रो.रामदेव भारद्वाज, चुनौतियां कम नहीं, संदर्भ हिन्दी विश्वविद्यालय : डॉ. मयंक चतुर्वेदी
अटल
बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय को आखिरकार नए कुलपति प्रो.रामदेव
भारद्वाज के रूप में मिल गए। इसी के साथ लम्बे समय से कुलपति के लिए चल
रहा इंतजार समाप्त हुआ । किंतु इसी के साथ जो इस विश्वविद्यालय को गढ़ने
का वृहत्तर कार्य उनके कंधों पर आन पढ़ा है, वह
किसी चुनौती से कम नहीं है। वस्तुत: यह चुनौती इसलिए है क्योंकि कई
मोर्चों पर अभी इस हिन्दी विश्वविद्यालय का कायाकल्प करने हेतु कार्य
किया जाना शेष है।
पूर्व में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव
एवं भोज मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक रहे प्रो. रामदेव भारद्वाज ने एक
कार्यक्रम के दौरान कहा था कि सार्थक और सकारात्मक सोच के साथ जब कोई भी
कार्य किया जाएगा तो उससे समाज और देश का उत्थान होगा। वास्तव में उनके इस
विचार से यह तो ठीक से समझ आ जाता है कि वे किस प्रकार के आग्रही और कैसी
सोच रखनेवाले व्यक्ति हैं। सही भी है, हमें ओर समुची दुनिया को विस्तार देने का कार्य सोच की सही दिशा में आगे बढ़ने के कारण ही संभव हो सका है, और जहां नकारात्मक सोच है, वहां चहुंओर विध्वंस भी आज सीधेतौर पर देखा जा रहा है, इसलिए भी भारद्वाज कोई भी कार्य करने की सही दिशा एवं आवश्यक शर्त को लेकर जो कहते हैं वह सही जान पढ़ता है।
अब जरा हिन्दी विश्वविद्यालय के बारे में भी जान लें। राज्य में हिन्दी विश्ववि़द्यालय मध्यप्रदेश
सरकार द्वारा 19 दिसम्बर 2011 को स्थापित किया गया। 30 जून 2012 को प्रो॰
मोहनलाल छीपा इस विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति नियुक्त हुए। 6 जून
2013 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इसकी आधारशिला रखी
। विश्वविद्यालय का उद्देश्य रखा गया विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा, कला और वाणिज्य, मानविकी से जुड़े विषयों की शिक्षा हिन्दी में प्रदान करना। अगस्त 2013 से विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया।
मोहनलाल छीपा जब यहां कुलपति बनाए गए तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, पहले वे अपने यहां किन नए डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाणपत्र पाठ्यक्रमों को आरंभ करें और उसके लिए आवश्यक कोर्स, सिलेबस
कितनी जल्दी तैयार कराये जा सकते हैं। प्रो. छीपा ने दिनरात एक करके नए
विविध विषयों के पाठ्यक्रमों को तैयार करने में सफलता पाई। उनका शुरू से ही
इस बात पर जोर था कि जब दुनिया के ताकतवर देशों में शुमार रूस, इसराइल, चीन, जापान, कोरि या, और
जर्मनी तथा अन्य वैश्विक राष्ट्रों में शिक्षा इन देशों की अपनी भाषा
में दी जाती है और जिसकी प्राप्ति के बाद ये सभी देश तरक्की कर रहे हैं तो
भारत में क्यों नहीं विज्ञान, तकनीक एवं अन्य विषयों का अध्ययन हिन्दी में कराया जा सकता है ? जिस भाषा में विद्यार्थी स्वप्न देखता और विचार करता है, यदि
उसी भाषा में उसे उच्च शिक्षा दी जाए तो वह निश्चित ही बहुत अधिक
प्रतिभा सम्पन्न होकर अपने जीवन में श्रेष्ठता को प्राप्त करेगा।
प्रो.
छीपा ने नए पाठ्यक्रम तैयार करने के साथ ही विज्ञान और तकनीक में हिन्दी
भाषा में पुस्तक निर्माण की दिशा में बड़ा कार्य आरंभ किया जो अनवरत जारी
है। डिग्री कोर्सेस में जैवविविधता में स्नातकोत्तर, एलएलएम, मत्स् यकी, बीएड, इंजीनियरिंग में इलेक्ट्रिकल, मकैनिकल एवं सिविल इंजिनियरिंग डिग्री और डिप्लोमा कोर्सों में दाखिला तथा इस क्षेत्र में करीब 250 सालों से कायम अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ना उनके द्वारा अब तक किए गए संस्थापक कुलपति के रूप में वे स्थापित कार्य हैं, वहीं योग के विविध पाठ्यक्रम, गर्भ संस्कार तपोवन केंद्र जिनके लिए यह विश्वविद्यालय सदैव उन्हें याद करेगा। किंतु जो वह नहीं कर पाए वह हैं, अपने यहां शिक्षक और अन्य कर्मचारियों की स्थायी भर्ती, नियमित
और संविदा आधारित। विश्वविद्यालय अभी भी राज्य उच्चशिक्षा विभाग के
प्राध्यापकों के भरोसे ही चल रहा है। दूसरा जो बड़ा कार्य अब तक होना था
वह था उसके अपने शिक्षा परिसर का निर्माण जोकि लम्बे समय से निर्माणाधीन
ही है।
इसके
अतिरिक्त जिस तरह की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में हुए
विश्व हिन्दी सम्मेलन 2015 में इस विश्वविद्यालय के विकास को लेकर
घोषणाएं की थीं, उसके अनुरूप उन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए जो कार्य होना चाहिए था, दो
वर्ष बीतने को हैं उस दिशा में कुछ भी कार्य संभव नहीं हो सका है। इस
सम्मेलन में स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आगे होकर कहा था कि
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी
विश्वविद्यालय को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान के तौर पर विकसित किया
जाएगा।
इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराजजी ने
18 अप्रैल 2017 को हुए इस विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में
उपस्थित छात्र-छात्राओं के बीच फिर एक बार अपनी बात को दोहराते हुए कहा
था कि निज भाषा सब उन्नतियों का मूल है। हिन्दी के उदभट विद्वान के नाम पर
देश का प्रथम हिन्दी विश्वविद्यालय प्रदेश की धरती पर है। यह गर्व का विषय
है। विश्वविद्यालय की सभी जरूरत को पूरा किया जायेगा। यहां चिकत्सा
पाठ्यक्रम शीघ्र शुरू होगा । मध्यप्रदेश की धरती पर संसाधनों की कमी
प्रतिभा की उन्नति में बाधक नहीं बनने दी जाएगी। किंतु क्या ऐसा हकीकत में
अब तक हुआ है ? इसका सीधा उत्तर है, नहीं हुआ । मुख्यमंत्री शिवराजजी ने जो कुछ भी कहा,वह
विश्वहिन्दी सम्मेलन में किया गया उनका वायदा हो या फिर उसके बाद विविध
कार्यक्रमों में प्रकट किए गए हिन्दी विश्वविद्यालय के पक्ष में उनके
विचार। शासन ने अपने मुख्यमंत्री के कहे शब्दों की पूर्ति अब तक किसी भी
कारण से ही सही नहीं की है।
यह
हिन्दी विश्वविद्यालय एक बार में तो ऐसा प्रतीत होता है कि श्रद्धेय अटल
जी के नाम का तिलक लगाकर अपने सौंदर्यबोध और आभा के प्रकटीकरण से उन
परिस्थितियों में भी अब तक दूर बना हुआ है, जिसमें कि केंद्र से लेकर राज्य में उन्हीं अटल जी के तप से सिंचित सरकारें हैं। अभी जिस पुरानी विधानसभा परिसर में यह संचालित है, वह
जर्जर अवस्था में है और पर्यटन निगम ने यहां अपना नवीनीकरण का कार्य आरंभ
किया हुआ है। इसके चलते यह जहांगीराबाद स्थित शासकीय बेनजीर कॉलेज में
शिफ्ट होने जा रहा है। लेकिन उसकी भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं, यानि की एक जर्जर अवस्था से निकलकर दूसरी अव्यवस्था के बीच इसके स्थान्तरित किए जाने की बात चल रही है।
वस्तुत:
ऐसे में नए वीसी के सामने चुनौतियां अपार हैं। सबसे पहले उन्हें अपने
यहां स्थायी कर्मचारियों के भर्ती किए जाने की आवश्यकता है। संस्था ने
विज्ञान की डिग्री संबंधी पाठ्यक्रम तो शुरू कर दिए, किंतु उसने अपनी किसी एक विभाग की भी ठीक लेब अब तक विकसित नहीं है। प्रकाशन के स्तर पर जितना कार्य अन्य विश्वविद्यालयों ने किया, उस
तुलना में यहां कार्य के प्रति न तो कोई स्थायी योजना दिखाई देती है और न
ही कार्य । विश्वविद्यालय ने जो अपने रीजनल सेंटर खोले हैं, उनका भी कार्य संतोषजनक नहीं माना जा सकता है।
यह भी इस विश्वविद्यालय के साथ एक बड़ा सच जुड़ा हुआ है कि आर्थिक स्तर पर शासन से जितनी अधिक मात्रा में इसे मदद मिलनी चाहिए, वह इसे अब तक नहीं मिली है। पूर्व कुलपति अक्सर यह बात खुलकर भी कहते रहे, हमारे पास धन का बहुत अधिक अभाव है, हम चाहते तो बहुत कुछ करना हैं किंतु इस अभाव के चलते हम अपना श्रेष्ठ नहीं दे पा रहे, जो
परिस्थितियां हैं उनके बीच जितना बेहतर कर सकते हैं वही करने का हमारा
प्रयास सदैव से रहता है। वस्तुत: पूर्व कुलपति प्रो. छीपा की इन बातों में
इस विश्वविद्यालय के प्रति शासन का यह नजरिया स्पष्ट समझ आ जाता है कि
वह अपने इस विश्वविद्यालय से कितना प्रेम करता है और हिन्दी के प्रति
मध्यप्रदेश शासन कितना समर्पित है ?
नए वीसी को सबसे ज्यादा जो कार्य करना होगा वह है, मध्यप्रदेश शासन से अधिक से अधिक रुपए इस विश्वविद्यालय के विकास के लिए प्राप्त करना, जोकि
किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कहा जा सकता है कि नए कुलपति प्रो.
रामदेव भारद्वाज के सामने यही सब चुनौतियां आज व्यापक स्तर पर विद्यमान
हैं।
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