रविवार, 30 जुलाई 2017

चीनी सामान को क्‍यों न अलविदा कह दिया जाए ? डॉ. मयंक चतुर्वेदी

से लालच की कौन सी पराकाष्‍ठा माना जाए ?  कुछ समझ नहीं आता । चीनी सामान के प्रति हमारी भक्‍ति किस स्‍तर तक है, इसका एक बड़ा उदाहरण जबलपुर में बनी बोफोर्स तोप के स्वदेशी संस्‍करण धनुष में सीधेतौर पर देखने को मिला है। जिसमें कि देश के साथ सुरक्षा के स्‍तर पर भी कर्तव्‍यनिष्‍ठ स्‍वदेशवासियों ने गंभीरता से विचार नहीं किया। लालच की यह पराकाष्‍ठा निश्‍चित ही अशोभनीय और देशद्रोह जैसा कर्म तो है ही, किंतु इसके साथ यह इस विचार के लिए भी प्रेरित करता है कि आखिर हम भारतीयों को हो क्‍या गया है ?  जिनके लिए जननी और जन्‍म भूमि स्‍वर्ग से भी महान रही है और है। (रावण के निधन के बाद श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं: अपि स्वर्णमयी लंका मे लक्ष्मण न रोचते, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । वाल्मीकि व अध्यात्मरामायण में तो नहीं, किंतु अन्‍यत्र किसी अन्‍य रामायण में उल्‍लेखित)

भारतीय सीमाओं पर चीन हमें आँखे दिखा रहा है। भारत के 43 हजार 180 वर्ग किलोमीटर पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस भू-भाग में वर्ष 1962 के बाद से हमारी भूमि का 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन के कब्जे में है। इसके अतिरिक्त 2 मार्च 1963 को चीन तथा पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित तथाकथित  चीन-पाकिस्तान 'सीमा करार' के अंतर्गत पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर के 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अवैध रूप से चीन को दे दिया था ।

चीन किस तरह से हमें मूर्ख बनाता है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि लोकसभा में प्रस्‍तुत दस्तावेजों में विदेश मंत्रालय ने स्‍वीकारा कि वर्ष 1996 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति च्यांग चेमिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली के कदम के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ।  जून 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में से प्रत्येक ने इस बारे में विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने पर सहमति जताई थी ताकि सीमा मुद्दे के समाधान का ढांचा तैयार करने की संभावना तलाशी जा सके । उसके बाद इस विषय पर अब तक दोनों पक्षों की कई बैठकें हो चुकी है लेकिन चीन सीमा विवाद पर भारत के आगे होकर लाख सकारात्‍मक प्रयत्‍नों के बाद भी कोई प्रगति होने नहीं देना चाहता। वह तो कश्‍मीर से लेकर अरुणाचल तक जहां-जहां चीन के साथ भारतीय सीमाएं लगती हैं, कई किलोमीटर अंदर भारतीय क्षेत्र पर भी अपना कब्‍जा बता रहा है। उल्‍टे हमें ही कहता है कि फलां क्षेत्र पर भारत ने कब्‍जा जमा रखा है, उसे भारत शांति के साथ चीन को सौंप दे। यानि कि उल्‍टा चोर कोतवाल को डांटे (एक कहावत) यहां चरितार्थ हो रही है। दूसरी ओर व्‍यापार के नाम पर हम इतने लालची हैं कि थोड़े से मुनाफे के लिए चीन का बहुतायत माल खरीदकर उसकी आय में रात-दिन बढ़ोत्‍तरी करने में लगे हैं।

पिछले वर्ष एक आंकड़ा आया था, उसके अनुसार भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 46.56 बिलियन डॉलर (3 लाख करोड़ रुपए) तक जा पहुंचा था। चीन का भारत में निर्यात वर्ष 2016 के वित्त वर्ष में 58.33 बिलियन डॉलर था। 2015 के मुकाबले निर्यात में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। दूसरी तरफ भारत का चीन में निर्यात 12 प्रतिशत गिरकर 11.76 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचा था। वर्ष 2017 साल के पहले 4 महीने में व्यापार घाटा 14.88 अरब डॉलर रहा। बीते साल कुल व्यापार घाटा लगभग 52 अरब डॉलर का रहा था, जबकि कुल द्विपक्षीय व्यापार 70 अरब डॉलर से कुछ अधिक का रहा।

वस्‍तुत: यहां इससे सीधेतौर पर समझा जा सकता है कि भारत को कितना अधिक व्यापार घाटा हुआ है और निरंतर हो रहा है। कुछ अर्थप्रधान लालची विद्वान यह कहकर इस विषय की गंभीरता को समझना नहीं चाहते कि चीन के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत है। अगर चीनी माल का भारत में बहिष्कार हो भी जाता है तो उससे चीन की अर्थव्यवस्था पर इतना असर नहीं पड़ेगा जिसे दबाव बनाकर भारत अपनी बात मनवा सके। किंतु क्‍या यह पूरा सच है ? इसके पीछे के सच को भी जानना चाहिए। भारत में जो 2 प्रतिशत निर्यात की बात कही जाती है, वह पूरी तरह सच नहीं, क्‍योंकि जितना माल कानूनी स्‍तर पर 1 नम्‍बर में चीन से भारत आता है, उससे कई गुना अधिक चीनी माल भारत की सीमाओं में अवैध रूप से आता है । इसलिए भले ही चीनी माल के बहिष्कार का वहां की अर्थव्यवस्था पर तुरंत कोई असर न पड़े लेकिन इसका असर बाद में बहुत व्‍यापक स्‍तर पर दिखेगा, यह तय मानिए।

वस्‍तुत: चीन अपने व्‍यापारिक माल के जरिए ही 21वीं सदी में महाशक्ति के रूप में उभरना चाहता है,  इसलिए वह अपने इस स्‍पप्‍न को इन दिनों 'वन बेल्ट वन रोड' के जरिए साकार करने में लगा है । इसके जरिए चीन आर्थिक तरीके से दुनिया पर राज करने का प्लान बना रहा है। जिसका कि पिछले दिनों मोदी सरकार ने विरोध किया था। किंतु इस सब के उपरान्‍त भी सरकार को यह समझना ही होगा कि वह अपनी निर्भरता क्‍यों चीन के सामने बनाए रखना चाहती है। क्‍या जरूरत है, सरकार को उसके सामने व्‍यापारिक हितों के नाम पर खड़े होने की ? यह इसीलिए भी कहा जा रहा है, क्‍योंकि आज जिस मोदी सरकार ने चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' नीति का विरोध किया है, उस मोदी सरकार के लिए बहुत अच्‍छा तब ओर होता जब वह चीन से पेट्रोल, डीजल का आयात करने से भी बचती। पहली बार ही सही किंतु इसी वर्ष मार्च 2017 तत्‍कालीन चालू वित्‍तवर्ष के नौ माह में चीन से 18,000 टन पेट्रोल और 39,000 टन डीजल का आयात किया गया। जिसे कि स्‍वयं पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में स्‍वीकार्य किया । हालांकि उन्‍होंने दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उपभोक्ता देश भारत के खपत के बड़े अंतर को देखते हुए यह निर्णय लिए जाने की बात कही थी । किंतु इसी के साथ देश को यह भी जानना चाहिए कि भारत में पेट्रोल और डीजल का कुल उत्पादन घरेलू खपत से ज्यादा है । इसी समय के अंतराल में अप्रैल से दिसंबर 2016 अवधि में देश में 2.71 करोड़ टन पेट्रोल का उत्पादन किया गया, जबकि इस दौरान खपत 1.80 करोड़ टन रही। जहां तक डीजल की बात है इसका घरेलू उत्पादन 7.65 करोड़ टन और खपत 5.72 करोड़ टन रही थी ।

इस सब के बीच सच तो यह भी है कि हमारे पास चीन के अलावा भी तमाम विकल्‍प मौजूद हैं । जब आवश्‍यकता के अनुरूप भारत में पिछले चालू वित्त वर्ष अप्रैल से दिसंबर अवधि में कुल मिलाकर 8,20,000 टन डीजल का और 4,76,000 टन पेट्रोल का आयात किया गया।  इन नौ महीनों में सिंगापुर के मुकाबले यूएई ने सबसे अधिक 2,43,000 टन पेट्रोल की आपूर्ति की गई थी और डीजल में भी यूएई से सबसे अधिक 3,80,000 टन डीजल आयात किया गया था, जबकि सिंगापुर से 1,69,000 टन पेट्रोल आयात किया गया था। फिर चीन की ओर देखने का औचित्‍य क्‍या है ? यानि कि इतने अधिक विकल्‍प होने के बाद भी हमारा चीन की ओर देखना कहीं न कहीं हमारी राष्‍ट्रभक्‍ति पर भी प्रश्‍नचिह्न खड़े करता है।

वस्‍तुत: इस संदर्भ में राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और उससे जुड़े कई संगठन जो बार-बार चीनी सामान के बहिष्कार की मांग दोहराते आए हैं, प्रयोग के तौर पर वे अपने स्‍तर पर चीनी माल के इस्‍तेमाल से भी बचने का भरसक प्रयत्‍न करते रहे हैं, और समय-समय पर अपने स्‍वयंसेवकों को चीनी सामान के बहिष्कार करने का संकल्प दिलाते हैं। उसे पूरे देश को समझना होगा। यह केवल स्‍वदेश प्रेम से ही नहीं जुड़ा है, यह इसलिए भी जरूरी है कि 500 अरब डालर के अनुमानित नकली और पायरेटेड वस्तुओं के वैश्विक आयात में 63 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ चीन शीर्ष पर है। हमारे मुल्क को चीन घटिया ही नहीं, कई जहरीले उत्पाद भी निर्यात कर रहा है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओइसीडी) की रिपोर्ट से भी यह प्रमाणित हो चुका है।  ओइसीडी ने अपने अध्ययन में यह भी माना है कि हैंडबैग व परफ्यूम से लेकर मशीनों के कलपुर्जे तथा रसायनों तक, सब के नकली उत्पाद बन रहे हैं। यानि की जिस कंपनियों के विदेशी लेवल लगे होने पर भारतीय उपभोक्‍ता बड़े ही शान से माल खरीद रहे हैं, अधिकांश में वह उसे खरीदकर ठगे जा रहे हैं। क्‍यों कि उन्‍हें चीन बना रहा है और उनकी खरीदारी का भारत सबसे बड़ा बाजार है। वास्‍तव में चीन हमें दो तरह से ठग रहा है, हम सस्‍ते के चक्‍कर में भी ठगे जा रहे हैं और महंगी चीजों में चीन का बना नकली सामान लेकर भी धोखा खा रहे हैं।

चलो, देश इस धोखे को भी झेल लेगा, किंतु क्‍या इससे भी मुंह मोड़ा जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के बाजार में चीनी उत्पादों की सस्‍ती बाढ़ आने से इसका बुरा असर देसी उत्पादकों पर पड़ा है। कई छोटी इकाइयों पर चीनी उत्‍पादनों के कारण ताले लग चुके हैं। कई बड़ी इकाइयां अपने उत्पाद बनाने के लिए दूसरे विकल्पों को तलाश रही हैं जिससे कि चीनी माल से मुकाबला किया जा सके। इस अंतर्विरोध का जो सबसे दुखद पक्ष है वह यही है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया पर जोर दे रहे हैं तो दूसरी ओर केंद्र व राज्‍यों के कई विभाग हैं जोकि अपनी पूर्ति चीन के सामान से करने में लगे हुए हैं। वस्‍तुत: आज भी भारतीय परियोजनाओं के लिए अस्सी फीसद ऊर्जा संयंत्रों के उपकरण चीन से मंगाए जा रहे हैं। यह एक अकेला मामला नहीं, ऐसे तमाम विभाग और परियोजनाएं गिनाई जा सकती हैं।

इस पर अंत में इतना ही कहना है कि चीनी समान के प्रति हमारी भक्‍ति जब तक नहीं टूटेगी और हम यह नहीं देख और समझ पाएंगे कि आखिर मेरे देश के हित में क्‍या है, तब तक भारत भक्‍ति के लाख प्रयत्‍न कर लिए जाएं, प्रधानमंत्री मोदी मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के अभियान को सफल बनाने के लिए अपना संपूर्ण अस्‍तित्‍व झोंक दे। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जैसे तमाम संगठन अपना सर्वस्‍व समर्पण मातृभूमि के लिए कर दें लेकिन उनके यह प्रयत्‍न सफल नहीं होने वाले हैं। देश में बोफोर्स तोप के स्वदेशी संस्‍करण धनुष जैसी सुरक्षा के स्‍तर पर भी लालच की पराकाष्‍ठा देशद्रोह जैसा कर्म होता रहेगा । वस्‍तुत: देश के प्रत्‍येक नागरिक को इस विषय पर गंभीरता से एक बार अवश्‍य विचार करना चाहिए।

प्रेम का कुचक्र : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

प्रेम शब्‍द आनन्‍द की अनुभूति कराता है। प्रेम समर्पण का प्रतीक है। प्रेम का आशय सीधे तौर पर त्‍याग है।  प्रेम प्रतिउत्‍तर में कोई अपेक्षा नहीं करता, वह तो सिर्फ देने में और सतत देते रहने में ही अपना विश्‍वास करता है। प्रेम में त्‍याग का उदाहरण कैसा होता है, इसे सूरदास कुछ यूं समझाते हैं - प्रीति करि काहू सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों आपै प्रान दह्यो।। अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों¸ संपति हाथ गह्यो। सारंग प्रीति करी जो नाद सों¸ सन्मुख बान सह्यो।। हम जो प्रीति करी माधव सों¸ चलत न कछू कह्यो। जब एक दीपक से पतंग को प्रेम हो जाता है तो वह उसके लिए अपने प्राण त्‍यागने में संकोच नहीं करता । किंतु इसके साथ सत्‍य यही है कि प्रेम में पतंग और दीपक दोनों ही अपने सत्‍य को जानते हैं। दोनों ही अपने स्‍वभाव के अनुरूप व्‍यवहार करते हैं। पर अंत तक सत्‍य पर अडिग रहते हैं।

जब किसी स्‍त्री को या पुरुष को प्रेम होता है, तब फिर उसे कोई ज्ञान दे, तो उसका उत्‍तर कुछ इस तरह का होता है, जैसे की गोपियां उधो को देती हैं, उधो, मन न भए दस बीस।एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥ सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस। स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥ तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस। सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥

अर्थात् मन तो हमारा एक ही है, दस-बीस मन तो हैं नहीं कि एक को किसी के लगा दें और दूसरे को किसी और में। अब वह भी नहीं है, कृष्ण के साथ अब वह भी चला गया।..गोपियां कहती हैं,यों तो हम बिना सिर की-सी हो गई हैं, हम कृष्ण वियोगिनी हैं, तो भी श्याम-मिलन की आशा में इस सिर-विहीन शरीर में हम अपने प्राणों को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं वास्‍तव में प्रेम के पथिक का भी कुछ यही हाल होता है। किंतु सोचनेवाली बात यह है कि जब प्रेम के नाम पर पान्‍थिक धोखा किया जाए। जिसे की दूसरा एक नाम दिया गया है लव जिहाद, तब अवश्‍य ही प्रश्‍न खड़े हो जाते हैं, आखिर इस प्रेम के पीछे की सच्‍चाई इतनी अधिक कड़वी क्‍यों है कि वह अपने साथ कई लोगों को सिर्फ दुख एवं अवसाद के अतिरिक्‍त अन्‍य कुछ और नहीं देती है।

सत्‍य पुरुष और श्रेष्‍ठ पुरुष के बारे में संस्‍कृत वांग्‍मय में आया है कि यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा  क्रियाः । चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ॥ इसके अर्थ को समझें तो अच्छे लोगों के मन में जो बात होती है, वे वही बोलते हैं और ऐसे लोग जो बोलते हैं, वही करते हैं. सज्जन पुरुषों के मन, वचन और कर्म में एकरूपता होती है। किंतु जब इस प्रेम में कपट हो, धोखा हो, संदेह हो, अविश्‍वास हो, स्‍वार्थ हो, लालच हो तब फिर यह प्रेम न सूरदास सा प्रेम रहता है और न ही राधा और मीरा, रैदास की तरह पवित्र प्रेम रहता है। वस्‍तुत: प्रेम तो सत्‍य पर ही  आधारित है, इसलिए इसे अंत तक सत्‍य पर ही अडिग रहना होता है। लेकिन क्‍या ऐसा व्‍यवहार में हो रहा है ? तो कहा जाएगा, नहीं ऐसा नहीं हो रहा है। आज देश में अधिकांश जन इस पान्‍थ‍िक स्‍वार्थ प्रेरित प्रेम पर बोलने से बचते हैं, कहीं उनकी धर्मनिरपेक्षता खतरे में न आ जाए ?  किंतु सत्‍य यही है कि जब त‍क इस विषय पर खुलकर नहीं बोला जाएगा, तब तक इससे संबंधित बुराइयाँ सुधरनेवाली नहीं हैं।

देश में वर्तमान में इस कुचक्रपूर्ण प्रेम का जो स्‍वरूप दिखाई दे रहा है, वह इतना भयावह है कि उसकी सत्यता जानने के बाद लगता है कि जितनी जल्‍दी इसे रोका जाए, उतना ही यह देश के बहुसंख्‍यक समाज के हित में होगा। इस पर कहा तो यह भी जा सकता है कि यह न केवल हिन्‍दू समाज के हित में है बल्कि यह मानवता के हित में भी है। क्‍योंकि अपनी जनसंख्‍या का घनत्‍व बढ़ाने के लिए प्रेम के नाम पर किसी स्‍त्री पर अत्‍याचार करना पूरी तरह पांथि‍क रूप से ही गलत नहीं मानवीयता के रूप में भी विद्रूपित है। लव जिहाद के विवादित मामले में दो वर्ष पूर्व इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट ने कहा कि इस्लाम में आस्था और विश्वास के बिना मुसलमान युवक से शादी के लिए गैर-मुस्लिम युवती के धर्म परिवर्तन को वैध नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह की शादियां कुरान के सुरा-2 आयत 221 के खिलाफ हैं। इसी प्रकार से इसाईयत भी कहती है। किंतु व्‍यवहार में ठीक इसके विपरीत हो रहा है। प्रेम करना बुरा नहीं है। लेकिन वह सत्‍याधारित तो हो ? अब तक उत्‍तरप्रदेश के सहारनपुर, शामली और मुजफ्फर नगर इलाकों में पिछले कई सालों से लगातार 'लव जिहाद' के 'वेरिफाइड' मामले सामने आए हैं, जिनकी संख्‍या हजारों में है। इसी प्रकार मध्‍यप्रदेश के भोपाल शहर का हाल है। हिमाचलप्रदेश, झारखण्‍ड और बिहार, पश्‍चिम बंगाल से लेकर दक्षिण के कई प्रदेशों के साथ यही बात देश के उन अन्‍य नगरों एवं महानगरों में लागू होती है जहाँ हिन्‍दुओं के अलावा इस्‍लाम एवं ईसाईयत पर विश्‍वास व्‍यक्‍त करने वालों की संख्‍या ज्‍यादा मात्रा में है।

भोपाल में प्रकाश में आया अभी का इससे जुड़ा हालिया मामला यह सोचने पर अवश्‍य विवश करता है कि प्रेम के नाम पर आदमी धोखा क्‍यों दे रहा है ? गौतम नगर थाने पहुंची एक महिला ने शादी के एक महीने के अंदर ही पति के खिलाफ धोखा देकर शादी करने और दहेज के लिए प्रताड़ित करने का मामला दर्ज कराते हुए सीधे शब्‍दों में कहा,  'सर! इसने मुझे धोखा दिया है। अपना धर्म बदलकर अपने आप को ब्राह्मण बताकर मुझसे शादी की। बाद में मालूम हुआ कि वह शर्मा नहीं मि‍स्‍टर मार्टिन एक ईसाई है। 
 
यह कोई एक मामला नहीं है। देशभर में चर्चा में रांची का तारा सहदेव लव-जिहाद मामला अभी भी लोगों को याद है, जिसमें कि रकीबुल हसन द्वारा तारा पर इस्लाम धर्म अपनाने का इस हद तक दबाव बनाया गया था कि उसके चुंगल से बाहर आना असंभव जैसा हो गया था । यदि वह नेशनल शूटर नहीं होती तो हो सकता है कि मामला कभी इतने बड़े स्‍तर पर प्रकाश में ही न आ पाता । तारा शाहदेव के पति रंजीत सिंह कोहली (रकीबुल हसन) पर पत्‍नी को प्रताड़ित करने के मामले में जांच कर रही सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की है। उसमें कई बातें सामने आई है। सीबीआई के अनुसार, रकीबुल और उसकी मां तारा शाहदेव से जबरन इस्‍लाम धर्म कबूल करवाने पर अड़े थे। तारा की सास ने उससे साफ कह दिया था कि, अगर इस्‍लाम कबूल नहीं किया तो तुम्‍हारा बिस्‍तर वही रहेगा लेकिन मर्द बदलते रहेंगे। तारा के सिंदूर लगाने पर भी पाबंदी थी। रकीबुल और उसकी मां सिंदूर लगाने पर हाथ-पैर तोड़ने की धमकी देते थे। तारा ने बताया, रंजीत उर्फ रकीबुल हसन उसे विवाह के लिए प्रभावित करने के कई हथकंडे अपनाता था। वह अफसरों के साथ महंगी गाड़ियों में शूटिंग रेंज पर आता और खुद को बेहतर इंसान दिखाने की हर संभव कोशिश करता था। आज तारा जैसी कई ताराएं देशभर में मौजूद हैं जो नितरोज लवजिहाद के चंगुल में फंस रही हैं। पिछले वर्ष मंगोलपुरी क्षेत्र में रहनेवाली एक युवती ने ‘लव जिहाद’ से बचने के लिए अपनी जान दे दी। आत्महत्या से पहले लिखी चिट्ठी में जो कुछ उसने लिखा है, उससे साफ हो जाता है कि, युवती प्रेमी से बहुत तंग आ गई थी।
 
वस्‍तुत: कहना यही है कि जब प्रेम हो तो वह सशर्त न हो । वह पान्‍थ‍िक केनवास से बंधा न हो । जब इस तरह का प्रेम प्रसंग सामने आता है तो निश्‍चित रूप से उसमें से षड्यंत्र की बू आती है। प्रेम तो भ्रमणगीत जैसा होना चाहिए, जिसमें अपने प्रिय के मिलने और बियोग दोनों ही स्‍थ‍िति में निसि दिन बरषत नैन हमारे, सदा रहति बरषा रितु हम पर जब तें स्याम सिधारे॥ दृग अंजन न रहत निसि बासर कर कपोल भए कारे। कंचुकि पट सूखत नहिं कबहूं उर बिच बहत पनारे॥ आंसू सलिल भई सब काया पल न जात रिस टारे।
 
इस पद में श्री कृष्‍ण को यादकर गोपियां कहती हैं कि हे कन्हाई! तुम्‍हारी याद में हमारे नयन नित्य ही वर्षा के जल की भांति बरस रहे हैं अर्थात् तुम्हारे वियोग में हम दिन-रात रोती रहती हैं। रोते रहने के कारण इन नेत्रों में काजल भी नहीं रह पाता अर्थात् वह भी आंसुओं के साथ बहकर हमारे कपोलों (गालों) को भी श्यामवर्णी कर देता है। हे श्याम! हमारी कंचुकि (चोली या अंगिया) आंसुओं से इतनी अधिक भीग जाती है कि सूखने का कभी नाम ही नहीं लेती। फलत: वक्ष के मध्य से परनाला-सा बहता रहता है। इन निरंतर बहने वाले आंसुओं के कारण हमारी यह देह जल का स्त्रोत बन गई है, जिसमें से जल सदैव रिसता रहता है। वास्‍तव में यही तो सच्‍चा प्रेम है, और प्रेम की उच्‍चावस्‍था भी । काश, यह सभी ठीक से समझ लें तो कितना अच्‍छा हो ! देश में कहीं लवजिहाद न हो।