डॉ. मयंक चतुर्वेदी
प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का राज्य-स्तरीय सम्मेलन 17-18 नवम्बर को भोपाल में आयोजित होने जा रहा है। इसे लेकर यहां तक तो ठीक है कि जिस परंपरा का आरंभ पिछले वर्ष ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन लघु उद्योग भारती के प्रयासों से हुआ है, उसे आगे सतत बनाए रखने के लिए इस वर्ष भी इस तरह का यह आयोजन राज्य में हो रहा है। सम्मेलन में आकर्षक प्रदर्शनी में राज्य के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमी अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के साथ ही वृहद उद्योगों एवं सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम भी यहां अपने स्टॉल लगाएंगे। सरकार उम्मीद कर रही है कि यह प्रदर्शनी वृहद उद्योगों एवं एमएसएमई उद्योगों के लिए एक ऐसा प्लेटफार्म होगा, जहाँ दोनों तरह की इकाइयों को आपसी संवाद के अवसर मिलेंगे। इन इकाइयों के बीच व्यापार की व्यापक संभावनाएँ बढ़ेंगी। किंतु जिस तरह की चिंताएं लघु उद्योग के सामने जीएसटी की जटिलता और राज्य में अब तक सिंगल विंडो सिस्टम पूरी तरह खड़ा न होने से बनी हुई है, ऐसे में क्या यह संभव है कि सरकार अपने जिन उद्देश्यों को लेकर यह आयोजन कर रही है वह सफल हो सकेगा ?
यहां राज्य सरकार प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का राज्य-स्तरीय सम्मेलन करने के पूर्व उद्यमी विकास योजना प्रशिक्षण का शुभारंभ भी करने जा रही है, जिसमें कि प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के शिक्षित युवाओं को स्वयं का उद्यम लगाने और उद्यमी बनाने के लिए एक माह का प्रशिक्षण दिया जाना है। प्रशिक्षण के बाद प्रदेश में प्रचलित योजनाओं के माध्यम से ऋण दिलाकर उद्यम स्थापित कराए जाने है। किंतु इस पर प्रश्न यही है कि क्या इन नए खोले गए उद्यमों की आगे चलते रहने की भी कोई गारंटी होगी ? यदि जीएसटी में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों को ध्यान में रखकर आवश्यक सुधार जीएसटी कांउन्सिलिंग द्वारा नहीं किए जाते हैं तो सच यही है कि प्रदेश में हो रहा यह सम्मेलन अपनी पूर्णता को प्राप्त करनेवाला बिल्कुल नहीं है।
लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र गुप्ता, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अजय नारंग और राष्ट्रीय सह महामंत्री सुधीर दाते जोकि मध्यप्रदेश के ही उद्यमी हैं, बार-बार केंद्र से लेकर राज्य सरकार के समक्ष सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमियों की चिंताओं को रख चुके हैं और निरंतर रख भी रहे हैं, लेकिन कहना यही होगा कि जितनी सफलता उन्हें अब तक मिलजानी चाहिए थी वह उनसे अभी भी बहुत दूर है।
वस्तुत: मध्यप्रदेश में ऐसे हज़ारों छोटे कारखाने हैं जिनकी सालाना कमाई 20 लाख से कम है और वे जीएसटी से बाहर हैं लेकिन वर्तमान में इन उद्योगों को कोई भी काम इसलिए देना नहीं चाहता क्योंकि इनके पास जीएसटी नंबर नहीं है। यदि यह जीएसटी का नंबर लेते हैं तो वह सरकारी व्यवस्था के झंझट में पड़ते हैं। जीएसटी में लेखा प्रणाली की जटिलता, बड़े उद्योगों के समान कर दर एवं इन्सेंटिव का बंद होना, कम्प्यूटर की अनिवार्यता जीएसटी रिटर्न में विभिन्न सूचनाएं जैसे स्टॉक विवरण, वेट वैल्यू, दोनों, विभिन्न प्रकार की सप्लाई में सप्लायर संबंधी अनेकों सूचनाएं बड़ी कम्पनियों के बराबर मांगी गई है। छोटे उद्यमियों के लिए इसकी एचसीएन कोड के अनुसार कर दरें समझ से परे हैं। अब तक छोटी इकाईयों के उत्पाद पर सरकार इन्सेंटिव के जरिये सहायता प्रदान कर रही थी, किंतु एक जुलाई से सभी छूट बंद हो चुकी है। वस्तुत: यह ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिनके कारण से प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों पर आज संकट के बादल छाए हुए हैं। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि जीएसटी काउंसिल स्वयं संज्ञान लेकर राहत प्रदान करे।
सरकार को यह समझना होगा कि लघु उद्यमी वन मैन आर्मी होता है। जैसे सरकार ने इनकम टैक्स में 6 प्रतिशत नेट प्रोफिट दिखाने पर लेखा संबंधी छूट दी हुई है। इसी प्रकार जीएसटी में भी 15 प्रतिशत ग्रोस प्रोफिट दिखाने वाले लघु उद्यमियों को वेट और वैल्यू दोनों की जगह केवल वैल्यू आधारित विवरणी प्रस्तुत करने की छूट दी जाए। इस संबंध में यहां सीधा कहना है कि मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया जीएसटी कांउन्सिल के सदस्य हैं, क्या वह सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के हित में केंद्र स्तर पर आवश्यक परिवर्तन कराएंगे ? यदि हां तो निश्चित ही इसका लाभ मध्यप्रदेश सहित समुचे देश को होगा।
देखाजाए तो सरकार को चाहिए कि वह इंटर स्टेट विक्रय को सरल बनाए, व्यवस्था ऐसी हो कि कम्पोजिट व्यवसायी भी अन्तरराज्यीय विक्रय कर सके। छोटे निर्माताओं को आरसीएम में छूट जारी रखी जाए। अंग्रेजी के साथ राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में भी विवरणी का ऑप्शन हो ताकि छोटे उद्यमी भी स्वयं विवरणी भर सके। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि मध्यप्रदेश में पहले एक खड़की योजना पर शीघ्र अमल हो, जिससे कि एक ही स्थान से सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों में आनेवाले लोग सरलता और सहजता से अपने सभी शासकीय कार्यों की खानापूर्ति करवा सकें। दूसरा यह कि मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया एवं स्वयं मुख्यमंत्री जीएसटी की जटिलताओं पर ध्यान देकर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उदाहरण सहित इससे जुड़ी समस्याओं से अवगत कराएं। एक देश एक कर कोई बुरा नहीं, किंतु इसमें पर्याप्त सुधार की आज भी आवश्यकता है। वस्तुत: तभी आगे चलकर इस तरह के प्रदेश में होनेवाले कार्यक्रमों की सफलता है, नहीं तो यह भी अन्य कई आयोजनों की तरह ही सिर्फ एक पूर्ति आयोजन बनकर ही रह जाएगा ? जिसका कोई भले ही राजनीतिक उद्देश्य निकलता हो लेकिन सामाजिक समृद्धि तो कतई नहीं होगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हाल ही में अमेरिका प्रवास से लौटे हैं, वे वहां एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता पर व्याख्यान के लिये वहां आमंत्रित किये गये थे । उनके अनुसार अब दुनिया में एकात्म मानववाद का विचार ही आशा का केन्द्र है। पं. दीनदयाल उपाध्याय का यह दर्शन वह भी जानते हैं कि पूंजीवाद का समर्थन नहीं करता और विकास में पीछे छूट चुके अंतिम व्यक्ति की चिंता की सीख देता है। आज सोचनीय यही है कि क्या मध्यप्रदेश में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के स्तर पर यह सोच दिखाई दे रही है ?
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