भारत में इन दिनों जो स्थितियां बन पड़ी हैं, उसमें उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए अनेक अवसर उपलब्ध हैं। केंद्र सरकार द्वारा लगातार इस संबंध में किए जा रहे प्रयास और उसके अनुवर्तन में राज्य सरकारों द्वारा अपने यहां का हायर एजुकेशन मॉडल सुदृढ़ करने के लिए किए जा रहे प्रयत्नों के फलस्वरूप समूचे देश में एक बदला-बदला सा नजारा दिखाई दे रहा है। निश्चित तौर पर इसके लिए केंद्र की भाजपानीत मोदी सरकार को श्रेय दिया जा सकता है। वस्तुत: देखा जाए तो आज भारत का उच्च शिक्षा तंत्र विश्व का तीसरा सबसे बडा उच्च शिक्षा तंत्र है। स्वतंत्रता के बाद से देश के विश्वविद्यालयों की संख्या में 11.6 गुना, महाविद्यालयों में 12.5 गुना, विद्यार्थियों की संख्या में 60 गुना और शिक्षकों की संख्या में 25 गुना वृद्धि हुई है। सभी को उच्च शिक्षा के समान अवसर सुलभ कराने की नीति के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश में महाविद्यालयों प्रयास निरंतर हो रहे हैं।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उच्चशिक्षा क्षेत्र में जो मानसिक परिवर्तन आया है, वह इस सोच का विकास है कि अब देश की तस्वीर बदलने के लिए हम सभी को प्रयत्न करने होंगे। यदि कोई साथ नहीं तो भी
‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर हमें आगे बढ़ते रहना होगा, तभी इस दिशा में ठोस और क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाई देंगे। वैसे देखा जाए तो भारत में कभी शिक्षा का निजीकरण नहीं होना था, किंतु कांग्रेस के लम्बे शासनकाल में यह दुखद हुआ कि वह कोई ऐसी नीति नहीं बना पाई कि देश में अपने भविष्य को गढ़ने की वह समान रूप से सरकारी पाठशाला तैयार कर पाती, जहां सभी को शिक्षा के समान और अधिकाधिक अवसर सुलभ हो सकते । ऐसे में वर्तमान सरकार को अपनी परंपरा से जो मिला है, उसे पूरी तरह से बदला तो नहीं जा सकता किंतु उसमें आवश्यक सुधार अवश्य ही किए जा सकते हैं।
निजीकरण का जो सबसे बड़ा देश में दुष्परिणाम है, वह यही है कि जिनके पास धन की कमी है या जो किन्हीं कारणों से निजी शिक्षा संस्थानों में नहीं पढ़ सकते हैं, आखिर वे श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्ति के लिए क्या करें?वस्तुत: आज उनके लिए कहना होगा कि भारत सरकार का मानव संसाधान विभाग ऐसे सभी लोगों की चिंता कर रहा है। उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने और अनुसंधान की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने विशेष ध्यान देते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, इजराइल, नॉर्वे, न्यूजीलैंड जैसे देशों के साथ संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम बनाए हैं । इस प्रयास के माध्यम से योजना यही है कि शिक्षा संस्थानों के संकायों को उच्च स्तरीय बनाए जा सके, शिक्षकों को अनुसंधान करने का अवसर मिले और विश्व स्तरीय उपकरणों और सुविधाओं के लिए अंतर-विश्वविद्यालय केंद्रों की स्थापना की जा सके।
देश में मोदी गवर्नमेंट ने आज उच्चशिक्षा क्षेत्र में जो नए प्रयोग शुरू किए हैं, उनसे यही देखने में आ रहा है कि वह भारत की ज्ञान परंपरा के विस्तार में एक नया अध्याय लिख रहे हैं। ऐसी ही एक योजना, उच्चतर आविष्कार योजना (यूएवाई) आज आरंभ हुई है । इस यूएवाई योजना का उद्देश्य आईआईटी संस्थानों में नए आविष्कारों को बढ़ावा देना है, ताकि विनिर्माण उद्योगों की समस्याओं को हल किया जा सके। आविष्कार करने वाली मानसिकता को प्रोत्साहन मिले, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच समन्वय लाया जा सके तथा प्रयोगशालाओं और अनुसंधान सुविधाओं को सुदृढ़ किया जा सके।
ऐसे ही एक अन्य प्रयास मोदी सरकार का उच्चशिक्षा के क्षेत्र में है अनुसंधान, नवोन्मेष और प्रौद्योगिकी पर प्रभाव (आईएमपीआरआईएनटी), यानि की समाज से जुड़े क्षेत्रों की पहचान करना है, जिसमें नवोन्मेष व वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता है। इस योजना का उद्देश्य इन क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए बड़ी धनराशि की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
अनुसंधान कार्यों के परिणाम से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस योजना के तहत आने वाले प्रस्तावों के लिए 50 प्रतिशत की धनराशि गृह मंत्रालय द्वारा तथा शेष 50 प्रतिशत धनराशि संबंधित मंत्रालय, विभाग, उद्योग या गैर-गृह मंत्रालय स्रोत से उपलब्ध कराई जा रही है।
आज केंद्र सरकार आईआईटी संस्थानों में अनुसंधान पार्कों की स्थापना करने जा रही है। इस कार्य के लिए सरकार ने आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी कानपुर, आईआईटी हैदराबाद और आईआईएससी बंगलुरू में पांच नए अनुसंधान पार्कों के निर्माण की मंजूरी दे दी है। प्रत्येक अनुसंधान पार्क के निर्माण के लिए 75 करोड़ रूपये की धनराशि स्वीकृत की गई है। आईआईटी मुंबई और आईआईटी खड़गपुर में कार्यरत दो अनुसंधान पार्कों को चालू रखने के लिए 100 करोड़ रूपये की धनराशि स्वीकृत की गई है। दूसरी ओर इससे जुड़े विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग ने आईआईटी गांधीनगर के अनुसंधान पार्क के लिए 90 करोड़ रूपये की धनराशि आवंटित की है।
सरकार का एक प्रयास इस दिशा में गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (क्यूआईपी) भी है, इसके अंतर्गत डिग्री और डिप्लोमा स्तर के संस्थानों के संकाय सदस्यों की विशेषज्ञता को बेहतर बनाने और क्षमता निर्माण करने के लिए इन दिनों कार्य किया जा रहा है। साथ में एक मार्गदर्शन योजना का आरंभ भी मोदी सरकार में हुआ है, जिसके तहत प्रतिष्ठित संस्थान के अंतर्गत एक हब बनाना, जो प्रौद्योगिकी संस्थानों के मध्य समन्वय स्थापित कर सके विशेष रूप से शामिल है।
उच्च शिक्षा संस्थानों को विश्वस्तरीय शिक्षण व अनुसंधान संस्थानों के रूप में परिवर्तित करने के लिए जो एक अधिसूचना जारी की गई है, उसके अनुसार सरकार चयनित विश्वविद्यालयों एवं अन्य शिक्षा संस्थानों को पांच वर्षों की अवधि में 1000 करोड़ रूपये उपलब्ध कराने जा रही है, ताकि वे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हो सकें। देश में ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म ‘स्वयं’ लांच किया जा चुका है । इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से शिक्षण-प्रशिक्षण, स्नातक और स्नातकोत्तर विषयों की पढ़ाई देश में किसी भी कोने में रहकर आसानी से की जा सकती है।
अत: अंत में यही कहना होगा कि भारत की उच्चतर शिक्षा व्यवस्था में अभी बहुत कुछ सुधार किया जाना बाकी है। गुणवत्ता में हमारे विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप- 200 की संख्या में भी शामिल नहीं हैं। विद्यालय स्तर की पढ़ाई पूरी करने वाले नौ छात्रों में से एक ही कॉलेज पहुँच रहा है। भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम है। वहीं दूसरी ओर देश के 90 फ़ीसदी कॉलेजों और 70 फ़ीसदी विश्वविद्यालयों का शिक्षा स्तर बहुत कमज़ोर है। शोध के क्षेत्र में भी अभी भारत बहुत पीछे है। दुनिया भर में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हुए शोध में से सिर्फ़ 3 फ़ीसदी शोध पत्र ही भारत के उच्चशिक्षा क्षेत्र में प्रकाशित हो पा रहे हैं। इन सभी विसंगतियों के बीच कहना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार के उच्चशिक्षा क्षेत्र को सबल बनाने के प्रयास निश्चित ही आनेवाले दिनों में उच्चशिक्षा के क्षेत्र में भारत की तस्वीर बदलकर रख देंगे।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-04-2018) को ) "भूखी गइया कचरा चरती" (चर्चा अंक-2949) पर होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
डा. चतुर्वेदी , बहुत अच्छा लेख। उच्चतर आविष्कार योजना (यूएवाई) आज आरंभ हुई है । इस यूएवाई योजना का उद्देश्य आईआईटी संस्थानों में नए आविष्कारों को बढ़ावा देना है, ताकि विनिर्माण उद्योगों की समस्याओं को हल किया जा सके। आविष्कार करने वाली मानसिकता को प्रोत्साहन मिले, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच समन्वय लाया जा सके तथा प्रयोगशालाओं और अनुसंधान सुविधाओं को सुदृढ़ किया जा सके...अच्छी जानकारी के साथ पूरा आलेख एक ही बार में पढ़ गई...
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