गुरुवार, 25 जनवरी 2018

अल्‍पसंख्‍यकों के ल‍िए मोदी सरकार ये क्‍या कर रही है : डॉ. मयंक चतुर्वेदी


केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से शायद ही कोई दिन ऐसा गया हो, जब उनका नाम लेकर देश के अल्‍पसंख्‍यकों को खासकर मुसलमानों के बीच यह भ्रांति न फैलाई गई हो कि यह सरकार अब तक की सबसे बुरी सरकार है और इसके राज में सबसे अधिक नुकसान यदि किसी का हुआ है तो वह देश का अल्‍पसंख्‍यक मुस्‍लिम समुदाय है। किंतु क्‍या वास्‍तविकता में ऐसा है? वस्‍तुत: ऐसा बिल्‍कुल नहीं है, तथ्‍य कुछ ओर ही कहते हैं।  

इस संदर्भ में जो आंकड़े केंद्र सरकार के साथ अल्‍पसंख्‍यक कार्य मंत्रालय के हैं वह आज साक्ष्‍यों के साथ बता रहे हैं कि किस तरह से पिछले तीन वर्षों में मोदी राज में अल्‍पसंख्‍यकों का आर्थ‍िक एवं शिक्षा के स्‍तर पर बौद्ध‍िक विकास हुआ है और कैसे वह सतत जारी है। वस्‍तुत: वर्तमान में जीएसटी सुविधा केन्द्र और स्वच्छता पर्यवेक्षक जैसे लघु अवधि के पाठ्यक्रम अल्पसंख्यक समुदायों के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए नए स्‍वरूप में आगे आए  हैं। यह लघु अवधि के पाठ्यक्रम छोटे, मध्यम उद्यमों और बड़े व्यवसाय समूहों की भी मदद कर रहे हैं। इसी प्रकार से आज स्वच्छता पर्यवेक्षकों की स्‍थ‍िति है, जिसमें कि पूरे देश में अलग-अलग स्वच्छता परियोजनाओं में अल्‍पसंख्‍यक युवाओं को केंद्र सरकार नौकरी प्रदान कर रही है।

वस्‍तुत: यह बताने की आवश्‍यकता नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान ने देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आरंभ किया है। इसके अंतर्गत अब तक लाखों शौचालयों, स्वच्छता केंद्रों, स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण किया जा चुका है और यह आगे भी तेजी से चल रहा है। इसमें ये अल्‍पसंख्‍यक स्वच्छता पर्यवेक्षक युवा आज स्वच्छता अभियान को बहुत व्‍यापक स्‍तर पर अपनी मजबूती प्रदान कर रहे हैं।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की यथास्‍थ‍िति और उसके आर्थ‍िक कार्यकलापों पर भी यदि ध्‍यान दिया जाए तो यह सीधे तौर पर स्‍पष्‍ट हो जाता है कि मोदी सरकार की मंशा अल्‍पसंख्‍यकों विशेषकर मुसलमानों को लेकर आखिर क्‍या है। वस्‍तुत: वर्तमान में अल्‍पसंख्‍यक कार्य मंत्रालय अपने कुल बजट का 65 प्रतिशत से भी अधिक अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं के शैक्षिक सशक्तिकरण और कौशल विकास के लिए व्यय कर रहा है। जिसमें कि बहुत बड़ा इसका भाग वह है जोकि आज उनके बीच उन प्रतिभावान विद्यार्थ‍ियों एवं अभ्‍यार्थ‍ियों पर खर्च किया जा रहा है जोकि प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होकर देशसेवा करना चाहते हैं।

इस विषय में केंद्र की हाल ही संचालित हुईं विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं को देखा जा सकता है, जिसमें कि "बेगम हजरत महल कन्या छात्रवृत्ति योजना" अल्पसंख्यक समुदाय के बीच महिला सशक्‍तिकरण एवं शैक्षिक सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई है। आंकड़े देखें तो पिछले 3 वर्षों में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने भिन्न-भिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं में 1 करोड़ 5 लाख से भी ज्यादा विद्यार्थ‍ियों को लाभ पहुंचाने में सफलतम कार्य किया है ।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के आंकड़े यह भी कहते हैं कि पिछले 3 वर्षों में बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के अंतर्गत कई सुविधाएं जैसे 4 हजार 377 स्वास्थ्य केन्द्र, 37 हजार 68 आंगनवाड़ी केन्द्र, 10 हजार 649 पीने के पानी की सुविधा स्‍थल, 32 हजार से अधिक अतिरिक्त कक्षा स्‍थान, 1 हजार 817 स्कूल भवनों, 15 स्नातक महाविद्यालयों, 169 आईटीआई, 48 पोलिटेकनिक महाविद्यालयों का आरंभ, 248 बहुउद्देशीय समुदायिक केंद्रों सद्भाव मंडप, 1 हजार 64 छात्रावासों और 27 आवासीय स्कूलों का निर्माण अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में भारत सरकार के इस मंत्रालय ने कराया है।

इतना ही नहीं तो आजल 100 "गरीब नवाज कौशल विकास केन्द्र" समुचे देश में स्थापित किए जा रहे हैं। "हुनर हाट" एवं अन्य कौशल विकास कार्यक्रमों को जरिए करीब 5 लाख अल्पसंख्यक युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इतना सभी कुछ विकास एवं अल्‍पसंख्‍यकों को आगे बढ़ाने के लिए किए जा रहे मोदी सरकार के कार्यों एवं प्रयत्‍नों के बाद भी यदि कोई उनकी नेक नीयत पर शक करे तो अब ऐसे लोगों का कुछ नहीं किया जा सकता है।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के आंकड़े

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के आंकड़े यह भी कहते हैं कि पिछले 3 वर्षों में बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के अंतर्गत कई सुविधाएं जैसे 4 हजार 377 स्वास्थ्य केन्द्र, 37 हजार 68 आंगनवाड़ी केन्द्र, 10 हजार 649 पीने के पानी की सुविधा स्‍थल, 32 हजार से अधिक अतिरिक्त कक्षा स्‍थान, 1 हजार 817 स्कूल भवनों, 15 स्नातक महाविद्यालयों, 169 आईटीआई, 48 पोलिटेकनिक महाविद्यालयों का आरंभ, 248 बहुउद्देशीय समुदायिक केंद्रों सद्भाव मंडप, 1 हजार 64 छात्रावासों और 27 आवासीय स्कूलों का निर्माण अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में भारत सरकार के इस मंत्रालय ने कराया है।

मध्‍यप्रदेश में महिला सुरक्षा से जुड़े प्रश्‍न : डॉ मयंक चतुर्वेदी

ध्‍यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुरक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त बनाने के लिये जीलाधीशों एवं पुलिस अधीक्षकों को निर्देश देते हुए कहा है कि महिलाओं एवं बालिकाओं की सुरक्षा राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता हैइसमें किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जायेगी। महिलाओं एवं बालिकाओं के प्रति अपराध की शिकायतों का तत्काल संज्ञान लिया जायेतुरंत परीक्षण कराकर एफआईआर दर्ज की जाये और जरूरी होने पर समय पर मेडिकल परीक्षण भी कराया जाये। महिला अपराधों में दोषी पाये गये अपराधी के ड्राईविंग लायसेंस भी निरस्त करने की कार्रवाई की जानी चाहिए। मुख्‍यमंत्री इतना कहकर ही नहीं रुके उन्‍होंने आगे कहासुरक्षा के उपायों के प्रति समाज के सभी वर्गों में जागरूकता बढ़ाई जाये। स्कूलकॉलेजछात्रावासकोचिंग सेंटर एवं बाल सम्प्रेषण गृहों आदि क्षेत्रों का भ्रमण कर सुरक्षा के उपाय सुनिश्चित किये जायें। कलेक्टर कम से कम माह में एक बार पुलिस अधीक्षकमहिला बाल विकासस्वास्थ्य एवं नगरीय निकायों के अधिकारियों के साथ इस संबंध में बैठक करें। यह तो हुई एक प्रदेश के मुख्‍यमंत्री की प्रशासन को दी गई नसीहत और निर्देर्शों की बातकिंतु क्‍या इतनेभर से मध्‍यप्रदेश से महिलाओं के प्रति दिनप्रतिदिन होनेवाली दुर्घटनाओं में कमी आ जाएगी ?

देखाजाए तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को 14 वर्ष निरंतर कार्य करते हुए हो गए हैंइसके पहले कांग्रेस दिग्‍व‍िजय सिंह की सरकार के 10 वर्षों तक का शासनकाल रहा। कुल मिलाकर बीते 24 सालों में 7 दिसंबर 1993 दिग्‍विजय सिंह से शिवराज सिंह चौहान तक 4 मुख्‍यमंत्री रहे और अनगिनत गृहमंत्री बनते रहेलेकिन हर बार प्रत्‍येक मुख्‍यमंत्री और सभी गृहमंत्री अपने प्रशासन को यही निर्देश देते रहे हैंकिंतु महिलाओं को लेकर स्‍थ‍ितियां हैं की बदलने का नाम नहीं ले रहीं।  प्रदेश में दिनप्रतिदिन अपराध का ग्राफ बढ़ रहा हैमहिलाएं छोड़ि‍ए अबोध बालिकाएं इनके निशाने पर हैं। हर बार कांगेस के सत्‍ता पर रहने पर भाजपा कानून व्‍यवस्‍था को मुद्दा बनाती है तो इन दिनों कांग्रेस ने भाजपा सरकार के विरुद्ध प्रदेश में खराब कानून व्‍यवस्‍था को मुद्दा बना रखा हैपर दोनों ही स्‍थ‍ितियों में परिस्‍थ‍ितियां भयंकर ही हैं।

इस सब के बीच यदि कुछ तथ्‍यों पर प्रकाश डाला जाए तो वर्तमान में यह पूरी तरह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि प्रदेश में महिलाओं से जुड़े अपराधों में निरंतर इजाफा हुआ है। आज यह राज्‍य बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराध के मामले में देश में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घटनाओं के मामलों में मध्य-प्रदेश की राजधानी भोपाल’ शीर्ष पर है। इस वर्ष 1 जनवरी से 31 मई तक राजधानी भोपाल’ में महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े 8 हजार 838 मामले दर्ज किए गए थेयह स्‍वीकारोक्‍ति मध्‍यप्रदेश के गृहमंत्री की है । भोपाल के बाद महिला पर हुए अपराधों के जबलपुर में 7 हजार 557इंदौर में 6 हजार 827उज्जैन में 5 हजार 236 और ग्वालियर में 5 हजार 76 मामले दर्ज हुए थे।

इसके पूर्व जब राज्‍य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह से विधानसभा में रामविलास रावत द्वारा इस संबंध में पूछा गया था तब उन्‍होंने बताया था कि मध्य प्रदेश में 13 महिलाओं को बलात्कार के बाद जान से मार दिया गया। जबकि14 ने खुदकुशी कर ली।  रेप पीड़ित महिलाओं में अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजातिअन्य पिछड़ा वर्ग के अलावा सामान्‍य वर्ग की महिलाओं की संख्‍या भी बहुत ज्‍यादा पाई गई है। मई माह के बाद बीते छह माह में यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह संख्‍या निश्‍चित तौर पर इस आंकड़े के दौगुने को पार कर चुकी होगी।

मध्‍यप्रदेश में आज नहीं दो वर्ष पहले तक की स्‍थ‍िति भी देखें तो वह बच्‍चों के मामले में खासकर महिलाओं को लेकर एकदम प्रतिकूल ही दिखाई देती है। वर्ष-2015 के दौरान अपहरण के 5 हजार 306ज्यादती के 1 हजार 568 और हत्या के 124 मामले दर्ज किए गए गए थे। दुष्कृत्य की 391 घटनाएं हुईं। इनमें 35.7 प्रतिशत दुष्कृत्य की घटनाएं बच्चों के साथ हुईं। अभी हाल ही में मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक माह के भीतर तीन बच्चियों से गैंगरेप जैसे अपराध सामने आ चुके हैंबलात्‍कार को लेकर जो आंकड़े आ रहे हैं वह मध्‍यप्रदेश में प्रतिदिन औसत 12 तक पहुंच चुका है। आखिर इसके क्‍या मायने लगाए जाएं ? राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की एक गत वर्ष आई रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार यहां लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हुआ है उसका प्रतिशत इतना अधिक है कि यह राज्‍य बाल विवाह के मामले में देश के पहले 8 राज्यों में पहुंच गया है। सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत 31.5 फीसदी है। स्‍त्री सशक्‍तिकरण को लेकर मध्‍यप्रदेश की वर्तमान स्‍थ‍ितियां किस प्रकार की हैंइसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि महिला सुरक्षा के लिए स्‍थापित गौरवी वन स्‍टॉप क्राइसिस रेसेल्युशन सेंटर द्वारा बीते कुछ सालों में 29 नाबालिग किशोरियों का प्रसव करवाया गया है।

सरकार के लाख जनजागरण अभियान के बाद भी अवांछित बेटियों को मारने का नया तरीका ढूंढ़ लिया गया है और वह है कोख में न मारते हुए उन्‍हें किसी झाड़ीतालाबनदीसुनसान क्षेत्र या कचरे के ढ़ेर में फेंक देनाफिर लावारिस पड़ी नवजात बच्‍चियों का भगवान ही मालिक हैकिसी भले की समय रहते नजर पड़ गई तो जीवन सुरक्षित हो गयानहीं तो अधिकांश में मौत के बाद शरीर का जानवरों द्वारा नोचे जाने के भीवत्‍स दृष्‍य उपस्‍थ‍ित हो उठता है । वस्‍तुत: ऐसे मामलों में जन्‍म के पहले से आरंभ हुआ यह संकट जिंदगी के लिए सबसे महत्‍वपूर्ण जन्‍म के बाद के  एक हजार घंटों तक चुनौती बना रहता है। कह सकते हैं कि हालात इतने बेकार हैं कि इसमें तुरंत व्‍यापक पैमाने पर सुधार की आवश्‍यकता है।

सरकार की अपनी जवाबदेही हैकिंतु सरकार के भरोसे समाज नहीं चलता । इन घटनाओं के बढ़ने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण आज नजर आता हैवह है समाज की संवेदनशीलता में कमी आनालापरवाही और परंपरा में आनेवाली पुरुष पीढ़ी को महिलाओं के प्रति सम्‍मान की भावना का जाग्ररण कर पाने के भाव का तिरोहित होते जाना। वस्‍तुत: मध्‍यप्रदेश के वर्तमान मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने लाख प्रयत्‍न कर लें और अपने प्रशासन को इस दिशा में निरंतर,बार बार निर्देश देते रहेंसुधार तब तक असंभावी है जब तक कि स्‍त्रियों के प्रति असम्‍मान की मूल जड़ पर चोट न की जाए या उसके डीएनए में सुधार के प्रयत्‍न न हों। मध्‍यप्रदेश के हर चौराहेनामी मंदिरमस्‍जिद और मकबरे के बाहर भीख मांगता बचपनजवानी और बुढ़ापे को हम नजर अंदाज करते रहेंगे,रेलवे एवं अन्‍य स्‍टेशनोंघरों में काम करते नाबालिग बच्‍चों को हम सहज स्‍वीकारें नहीं तथा परिवार में जब तक परस्‍पर मान-सम्‍मान का भाव पैदा नहीं किया जाएगा मध्‍यप्रेदश में महिलाओं की स्‍थ‍िति में बिल्‍कुल भी सुधार आनेवाला नहीं हैफिर सत्‍ता के सूत्र किसी के भी हाथ में होंक्‍या फर्क पड़ता है ।   

लेखक न्‍यूज एजेंसी हिन्‍दुस्‍थान समाचार के मध्‍यप्रदेश ब्‍यूरो प्रमुख एवं केंद्रीय फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य हैं।

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

भारत में कृषि और महिलाएं : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भारत अपने अस्तित्वकाल से ही कृषि प्रधान देश रहा है। यहां जिस तरह से पुरुष और महिलाओं के बीच श्रम का विकेंद्रीकरण किया गया है, उसमें महिलाओं के जिम्मे जो कार्य है, वह तुलनात्मक रूप में समग्रता के साथ पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों के पास अधिक है। इसमें शहरों की तुलना में ग्रामीण महिलाओं के पास कार्य की अधिकता है, इसके विपरीत औरतों की स्थिति दयनीय है। सबसे अधिक कार्य का बोझ होने के बावजूद श्रमशक्ति में पुरुषों से कम पारिश्रमिक उनकी दयनीय स्थिति को दर्शाता है।

शहरों में तो व्यावसायिक एवं मासिक वेतन कर्मचारी व्यवस्था में अधिकतर महिलाएं कार्यरत हैं, किंतु यह स्थिति गांवों में नहीं है। वहां महिलाएं कृषि क्षेत्र में पुरुषों के साथ बराबरी से तो कहीं उनसे भी अधिक भागीदारी कर वे अपनी बहुआयामी भूमिकाएं निभा रही हैं। बुवाई से लेकर रोपण, निकाई, सिंचाई, उर्वरक डालना, पौध संरक्षण, कटाई, निराई, भंडारण और कृषि से जुड़े अन्य कार्य जैसे कि मवेशी प्रबंधन, चारे का संग्रह, दुग्ध संग्रहण, मधुमक्खी पालन, मशरुम उत्पादन, सूकर पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन इत्यादि में ग्रामीण महिलाएं पूरी तरह सक्रिय हैं। इसके साथ ही कृषि क्षेत्र के भीतर, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और क्षेत्रीय कारकों के आधार पर काम करने वाले वैतनिक मजदूरों, अपनी स्वयं की जमीन पर श्रम कर रहीं जोतकार और कटाई पश्चात अभियानों में श्रम पर्यवेक्षण और सहभागिता के जरिए कृषि उत्पादन के विभिन्न पहलुओं के प्रबंधन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है ही, लेकिन क्या इतना अधिक योगदान होने के बाद भी हम अपनी मातृशक्ति की श्रमपूंजी के साथ न्याय कर पा रहे हैं?

विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत के 48 प्रतिशत कृषि संबंधित रोजगार में औरतें हैं, जबकि करीब 7.5 करोड़ महिलाएं दुग्ध उत्पादन तथा पशुधन व्यवसाय जैसी गतिविधियों में सार्थक भूमिका निभाती हैं। कृषि क्षेत्र में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी महिलाओं की है। पहाड़ी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र तथा केरल राज्य में महिलाओं का योगदान कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पुरुषों से कहीं ज्यादा है, इसमें सबसे अधिक पहाड़ी क्षेत्रों में है। इसी संदर्भ में फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) के एक अध्ययन से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष एक पुरुष औसतन 1 हजार 212 घंटे और एक महिला औसतन 3 हजार 485 घंटे कार्य करती है। इस आंकड़े के माध्यम से ही कृषि में महिलाओं के अहम योगदान को आंका जा सकता है। 

समूचे भारत वर्ष में उसके भूगोल और जनसंख्या के अनुपात से कृषि में महिलाओं के योगदान का आंकलन करें, तो यह करीब 32 प्रतिशत है। इस बीच यदि हम भा.कृ.अनु.प. के डीआरडब्ल्यूए की ओर से नौ राज्यों में किए गए एक पूर्व शोध अध्ययन को देखें तो प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की 75 फीसदी भागीदारी, बागवानी में 79 फीसदी और कटाई उपरांत कार्यों में 51 फीसदी की हिस्सेदारी है। पशु पालन में महिलाएं 58 फीसदी और मछली उत्पादन में 95 फीसदी भागीदारी निभाती हैं।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में कुल श्रम शक्ति का 50 फीसदी हिस्सा महिलाओं का है। छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश में 70 फीसदी से ज्यादा महिलाएं कृषि क्षेत्र पर आधारित हैं, जबकि पंजाब, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु और केरल में यह संख्या 50 फीसदी है। मिजोरम, आसाम, छत्तीसगढ़, अरूणाचल प्रदेश और नागालैंड में कृषि क्षेत्र में 10 फीसदी महिला श्रमशक्ति है। देखने में निश्चित तौर पर यह आंकड़े काफी उत्साहजनक हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या महिलाओं को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उचित अवसर दिए जा रहे हैं?

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह भले ही आज कह रहे हों कि सरकार की विभिन्न नीतियों जैसे जैविक खेती, स्वरोजगार योजना, भारतीय कौशल विकास योजना, इत्यादि में महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने के लिए तथा उनकी जमीन, ऋण और अन्य सुविधाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों के लिए बनी राष्ट्रीय कृषि नीति में उन्हें घरेलू और कृषि भूमि दोनों पर संयुक्त पट्टे देने जैसे नीतिगत प्रावधान किए हैं। इसके साथ कृषि नीति में उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड जारी करवाने के साथ ही इसके लिए कई प्रकार की पहल की जा चुकी हैं।

यहां केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री की कही बातों को जरा भी गंभीरता से लिया जाए और सरकार के इस संदर्भ में किए जा रहे प्रयासों यथा, जिनमें कि कृषि में महिलाओं की अहम भागीदारी को ध्यान में रखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान की स्थापना तथा इस संस्थान के माध्यम से महिलाओं से जुड़े विभिन्न आयामों पर 100 से अधिक संस्थानों द्वारा नई तकनीक के सृजन के लिए किए गए कार्य या अन्य प्रयास जिससे कि देश में 680 कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित हैं। मोदी सरकार ने विभिन्न प्रमुख योजनाओं व कार्यक्रमों और विकास संबंधी गतिविधियों के अंतर्गत महिलाओं के लिए कम से कम 30 प्रतिशत धनराशि का आबंटन सुनिश्चित किया है 

इत्‍यादि कार्यों पर प्रमुखता से गौर करें तो इस पर भी कहना यही होगा कि आज भी सरकारी आंकड़ों में जितना अधिक महिलाओं के कृषि क्षेत्र में विकास की बातें कर उनका उत्साहवर्धन किया जा रहा है, जमीनी स्तर पर वह कहीं नजर नहीं आता है। जबकि यदि महिलाओं को अच्छे अवसर तथा सुविधाएं मिलें तो वे देश की कृषि को द्वितीय हरित क्रांति की तरफ ले जाने के साथ देश के विकास का परिदृष्य तक बदलने की कुव्वत रखती हैं। इसीलिए आज यह जरूरी होगा कि भारतीय कृषि में महिलाओं को दयनीय परिस्थितियों से बाहर निकालने के लिए मोदी सरकार को शासकीय आंकड़ों से इतर भी कुछ सर्वे करवा लेना चाहिए, ताकि इस क्षेत्र में भी विमुद्रिकरण की तरह ही पूरे देश में कुछ चमत्कार नजर आ सकें।

भारत का अर्थ‍िक महाशक्‍ति बनने के लिए बढ़ते कदम

हिन्‍दुस्‍तान को लेकर जिस तरह की उत्‍साहवर्धक बातें कई दिनों बाद फिर से सुनने को मिल रही हैं, उनसे अब यह तय हो गया है कि आज से एक वर्ष पहले विमुद्रीकरण के बाद तत्‍काल में जो स्‍थ‍िति बनी थीउससे भारत अब बाहर आ चुका है। यही कारण है कि विश्‍व बैंकनीति आयोग, अन्‍य आर्थ‍िक सर्वे आज एक स्‍वर  से लगातार कह रहे हैं कि आनेवाला वक्‍त भारतीयों के लिए अच्‍छे दिन लानेवाला है।

विश्व बैंक कह रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्‍तमंत्री अरुण जेटली ने भारत में आर्थ‍िक सुधारों की दिशा में जो जीएसटी और अन्य सुधारों को लेकर कदम उठाए हैं उससे भारत की अर्थव्यवस्था का स्तर बढ़ेगा। विश्वबैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रिस्टालीना जॉर्जिवा ने भारत में प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर चार गुना होने को एक असाधारण उपलब्धि बताया है और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत को 30 स्थान की जंप करने की असाधारण उपलब्‍धी बतायाउनका तो यहां तक कहना था कि 15 साल पहले शुरू हुई इस रैंकिंग में इतनी जंप देखने को उन्‍हें पहले कभी नहीं मिली है।

दूसरी ओर सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग है जिसका अपना काम करने का तरीका हैवह आज कह रहा है कि साल 2022 तक भारत गरीबीगंदगीभ्रष्टाचारआतंकवाद,जातिवाद और सांप्रदायिकतावाद से मुक्त हो जाएगा। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का मानते हैा कि यदि भारत 2047 तक 8 फीसद की ग्रोथ के साथ बढ़ता रहा तो यह दुनिया की तीन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक देश बन जाएगा।  नीति आयोग वर्तमान हालातों को लेकर जिस तरह से भविष्‍य के आंकड़े प्रस्‍तुत करता हैउससे यह भी पता चलता है कि साल 2022 तक भारत पूरी तरह से कुपोषण से मुक्त हो जाएगा। वर्ष 2019 तक प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत देश के हर गांव से सड़क संपर्क हो जाएगा । इसके अलावा साल 2022 तक भारत में 20 से ज्यादा वर्ल्ड क्लास हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूशन होंगे। देश मेंनोटबंदी के बाद फर्जी कंपनियों की पहचान आसान हुई और 2 लाख 24 हजार फर्जी कंपनियों को सरकार ने पिछले दिनों रद्द किया है। वहीं 16 सौ 26 करोड़ रुपयों की बेमानी संपत्ति जप्‍त कर ली गई है।

भारत में वास्तविक जीडीपी विकास की औसत दर पिछले तीन वर्षों में 7.5 फीसदी रही है। देश में आज मुद्रास्फीति कम है।  महंगाई काबू में है।  विदेशी मुद्रा का भंडार 400अरब डॉलर से अधिक पर पहुंच गया है।  विदेश प्रत्यक्ष निवेश लगातार जारी है और इसके साथ ही सरकार राजकोषीय घाटे पर लगातार नज़र रखे हुए है। भारत का चालू खाता घाटा नियंत्रण में हैयह फिलहाल सेफ जोन में है और 2 फीसदी से नीचे है। वास्‍तव में यह सब नोटबंदी के कारण संभव हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में चल रही केन्‍द्र सरकार के कार्यकाल में एक भी घोटाला नहीं हुआ है । विमुद्रीकरण के बाद ही आयकर दाताओं की संख्‍या में 26.6 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई। कश्‍मीर में पत्‍थरबाजी,नक्‍सलवाद और देहव्‍यापार में कमी आई है। इंश्‍योरेंस में बढ़ोत्‍तरी के साथ ही डिजीटल पेंमेंट में बढ़ोत्‍तरी हुई है। प्रधानमंत्री के द्वारा डिजिटल पेमेंट पर जोर देने का ही यह परिणाम है कि इस दिशा में अब 1000 करोड़ तक डिजिटल पेमेंट किया जा रहा है। इसका सबसे अच्‍छा फायदा यह हुआ है कि सरकार यदि गरीबों के लिए 1 हजार रुपए देती है तो वह सीधे उस तक 1 हजार रुपए ही पहुंचते हैंइस तरह बीच में बिचौलियों का खेल समाप्‍त करने का प्रयास हुआ है।  

यह सरकार की सकारात्‍मक नीतियां ही हैं जो आज घर खरीदना आसान हुआ है, क्‍योंकि बैंकों ने ब्‍याज दरें घटायी हैं। वेतन भुगतान के कानून में संशोधन किये जाने के बाद आज कर्मचारियों के खाते में सीधा भुगतान किया जा रहा है तो दूसरी तरफ पीएफ योजना में आज सक्रिय नियोजकों की संख्‍या बढ़कर 1 करोड़ 1 लाख हो गई है। जिसका सीधा अर्थ है कि अधिकांश कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को भविष्‍य निधि का लाभ देना शुरू कर दिया है। इसी प्रकार 1 करोड़ 3 लाख कर्मचारियों ने राज्‍य कर्मचारी बीमा में पंजीयन कराया है जिससे उनको सामाजिक सुरक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं का लाभ मिल रहा है।

मोदी सरकार की एक उपलब्‍ध‍ि यह भी है कि उनका रोजगार निर्माण पर पूरा ध्‍यान है अकेले मुद्रा योजना में दिये गये लोन से ही 4 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है। कई विदेशी कंपनियों के साथ स्‍टार्टअप में बढ़ोत्‍तरी तथा  अनेक नई कंपनियों ने कई लाख रोजगार का श्रजन आज भारत में किया है। आगे इस दिशा में आशा है कि सरकार के प्रश्रय से 50 लाख नौकरियां और पैदा होंगी । इस तरह से यदि देखें तो वर्तमान भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सफल नेतृत्‍व में तेजी से आर्थ‍िक शक्‍ति बनने की ओर अग्रसर है।

सुरक्षित भोज्‍य सामग्री देने वाले देशों में भारत ! डॉ. मयंक चतुर्वेदी

ज विश्‍वभर में सुरक्षित भोज्‍य सामग्री मिलना किसी चुनौती से कम नहीं है। दुनिया के कई देश आज भी कृषि में तमाम वैज्ञानिक अनुसंधान हो जाने के बाद इससे निजात नहीं पा सके हैं कि उन्‍हें पौष्‍ट‍िक आहार सहज रूप से प्राप्‍त हो सके। इस बीच भारत एक ऐसा देश है जहां विश्‍वभर की लगभग सभी जलवायु वर्षभर में कभी न कभी किसी न किसी कौने में अवश्‍य ही आती है। यानि की कश्‍मीर से लेकर कन्‍याकुमारी तक हर प्राकृतिक परिवर्तन को यहां महसूस किया जा सकता है। इसी को ध्‍यान में रखते हुए हाल ही में  खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र के निर्माता और वैश्विक नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत आमंत्रित किया 

वस्‍तुत: इस सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो वक्‍तव्‍य दियावह निश्‍चित ही वर्तमान भारत की आर्थ‍िक विकास की कहानी कहता है। उन्‍होंने कहा कि कृषि के क्षेत्र में भारत की शक्‍ति को विभिन्‍न और कई प्रकार से देखा जा सकता है। विश्‍व की दूसरी सबसे बड़ी कृषि योग्‍य भूमि और अधिकाधिक 127 विविध कृषि जलवायु क्षेत्रजो कि केले,आमगवापपीता और ओकरा जैसी फसलों के क्षेत्र में हमें वैश्विक नेतृत्‍व प्रदान करता है। चावलगेहूँ ,मछली फल और सब्जियों के उत्‍पादन के क्षेत्र में विश्‍व में हम दूसरे नम्‍बर पर हैं। साथ ही भारत एक बड़ा दूध उत्‍पादक देश है। पिछले दस वर्षों के दौरान हमारे बागवानी क्षेत्र ने प्रतिवर्ष औसतन 5.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज  की है।

सदियों से भारत ने हमारे खास मसालों की तलाश में आये दूरवर्ती देशों के व्‍यापारियों का स्‍वागत किया है। उनकी भारत यात्रा ने कई बार देश इतिहास निर्माण का कारण रही हैं। मसालों  के माध्‍यम से यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ हमारे व्‍यापारिक सहयोग विश्‍व विदित हैं। यहां तक कि क्रिस्‍टोफर कोलम्‍बस भी भारत के मसालों के प्रति आकर्षित था और अमरीका जाकर कहा था कि उसने भारत जाने का एक वैकल्पिक समुद्री मार्ग खोज लिया है। खाद्य प्रसंस्‍करण भारत की जीवन शैली है। यह दशकों से चला आ रहा है यहां तक कि छोटे घरों मेंआसानघरेलू तकनीकों जैसे खमीर से हमारे प्रसिद्ध आचारपापड़चटनी और मुरब्‍बा के निर्माण हुआ है जो अब दुनियाभर में विशिष्‍ट और आम दोनों वर्गों में प्रसिद्ध है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां सही कहते हैं कि भारत आज विश्‍व की तेजी से विकसित हो रही अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक है। वस्‍तु और सेवा कर या जीएसटी ने करों की बहुलता को समाप्‍त किया है। भारत ने विश्‍व व्‍यापार रैंकिंग में तीस रैंक का उछाल दर्ज किया है। यह भारत का अब तक का सबसे अच्‍छा प्रदर्शन है और इस साल किसी भी देश द्वारा अकों में की गई सबसे ऊंची छलांग है। वर्ष 2014 की 142 वीं रैंक से अब भारत टॉप 100 शीर्ष रैंकिंग पर पहुंच गया है। भारत को वर्ष 2016 में ग्रीनफील्‍ड निवेश में प्रथम स्‍थान प्राप्‍त हुआ था। वैश्विक नवाचार सूचकांकग्‍लोबल लॉजिस्टिक इंडेक्‍स और वैश्विक स्‍पर्धात्‍मक सूचकांक में भी भारत की स्थिति में तेजी से प्रगति हो रही है।भारत में नया व्‍यापार शुरू करना अब पहले के अपेक्षा अधिक सरल हो गया है। विभिन्‍न एजेन्सियों से क्‍लीयरेंस प्राप्‍त करने की प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है। पुराने कानूनों के स्‍थान पर नये कानूनों का निर्माण किया गया है और अनुपालन बोझ को कम किया गया है।

वस्‍तुत: यहां खाद्य प्रसंस्‍करण की बात करें तो सरकार ने परिवर्तनकारी पहलों की एक श्रृंखला शुरू की है। इस क्षेत्र में निवेश हेतु भारत अब एक सबसे अधिक पसंद किये जाने वाला देश है। यह हमारे मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में एक प्राथमिक क्षेत्र है। भारत में ई-कॉमर्स के जरिए व्‍यापार और खाद्य उत्‍पादों का निर्माण या पैदा करने के लिए भारत में 100 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी गई है। एकल खिड़की सहायता प्रकोष्‍ठ विदेशी निवेशकों को सहयोग प्रदान करता है। केन्‍द्र और राज्‍य सरकारों द्वारा आकर्षक वित्‍तीय पहल प्रारंभ की गई हैं। खाद्य और कृषि आधारिक प्रसंस्‍करण इकाईयों को ऋण प्राप्‍त करने को सरल बनाने और उसे किफायती दर पर प्राप्‍त करने के  लिए ऋण और कोल्‍ड चेन को प्राथमिक ऋण सेक्‍टर के तहत वर्गीकृत किया गया है।  

निवेशक बंधु  या इन्‍वेटर्स फ्रेंन्‍ड पोर्टल जिसे हमने हाल ही में शुरू किया है खाद्य प्रसंस्‍करण सेक्‍टर के लिए उपलब्‍ध केन्‍द्रीय और राज्‍य सरकार की नीतियों और प्रोत्‍साहन की जानकारी एक साथ उपलब्‍ध कराता है। यह प्रसंस्‍करण आवश्‍यकताओं के साथ स्‍थानीय स्‍तर पर संसाधनों को रेखांकित करता है। व्‍यापार नेटवर्किंगकिसानोंप्रसंस्‍करणकर्ताओं,व्‍यापारियों और लॉजिस्‍टिक ऑपरेटरों का एक मंच भी है। देश में आज मूल्‍य श्रृंखला के विभिन्‍न वर्गों में निजी क्षेत्र की सहभागिता में वृद्धि हुई है। हालांकिअनुबंध कृषिकच्‍चा माल प्राप्‍त करने और कृषि संबंधों के निर्माण में और अधिक निवेश की आवश्‍यकता है। कई अंतर्राष्‍ट्रीय कंपनियां भारत में अनुबंध खेती के लिए आगे आए हैं। भारत को एक प्रमुख आउटसोर्सिंग हब के रूप में देखने वाली वैश्विक सुपर मार्केट के लिए यह एक खुला अवसर है। एक ओर जहां फसल प्रबंधन के बाद के क्षेत्रों जैसे प्राथमिक प्रसंस्‍करण और भंडारणअवसंरचना संरक्षणकोल्‍ड चैन और रेफरीजरेटिड परिवहन में अवसर हैं वहीं दूसरी ओर आला क्षेत्रों जैसे जैविक और गढ़वाले भोजन में खाद्य प्रसंस्‍करण और मूल्‍य वर्द्धन हेतु विशाल संभावनाएं हैं

प्रधान मंत्री मोदी यह भी कहते हैं कि बढ़ते शहरीकरण और उभरते मध्‍यम वर्ग के कारण पौष्टिक और संसाधित भोजन की मांग बढ़ी है। भारत में एक दिन में ट्रैन की यात्रा के दौरान एक करोड़ से अधिक यात्री भोजन लेते हैं। उनमें से प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग का एक संभावित ग्राहक है। इस प्रकार के अवसर हैं जो कि उपयोग किये जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भोजन की गुणवत्‍ता और प्रकृति के बारे में वैश्विक स्‍तर पर लाइफस्‍टाइल डिसीज बढ़ रही हैं। कृत्रिम रंगोंरसायनों और पिजरवेटिव के इस्‍तेमाल को लेकर विरक्‍ति आई है। भारत समाधान उपलब्‍ध करा सकता है और एक विन-विन साझेदारी प्रस्‍तुत करता है।

आधुनिक तकनीकसंसाधन और पैकेजिंग के साथ परम्‍परागत भारतीय भोजन का जोड़ विश्‍व को हल्‍दीअदरक और तुलसी जैसे भारतीय खाद्य सामग्रियों के ताजा स्‍वाद और स्‍वास्‍थ्‍य लाभों को पुन: प्राप्‍त करने में सहायता कर सकता है। निरोधक स्वास्थ्य देखभाल के अतिरिक्त लाभों के साथ स्वच्छपौष्टिक और स्वादिष्ट संसाधित भोजन का सही मिश्रणयहां भारत में किफायती तौर पर तैयार किया जा सकता है।  भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यह सुनिश्चित करने में प्रयासरत है कि भारत में भारत में तैयार किये गये संसाधित भोजनअंतर्राष्‍ट्रीय मानकों के अनुरूप हो। कोडेक्‍स के साथ खाद्य अवयव मानकों का संयोजन और सुदृढ़ परीक्षण और प्रयोगशाला अवसंरचना का निर्माणखाद्य व्‍यापार हेतु एक समर्थ वातावरण तैयार करने का मार्ग प्रशस्‍त करेगा।

किसान जिन्‍हें हम सम्‍मान से अन्‍नदाता या भोजन देने वाला कहते हैं खाद्य प्रसंस्‍करण के हमारे प्रयासों के केन्‍द्र में हैं। पांच वर्षों के भीतर किसानों की आय को दोगुना करना हमारा एक घोषित लक्ष्‍य है और विश्‍वस्‍तरीय खाद्य प्रसंस्‍करण अवसंरचना के निर्माण हेतु प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना’ के नाम से एक राष्‍ट्र स्‍तरीय कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस पर लगभग पांच अरब डॉलर का निवेश होने और दो करोड़ किसानों को लाभ पहुंचने और अगले तीन वर्षों के दौरान पाँच लाख से अधिक रोजगार पैदा होने का अनुमान है। मेगा फूड पार्क का निर्माण इस योजना का एक मुख्‍य घटक है। यद्यपि इन फूड पार्कों के संबंध हमारा लक्ष्‍य है कृषि प्रसंस्‍करण क्‍लस्‍टर को मुख्‍य उत्‍पादन केन्‍द्र से जोड़ने का है। यह आलूअनानाससंतरा और सेब जैसी फसलों में वर्धित मूल्‍य प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करेगी। किसान समूहों को इन पार्कों में ईकाइंयां लगाने हेतु प्रेरित किया जा रहा है जिसके द्वारा अपव्‍यय और परिवहन लागत में कमी आएगी और नये रोजगार सृजित होंगे। ऐसे 9 पार्क पहले से ही कार्य कर रहे हैं और देश भर में तीस से अधिक पार्क प्रक्रिया में हैं।

समाज के अंतिम सिरे तक वितरण में सुधार के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुंच बढ़ाने के जरिए हम प्रशासन में सुधार कर रहे हैं। हमारी योजना एक निर्धारित समय सीमा के भीतर ब्राड बैंड कनेक्‍टिविटी के जरिये हमारे गांवों को जोड़ने की है। हम भू‍मि रिकार्डों का डिजिटलीकरण कर रहे हैं और लोगों को मोबाइल पर विभिन्‍न सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। सहयोगी और स्‍पर्धात्‍मक संघवाद की सच्‍ची भावना के साथ हमारी राज्‍य सरकारें प्रक्रियाओं को कार्यविधियों को सरल बनाने के लिए केन्‍द्र सरकार के साथ मिलकर प्रयासरत हैं। कई राज्‍य सरकारें निवेशषकों को आकर्षित करने के लिए आकर्षक खाद्य प्रंसस्‍करण नीतियों के साथ सामने आई हैं। मैं भारत के प्रत्‍येक राज्‍य अनुरोध करता हूं कि कम से कम एक विशेष खाद्य उत्‍पाद की पहचान करें। इसी प्रकार प्रत्‍येक जिला भी उत्‍पादन हेतु  कुछ खाद्य उत्‍पादों और विशेष खाद्य उत्‍पाद के रूप में एक उत्‍पाद का चयन करें।

प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि आजहमारा मजबूत कृषि आधार हमें एक विशाल प्रसंस्‍करण क्षेत्र का सृजन करने के लिए एक महत्‍वपूर्ण मंच उपलब्‍ध कराता है। हमारा व्‍यापक उपभोक्‍ता आधारबढ़ती आयअनुकूल निवेश पर्यावरण और व्‍यापार को आसान बनाने हेतु प्रतिबद्ध सरकार सभी मिलकर भारत को वैश्विक खाद्य प्रसंस्‍करण बिरादरी के लिए एक उपयुक्‍त स्‍थान बनाते हैं।भारत में खाद्य उद्योग का प्रत्‍येक उप क्षेत्र व्‍यापक अवसर उपलब्‍ध कराता है। मैं आपके सामने कुछ उदहारण रखता हूं।

डेयरी सेक्‍टर ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था के लिए एक व्‍यापक क्षेत्र के रूप में उभरा है। हमारा लक्ष्‍य दूध आधारित विभिन्‍न उत्‍पदों के उत्‍पादन स्‍तर में बढ़ोतरी करके इसे आगे ले जाने का है। शहद इंसानों को प्रकृति की ओर से एक उपहार है। यह कई कीमती उप- उत्‍पादों जैसे मधुमक्‍खी का मोम उपलब्‍ध कराता है। इसमें फार्म की आय बढ़ाने की क्षमता है। वर्तमान में शहद के उत्‍पाद और निर्यात में हमारा छठा स्‍थान है। भारत अब एक मीठी क्रांति की ओर बढ़ रहा है। भारत वैश्विक मछली उत्‍पादन में छह प्रतिशत का योगदान करता है। झींगा के निर्यात में हम विश्‍व के दूसरे बड़े देश हैं। भारत लगभग 95 देशों को मछली और मछली उत्‍पादों का निर्यात करता है। हमारा लक्ष्‍य ब्‍लू क्रान्ति के जरिये समुद्री अर्थव्‍यवस्‍था में एक बड़ी छलांग लगाने का है। हमारा ध्‍यान अप्रयुक्‍त क्षेत्रों जैसे कृत्रिम मछली पालन और सघन खेती का विकास करना है। हम नये क्षेत्रों जैसे मोती उत्‍पादन का विस्‍तार भी करना चाहते हैं। सतत विकास के प्रति हमारी प्रतिबद्धताजैविक खेती हेतू हमारी जिज्ञासा का मुख्‍य केन्‍द्र है। पूर्वोत्‍तर भारत में सिक्‍किम भारत का पहला पूर्ण रूप से जैविक राज्‍य बन गया है। समूचा पूर्वोत्‍तर क्षेत्र जैविक उत्‍पादन के लिए कार्यात्‍मक अवसंरचना निर्माण के लिए अवसर प्रस्‍तुत करते हैं।

भारतीय बाजारों में सफलता के लिएभारतीय खाद्य आदतों और स्‍वाद को समझना मुख्‍य आवश्‍यकता है। आपके उदहारण के लिए दूध आधारित उत्‍पाद और फ्रूट जूस आधारित पेय उत्‍पाद भारतीय खाद्य आदतों का एक स्‍वाभाविक अंग है। इसीलिएकार्बोनेटिड पेय पदार्थों के निर्माताओं को मेरी सलाह है कि वह अपने उत्‍पादों में पांच प्रतिशत फलों का रस मिलाने की क्षमता रखें। खाद्य प्रसंस्करण में पोषण सुरक्षा के समाधान भी हैं।उदहारण के लिए हमारे मोटे अनाज और बाजरा में उच्च पोषण तत्‍व है। वे प्रतिकूल कृषि-जलवायु परिस्थितियों का सामना भी कर सकते हैं। उन्‍हें पोषण समृद्ध और जलवायु समर्थ’ फसले भी कहा जा सकता है। क्‍या हम इन पर आधारित कोई उद्यम की शुरूआत कर सकते हैंयह हमारे कुछ गरीब किसानों की आय में वृद्धि करेगा और हमारे पौष्टिक स्‍तर को भी बढ़ाएगा। ऐसे उत्‍पाद की नि:संदेह विश्‍वभर में मांग बढ़ेगी।

क्‍या हम हमारी क्षमताओं को विश्‍व की आवश्‍यकताओं के साथ जोड़ सकते हैं क्‍या हम भारत के किसानों को विश्‍वभर के बाजार के साथ जोड़ सकते हैं?  ये कुछ ऐसे प्रश्‍न हैं जिनका उत्‍तर मैं आप पर छोड़ना चाहता हूं। मोदी कहते हैं कि मुझे विश्‍वास है कि वर्ल्‍ड फूड इंडिया इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने में मदद करेगा। साथ ही हमारी समृद्ध खाना बनाने की कला में मूल्‍यवान अंतदृष्टिकोण उपलब्‍ध कराएगा और खाद्य प्रसंस्करण के बारे में हमारे प्राचीन ज्ञान को उजागर प्रकाशमान करेगा।