संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तरह से अपनी बात रखी है उससे दुनिया यह ठीक से जान गई कि भारत सरकार गरीबी मिटाने के लिए काम कर रही है। मानव अधिकार संरक्षण के लिए कार्य कर रही है। इन्फॉरमेंशन टेक्नोलॉजी में वैश्विक ताकत बनने के लिए काम कर रही है और तो और डाक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक बनाने के लिए कार्य कर रही है। कुल मिलाकर भारत के पास विश्वभर को देने के लिए अपनी पर्याप्त ऊर्जा है, जो उसके नागरिकों के माध्यम से आज चहुंओर अभिव्यक्त हो रही है।
यहां सुषमा स्वराज ने जोर देकर विश्वभर के देशों के बीच पूछा कि कौन है आतंकवाद का शौकीन देश? आतंकियों के कोई बैंक खाते नहीं हैं, उनकी कोई फैक्ट्री नहीं है, फिर उन्हें हथियार कौन देता है? कौन धन मुहैया कराता है? कौन सहारा, संरक्षण देता है? वास्तव में दुनिया में कुछ ऐसे देश हैं जो आतंकियों को बोते, उगाते और पालते हैं। आतंकवाद का निर्यात भी करते हैं। आतंकवाद के ऐसे शौकीन देशों की पहचान होनी चाहिए। और, उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए। वस्तुत: अपने भाषण के दौरान भारत की विदेश मंत्री स्वराज का सीधे तौर पर जोर इस बात पर था कि विश्व समुदाय में ऐसे देशों को कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए जो आज आतंक को प्रश्रय देते हैं। दुनिया को यह देखना होगा कि जिनके द्वारा भी आतंकियों को पैसा, हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं, उन्हें चिन्हित कर ऐसे देशों पर सख्त कार्यवाही की जाए।
यूएनओ के मंच पर भले ही पाकिस्तान को ध्यान में रख, उसके आतंक प्रोषित क्रिया कलापों को लेकर ये सभी बाते कही गई हों, किंतु हैं तो यह सभी सच । वर्तमान में इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत ने विश्व के इस शक्तिशाली मंच पर अपनी जो-जो भी बातें पाकिस्तान को लेकर कही हैं उनमें से कुछ भी झूठ हो । सुषमाजी का यह तर्क भी बहुत सत्य था कि हमने दुश्मनी छोड़ मित्रता के आधार पर सारे मसले सुलझाने की कोशिश की। हमने पिछले दो बरस में मित्रता का पैमाना खड़ा किया, लेकिन हमें मिला क्या? पठानकोट, उड़ी और बहादुर अली? बहादुर अली तो जिंदा सुबूत है कि सीमा पार से आतंकी आया है।
इसमें भी जो सबसे ज्यादा जोर सुषमा स्वराज ने दिया, वह बात यही है कि आतंकवाद पर दुनियाभर में दो प्रकार के नियम नहीं हो सकते हैं। किसी देश के लिए कुछ और किसी देश के लिए कुछ । इसलिए भारत ने यूएनओ में इस बात को एक बार फिर दोहराया कि आतंकवाद के खिलाफ व्यापक वैश्विक संधि (सीसीआईटी) का जो प्रस्ताव पिछले 20 सालों से लंबित है उस पर गंभीरतापूर्वक अमल हो और विश्व के सभी देश मिलकर कार्य करना आरंभ करें । वास्तव में आज आतंकवाद के खिलाफ कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं जो आतंकवादियों को सजा दे सके, इसका फायदा आतंकी गुट उठा रहे हैं, इसलिए विश्व के देशों को आतंकवाद के मुद्दे पर एक हो जाना चाहिए।
सुषमा स्वराज ने जो दूसरी महत्वपूर्ण बात यूएनओ के मंच से रखी वह है कि संयुक्त राष्ट्र का निर्माण 1945 में कुछ ही देशों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। किंतु आज की वास्तविकता और परिस्थितियों में पिछले 72 सालों में बहुत बदलाव आया है, इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी सदस्यता का विस्तार होना चाहिए। देखाजाए तो संयुक्त राष्ट्र, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाने का तत्कालीन उद्देश्य यही रहा था कि यह संगठन अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्य करेगा। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश हैं। इस संस्था की संरचना में आम सभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मिलित हैं। किंतु कहीं न कहीं यहां भी शक्ति सम्पन्न देशों अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस और यूनाइटेड किंगडम की मनमानी देखने को मिलती है।
भारत की विदेश मंत्री स्वराज का यहां सीधा यही कहना था कि कुछ देशों की बपौती नहीं बनना चाहिए इस अंतरराष्ट्रीय मंच को । ऐसा नहीं होना चाहिए कि आतंकवाद पर यदि भारत के समर्थन में अमेरिका खड़ा होता है तो चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने का नाजायज फायदा उठाए और हमारा विरोध यह कहकर करे कि आतंकवाद पर पाकिस्तान से त्रस्त होने की भारत की बातें सच नहीं। वस्तुत: आतंकवाद तो आतंकवाद है, वह हर देश का एक सा सच होगा, उसे अलग तरह से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए।
वास्तव में यह हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संयुक्त राष्ट्र के मंच से पाकिस्तान की आतंकियों को पालने की मंशा पर एक करारा प्रहार है। श्रीमती स्वराज ने इस मंच से पाकिस्तान को बिंदुवार जवाब दिया है। वहीं उसे यह भी जता दिया कि जो स्वयं ही मानवाधिकारों पर अमल नहीं करता उसे भारत को लेकर मानवाधिकार की बातें करने का कोई नैतिक हक नहीं। पहले पाकिस्तान आतंक को पालना बंद करे तब मानवाधिकारों की पैरवी करे।
इस सब के बीच सच यही है आतंकवाद भारत या फ्रांस, अमेरिका या किसी अन्य एक देश का दुश्मन नहीं है, यहपूरी दुनिया और मानवता का दुश्मन है । इसे उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्प और प्रबल इच्छाशक्ति चाहिए जोकि आज यूएनओ के सदस्य देशों के बीच स्थायी एकमत स्वरूप में दिखाई नहीं देती है। शायद, सुषमाजी यही कहना चाहती थीं कि आतंकवाद पर सभी देश एकमत हों और जो देश आतंकवादी गतिविधियों में सम्मलित पाया जाए, उसका सार्वजनिक वहिष्कार हो। यदि आज यह सुझाव दुनिया के देश स्वीकार कर लें तो संभवत: अलग-थलग पड़ने के भय से हो सकता है कि विश्व में आतंकवाद गतिविधियों में कमी आ जाए।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"सलामत रहो साजना" (चर्चा अंक 2751)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'