: डॉ. मयंक चतुर्वेदी
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी दरें घटाने का जिस तरह से संकेत दिया है, उसके बाद लगने लगा है कि देश में जीएसटी लागू होने के बाद से जैसी परिस्थितियां केंद्र सरकार के विरोध में निर्मित हुई हैं, उनको सरकार बहुत ही गंभीरता से ले रही है। शायद सरकार को भी यह उम्मीद नहीं होगी कि इसके लागू होने के तीन माह बाद ही ऐसी स्थिति आ जाएगी कि सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक पुनर्विचार करना पड़े। वस्तुत: जब इसकी गहराई में जाएं तो स्थिति बहुत स्पष्ट हो जाती है। असल में आज हो यह रहा है कि देश में 1 जुलाई से टैक्स की नई व्यवस्था तो लागू कर दी गई, किंतु लोभियों पर कैसे लगाम लगे, इसकी पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई। परिणामस्वरूप देश का आम नागरिक जीएसटी के नाम पर पहले से ज्यादा लूटा जा रहा है और बदनाम केंद्र की मोदी सरकार हो रही है।
जीएसटी को लेकर देश में किस तरह का वातावरण निर्मित किया जा रहा है, इसके दो उदाहरण यहां दृष्टव्य हैं। जब देश का आम उपभोक्ता दाम अधिक मांगे जाने पर दुकानदार से पूछता है कि इतना दाम क्यों लिया जा रहा है, तो उसे दुकानदार बतलाता है कि इस पर जीएसटी लग गया है इसलिए दाम बढ़े हैं। यही बात जब एक उपभोक्ता से उसके केबल नेटवर्क वाले ने अचानक 50 रुपए की बढ़ोत्तरी करते हुए कही तो उपभोक्ता ने पलटकर सवाल किया-कितना लगा है जीएसटी? वह बोला 28 प्रतिशत । उसके बाद जब उससे फिर कहा गया कि टैक्स तो पहले भी लगता था अब एकदम 50 रूपए क्यों बढ़ाए? तो केवल नेटवर्क वाले का उत्तर था कि पहले 12 प्रतिशत था अब 28 हो गया। इस पर जब उससे कहा गया कि 28 प्रतिशत होने के बाद भी आपका 50 रुपए लेना नहीं बनता तो उस केबल नेटवर्क वाले का उत्तर था कि आपको जो देना है सो दे दीजिए। यह हुई एक जागरुक उपभोक्ता की बात, लेकिन क्या देश का हर नागरिक इतना ही जागरूक है?
इस के इतर दूसरा उदाहरण देखिए- कहा जा रहा है कि जीएसटी के कारण मऊ का हैण्डलूम साड़ी उद्योग बर्बाद हो गया। ऐसा प्रचारित करने वालों का तर्क है कि पहले जहाँ रोज़ाना 10-12 ट्रक साड़ियां मऊ से बाहर जाती थी, अब सिर्फ एकाध ट्रक ही बाहर जा रहा है। बताया जा रहा है, हैंडलूम की साड़ी पर सरकार ने 12 प्रतिशत तक टैक्स लगा दिया है। किंतु ऐसा बिल्कुल नहीं है, हैंडलूम की सस्ती साड़ियों पर जीएसटी है ही नहीं। सच यही है कि जीएसटी का हौव्वा बताकर देश में आज बहुत से व्यापारी जनता की जेब पर सीधा डाका डाल रहे हैं और जनता में दुष्प्रचार यह फैला रहे हैं कि मोदी सरकार ने देश को आर्थिक कमजोरी के रास्ते पर ढकेल दिया है। उसके सत्ता में आने के बाद से लगातार देश में महंगाई बढ़ रही है और जीएसटी लागू होने के बाद से देश की अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुजर रही है…वगैरह..वगैरह। ऐसा माहौल बनाने में कुछ मीडिया संस्थान और भाजपा संगठन तथा सत्ता से जुड़े यशवंत सिन्हा जैसे असन्तुष्टों का भी बहुत बड़ा हाथ है।
ऐसे में जीएसटी के ढांचे में सुधार की गुंजाइश को लेकर वित्तमंत्री अरुण जेटली की कही बात को अवश्य ही हमें समझना चाहिए। वे कह रहे हैं कि “रेवेन्यू न्यूट्रल” होने की स्थिति में दरें घटाएंगे। छोटे करदाताओं के लिए जेटली के संकेत अवश्य ही जहां राहत भरे हैं, अर्थात् सरकार जल्द ही छोटे करदाताओं को कागजी खानापूर्ति के बोझ से मुक्त करने की तैयारी में है। यहां वित्त मंत्री की इस बात पर अवश्य ही गौर किया जाना चाहिए कि ‘जो लोग देश के विकास की मांग करते हैं, मौका आने पर उन्हें उसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी।’ स्वभाविक है, विकास के लिए पैसों की जरूरत होती है, इसके संकेत अभी-अभी सरकार ने दिए भी हैं । सरकार टैक्स की चोरी करने वालों के प्रति और सख्त होगी। टैक्स अथॉरिटी आने वाले समय में सोशल मीडिया की मदद से टैक्स चोरों की पहचान करेगी। इसके लिए सोशल मीडिया ऐनालिटिक्स परियोजना का 650 करोड़ रुपए का ठेका लारसन एंड टूब्रो इन्फोटेक कंपनी को दिया गया है। वस्तुत: यह कंपनी टैक्स चोरी करने वालों को पकड़ने के लिए वेब पेज तैयार कर रही है, जो यह बता सकेंगे कि आपके पास कितना धन है, उस हिसाब से आप सरकार को कर अदा कर रहे हैं या नहीं। जिसके बाद आपकी जानकारी टैक्स अथॉरिटी को दे दी जाएगी।
इस सब के बीच हमें यह अवश्य ही जानना चाहिए कि भारत आज जीएसटी लागू कर दुनिया के उन 140 देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनमें जीएसटी पहले ही लागू है। भारत ने जीएसटी के कनाडियन मॉडल को चुना है, जिसमें डबल जीएसटी का मॉडल चलता है। डबल जीएसटी में केन्द्र और राज्य को कर वसूलने की शक्ति दी जाती है। वहीं यह भी सच है कि भारत में जो जीएसटी दर देश के आम उपभोक्ता से ली जा रही है, वह विश्व के कई देशों की तुलना में अधिक है जैसे कि फ्रांस और यूके में जीएसटी की दर 20 प्रतिशत है। अभी कनाडा में जीएसटी की दर 13 से 15 प्रतिशत के बीच है। न्यूजीलैंड में जीएसटी को 15 प्रतिशत की दर से तथा मलेशिया में जीएसटी की दर 6 प्रतिशत और सिंगापुर में जीएसटी की दर मात्र 7 प्रतिशत है। इसी प्रकार की स्थिति कम-ज्यादा जीएसटी लागू करने वाले अन्य देशों की है। जबकि इसके इतर भारत में जीएसटी की चार प्रभावी दरें 5, 12, 18 व 28 फीसदी तक रखी गई हैं। जिसमें कि चुनिंदा वस्तुओं पर कर के अलावा जीएसटी मुआवजा उपकर भी लगाया गया है।
इन्हीं सब तथ्यों के बीच वित्त मंत्री आज सही कह रहे हैं कि राजस्व सरकार की जीवन रेखा होती है। इसके माध्यम से ही देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र में तब्दील किया जा सकता है। एक बार बदलाव स्थापित हो जाएंगे, फिर हमारे पास सुधार के लिए जगह होगी। भारत में अप्रत्यक्ष करों से सरकार की कमाई बढ़ रही है।अर्थव्यवस्था भी विकास कर रही है इसीलिए हमने जरूरी चीजों पर सबसे कम टैक्स लगाने का फैसला किया है।
वस्तुतः जीएसटी की दरों को लेकर सरकार के समग्र विचार से लोगों में यह संदेश गया है कि सरकार आम लोगों, छोटे व्यापारियों की समस्याओं को लेकर संवेदनशील है और इसीलिए ही देश में आर्थिक मोर्चे पर आज आशा भी जगी है कि भविष्य में उन समस्याओं और आपत्तियों का कोई न कोई निदान खोज लिया जाएगा, जिनके लिए मोदी सरकार को व्यर्थ ही कटघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया जा रहा है।
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