‍य देश में होता। इन देशों में किसी की इतनी हिम्‍मत नहीं कि वह अपनी सर्वोच्‍च सत्‍ता का इस प्रकार खुलेतौर पर अपमान कर सकें। संसद सदस्यों से ना सिर्फ मिलने से इनकार कर दिया जाए बल्कि अपने घर की दीवारों पर Go Back के साथ ही अपने दरवाज़ों पर भी Do Not Enter वाला बोर्ड लगा दिया जाए। लेकिन ऐसा भारत में ही हो सकता है। क्‍यों कि यहां देश के राष्‍ट्रपति महात्‍मा गांधी संत नरसी मेहता के भजन को आदर्श मानकर राष्‍ट्रनायकों को शांति और संवेदना का पाठ पढ़ाते रहे हैं। यहां जो करो भारतीय संविधान के दायरे में रहते हुए करो।

महात्‍माजी ! भारत को प्रेम करने वाले हर नेता को यह शिक्षा दे गए कि वैष्णव जन तो तेने कहिएजे पीर पराई जाने रेपर दुक्खे उपकार करे तोएमन अभिमान न आए रे। सकल लोक मा सहुने वंदेनिंदा न करे केनी रेवाच काछ मन निश्चल राखे,धन धन जननी तेरी रे। यही कारण है कि अब तक अपने हजारों जवानखरबों की संपत्‍त‍ि तथा कश्‍मीरी पंडितों का नरसंहार और पलायन देखने के बाद भी कश्मीर की शांति के लिए देश की सर्वोच्‍च चुनी हुई सरकार किसी से भी बातचीत को तैयार है। किंतु प्रश्‍न यही है कि जो अलगाववादी भारत के संविधान और चुने हुए प्रतिनिधियों को ही अपना नहीं मानते वो कश्मीर के हमदर्द कैसे हो सकते हैं कश्मीर में हुर्रियत नेताओं ने जो किया निश्‍चित ही आज उनके इस अड़ि‍यल रवैये की जितनी भर्तसना की जाए उतनी ही कम होगी। उन्होंने भारत की जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का अपमान करकेप्रत्‍यक्षअप्रत्‍यक्ष दोनों तरह से देखें तो देश के 132 करोड़ लोगों को अपमानित किया है।

घाटी में अलगाव फैला रहे हुर्रियत संगठन को लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जो कहा सभी को उसे गंभीरता से समझना चाहिए। गृहमंत्री कह रहे हैं कि केंद्र और राज्य सरकार घाटी में शांति का माहौल तैयार करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। 'मैं हुर्रियत नेताओं से कहना चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर हिंदुस्तान का अभिन्न अंग थाभारत का अंग है और हमेशा रहेगा, इसमें कोई दोमत नहीं। अगर कोई बातचीत के लिए जाता है और हुर्रियत के नेता बात नहीं करते हैं तो इससे साफ जाहिर है कि उनका इंसानियतजम्हूरियत और कश्मीरियत में कोई भरोसा नहीं है। 'हम घाटी में शांति बहाली के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए तैयार हैं।  हम राज्य सरकार के साथ हर कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं।

आज जम्मू कश्मीर के गर्वनरमुख्यमंत्री और स्टेट के सभी मंत्रियों से लेकर जम्‍मूलद्दाख एवं ज्‍यादातर घाटी के लोग यही चाहते हैं कि हालात सुधरे और शीघ्र शांति कायम हो सके। किंतु कश्‍मीर में अलगाववादी नहीं चाहते कि राज्‍य में शांति स्‍थापित हो। देखाजाए तो वे चाहेंगे भी क्‍यों राज्‍य में शांति आते ही उनकी दुकान चलना जो बंद हो जाएगी। अभी अलगाववादी दोनों ओर से मलाई मार रहे हैंभारत में रहकर पाकिस्‍तान का झंडा और देश विरोधी नारे लगाकर पड़ौसी देश से धन कमाते हैं और उधर राज्‍य सरकार से अपने लिए अपार सुविधाएं प्राप्‍त करते हैं। इस बात का प्रमाण पिछले दिनों मीडिया ने जिस सच के साथ सभी के समक्ष रखाउसे जानकर लगता है कि क्‍यों केंद्र और राज्‍य सरकार अलगाववादियों पर रहम कर रही है ?

यदि यह रिपोर्ट सही है कि जम्मू-कश्मीर की सरकार नेपिछले 5 वर्षों में अलगाववादियों पर 506 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, तब यह जरूर बहुत चिंता का विषय है। यह जानकर और आश्‍चर्य होता है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अलगाववादी नेताओं पर पिछले वर्षों में जो रकम खर्च की गईवह राज्य के बजट में अन्‍य सेक्टर के लिए आवंटित धन से कहीं ज़्यादा थी। सरकार ने जो धन अब तक इन अलगाववादियों पर खर्च कियावह अकेले जम्‍मू-कश्‍मीर की जनता का पैसा नहीं थायह देश के हर उस नागरिक का धन था जो टैक्‍स-पेयर है और जिनके लिए जन्‍मभूमिमातृभूमि भारतवर्ष स्‍वर्ग से भी बढ़कर है।

वस्‍तुत: संपूर्ण देश को आज इन अलगाववादियों से पूछना चाहिए कि जब उन्‍हें अपने देश भारत में रहना ही नहीं है तो क्‍यों नहीं उन्‍हें देश से बाहर कर दिया जाए। यदि उन्‍हें भारत में बहुत अधिक कष्‍ट है तो क्‍यों वे यहां रह रहे हैं अपने अमन-चैन के लिए दूसरा देश क्‍यों नहीं ढूढ़ लेते हुर्रियत से लेकर अन्‍य सभी इस जैसे संगठनों से यही कहना है कि जो अपने देश को तन,मनधन और जीवन से ज्‍यादा प्रेम नहीं कर सकते। जिनके लिए राष्‍ट्र सर्वोपरि नहींराष्‍ट्र का मान उनका मान नहीं और राष्‍ट्र का तिरस्‍कार उनका स्‍वयं का अपमान नहीं है। कुल मिलाकर जिन्‍हें भारत पसंद नहींआखिर वे यहां कर क्‍या रहे हैं ?

 डॉ. मयंक चतुर्वेदी 

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