शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

व्यंग्य: हमारे घरों में ही तमाम जाकिर बैठे हैं साहब !

आकाश से इन दिनों जितना तेज पानी बरस रहा हैइंसान की देह उतनी ही ठंडी होती जा रही हैलेकिन देश और दुनिया में कमबख्त ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो अपनी करतूतों से आदमी का दिमाग गरम रखने का काम करते रहते हैं। मैं भी आज औरों की तरह सुबह अखबार पड़ते वक्त सोच रहा था कि क्यों नहीं इंसानियत के दुश्मन यह सोचते हैं कि जिन्हें वे दु:ख पहुंचाने वाले हैं या पहुंचा रहे हैं वे भी उन्हीं की तरह किसी के परिवार का हिस्सा हैं और उनके भी जीवन को लेकर कुछ अरमान हैं। इस विचार में अविरल डूब चुका मैं स्थतिप्रज्ञ की भांति एक स्थान पर बिना हिले-डुले बैठा था कि तभी दरवाजे की घण्टी बजीमैं विचारों की तल्लीनता से बाहर निकला, और जैसे ही दरवाजा खोला तो  देखा सामने रामभुलावन खड़ा है। वह भी मुझे अपनी तरह ही किसी विचार में खोया हुआ नजर आया।
जराराम भुलावन का परिचय भी बता दूं आपको। असल में रामभुलावन मेरा वह सहयोगी है जो सुबह और शाम मेरे घर आता है और मेरे परिवार से जुड़े तमाम छोटे-बड़े काम निपटाने में सहयोग करता है। ज्यादा पड़ा लिखा नहीं हैकभी बचपन में नेपाल से अपने माता-पिता के साथ भारत आया था और अब उसकी राष्ट्रीय पहचान भारतवर्ष है। उसके राम से राम भुलावन बनने तक किस्सा भी बड़ा मजेदार है। एक बार जब मैंने पूछा भाई राम भुलावन ये तो बताओ कि तुम्हारे नाम के आगे राम शब्द हैंसमझ में आता है लेकिन पीछे जो भुलावन हैयह क्या माजरा हैभुलावन तो तुम्हारा कोई उपग्रोत्र या परिवारिक पहचान है नहींफिर यह शब्द कहां से तुम्हारे नाम के साथ चिपक गया।

उसने बड़े ही विरले अंदाज में हंसते हुए कहा, साहब क्या था कि मेरी मां भगवान श्रीराम की बहुत बड़ी भक्त थीइसलिए उन्होंने मेरा नाम 'राम' रख दिया जिससे कि वह मेरे नाम के साथ अपने आराध्य का ध्यान और नाम संकीर्तन कर सकें। मां ने ही सबसे पहले मुझे बताया था कि नाम के महात्म से जुड़ी एक कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में हैजिसमें पिता का उद्धार भगवान इसलिए करते हैं कि उसके पुत्र का नाम 'नारायण' थाअजामिल नाम के एक पिता का वृत्तान्त उसमें आया है। मां ने भी मेरा नाम राम रखा जिससे कि उनका भी उद्धार अजामिल की तरह अपने आराध्य का नाम लेते हुए हो जाए।

मैंने फिर जोर देकर पूछा कि भाई ये तो बताओ कि 'भुलावन' का क्या चक्कर है। तब उसने कहा साहबयह भी मेरी मां से ही जुड़ा हैमां मुझे रोज-रोज अपने साथ भगवान राम की पूजा करने को कहती और मैं उनकी एक घण्टे तक चलने वाली पूजा से भागताकभी कुछ बहाना बनाता तो कभी कुछजब वह अपनी पूजा से निपटकर मुझे पूजा करने को कहती तो टालमटोल कर इधर-उधर भाग जाता, जब मां डंटती तो मैं कह देता कि भूल गया। ये भूल गया शब्द बार-बार सुनकर मां ने मुझे उलाहना देने की मंशा से भुलावन कहना शुरु कर दिया। मेरे दोस्तों के सामने भी एक-दो बार इसी नाम से मां ने मुझे पुकाराफिर क्या था मेरे दोस्तों ने मुझे भुलावन भुलावन कहकर चिढ़ाना शुरू कियाऔर फिर आगे साहब पता नहीं कबमैं राम से रामभुलावन बन गया। मैंने राम के साथ इसे भी अपना असली नाम मान लिया । जिसके बाद से मेरा पूरा नाम साहबरामभुलावन ही है।

हांतो मैं आपको पता रहा था कि रामभुलावन के घण्टी बजाने से मैं अपने विचारों की तंद्रा को तोड़कर बाहर निकला था। मेरे मन में विचार चल रहा था कि क्यों लोग इंसान को इंसान नहीं समझ रहे हैंकभी धर्म के नाम परकभी विचारधारा के नाम पर तो कभी व्यक्तिगत स्वार्थ में पड़कर एक दूसरे को धोखा देने और हत्या तक करने में लगे हुए हैं। जब रामभुलावन आया था तब मेरे हाथ में अखबार था और मैं मुस्लिम धर्मोपदेशक जाकिर नाईक के बारे में पढ़ रहा थाजिसका कि नाम ढाका के रेस्त्रां में बेगुनाहों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकवादियों के प्रेरणास्त्रोत बनने के रूप में सामने आया है।

रामभुलावन ने देखा कि मेरी भाव मुद्राएं मुझे किसी चिंता में डुबोए हुए हैंतो उसने  तपाक से पूछाक्या बात है साहब आप इतने उदास क्यों हैं ?

राम भुलावन का प्रश्न वाजिब थावैसे भी जब हम किसी को चिंता में डूबा देखते हैं तो सहज ही पूछ बैठते हैं कि बताओ क्या बात है ? कोई परेशानी तो नहीं?

मैंने बिना कुछ बोले उसके सामने अखबार बढ़ा दियाउसने भी जाकिर नाईक के बारे में पढ़ाइसके बाद उसकी प्रतिक्रिया गौर करने लायक थी। रामभुलावन बोला कि हमारे घरों में ही तमाम जाकिर बैठे हैं साहब ! कुछ इन जाकिर की तरह प्रकट हो जाते हैं और कुछ चुपके-चुपके जहर घोलने का काम करते हैं। इतिहास के झरकों में झांककर उसने मुझसे उलटा प्रश्न कियाबताए साहबगोधरा में कार सेवकों को जलाने वाले कौन लोग थेउसके बाद प्रतिक्रिया स्वरूप हुए बेकरी काण्ड के लोग कौन थे?  मुजफ्फर पुर के दंगों के लिए किसे दोषी ठहराया जाए। मालदा के लिए कौन दोषी है। उसके एक के बाद एक सवाल तेज तलवार की धार की तरह मेरे हृदय की संवेदनाओं को छल्ली कर रहे थे। लेकिन मैं चुपचाप शांतचित सुने जा रहा था। उसने आगे कहा, पश्चिम बंगाल के कई शहरों में अभी हाल ही में कुछ लोगों ने घर-घरदुकान-दुकान पर्चे बांटे हैंउनमें जो लिखा है उस पर गौर फरमाएं, 
       
            इस्लामिक संगठन इस्लामिक खिलाफत मुजाहिदीन ने खासकर पूरे उत्तरी पश्चिम बंगाल के हिस्सों में ये पर्चे बाजार में बांटे हैंजिसमे व्यापारियों के लिए नियम बनाए गए हैं जो नियमों का पालन नहीं करेगा उसके  खिलाफ इस्लाम के अपमान का मुक़दमा शरिया अदालत में चलेगा और दण्ड दिया जाएगा। हर हिन्दू दूकानदार को अपने दुकान में ‘‘बिस्मिल्ला रहमान रहीम’’ लिखना होगा  तथा हर दुकान में ‘‘कुरान -ए-शरीफ’’ रखना होगा। सभी हिन्दू  व्यापारियों को अपनी दुकान में ‘‘काबा शरीफ’’  की फोटो लगाना अनिवार्य है। कोई भी व्यापारी अपने दुकान में किसी भी देवी देवता की फोटो नहीं रख  सकता क्योंकि उसे देख मुस्लिम ग्राहक का ईमान नष्ट होगा। सभी हिन्दू दुकानदारों को अपनी दुकान में थोड़ी सी जगह बना के रखनी होगी जिससे अगर नमाज  के  समय कोई मुस्लिम ग्राहक आ जाए तो नमाज का समय होते ही वो तुरंत उस जगह नमाज अदा कर सके। हिन्दू अपनी  जगह  पर कोई भी ऐसी चीज ना रखे जो इस्लाम में हराम है। अगर किसी रेस्तरां  में मुस्लिम  मांगे तो गौमांस मुफ्त में देना होगा कोई भी शख्स सुवर का  मांस  नहीं खा सकता अगर कोई शाकाहारी शख्स  रेस्तरां में बैठा है और मुस्लिम नॉनवेज  खा रहा है तो वो मुस्लिम शख्स को मना नहीं  कर  सकता अन्यथा उस  पर  शरीयत के मुताबिक कार्रवाई होगी।

रामभुलावन ने आगे बताया कि साहबइतना ही नहीं यहां बांटे गए पर्चो में यहां तक लिखा है कि रमजान के समय पूरे एक महीने हिन्दू को अपनी दूकान बंद रखनी होगी कोई भी हिन्दू किसी भी मुस्लिम के सामने खाना नहीं खा सकता। किसी हिन्दू को कुछ खाना है तो वो अपने  घर  के अंदर ही खा सकता  है या ऐसी जगह जहाँ मुस्लिम की नजर ना पड़े  अन्यथा हिन्दू के ऊपर कार्रवाई  की जाएगी। कोई महिला घर  के बाहर नौकरी नहीं करेगी अगर बहुत जरूरत करना ही पड़े तो उसे बुरखे में निकलना  होगा और पूरी पर्दा करना होगा और शरीयत के नियम मानने होंगे।

उसने मुझे बताया कि ये संगठन मूलतः  बांग्लादेश का है पर पर्चे पूरे उत्तरी पश्चिमी बंगाल में बाँट रहा है। चूंकि पश्चिम बंगाल में करोड़ की संख्या में बांग्लादेशी और भारतीय मुस्लिम रहते हैं। अतः सभी हिन्दू और हिन्दू व्यापारियों को ये नियम मानने का फरमान सुनाया गया हैअन्य सभी मीडिया इस खबर पर एकदम   चुप  हैं। हिन्दू इलाके में दहशत  में जीने को मजबूर हैं। सरकारें सो रही हैंबुद्धिजीवी सो रहे हैं मीडिया पहले से सेकुलर की चदर तले नींद  में है।

रामभुलावन यहीं नहीं रुकाउसने आगे अपना कहना चालू रखावह मंदसौर से जुड़ा हालिया किस्सा सुनाने लगाबोलासाहब अरे आप दूर क्यों जाते हैंईद को बीते अभी दो दिन ही बीते हैंईद आने के पहले रमज़ान के महीने में27वीं रात सबसे पवित्र मानी जाती है। इसे Night of destiny भाग्यशाली रात  या अरबी में Lailatul Qadr कहते हैं । ऐसा माना जाता है कि इसी रात को अल्लाह तआला ने क़ुरआन नाज़िल की थी। भाई लोग सारी रात जाग के जश्न मनाते हैं। मौलानाओं की तकरीरें होती हैं। लेकिन इस दिन यहां के शांतिदूतों का जश्न मनाने का तरीक़ा थोड़ा अलग होता है। शांतिदूत रात भर bikes पे हुड़दंग करते हैं। हिन्दू मुहल्लों में खड़ी bikes गिरा देते हैं।

गाड़ियों के शीशे फोड़ दिए जाते हैं। इस से पहले मन्दसौर के इर्द गिर्द छोटे कस्बों और गाँवों में ऐसे ही जश्न मनाया जाता था और हिन्दू चुपचाप बर्दाश्त कर लेते थे। बीते दो दिन पूर्व 27वीं रात भाई लोग ने फिर जश्न मनाया। पूरे शहर में रात भर आसमानी किताब उतरी। सुबह लोग सो के उठेकोई प्रतिक्रिया नहीं। कोई कुछ नहीं बोला। सब शांत रहे। आँखों ही आँखों में इशारे हुए। किसी को कानोकान खबर न हुई और यह क्या  ईद से एक दिन पहलेजब कि बाज़ार में खरीदारी का दिन थापूरा मन्दसौर बंद था। बाज़ारों में सन्नाटा पसरा था। किसी ने कोई बंद या हड़ताल का आह्वाहन नहीं किया। ये स्वतः स्फूर्त बंद था। 

बताओ, साहब बताओ, ईद के एक दिन पहले की रात अपने मध्यप्रदेश के मंदसौर शहर में देर रात सड़कों पर हुल्लड़ मचाने और लोगों के घरों के बाहर लगे वल्ब व खड़ी गाड़ि‍यों के शीशे फोड़ने वाले कौन थेजिनके कारण पूरा शहर ईद के दिन भी बंद रहा।

 रामभुलावन की इन सभी बातों में बड़ी गंभीरता थीतार्किक विवेचन और प्रश्न में गुथे गूढ़तम प्रश्न थेजिनका कि मेरे पास कोई जवाब नहीं था। 
लेखक- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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