सोमवार, 19 दिसंबर 2016

पाकिस्तान पर अमेरिका की दोहरी नीति : डॉ. मयंक चतुर्वेदी


पाकिस्तान कई वर्षों से लगातार आतंकवाद को प्रश्रय दे रहा है, यह बात आज विश्व जानता है, ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि अमेरिका से यह बात छिपी हुई है, किंतु उसके बाद भी अमेरिका आतंकवाद को समाप्त करने एवं अन्य सामाजिक व्यवस्था में सुधार के नाम पर लगातार पाकिस्तान को कई हजार करोड़ डालर की आर्थिक सहायता कर रहा है। भारत द्वारा अनेक अवसरों पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों से इस बात को साझा करने के साथ प्रमाण स्वरूप दस्तावेज भी दुनिया के सामने सौंपे जा चुके हैं कि किस तरह से हिन्दुस्तान का यह पड़ौसी मुल्क आतंकवाद को हवा देकर दहशतगर्दों को प्रोत्साहित करने एवं उन्हें हर संभव सहायता देने में लगा हुआ है।

अभी दो माह पूर्व ही अमेरिका के दो बड़े राजनीतिक दलों के दो प्रभावशाली सांसदों ने पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजित करने वाला देश घोषित करने के लिए प्रतिनिधिसभा में एक विधेयक पेश किया था। उस वक्त कांग्रेस के सदस्य एवं आतंकवाद पर सदन की उपसमिति के अध्यक्ष टेड पो ने कहा था कि अब समय आ गया है कि हम पाकिस्तान की धोखाधड़ी के लिए उसे धन देना बंद कर दें और उसे वह घोषित करें जो वह है, 'आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश'। इसी के साथ ही दूसरे सांसद डेमोक्रेटिक पार्टी से कांग्रेस के सदस्य डाना रोहराबाचर ने भी ‘पाकिस्तान स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेरेरिज्म डेजिगनेशन एक्ट’ को सदन में पेश किया था। 


पो ने तो अमेरिकी संसद में यहां तक बताया था कि क्यों पाकिस्तान विश्वास करने योग्य देश नहीं। अमेरिका सरकार द्वारा उसकी आर्थिक सहायता इसलिए बंद कर देनी चाहिए कि उसने अमेरिका के शत्रुओं की वर्षों मदद की है और उन्हें बढ़ावा दिया है। यह सच भी है कि ओसामा बिन लादेन को शरण देने से लेकर हक्कानी नेटवर्क के साथ उसके निकट संबंध तक, सभी में पाकिस्तान के संलिप्त होने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, जिनसे साफतौर पर दिखाई देता है कि किस तरह पाकिस्तान की आतंकवाद के खिलाफ जंग सिर्फ दिखावाभर है। जब यह विधेयक प्रस्तुत किया गया, तब चहुंओर संदेश गया था कि भारत जिस बात को वर्षों से कहता आया है कि पाकिस्तान आतंकवादियों की आश्रय-स्थली है, उस बात को अब अमेरिका ने भी स्वीकार कर लिया है।

अमेरिका के जितने भी पूर्व राष्ट्रपति रहे और वर्तमान राष्ट्रपति तक, सभी आतंकवाद के मुद्दे पर एकमत देखे गए हैं, जिसमें सभी की एक बात समान है कि वह आतंकवाद को कहीं बढऩे नहीं देंगे, जहां होगा भी तो मानवता के हित में उसे वहां जाकर जड़ से समाप्त करने में कोई देरी नहीं करेंगे, किंतु उन तमाम राष्ट्रपतियों की बात पाकिस्तान के मामले में अब तक गलत साबित होती आ रही है। आगे डोनाल्ड ट्रम्प से यह अम्मीद की जा रही है कि वे जरूर इस विषय को गंभीरता से लेंगे और पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित कर उसे दिया जा रहा धन देना बंद कर देंगे। लेकिन कभी-कभी पुराने अनुभव को देखकर लगता है कि वे भी कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान को लेकर आतंकवाद समाप्त करने की बात हवा में करते रहे हों। क्योंकि यदि अमेरिका की नीति ही इस प्रकार की है तो उसे ही आगे बढ़ाना ट्रंप की मजबूरी साबित होगी, जो हर हाल में मानवता की विरोधी है।

इस सबके बीच बात अब पाकिस्तान और आतंकवाद के बीच कैसा गहरा नाता है इसे लेकर हालिया अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने जो एक रिपोर्ट जारी की है, उसकी हो जाए। इस रिपोर्ट में उसने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को पालने-पोसने पर गंभीर चिंता जताई है। उसके मुताबिक तालिबान, हक्कानी व अन्य कई आतंकी समूह पाकिस्तान में पूरी आजादी के साथ अपने कारनामों को अंजाम दे रहे हैं।

पिछले छह महीनों में इन्हें रोकने की पाकिस्तान की कोशिशें नाकाम रही हैं। यहां पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सरहद पर बड़ा इलाका इन आतंकी संगठनों के लिए महफूज बना हुआ है। ये संगठन यहां बैठकर दुनियाभर में आतंक फैला रहे हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन तथ्यों के आधार पर आज यह बता रहा है कि यहां कई प्रमुख आतंकी संगठन एक साथ काम कर रहे हैं। कुछ मामलों में मिलजुलकर और कुछ में अलग होकर यहां पर यह संगठन सक्रिय हैं। इन आतंकी संगठनों में तालिबान वह संगठन है, जिससे 60 हजार से ज्यादा आतंकी जुड़े हुए हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज ने जब इसे खदेड़ दिया, तो यह पाकिस्तान में अपना अड्डा बनाने में सफल हो गया।

हक्कानी नेटवर्क, जिसमें 15 हजार आतंकवादी हैं ने अपना मुख्य कार्यालय यहां खोला हुआ है। 40 हजार आतंकियों की ताकत रखने वाला अल-कायदा को यहां कोई रोकटोक नहीं है। भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय 600 आतंकवादियों का एक्यूआइएस अल कायदा का आतंकी संगठन इस क्षेत्र में फलफूल रहा है। इसी प्रकार लश्कर-ए-तैयबा, 50 हजार से ज्यादा आतंकियों को जोडक़र भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय है, जिसका उद्देश्य भी स्पष्ट है कि वह कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना चाहता है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान आतंकी संगठन में 25 हजार लोग जुड़े हुए बताए जाते हैं। एक संगठन आइएसआइएल-के हैं, जिसमें एक हजार आतंकी सक्रिय हैं। इस्लामिक स्टेट (आईएस) का समूह, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान भी पाकिस्तान की धरती से अपने आतंक के मंसूबों को हवा देने में लगा है।  

अभी जब दो माह पूर्व उड़ी में पाकिस्तानी आतंकियों ने भारतीय सेना पर हमला किया था तब भी हमले में पाकितान के लोगों के शामिल होने के ठोस सबूत मिले थे। पठानकोट हमले के बाद तो पाकिस्तान ने यह स्वीकार ही कर लिया था कि इन हमलों में पाकिस्तान के कुछ संगठन शामिल थे। जिसके कारण ही आगे पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दिखाने के लिए उन संगठनों के खिलाफ कुछ दिनों के लिए प्रतिबंध भी लगाए। ऐसे ही मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट से जुड़ा मामला हो या फिर अजमल कसाब के जिंदा पकड़े जाने का विषय अथवा अन्य फिर कोई और भारत पर हुए आतंकी हमले का मामला, सभी में पाक की भूमिका किसी न किसी स्तर पर अवश्य मिलती रही है। किंतु इसके बाद भी अमेरिका सदैव से पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने से बचता रहा है। इससे साफ नजर आता है कि अमेरिका ने आतंकवाद पर अपनी दोहरी नीति अपना रखी है, एक तरफ उसका रक्षा विभाग कहता है कि पाकिस्तान आतंक पोषित देश है तो दूसरी ओर अर्थिक सहयोग देकर अप्रत्यक्ष रूप से आतंक को बढ़ावा देने में भी अमेरिका किसी न किसी तरह लगा हुआ दिखाई देता है।

(लेखक : हिन्दुस्थान समाचार के रीजनल हेड एवं सेंसर बोर्ड एडवाइजरी के सदस्य हैं।)

हम कब तक खोते रहेंगे सैनिकों को ? : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

यह प्रश्‍न किसी एक भारतीय का नहीं, देश के हर उस भारतीय का है जो अपने देश को अपार प्रेम करता है। पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवाद से देश के अंदर और सीमाओं पर हमारे अपने सैनिक पाकिस्‍तानी गोलियों के शिकार हो रहे हैं। भारत सरकार फिर वो आज की राष्‍ट्रीय जनतान्‍त्रिक गठबंधन की सरकार हो या इसके पूर्व संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार रही हो, दोनों के समय में ही पाकिस्‍तानी सीमा पर जिस तरह से हम अपने सैनिकों की जानें गंवा रहे हैं उससे तो अब यह लगने लगा है कि हमारे यहां नेताओं के भाषणों का मोल एक सैनिक की जिन्‍दगी से ज्‍यादा हो गया है।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर बीते ढ़ाई साल में जिस तरह उन्‍होंने निर्णय लिए, उसे देखते हुए देश उनसे यही उम्‍मीद कर रहा है कि वे पाकिस्‍तान को लेकर भी कुछ ऐसा निर्णय लेंगे, जिसके बाद से वह कम से कम भारत में आतंकवाद को प्रायोजि‍त करने की अपनी मानसिकता हमेशा के लिए भूल जाएगा। हालांकि नोटबंदी के बाद उसका प्रायोगिक तौर पर आंशिक असर दिखा भी, लेकिन समय के साथ वह भी कमजोर होता जा रहा है। जिस जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य में पत्‍थर फैंकने की शिकायतों और हुड़दंगियों के हुड़दंग में कमी आई, आज समस्‍या यह है कि उसी कश्‍मीर के रास्‍ते भारत की सीमाओं में घुस रहे आतंकी हमारे सैनिकों को अपना निशाना बनाने में बार-बार सफल हो रहे हैं।


इससे जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि सितंबर माह में जम्‍मू-कश्‍मीर के उरी में आर्मी कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने सख्‍ती बरतना शुरू कर दी है, किंतु समझने के लिए इतना ही पर्याप्‍त होगा कि इस एक हमले में ही हमारे 19 जवान शहीद हुए थे। इसके जवाब में सरकार ने भारतीय सेना को खुली छूट दे दी थी कि वह जरूरत पड़ने पर सीमाओं के पार जाकर भी आतंकवादियों पर अपनी कार्रवाई करे और हुआ भी ऐसा। भारतीय सेना द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की गई। सेना ने पीओके में घुसकर कई आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूद किया था। पर इसके बाद क्‍या हुआ ? सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से सुरक्षा बलों पर आतंकी हमलों की वारदातों में इजाफा हो गया है, और हम लाख प्रयत्‍न करने के बाद भी अपने सैनिकों को शहीद होने से नहीं बचा पा रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर के पंपोर में सेना के काफिले पर हुए आतंकी हमले में एक बार फिर वही हुआ, हमारे 3 जवान शहीद हो गए एवं दो गंभीर रूप से अभी भी घायल हैं। यहां आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में दोपहर के वक्त श्रीनगर-जम्मू हाईवे से गुजर रहे सेना के काफिले पर उस समय हमला किया जब चारों ओर आम जनता मौजूद थी, आतंकी हमला करने के बाद फरार होने में सफल रहे और सेना राजमार्ग पर जनता के होने के कारण अपनी जवाबी कार्यवाही भी नहीं कर सकी।

इस तरह यदि हम जम्मू और कश्मीर में इस साल अब तक आतंकी हमलों में अपने जवान खो देने का आंकड़ा देखें तो आंखें भर आती हैं। इस साल हमारे अपने 87 जवान शहीद हो चुके हैं। इनमें से 71 जवान सिर्फ कश्मीर घाटी में शहीद हुए हैं। शहीदों में 6 अफसर भी शामिल हैं। इसके पहले के वर्षों की बात करें तो वर्ष 2015 में यहां हमारे 41 सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी, वर्ष 2014 में 51 सैनिक शहीद हुए। कांग्रेस के शासन के दौरान 2013 में ये आकड़ा 61 सैनिकों की शहादत का रहा। इसके पहले वर्ष 2012 में आतंकी हमलों में 17 जवान हमने खोए और 2011 में 30 जवान शहीद हुए थे। इससे और पीछे जाकर आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2010 में 67 तथा 2009 में जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य में 78 जवान आतंकी हमलों में शहीद हुए थे1 वर्ष 2008 में 90 जवान शहीद हुए थे। यह आंकड़ा इस साल शहीद हुए जवानों के करीब रहा है।

कुल मिलाकर यहां कहने का आशय यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के माध्‍यम से देश को यह संदेश देने में सफलता प्राप्‍त की कि वे देश से बेईमानी और भ्रष्‍टाचार को जड़ से समाप्‍त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सत्‍ता में आने के बाद से हमारी सेना का बजट भी लगातार बढ़ाया गया है, किंतु जिस तरह की छूट पाकिस्‍तान सीमा पर सैनिक कार्रवाई करने की होनी चाहिए, उसमें अब भी कहीं न कहीं कोई कमी दिखाई दे रही है, नहीं तो कोई कारण नहीं था कि उचित सबक मिलने के बाद वह आतंकवादियों को भारतीय सीमा में भेजने में सफल हो पाता ?

देश अपने प्रधानमंत्री से यही चाहता है कि आतंकवाद के खिलाफ सीमापार कर एक स्‍ट्राइक करने भर से काम चलने वाला नहीं है। पाकिस्‍तान बेशर्म देश है, वह अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं, उसे तो बार-बार सामरिक, कूटनीतिज्ञ और मनोवैज्ञानिक तरीके से कमजोर करना होगा। हमारे एक सैनिक की जिन्‍दगी की कीमत जब तक पाकिस्‍तान के 100 से एक हजार सैनिक नहीं होगी, तब तक कहीं ऐसा न हो कि हम हमने सैनिकों की शहादत पर शोक मनाते रहें और अपनी सफलता के जश्‍न में पाकिस्‍तान फटाके फोड़ता रहे ?

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

रक्षा बजट पर देश को प्रधानमंत्री से उम्‍मीदें

वीर भोग्‍या वसुन्‍धरा यह बात आज से हजारों वर्ष पहले से निरंतर भारत में श्रुति परंपरा में प्रचलित रही है। इसका आशय सीधा और सुस्‍पष्‍ट है कि भारत में पुरुषार्थी ही वीर कहलाते हैं और वीर ही पुरुषार्थी हैं। प्राय: वीर शब्‍द को शूर का पर्यायवाची समझा जाता है किंतु ऐसा है नहीं। भाषायी दृष्टि से विवेचना करें तो दोनों का यह अंतर कुछ इस प्रकार दृष्टिगत होता है। शूर शब्द हिन्सार्थक श्री धातु से बना हैजिसके कारण यह शब्द उस सैनिक का वाचक है जो अपने अधिकारी के आदेश मिलते ही गोली चलाने में देरी नहीं करता। ठीक इससे भिन्‍न वीर शब्द गत्यर्थक 'वीरधातु से बना हैजिसका कि अर्थ होगा अपनी सेना का सम्पूर्ण नीतिनिर्धारण करने के पश्‍चात ही युद्ध करने के लिए आगे बढ़ना। यानि योजना बनाने के साथ अपनी श्रेष्‍ठता का परिचय देना।

आज दुनिया के तमाम राष्‍ट्र जिन्‍हें विश्‍व शक्‍तिशाली मानता एवं स्‍वीकार्य करता हैउनकी इस वीर शब्‍द के साथ विवेचना करें तो यही पाएंगे कि वे राष्‍ट्र ही वीर हैजिन्‍होंने प्रत्‍येक क्षण अपना पुरुषार्थ प्रकट किया है और जो समय से आगे चलना या उसके साथ बढ़ने का सामर्थ्‍य रखते हैं। ये राष्‍ट्र वे हैं जिन्‍होंने दुनिया की 50 से 70 प्रतिशत पूँजी एवं सम्‍पदा पर अपना आधिपत्‍य स्‍थापित किया हुआ है। यही वह राष्‍ट्र हैंजो एक तरफ विश्‍व को युद्ध की विभीषिका में ढकलते हैं तो दूसरी ओर आर्थ‍िक सहायता एवं अन्‍य चिकित्‍सात्‍मक व समाजिक संवेदनात्‍मक कार्यों के जरिए लगातार यह संदेश देने का प्रयत्‍न करते रहते हैं कि वे मानवता के सही अर्थों में शुभचिंतक हैं।


 इसके साथ ही दुनिया को क्‍या पहनना चाहिएफैशन की स्‍टाइल कौन सी सही और कौन सी गलत हैसाहित्‍य में कौन से विषय उठाए जाने चाहिएकला एवं संस्‍कृति के मान बिन्‍दू क्‍या होंएक देश के रूप में दूसरे देश के साथ आर्थ‍िकव्‍यापारिकसामाजिकमानवीयता एवं पड़ौसी के नाते संबंध और संपर्क किस प्रकार होने चाहिए यह भी यही दुनिया के कुछ देश ही तय करते हैं। इतना ही नहीं तो एटम बम कौन रखेकिसे उसे नष्‍ट कर देना चाहिएभले ही आपको अपनी विद्युत आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए युरेनियम चाहिए किंतु वह इसलिए आपको नहीं दी जा सकती क्‍यों कि आप परमाणु सम्‍पन्‍न ऐसे देश हैंजिसकी हैसीयत इन कुछ देशों के बराबर नहीं बैठती है।

इन सब बातों का कुल सार यही है कि आप जब तक इन देशों की तरह सामर्थ्‍यशाली नहीं हैं तो आपको पड़ौसी चीन छोड़ि‍एवक्‍त आने पर पाकिस्‍तानम्‍यांमारभूटाननेपालपं. बंगालश्रीलंका जैसे छोटे मुल्‍क भी आंख दिखाने से नहीं चूकते हैं। आप सभी आर्हताएं रखने एवं अपने लाख प्रयत्‍न करने के बाद भी सुरक्षा परिषद में अपने लिए स्‍थायी जगह बनाने में सफल नहीं हो पाते हैं। कम से कम भारत की वर्तमान स्‍थ‍िति तो यही हैबहुत कुछ होने के बाद भी वह उन तमाम केंद्रों पर अपने को कमजोर या पीछे पाता हैजिसमें कि उसे आगे होना चाहिए था। आखिर भारत के साथ कौन से वे कारण जिम्‍मेदार हैं जो उसे आगे होने के स्‍थान पर पीछे रखे हुए हैं निश्‍चित ही इसके पीछे जो कारण नजर आता हैवह है हमारी आर्थ‍िक एवं सामरिक मोर्चे पर कमजोर तैयारी का होना।

वैसे तो भारत के जन दुनिया के तमाम देशों में रहते हैं और वहां की अर्थव्‍यवस्‍था के संचालन में अपना अहम योगदान देते हैंयदि इन सभी के आर्थ‍िक लाभ एवं कुल पूंजी को भारत के साथ जोड़कर देखा जाए तो भारत दुनिया में आर्थ‍िक रूप से सम्‍पन्‍न देशों के बराबर की श्रेणी में आ खड़ा होगा। इसी प्रकार सामरिक मोर्चे पर हमारी तैयारी अत्‍याधुनिक रूप से अमेरिकी तकनीक के समकक्ष हो जाए तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्‍दुस्‍थान विश्‍व के श्रेष्‍ठ आगे के 3देशों में शुमार हो जाएगा। इन दिनों भारत की जनता अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यही उम्‍मीद लगाए बैठी है कि वे उसे नोटबंदी के माध्‍यम से देश को आर्थ‍िक मोर्चे पर सशक्‍त बनाने के प्रयासों के साथ ही सामरिक मोर्चे पर भी कुछ कठोर निर्णय आगामी दिनों में लेंगे। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं लगतानोटबंदी पर जिस तरह विपक्ष ने संसद नहीं चलने दीहो सकता है कि जब मोदी सामरिक मोर्चे पर कठोर निर्णय लें तो हड़तालों के माध्‍यम से देश को ठप्‍प करने का कार्य विपक्ष करेकिंतु इसके बाद भी देश की सर्वसाधारण जनता अपने प्रधानमंत्री मोदीजी से यही कहेगी कि रक्षा बजट पर देश को आपसे बहुत उम्‍मीदें हैं।

हाल ही में आई शोध फर्म आइएचएस मार्किट की जेन्स डिफेंस बजट्स रिपोर्ट 2016 बताती है कि रक्षा पर खर्च करने वाले दुनिया के शीर्ष पांच देशों में अमेरिकाचीन और ब्रिटेन के बाद भारत का चौथा स्थान है। इस साल भारत का रक्षा बजट 50.7 अरब डॉलर (करीब 3.41 लाख करोड़ रुपये) है। जबकि पिछले साल यह 46.6 अरब डॉलर था। इस रिपोर्ट के आंकड़े देखकर एक बात की संतुष्‍ट‍ि तो है कि केंद्र में सत्‍ता परिवर्तन का लाभ सामरिक मामले में भी हुआ हैपहले से इसके बजट में 4.1 अरब डालर की वृद्ध‍ि हुई हैकिंतु साथ में यह भी प्रश्‍न है कि क्‍या ढाई साल में की गई केंद्र सरकार की यह वृद्ध‍ि पर्याप्‍त हैजबकि लगातार हमने बिना किसी युद्ध के सबसे ज्‍यादा अपने सैनिक गंवाए हैं यदि आज हमारे पड़ौसी मुल्‍क चीन से युद्ध हो जाए तो क्‍या होगा कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि सन् 1962 जैसे हालात बनेंगे चीन के साथ की लड़ाई पहाड़ों की लड़ाई होगीवह भी कई मोर्चों पर एक साथ होगी भारत को इस लड़ाई के लिए इतनी सामरिक शक्‍ति और सेना चाहिए कि वह उसे पूरे हिमालय में लगा सके। चीन जहां से भारत में प्रवेश करने का प्रयास करेगा वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लेकर लद्दाखतिब्बतनेपालसिक्किमभूटानअरुणाचल प्रदेशनागालैंडमिजोरमत्रिपुरामणिपुर और बर्मा हैऐसे में यह स्‍वभाविक प्रश्‍न है कि हम आज कहां हैं ?  


 आइएचएस मार्किट की इस रिपोर्ट में अमेरिका 622 अरब डॉलर के रक्षा बजट के साथ सबसे ऊपर है। उसके बाद 191.7 अरब डॉलर के साथ चीन दूसरे स्‍थान पर है और ब्रिटेन 53.8 अरब डॉलर के साथ तीसरे स्थान पर है। किंतु  यह रिपोर्ट जो खास बात को लेकर भविष्यवाणी करती दिखती हैवह है कि 2020तक चीन पूरे पश्चिमी यूरोप जितना रक्षा पर खर्च करेगा। 2025 तक उसका रक्षा खर्च एशिया प्रशांत क्षेत्र के सभी देशों के कुल रक्षा खर्च से ज्यादा हो जाएगा। यह बात भारत के लिए जरूर बड़ी खतरे की घण्‍टी है।

 यानि इससे यह बात तो सुनिश्‍चित हो जाती है कि यदि दुनिया में अपने को सिद्ध करना है तो अमेरिका की तरह या चीन की तरह सामरिक और आर्थ‍िक दोनों मोर्चों पर स्‍वयं को श्रेष्‍ठ साबित करना ही होगातभी दुनिया पूरी तरह आपकी बात मानने को तैयार होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश यही उम्‍मीद कर रहा है कि वे भारत को दुनिया की अमेरिका और चीन के बाद तीसरी ताकत बनाकर दिखाने में सफल होंगे। इसके लिए वे आगे रक्षा मामलों में भी कठोर निर्णय लेंगे हीजिसकी कि देश को आज आर्थ‍िक मोर्चे पर नोटबंदी के बाद सबसे ज्‍यादा जरूरत है। 

रविवार, 11 दिसंबर 2016

एसोचैम की बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत : डॉ. मयंक चतुर्वेदी


ड़े नोटों को बंद करने का निर्णय जिस तरह से सामने आयाउसके बाद देशभर से मिली-जुली प्रक्रिया अब तक आ ही रही है। विपक्ष जहाँ इसके लिए सरकार पर कई आरोप लगा रहा हैयहाँ तक कि देश की जीडीपी ग्रोथ गिरने तक की बात करने के साथ इससे जोडक़र अन्ये मुद्दों को भी प्रमुखता से उठा रहा है तो वहीं केंद्र सरकार से लेकर कई ऐसे संगठन भी हैं जो इस निर्णय के पक्ष में नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने देश से  दो माह का समय व्यवस्था सुधारने एवं नोटबंदी की असुविधा से मुक्त होने के लिए मांगादेश ने वह भी प्रधानमंत्री जी को दिया है। इससे जुड़ा एक पक्ष यह भी सामने आया है कि नोट बंदी का फैसला पूर्व में लिया जा चुका थाकांग्रेस सरकार के समय भी इस पर विचार हुआ था किंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राजनीतिक कारणों से अपनी मजबूरियों के चलते इसे लागू नहीं कर पाए थेजिसे कि मोदी ने अपने शासनकाल में पूरा किया है।

यानि की देर सवेर यह होना ही था जो हुआ। किंतु अब सरकार को जरूर वे निर्णय लेने चाहिए जिससे कि लोगों को आ रही तकलीफों से उसे पूरी तरह मुक्ति दिलाई जा सके। मसलनसरकार को इस नोटबंदी से अपना मुख्य उद्देश्य क्या पूरा करना था सभी जानते हैं कि नकली नोटों को व्यवस्था से बाहर करने के साथ आतंकवादनक्सलवाद जैसी देश विरोधी गतिविधियों की कमर तोडऩे के साथ देश के लोगों को यह अहसास कराना था कि देश के विकास के लिए धन की आवश्यकता होती हैयह धन जनता से कर के रूप में सरकारें प्राप्त करती हैं और उस कर के माध्यम से आया धन समग्र विकास की योजनाओं में व्यय किया जाता है।

देश में जितने भी लोग हैं यदि वे अपने हिस्से का ईमानदारी से कर देने लगें तो निश्चित मानिए कि हमारा देश दुनिया का सबसे अमीर देश बन जाएगा । विकास के मामले में हम अमेरिकाफ्र ासजर्मनीजापानइंलैण्ड जैसे समृद्ध देशों को अपने से कई मील पीछे छोडऩे का सामथ्र्य रखते हैं। आगे दूसरे किसी लेख में इसका गणित भी समझाने का प्रयास होगा कि प्रत्येक व्यक्ति का कर कैसे किसी देश को अमीर और गरीब बनाता हैफिलहाल यहाँ इतना ही कि केंद्र सरकार जो अपना संदेश देना चाहती थीवह देने में सरकार पूरी तरह सफल रही है। यह इससे भी समझा जा सकता है कि दुनिया में अमेरिका के राष्ट्रपति से ज्योदा भारत के प्रधानमंत्री की जय-जयकार हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णयों पर पूरी दुनिया में आज बहुत अधिक चर्चा है। यह चर्चा भारत को छोडक़र अन्य देशों में सकारात्मक दृष्टिकोण से ही की जा रही है। निश्चित ही यह सरकार की एक बड़ी उपलब्धी हैपर अब जबकि नोटबंदी को एक माह से अधिक गुजर चुका हैसरकार के सिर्फ आश्वासन देनेभर से काम चलनेवाला नहीं है।



बाजार में जो अब नई समस्या आ रही हैवह है ज्यादातर एटीएम मशीने 100 और 500 के नोट देने के बदले 2000 का नोट उगल रही हैं। यदि किसी को अधिक रुपयों की जरूरत है तो वह या तो किसी से उधार ले अथवा अपना काम छोडक़र अपने खाता वाली बैंक में भागेकिसी तरह रुपए प्राप्त करे एवं काम चलाए। इसमें जो सबसे बड़ा सवाल उठाया जा रहा हैवह यह भी है कि हमारा पैसा है और उसे हम ही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं शायद ही कोई हो जो रोज एटीएम की लाइन में लगकर प्रति सप्ताह 24 हजार रुपए निकालने में कामयाब रहा होगा। जहाँ तक कैसलेस सोसायटी बनाने का कार्य हैवह कुछ दिनों में तो हो नहीं जाएगा। केंद्र सरकार ने पहले चरण में ज्यादातर लोगों के जनधन योजना में ही सही खाते खुलवाए। खाते अभी भी नए खोले ही जा रहे हैं। दूसरे चरण में कहें कि यह नोटबंदी सामने आई है। इसका फायदा हुआगरीबों को भी जिनके बैंक खाते थेइसका लाभ मिला। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जो रोजमर्रा के छोटे-मोटे धंधे करके अपना घर चलानेवाले हैंउनका काम कैसे चले जबकि एटीएम मशीने छोटे नोट देने के स्थान पर बड़े नोट उगल रही हों। इसलिए यहाँ कहा जा रहा है कि एसोचैम (दि एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया) की ओर से जिन चिंताओं को व्याक्त किया गया हैउन्हें  सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।

एसोचैम कह रहा है कि नोटबंदी के बाद एफएमसीजीज्वैलरी और छोटे-मझोले उपक्रमों (एसएमई) सहित अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। जबकि असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में नौकरियाँ जा रही हैं। इसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी असर होगा। जिस तरह से इसका क्रियान्वयन हुआ उससे शायद प्रधानमंत्री भी खुश नहीं होंगे। कंज्यूमर गुड्स सेक्टर और छोटे व मझोले उद्यम भी इससे प्रभावित हुए हैं। एसोचैम की सरकार को सलाह है कि वह काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा नोटबंदी के वांछित नतीजों को हासिल करने के लिए बड़े कर सुधारों पर प्रमुखता से कार्य करे,जिसमें सरकार को टैक्स की दरें इस हद तक कम करनी होंगी जिससे काले धन का सृजन करने वाले हतोत्साहित हों। आयकर छूट की सीमा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख  रुपये की जानी चाहिए। इसी तरह 15 से 20 लाख रुपये की आय पर 10 फीसद की दर से कर लगना चाहिए। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की औसत दर को 18 से घटाकर 15 फीसद किया जाना चाहिए।


इसके अलावा जो कार्य सबसे जल्दी और अधिक केंद्र सरकार को करना हैवह है देश में छोटे नोटों की आवक एटीएम मशीनों तक ज्यादा से ज्यादा बनाना न कि 2000 के नोटों की । क्यों  कि इन्हीं छोटे नोटों पर छोटी पूंजीवाले की अर्थव्यवस्था  टिकी है और 70 प्रतिशत ग्रामीणजन पर आधारित भारत देश का मूल आधार भी यही छोटी पूंजीवाले लोक के जन हैं। 

लेखक : सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्य एवं पत्रकार हैं।   

केजरीवाल समझें, दुनिया में फकीर ही सबसे ज्‍यादा अमीर होते हैं ? डॉ. मयंक चतुर्वेदी


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसी न किसी बहाने से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते रहते हैं। उनकी शैली शानदार हैजब वे अपनी बात कह रहे होते हैं तो इतने सामान्‍य आदमी की भाषा में और इस तरह से कहते हैं कि उन्‍हें सुनते वक्‍त कोई ईमानदार आदमी हो तो वह भी लजा जाए। इस बार केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फकीर वाली टिप्पणी पसंद नहीं आई है। जिसका जिक्र उन्‍होंने अपने मुरादाबाद में दिए गए भाषण के दौरान किया था। केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि 'मोदीजी आप फकीर हैं हर दिन आप कपड़ों की चार नयी जोड़ी पहनते हैंआप 10 लाख रुपए का सूट पहनते हैं और दुनिया भर में घूमते हैं। लोगों का आपके शब्दों में भरोसा खत्म हो गया है।कहकर यह जताने की कोशिश की है कि आप मिथ्‍या बोलते हैं। काश ऐसा होता कि अरविन्‍द केजरीवाल यह वाक्‍य ट्वीट करने के पहले थोड़ा अपना भी दिमाग लगा लेते।

इतिहास और वर्तमान का सच यही हैजिसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ कि जो जितना बड़ा फकीर है वह उतना ही बड़ा एश्‍वर्य का स्‍वामी हैधन की तरफ वह देखे भी नहींतब भी लक्ष्‍मी ऐसे आदमी के चारों ओर कुलाचे भरती है। बात हम विदेशी धरती से शुरू करते हैं। वैटिकन सिटी ईसाईयों के लिए किसी पवित्र स्‍थान से कम नहीं है। वैटिकन शहर पृथ्वी पर सबसे छोटास्वतंत्र राज्य तथा ईसाई धर्म के प्रमुख साम्प्रदाय रोमन कैथोलिक चर्च का केन्द्र होने के साथ इस सम्प्रदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप का निवास है। अभी बीते 3 सितम्‍बर को स्‍वयं अरविन्‍द केजरीवाल इस शहर में अपनी दो दिवसीय यात्रा के लिए कुमार विश्‍वासविधायक जरनैल सिंह और मुंबई से नेता प्रीति शर्मा मेनन के साथ पहुँचे थे।


अब वे स्‍वयं बताएं कि जिनके शहर में वे गए थेउनके पास क्‍या है कौनसी माया हैन शादी न बच्‍चेपोप ईसाई धर्म प्रचारक एक सन्‍त हैं। उनका सम्‍मान भारतीय दृष्‍ट‍ि से देखें तो ईसाईयों में एवं अन्‍य धर्मांब‍लम्‍बियों के बीच आज किसी रूप में है तो वह एक फकीर के रूप में ही तो है। केजरीवाल इतिहास में जाकर या वर्तमान में जितने भी फकीर हैंउनके जीवन को देख लेंक्‍या है उनकाउनके पास ।

रामदेव बाबा जिनके नाम कुछ नहींन धन दौलत न परिवारिक जिम्‍मेदारी, लेकिन उन्‍होंने तमाम विदेशी कंपनियों को इन दिनों दातों तले उंगली दबाने को विवश कर रखा है। विदेशी कंपनियाँ परेशान हैं कि हम इस बाबा का क्‍या करेयह तो फक्‍कड़ हैजैसा कि वे स्‍वयं इस बात को कई बार मंचों से कहते भी हैं। रोजमर्रा के छोटे-छोटे कार्यों से जुड़े व्‍यापार जिनमें ज्‍यादातर विदेशी कंपनियों का ही प्रभाव थाउसे बाबा रामदेव ने एक झटके में योग से रोग मुक्‍त भारत बनाने के संकल्‍प को लेकर शुरू करते हुए विभिन्‍न चरणों में लिए गए अपने निर्णयों से दूर कर दिया। अब तो पेय कंपनियां भी बाबा से घबराने लगी हैं। आर्ट ऑफ लिविंग संस्‍था के श्रीश्री रविशंकर उनका भी अपना कुछ नहींफक्‍कड़ हैंलेकिन वे इसके बाद भी अमीर संतों में गिने जाते हैंउनके भक्‍त ज्‍यादातर धनवान ही होते हैं। अबआप इस पर क्‍या कर सकते हैंक्‍या लोगों को किसी पर श्रद्धा रखने से भी रोकेंगे 

ओशो जब तक जिंदा रहे उनका अपना कुछ नहीं था लेकिन दुनिया के कई देशों में उनकी बादशाहद कायम थी। उनके जाने के बाद भी उनके भक्‍तों में कोई कमी आ गई हैऐसा बिल्‍कुल नहीं कहा जा सकता । महर्षि महेश योगी का नाम भारत सहित दुनिया के तमाम देश आज भी आदर के साथ लेते हैंजिन्‍होंने भावातीत ध्‍यान के माध्‍यम से पता नहीं कितने लाख लोगों के जीवन को संवारादूसरे देशों में श्रीराम मुद्रा तक प्रचलन में चलवा दीजैसा कि सुनने में आता है। उनके पास भी अपना कुछ नहीं थालेकिन वे फक्‍कड़ होकर भी अमीर थेउनके तो मन में विचार करने मात्र से धन स्‍वत: चलकर सामने उपस्‍थ‍ित हो जाता था और स्‍वयं कहता कि महर्षि बताएं कि वेद विस्‍तार और नवाचार के लिए कहां मुझे अपना समर्पण करना है।

इतिहास में थोड़ा ओर पीछे जाएं तो तुलसीकबीर जैसे कई गृहस्‍थ संत एवं अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देने वाले ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगेजिनके जीवन से यह सीधे स्‍पष्‍ट होता है कि जो जितना बड़ा त्‍याग करने का सामर्थ्‍य रखता हैउसका सम्‍मान दुनिया उतना ही अधिक करती हैऔर इस त्‍याग के लिए जो सबसे ज्‍यादा जरूरी हैवह है निर्भीकता एवं अपना सर्वस्‍व दाव पर लगा देने की प्रवृत्ति का होनाजोकि हमें अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में इस समय दिखाई देती है। 

केजरीवाल को यह ठीक ढंग से समझना चाहिए कि मुरादाबाद में एक रैली में जनता को संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा कि मेरे विरोधी मेरा क्या कर सकते हैंमैं एक फकीर हूंझोला लेकर चले जाएंगे।उसके असल में मायने क्‍या हैं?  प्रधानमंत्री की इन बातों से जो सीधे समझ आता है वह यही है‍ कि न उनका कोई आगे हैन पीछे जिसके लिए वे धन की लिप्‍सा से ग्रसित होकर उसका संचय करें। उन्‍हें जो करना है वह किसी भय से भयभीत होकर तो करना नहीं है। इसलिए वे जो निर्णय लेंगे वह देशहित में ही होगा। प्रधानमंत्री के पद पर और उस कुर्सी पर उनके पहले भी कई लोग आए और बैठकर चले गएएक दिन उन्‍हें भी चले जाना हैयही यथार्थ है।  

इसके साथ ही केजरीवाल नोट बंदी को लेकर जो आरोप मोदी पर संस्थानों को खत्म करने का लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि 'ये प्रधानमंत्री एक-एक कर आरबीआईसीबीआईविश्वविद्यालय और अब न्यायपालिका को खत्म कर रहे हैं। भारत ने 65 साल में जो हासिल किया उसे पांच साल में आप बर्बाद कर देंगे।उनकी इन बातों में भी कोई दम नहींक्‍योंकि इतिहास इस बात का भी गवाह है कि जिसे अपने लिए कमाने तक की लालसा नहीं रहतीवही सबसे अधिक त्‍याग करने में सफल रहता है। जिसका विश्‍वास सिर्फ कर्मफल पर हैवही अपने सभी कर्म पूर्ण समर्पण के साथ करने में आगे रहता है। इसलिए केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी की चिंता छोड़ें और अपनी चिंता करें । जहां अब उनके ही कार्यकर्ता जैसा कि पंजाब में हुआ कि उन्‍हीं के लिए मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थेवे उसे कैसे रोक सकते हैं इस पर विचार करें।  

आज देशहित में प्रधानमंत्री की इस बात पर सभी को गंभीरता से सोचना ही होगा कि भारत अधिकतम नकद लेनदेन से मुक्त कैसे हो सकता है।प्रधानमंत्री मोदी की इस बात में भी दम है कि 'आपने वो सरकारें अब तक देखी हैं जो अपने लिए काम करती हैं। अपनों के लिए करने वाली सरकारें बहुत आयीं। आपके लिए करने वाली सरकार भाजपा ही हो सकती है।हांयह बात बहुत हद तक सच भी हैपहले भी देश की जनता ने देखा कि जब केंद्र में अटलबिहारी वाजपेयी की भाजपा सरकार केंद्र में आई थी तब खजाना खाली था विकास की गति धिमी थी किंतु वाजपेयी सरकार के आते ही खजाना भी भरा और विकास भी तेजी से शुरू हुआजिसे आगे 10 वर्षों तक चलाए रखने का कार्य कांग्रेस करती रही। इसके बाद जब देश की गति कमजोर पड़ी और खजाना खाली हुआ तो देश में फिर जनता ने भाजपा पर भरोसा जताया। इस बार घर की गंदगी साफ करते हुए केंद्र को खजाना भी मिला और अब आगे इस खजाने से आशा बंधी है कि भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रहते विकास की रफ्तार भी तेजी से आगे बढ़ेगी।

मोदी कहते हैं कि इस देश को भ्रष्टाचार ने बर्बाद किया है। इस देश को भ्रष्टाचार ने लूटा है। गरीब का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। गरीब का हक छीना है। हमारी सभी मुसीबतों की जड़ में भ्रष्टाचार है। कानून का उपयोग करके बेईमान को ठीक करना होगा। भ्रष्टाचार को ठिकाने लगाना होगा। विकास अपने आप हो जाएगा। सच कहते हैं। वस्‍तुत: हकीकत आज की यही है कि देश सुधार की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा हैजिसे केजरीवाल जैसे नेता जो खुद स्‍वच्‍छता के वायदे के साथ सत्‍ता में आए हैंबिल्‍कुल नहीं पचा पा रहे। इसलिए उन्‍हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उठाया गया हर कदम गलत लगता हैफिर वह पाकिस्‍तान में घुसकर की गई भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक हो या फिर 1000 एवं 500 रुपयों की नोटबंदी। 

अब तो समझे विपक्ष जनता क्‍या चाहती है : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

लोकतंत्र शासन प्रणाली में जनता भगवान होती है, उसके रुख से ही यह तय होता है कि किस पार्टी की नीतियों के लिए उसका बहुमत है। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने हैंविपक्ष किसी न किसी बहाने, बिना कोई सार्थक मुद्दा होने के बावजूद भी लगातार सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। हद तो यह है कि पुराने 500-1000 के नोट प्रचलन के बाहर करने की जहां देशभर में बहुसंख्‍यक जन सरकार की तारीफ कर रही हैवहीं विपक्षी हैं कि उनके पेट में इतना दर्द हो रहा है कि वे एक माह तक मुकर्रर किए गए वक्‍त में आवश्‍यक विधेयकों एवं कार्रवाहीं के लिए चलनेवाले सदन को भी नहीं चलने दे रहे।

जबकि यह सच सभी जानते हैं कि जिसके विचारों एवं कार्यों से जनता सहमत नहीं होतीवह उसे चुनावों के जरिए अपना संदेश दे देती है। सत्‍ता से ऐसी किसी भी पार्टी कोभले ही वह कितनी भी ताकतवर होजनता सत्‍ताच्‍युत करने में देरी नहीं लगाती हैकिंतु यहां तो उल्‍टा हो रहा है। सरकार ने नोटबंदी की घोषणा क्‍या कीलगातार कष्‍ट सहने के बाद भी जनता के मन में प्रधानंत्री मोदी के प्रति मान ओर बढ़ता गया। 16 नवम्‍बर से चल रहा संसद का शीतकालीन सत्र भले ही विरोधियों द्वारा बाधित किया जा रहा होलेकिन सड़क पर इस फैसले की तारीफ समय के साथ बढ़ ही रही है। इस बीच देश में जो लोकसभाविधानसभा एवं नगरीय निकाय चुनाव हुएउसमें जिस तरह का निर्णय जनता से दियाउसको देखकर भी सच पूछिए तो विपक्ष को अब तक समझ जाना चाहिए था कि आखिर देश की जनता चाहती क्‍या है ?

राज्‍य सभा एवं लोक सभा में कांग्रेसतृणमूल कांग्रेसबसपा और सपा के सांसदों के साथ अन्‍य विपक्षी यहां तक कि सरकार के साथ जो हैं ऐसी शिवसेना के प्रतिनिधि तक विरोध प्रदर्श‍ित करते हुए लगातार हंगामा खड़ा कर रहे हैं। तो दूसरी ओर जनता है जो अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए यह बता रही है कि वे इस घड़ी में किसके साथ खड़ी है। अभी हाल ही में देश के छह राज्‍यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों के साथ दो प्रदेशों में नगरीय निकाय चुनाव हुएउसके आए घोषित परिणाम इस संदर्भ में देखे जा सकते हैं। उपचुनावों के नतीजों के अनुसार 4 लोकसभा सीटों में से दो पर बीजेपी और दो पर तृणमूल कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 10 विधानसभा सीटों में से भाजपा और अन्‍नाद्रमुक 3-3 पर, 2 पर माकपा और कांग्रेस तथा तृणमूल कांग्रेस 1-1 सीट पर जीतने में सफल रही हैं।

इन नतीजों को यहां थोड़ा विस्‍तार से भी जानना उचित होगा। चुनाव के नतीजे स्‍पष्‍ट करते हैं कि सत्तारूढ़ दल अपने किले बचाने में सफल रहे। मध्यप्रदेश के लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की तो त्रिपुरा में वाम मोर्चा ने एक बार फिर अपनी बादशाहत कायम रखी। पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री नारायणसामी अपनी सीट बचाने में सफल रहे तो बंगाल में ममता का जादू फिर परवान चढ़ा। यानि की जहां पहले से भाजपा है वह उपचुनावों में भी जीत हासिल करने में कामयाब रहीयदि नोट बंदी को देश की जनता नकारतीजैसा कि विपक्ष आरोप लगा रहा है तो फिर क्‍या कारण है कि जनता ने दोबारा इसी पार्टी के प्रतिनिधि को चुनकर लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँचा दिया ? जहां तक अन्‍य पार्टियों की जीत का प्रश्‍न है तो वहां उनका सि‍क्‍का पहले से ही जमा हुआ थाबात तो तब थी जब भाजपा की सीटें विपक्ष छीनने में कामयाब हो जाताउस समय जरूर कहा जाता कि नोटबंदी का लोकतंत्र सही मायनों में विरोध कर रहा है।

इसके बाद महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव के आए परिणाम आप देखेंइनमें भाजपा को सहयोगी शिवसेनाकांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के मुकाबले ज्यादा सीटों पर जीत मिली है। पहले चरण के तहत 25 जिलों में 3,705 सीटों के लिए मत डाले गए थे। अब तक घोषित नतीजों में भाजपा 851सीटों पर जीत हासिल कर शीर्ष पर है। 147 नगर परिषद अध्यक्ष के लिए भी मतदान हुआ था। 140 पदों के लिए घोषित परिणाम में भाजपा 51 सीटें जीतकर शीर्ष पर है। यहां कुल स्थानीय निकाय की सीटें 3705 हैंजिनमें से 3510 के नतीजे घोषित हुए हैं उनमें भाजपा को 851, शिवसेना 514, राकांपा 638, कांग्रेस 643 और अन्‍य 724 सीटों पर विजय प्राप्‍त करने में सफल रहे। इसी प्रकार नगर परिषद अध्यक्ष चुनावों के परिणामों को देख सकते हैंजिनमें कुल147 सीटों में से 140 के परिणाम घोषित हुए। इन चुनावों में भी भाजपा को 51, शिवसेना 24, राकांपा 19, कांग्रेस 21 और अन्य के 25 स्‍थानों पर जीत मिली।

इसके बाद आए गुजरात स्‍थानीय निकाय चुनावों के नतीजे भी साफ बता रहे हैं कि यहां भाजपा ने बंपर जीत दर्ज करते हुए कई जगहों पर कांग्रेस का सूपड़ा तक साफ कर दिया। कुल 126 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने 125 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारे थे और उनमें से 110 सीटों पर भाजपा ने कब्‍जा जमाया है। नगरपालिकातालुका पंचायत और तहसील पंचायत चुनावों में 32 में से 28 सीटों पर कब्‍जा जमाया है वहीं कांग्रेस के खाते में 7 सीटें गई हैं। इससे पहले भाजपा के पास केवल 9 सीटें थीं। सूरत में कनकपुर-कनसाड नगरपालिका में भाजपा ने 28 में से 27 सीटें अपने नाम की है और कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिल पाई है। इसी तरह वापी नगरपालिका में 44 में से 41 सीटों पर भाजपा का कब्‍जा हुआ है और कांग्रेस 3 पर सिमट गई है।

वस्‍तुत: इन सभी चुनाव परिणामों से भी विपक्ष को सीख ले लेनी चाहिए थी कि देश की बहुसंख्‍यक जनता क्‍या चाहती है। परन्‍तु विपक्ष है कि कुछ समझना नहीं चाहता। वह लोकतंत्र के मंदिर संसद में नोटबंदी पर हंगामा करने में लगा हैजिसके कारण देश का जो जरूरी कार्य एवं निर्णय हैं लगातार बाधित हो रहे हैं। काश विपक्ष इस बात को समझे कि संसद देश की जनता के लिए जवाबदेह है और इसे एक दिन चलाने में जो खर्च 2 कारोड़ रुपए आता है वह भारत के आम आदमी की गाढ़ी कमाई का हिस्‍सा है। 

लेखक : हिन्‍दुस्‍थान समाचार के मध्‍यक्षेत्र प्रमुख एवं सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं। 

परंपरा, आधुनिकता और परिवार : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

साहित्‍यकारोंविद्वानों एवं ज्ञानियों के बीच यह चर्चा लम्‍बे समय से चल रही है कि परिवारपरंपरा और आधुनिकता का आपस में कोई संबंध है भी या नहीं। इन तीनों के बीच सदियों से सतत चली आ रही परिवार व्‍यवस्‍था आज कितनी प्रासंगिक रह गई हैयह बहुत गौर करने वाली बात है। यह इसलिए कि ग्‍लोबल विश्‍व की अवधारणा के बीच इंटरनेट के सहयोग से सभी भौतिक सुविधाएँ आपके एक छोटे से कमरे में सिमट चुकी हैं। वस्‍तुत: इस विषय की गहराई में जितना जाने की कोशिश की जाती हैलगता है, यह विषय उतना ही जटिल होता जा रहा हैहम किसी निष्‍कर्ष पर पहुँचे तो कैसे पहुँचें। किंतु जब खुले मन से सकुंचन से मुक्‍त होकर इसकी विवेचना की जाती है और जो निष्‍कर्ष निकलता हैवह यही है कि परिवार,आधुनिकता और परम्‍परा यह तीनों ही आपस में इतने गुंफित हैं कि आप इन्‍हें एक बार भी अलग करके नहीं देख सकते हैं।

देखा जाए तो परंपरा ही आधुनिकता हैजो आधुनिक नहींयदि वह किसी कारण से परंपरा का हिस्‍सा भी बना हुआ है तो उसे समय के साथ समाप्‍त होना ही होगायह सुनिश्‍चि‍त मानिए। आधुनिकता कालवाह्य हैइस पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए कहा भी जाता है कि आधुनिकता तो अपने समय में सदैव वर्तमान रहती है। पिछली 18वीं, 19वीं या बीते 20 वीं सदी के वक्‍त में जो वर्तमान था आज उसे हम अतीत कहेंगेवहीं आज जो वर्तमान है कल वह अतीत का हिस्‍सा हो जाएगा। यानि जो वर्तमान हैवह सदैव अपने समय में वर्तमान ही रहता है और जो व्‍यवस्‍था वर्तमान में है वे आधुनिक कहलाती हैफिर ये व्‍यवस्‍था परिवार स्‍तर पर हो या अन्‍य किसी भी स्‍तर पर।




इस संदर्भ में कुछ बातों को ओर देखा जा सकता है।  यह जरूरी नहीं है कि आपके लिए जो आधुनिक है वह दूसरे के लिए भी आधुनिक होसाथ में यह कि जिसे आप बीता हुआ पुराना परंपरा का बेकार हिस्‍सा मानते हैं वे दूसरे के लिए पुरातन हो। आधुनिकता स्‍थान-स्‍थान के अनुसार सुनिश्‍चित होती है। इस समय अमेरिका या अन्‍य युरोपीय देशों में जो सामाजिक व्‍यवस्‍था चल रही हैवह भारत सहित विकासशील देशों के साथ अफ्रिका के तीसरी दुनिया के देशों में एक साथ चल पड़ेयह संभव नहींयदि तीनों स्‍थानों की एक साथ समीक्षा करेंगे तो अमेरिका या यूरोप के देश यदि अपने समय में आधुनिक कहलाएंगे तो भारत एवं अफ्रिका के देश अपने वर्तमान में भी पुरातन कहलाने लगेंगेजबकि ऐसा नहीं है।

उदाहरण के लिए कुछ विषयों पर दृष्टि डाली जा सकती हैजैसे उत्‍तर आधुनिकता। उत्‍तर आधुनिकता का सीधा अर्थ है आधुनिकता के बाद की स्‍थति या सामाजिक परिवेश । पश्‍चिमी मानव विज्ञानी किवेन्टन स्किन्नर का कहना है कि यह उत्तर आधुनिकता का युग है, यह उत्तर आधुनिकता फिल्म से लेकर फैशन तकसाहित्य से संस्कृति तककामशास्त्र से कॉमिक्स तक और विज्ञान से विज्ञापन तक हर वस्तु को प्रभावित कर रही है। यहां तक कि दर्शनसमाज और मीडिया सब इसके दायरे में है। इसी प्रकार की बात लियोतार की पुस्तक 'द पोस्ट माडर्नमें कही गई है।

दूसरी ओर मार्शल मेकलुहान कि पुस्तक 'द मीडियम इज द मैसेजमें व्यापक परिवर्तनों को रेखाकिंत करते हुए यह बताया गया कि उत्तर आधुनिकता ने एक नई विचारधारा का रूप प्राप्त कर लिया है। यह भी कहा गया कि आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता में मूलभेद यही है कि आधुनिकता एक महान आख्यान को ठोस और इतिहास के दिशाहीन बहाव पर हावी करती है। जबकि उत्तर आधुनिकता के साथ ऐसा बिल्‍कुल नहीं हैवह लोक कथाओंजातीय कहानियों और स्थानीय मुहावरों को महत्व देती है । दूसरे शब्‍दों में कहें तो यह उत्तर आधुनिकता संरचना को तोड़ने की कोशिश है। आधुनिकता के अंत की घोषणा कर उत्तर आधुनिकता में व्यक्ति कि मृत्यु को इतने बार दोहराना गया है कि इसके बारे में जितना पढ़ो यही लगता है कि अब मनुष्य जीवित ही नहीं बचा है। उसकी भाव संवेदनाएँ बाजार में तब्‍दील हो चुकी हैं। सभी कुछ बाजार तय करता हैआप क्‍या खाएंगेक्‍या पहनेंगेअपने जीवन में कौन से क्षेत्र में सफल होने की मंशा से शिक्षा का विस्‍तार करेंगेइत्‍यादि ।


वस्‍तुत: इस स्‍थि‍ति को देखकर एक बार तो लगता है कि सच में आधुनिकता का अंत हो गया है पर क्या वास्तव में आधुनिकता का अंत हो गया है या केवल उसका स्वरुप बदल गया हैआज यह भी एक बड़ा प्रश्‍न हैजिसके उत्‍तर में हम कह सकते हैं कि जिस सूचना व्यवस्थाजनसंचारसमाज संस्कृति और अर्थव्यवस्था के परिवर्तन की बात की जाती हैवह आधुनिकता की प्रक्रिया से अलग नहीं है। पश्‍चिमी जगत अपने समय की परिवार व्‍यवस्‍था और परंपरागत व्‍यवस्‍था से मुक्‍त होने के लिए प्रयत्‍नशील रहा होगाजिसके बाद उसका जीवन एकाकी रूप से आगे बढ़ता हुआ दिखाई देता है। जहां डे परंपरा का विकास इस मायने में हुआ है कि किसी के प्रति यदि आपको कृतज्ञता ज्ञापित करनी है तो वर्ष में एक दिन करलोयथा- फादर डेमदर डेइत्‍यादिकिंतु भारत के संदर्भ में या भारत जैसे देश चीन और जापान आदि‍ के लिए उत्‍त्‍र आधुनिकता जैसा कोई विचार ही नहीं पैदा हुआ है। हम आज भी आधुनिक जीवन में जी रहे हैं न कि उत्‍तर आधुनिक हुए हैं। यहां की संस्‍कृति सनातन काल से आधुनिक हैयहां कोई डे नहीं हर दिन मातृ देवो भव:पितृ देवो भव: और आचार्य देवो भव: हैअर्थात ईश्‍वर के समतुल्‍य मानकर बल्‍कि उससे भी अधिक सम्‍मान एवं श्रद्धा का भागी मानकर उन्‍हें पूजित करने की परंपरा यहां हैजोकि परिवारिक संस्‍कारों से विचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्‍तान्‍तरित होते हैं।

वस्‍तुत: देखा जाए तो उत्‍तर आधुनिकता की शुरूआत परिवार व्‍यवस्‍था से मुक्‍त होने एवं स्‍वच्‍छन्‍दता से जीवन जीने की राह पकड़ लेने के बाद शुरू होती हैजिसमें कि ऋण लेकर घी पीने में किसी को कोई गुरैज नहीं होता। परन्‍तु युरोप की तुलना में भारत में ऐसा नहीं है। भारत में अभी उत्‍तर आधुनिकतावाद नहीं आया हैये न आए इसके लिए लगातार यहां परंपरावादी कहें या परंपरा के साथ आधुनिक सोच रखनेवाला जन लगातार सक्रिय है। तुलनात्‍मक रूप से देखें तो भारत और पश्‍चिम में बड़ा वैचारिक भेद यह है कि पाश्चात्य विचारों में शक्तिसफलता एवं धन संग्रह पर जोर है। वहां उपभोग और प्रतिस्पर्धा पर बल दिया जाता है। भारतीय परंपरा के केंद्र बिंदु में परिवारसम्मान और सहयोग है। यहां आधुनिकता का मतलब सभी के विचार-बिंदुओं को समझना है। हमारी भारतीय परंपरा जीवन जीने का तरीका सिखाती है। दूसरी ओरपाश्चात्य विचार जीवन-शैली पर ध्यान देते हैंवह उत्‍तर आधुनिकता के दौर में अपने को मानने लगी हैजहां सब कुछ बाजार हैऔरत को आदमी की जरूरत और आदमी एक औरत की जरूरत तभी महसूस करता है जबकि उसे देह की गंध अनुभूत करनी होती हैजिसके कि उलट भारत में स्‍त्री और पुरुष भी एक संस्‍कार हैजिसे विवाह संस्‍कार कहा जाता है और उसके माध्‍यम से वर-वधु को सम्‍पूर्ण समाज यह आशीर्वाद देता है कि एक सुखद और आनन्‍दमय परिवार का दोनों मिलकर श्रृजन करोजिसमें अपने माता-पिताभाई-बहनों एवं अन्‍य सगे-संबंधियोंमित्रों के साथ पशु-पक्षी एवं वनस्‍पतियों के लिए भी एक सम्‍मान जनक स्‍थान सुनिश्‍चित हो 


भारतीय वांग्‍मय में इसे देखें तो वेद कहते हैं- सं गच्छध्वं सं वदध्वंसं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते –  ऋग्.10.191.2। अर्थात् (हे जना:) हे मनुष्यो, (सं गच्छध्वम्) मिलकर चलो। (सं वदध्वम्) मिलकर बोलो । (वः) तुम्हारे, (मनांसि) मन, (सं जानताम्) एक प्रकार के विचार करे । (यथा) जैसे, (पूर्वे) प्राचीन, (देवा:) देवो या विद्वानों ने, (संजानाना:) एकमत होकर, (भागम्) अपने – अपने भाग को, (उपासते) स्वीकार कियाइसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग स्वीकार करो । सीधे-सीधे इसे इस अर्थ से समझें कि (हे मनुष्यों) मिलकर चलो। मिलकर बोलो। तुम्हारे मन एक प्रकार के विचार करें। जिस प्रकार प्राचीन विद्वान एकमत होकर अपना-अपना भाग ग्रहण करते थे, (उसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग ग्रहण करो)। वास्‍तव में वेद का यह मंत्र परिवार की उच्‍चावस्‍था को प्रकट करता है। यहां सिर्फ रक्‍त संबंधों को जोड़कर ही परिवार  की व्‍याख्‍या नहीं की गई हैबल्कि सभी मनुष्‍यों को एक परिवार मानकर उनके बारे में लिखा गया। यह मनुष्‍य समूह एक छोटी इकाई से शुरू होकर ग्रामनगरराष्‍ट्र और यहां तक की संपूर्ण वसुधा तक के बारे में विचार कर लेंसभी को इस मंत्र के माध्‍यम से यही संदेश दिया गया है कि संगठन और परस्पर का संवाद वह मंत्र है जिसके माध्‍यम से परिवार अपने अस्‍तित्‍व को व्‍यापक रूप से प्रकट करता  है।

इसे ऐसे भी देख सकते हैं कि ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व वेदों का निर्माण हुआ,  किंतु उसमें जो उस समय लिखा गया वह तत्‍कालीन समय की आधुनिकता थी लेकिन यह आज हमारे लिए परंपरा का हिस्‍सा हैकिंतु जब हम उसका आज भी अध्‍ययन करते हैं तो यही लगता है कि इसमें जो कहा गया है वह वर्तमान संदर्भों में भी आधुनिक है। यानि जो परंपराआधुनिकता एवं परिवार की आवश्‍यकता पर जोर भारत में कई हजार वर्ष पहले दिया गया था वह आज भी अधुनातन है।अत: इस निष्‍कर्ष पर पहुंचने के बाद स्‍पष्‍टत: कहा जा सकता है कि आधुनिकता हमेशा परंपरा से ही आती हैक्योंकि उसमें समस्याओं का उत्तर देने की क्षमता होती है। इसलिए भारत अपनी जीवन-शैली को कभी नहीं भूलेगा।

परिवार भारतीय समाज व्‍यवस्‍था की जड़ हैजिसमें बालक जन्‍म लेते ही जो संस्‍कार प्राप्‍त करता हैउसी आधार पर वह अपने भविष्‍य का निर्माण करता है। आज दुनिया भी इस बात को समझने लगी है कि एकागी जीवन व्‍यर्थ हैजिसमें चहचहाना न होजिसमें बच्‍चों की कोमल मुस्‍कान न हो,जिसमें मां एवं पिता का आशीर्वाद न होजिसमें अपने से बड़ों का दुलार और गलती करने पर फटकार न हो वह जीवन तो व्‍यर्थ है। आखिरविकास कहां तक और कब तक उचित हैविकास की यह अंधी दौड़ जिसमें मारकाट हैप्रतिस्‍पर्धा के लिए संबंधों का दाव हैउससे कहीं अच्‍छा है कि परिवार व्‍यवस्‍था में अपने भाग को सभी के बीच बांटकर सुख का अनुभव करना। सदियों से भारत अपनी परिवार व्‍यवस्‍था के माध्‍यम से यही कर रहा है,वह अपने भाग को सभी के बीच बांटकर सभी के चेहरों को मुस्‍कुराते हुए देखकर सुख का अनुभव करता आ रहा है।

अत: अंत में यही कहना होगा कि वर्तमान परिवेश में परिवार व्‍यवस्‍था को लोक के हित मेंजनता के लिए विश्‍व को आनंद का सतत भागी बनाने एवं बनाए रखने के लिए ओर अधिक सुदृढ़ता से बनाए रखने की आवश्‍यकता हैउत्‍तर आधुनिकता की चल रही भोगमय आंधी के बीच यह जरूरी हो गया है कि हम स्‍वयं बचे रहें और इस अपनी परिवार व्‍यवस्‍था से ध्‍वस्‍त होती मानव संवेदनाओं को विश्‍वभर में बचाने में सफलता पूर्वक अपने सकारात्‍मक प्रयत्‍न करते रहें।

लेखक : हिन्‍दुस्‍थान समाचार न्‍यूज एजेंसी के मध्‍यक्षेत्र प्रमुख एवं सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं।