दो विद्वान, दोनों ही इस्लाम के उम्दा जानकार । दोनों का एक विषय पर स्वर भी एक कि उन्हें कभी हिन्दुओं से कोई दिक्कत नहीं हुई। हिन्दुओं ने हमेशा इज्जत और प्यार दिया है। पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सुलह का फार्मूला देने वाले मौलाना सैयद सलमान हुसैनी नदवी आज दोनों ही यह बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य कर रहे हैं। कहने को लोग कह सकते हैं कि ये दोनों न्यायालय के बाहर से राममंदिर निर्माण का रास्ता सुझाने के लिए अब तक लगातार प्रयास करते हुए अपने मुस्लिम भाईयों के बीच इस बात की सहमति बनाने के लिए प्रयास करते रहे हैं कि भगवान राम का भव्य मंदिर यदि विवादास्पद स्थान पर बन जाता है तो उसमें हर्ज ही क्या है? लेकिन इस्लाम के अपने नियम और कानून है, जिसके ऊपर कोई नहीं।
हमने अभी हाल ही में देखा और समझा भी कि किस तरह से एआईएमआईएम प्रमुख और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने सीधे शब्दों में एक टूक बताया कि अयोध्या मुद्दे पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। बाबरी मस्जिद के बारे में, यह स्पष्ट रूप से समझ लिया जाए कि एक बार जब मस्जिद बन जाती है तो अनंतकाल तक यह मस्जिद रहती है। विवादित भूमि पर कोई समझौता नहीं होगा। मस्जिद मुद्दे पर समझौता करने वाले लोग अल्ला के सामने जवाबदेह होंगे। अंतत: ओवैसी जो कहते हैं, उनके इस विचार की जीत भी हुई, इस विवाद का सार्थक हल सुझाने के लिए प्रयासरत थे वे मौलाना सैयद सलमान हुसैनी नदवी को आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। नदवी एक्जिक्यूटिव मेंबर के पद से बर्खास्त कर दिए गए और बोर्ड ने अपनी 26वीं सालाना बैठक में अपना पुराना रुख दोहराते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहेगी। मुसलमान उस मस्जिद के बदले कहीं और जमीन नहीं ले सकते हैं। मस्जिद को न तो गिफ्ट किया जा सकता है, न बेचा जा सकता है और न शिफ्ट किया जा सकता है।
ऐसा तो नहीं है कि कोई मस्जिद का ढांचा पहली बार ढहा हो। दुनिया के अंदर कई देश ऐसे हैं जहां मस्जिदें विकास के लिए समय-समय पर तोड़ी जाती रही हैं, किंतु वहां तो अब तक कोई इस प्रकार का विवाद देखने को नहीं मिला, जैसा कि भारत में एक बाबरी ढांचे को लेकर बनाए रखा गया है। वस्तुत: ओवैसी और उनके साथ इस मत पर विश्वास करनेवाले आज कितना सच बोल रहे हैं, वह सऊदी अरब जहां इस्लाम का जन्म हुआ और दुनियाभर के इस्लामिक लोग अपनी धार्मिक यात्रा करने यहां एक बार अवश्य पहुँचते और जाने की मंशा रखते हैं कि स्थिति से पता चलता है।
सऊदी अरब में अब तक विकास के लिए और अपनी योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए कई मस्जिदें समय-समय पर ढहाई गई हैं। प्रश्न यह है कि क्या वह अल्ला की जमीन नहीं थी, जब मस्जिद को स्थान्तरित किया ही नहीं जा सकता तो इस्लाम के जन्म स्थान से इन्हें क्यों अलविदा कहा गया ? मदीना के कई ऐतिहासिक मस्जिदों में जिनमें मस्जिद-ए-सलमान फारसी, मस्जिद-ए-रजत अल समस को ज़मींदोज किया जा चुका है और वह मस्जिद जिसमे मुहम्मद साहेब ने पहली ईद की नमाज पढ़ी वह मस्जिद-ए-ज़मामा भी ध्वस्त होने वाली है। इस संबंध में गल्फ इंस्टिट्यूट का मानना है की गत 25 वर्षों में लगभग 300 से अधिक ऐतिहासिक मस्जिदों को और कब्रों को सऊदी अरब में नेस्तानावुद किया गया है जो पैगम्बर की बीबियों और उनके अन्य परीज़नों की थी। आज वहाँ पांच सितारा और सात सितारा होटल शापिंग माल एवं बाज़ार सहित पार्किग स्थल बन चुके हैं और कुछ पर यह बन रहे हैं।
वस्तुत: इसमें जो समझनेवाली बात है, वह यही है कि इस्लाम की धरती पर ही ऐतिहासिक मस्जिदों और पवित्र कब्रों को हटाया गया और निरंतर हटाया जा रहा है, लेकिन अब तक कोई बवाल वहां के आम नागरिकों ने नहीं किया और न ही वहां का मिडिया एवं इस्लामी विद्वान इसके विरोध में खड़े हुए। इसके अलावा न ही कोई इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) जैसा संगठन वहां इसका विरोध करने सामने आया है। जिसके ठीक विपरीत भारत में बोर्ड कह रहा है कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में अपील को भी सभी संसाधनों को जुटाकर पूरे जोरशोर से लड़ा जाएगा। यानि की जो अयोध्या राम मंदिर-बाबरी ढांचा विवाद है, उच्चतम न्यायालय की भावनानुसार बोर्ड उसे आपसी सहमति से कभी हल करना ही नहीं चाहता है।
तो क्या यह मंदिर-मस्जिद विवाद हमेशा भारत में मौजूद रहेगा? यह वह प्रश्न है जो आज इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की हाल ही में हुई बैठक के बाद खड़ा हो गया है। इसका तो अप्रत्यक्ष मतलब यह भी है कि जो आवाजें मुसलमानों में से सभी धर्म-पंथ सद्भाव और समन्वय की उठेंगी, उसे दबा दिया जाएगा? वस्तुत: यहां ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि ऐसा बार-बार इस्लाम के लोगों के बीच क्यों होता है कि उनमें जो धारा सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास करती है, वह मुख्यधारा से तुरंत बाहर कर दी जाती है? जबकि पहले तो खुद ही मुसलमान कहते हैं कि जहां अल्लाह की इबादत न की जाए वह स्थान मस्जिद नहीं रहता, फिर बाबरी मस्जिद का इतिहास भी यही बताता है कि वहां ढांचा टूटने से पूर्व ही कई वर्षों तक कोई नमाज नहीं पढ़ी गई थी।
देखाजाए तो इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मुद्दे को बनाए रखते हुए भारत में इस्लामिक राजनीति को ताकतवर बनाना चाहता है। भारत के आम सीधेसाधे मुसलमान को नहीं समझ आता कि सच क्या है? उसे यह बोर्ड के लिए बार-बार बताना चाहते हैं कि कैसे उनकी इबादतगाह को हिन्दुओं ने तोड़ा और वे किस तरह से आज भी बाबरी मस्जिद को नहीं बनने देना चाहते हैं। ऐसे में कल्बे सादिक साहब की यह बात समझने लायक है कि अयोध्या में मंदिर जरूर बने बल्कि विद्यामंदिर बने। मदरसों की शिक्षा से बेहतर मार्डन एजुकेशन है। मुसलमानों की असल दिक्कत मार्डन एजुकेशन की है। मुझे मुसलमानों से ही प्रॉब्लम आई है, हिन्दुओं से कभी कोई प्रॉब्लम नहीं आई। हिन्दुओं ने हमेशा मुझे इज्जत और प्यार दिया। वास्तव में कल्बे सादिक की इन बातों से भी यह समझ आ जाता है कि कमी कहा है। भारत का मुसलमान इतना कट्टर क्यों है और सऊदी का मुसलमान विकास के लिए क्यों अपने यहां मस्जिदें ढहा रहा है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-02-2018) को "आदमी कब बनोगे" (चर्चा अंक-2892) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'