लम्बे समय के
इंतजार और प्रत्याशाओं के बाद मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी पार्क अपने जीवंत रूप
को प्राप्त कर जनता के लिए नियमित खुल गया है, इससे यह
बात साफ हो गई है कि मध्यप्रदेश की सरकार सिर्फ विकास की बात नहीं करती, उसका ध्यान जैव विविधता और वन्य प्राणी संरक्षण तथा
उनके विकास पर भी है। कहा जा सकता है कि इस मायने में यहां सफेद बाघ उद्यान का
निर्माण तथा उसके विकास की सतत् प्रक्रिया का होना अपना कुछ विशेष महत्व रखता है।
सतना वन संभाग के
मुकुंदपुर वन क्षेत्र में स्थित ‘‘मांद रिजर्व’’ 643.71
हेक्टेयर में स्थपित है। इसके 100 हेक्टेयर क्षेत्र में से मुकुन्दपुर चिड़ियाघर
75 हेक्टेयर में तथा 25 हेक्टेयर में सफेद बाघ सफारी का निर्माण 2012 से शुरू किया गया था। यहां सिर्फ व्हाइट टाइगर ही
रखे जाएंगे। शुरुआत में 4 टाइगर रहेंगे। इसी में बन रहे चिड़ियाघर में
करीब 40 से ज्यादा छोटे-बड़े वन्य प्राणियों को भी
रखा जाएगा। दर्शकों के घूमने के लिए दो बसें रखी गई हैं। इसके निर्माण में 54 करोड़ की लागत आई है। लगभग 40 वर्ष बाद मुकुंदपुर वन्य जीव पर्यटन केन्द्र के तौर
पर विकसित हो रहा है जहां जियोलोजिकल पार्क, रेस्क्यू
सेंटर, व्हाइट टाइगर सफारी और प्रजनन केंद्र आदि हैं।
सफेद बाघों का इतिहास
बताता है कि विश्व का पहला सफेद बाघ 1951 में
सीधी के जंगलों में तत्कालीन महाराजा मार्तंड सिंह द्वारा पकड़ा गया था और उसे
लाकर गोविंदगढ़ में रखा गया। धीरे धीरे इसी मोहन नामक सफेद बाघ के वशंज दुनियाभर
के जंगलों और चिड़ियाघरों तक पहुंच गए, लेकिन वे
रीवा और विंध्य क्षेत्र में लुप्तप्राय: हो गए थे। जिसे कि मध्यप्रदेश के जनसंपर्क
और खनिज मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के अभिनव प्रयासों से वापिस उसके मूल प्रजनन
क्षेत्र में लाया गया है।
वास्तव में यह
मध्यप्रदेश की धरती पर विंध्य क्षेत्र में उस प्राचीन विरारत को सहजने और पुन:
अतीत को वर्तमान कर देने का प्रयास है, जिसे कुछ
वर्ष पहले तक असंभव माना जा रहा था। अतीत बन चुकी सफेद बाघ की दहाड़ अब फिर से
विन्ध्य की धरती पर गूँजने लगी है। वस्तुत: प्रदेशवासियों में खासकर विंध्यक्षेत्र
के रहवासियों की यह प्रबल आकांक्षा थीं कि विश्वभर में सफेद बाघ से जो गौरव उसे
कभी प्राप्त था, वह उसे पुनः मिलना चाहिए। आज मुकुन्दपुर में
सफेद बाघ की वापिसी न केवल इस क्षेत्र के लिए बल्कि संपूर्ण मध्यप्रदेश के लिए एक
भावनात्मक विषय है, क्यों कि पूरी दुनिया में सबसे पहले इसी अंचल
में सफेद शेर पाया गया था और यह धरोहर समय के साथ इस क्षेत्र से विलुप्त हो गई थी।
अब एक बार फिर सफेद शेर अपने घर पूरी शान-शौकत के साथ वापिस लौटा है, इस दृष्टि से भी यह टाइगर सफारी का निर्माण किया जाना
महत्वपूर्ण हो गया है।
विश्व के सिर्फ 12 देशों में ही बाघ पाए जाते हैं, जिन्हें शक्ति और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। बाघ
वैश्विक विरासत है इसलिए बाघ संरक्षण की दिशा में किया गया मध्यप्रदेश सरकार का यह
प्रयास आज अभिनव कहा जाएगा। यह अहम इसलिए भी हो गया है क्यों कि इंसानी दुनिया के
जंगलों में किए गए अत्याधिक हस्तक्षेप के कारण आज दुनिया में बाघ की आठ
प्रजातियों में से तीन प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। अब केवल पांच बची है, जिनमें बंगाल (रायल बंगाल टाइगर), साइबेरियन, साउथ-चाइना, इंडो-चायनीज और सुमात्रा प्रजाति के बाघ अभी शेष हैं, जबकि बाली, जावा एवं
एक अन्य प्रजाति विलुप्त हो चुकी हैं।
विश्व के
वैज्ञानिकों ने पर्यावरण की दृष्टि से बाघ का महत्व जानकर इसका वैज्ञानिक संवर्धन
वर्ष 1963 के बाद शुरू कर दिया था, जो अब तक जारी है। भारत में 1969 में बाघ के शिकार पर प्रतिबंध लगाकर 1972 में वन्य-प्राणी
संरक्षण अधिनियम के लागू होने से बाघ संरक्षण के काम को बल मिला। भारत के लिए यह
गौरव की बात है कि दुनिया की संपूर्ण आबादी के 70 प्रतिशत बाघ भारत के हैं। देश में बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में
मान्यता प्राप्त है। यह मान्यता बाघ को भारत सरकार ने यूं ही नहीं दी है, वस्तुत: विश्वभर में आज प्राप्त होने वाले बाघों की
संख्या का आंकड़ा 2 हजार 226 है, जिसमें से लगभग 2 हजार की
संख्या में बाघ भारत में रहते हैं।
मध्यप्रदेश के लिए
गर्व की बात इसमें यह है कि भारत सरकार की योजना में टाइगर रिजर्व कान्हा को बाघ
संरक्षण के लिए सबसे पहले चुना गया था। देश में वर्तमान में लगभग 49 टाइगर रिजर्व हैं, इनमें से
सात मध्यप्रदेश में हैं,
अब मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी
का नाम जुड़ जाने के बाद बाघ संरक्षण का यहां आठवां स्थान हो गया है।
मुकुंदपुर व्हाइट
टाइगर सफारी को लेकर केंद्र द्वारा की गई घोषणा भी विशेष मायने रखती है, जिसमें कहा गया है कि सफेद बाघ उद्यान का उनके
मंत्रालय के सालाना बजट में सबसे पहला अधिकार होगा और जल्द ही इसे सेवन स्टार का
दर्जा मिलेगा। यह मध्यप्रदेश वासियों के लिए निश्चित ही कम गौरव की बात नहीं है कि
केंद्र सरकार से इस प्रकार का सहयोग मिले और दुनिया में मध्यप्रदेश राज्य का मान
बढ़े। वास्तव में मध्यप्रदेश वासियों के लिए आज यह गौरव की बात है।
यहां मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान का विंध्य वासियों से कही यह बात भी अहम है कि वे इसे एक साल के
अंदर विश्व का सबसे पसंदीदा टाइगर सफारी बनाने के लिए वचनबद्ध हुए हैं। सच ही है
यहां बाघ आया है तो पर्यटक भी आएंगे। जिससे युवाओं को रोजगार मिलेगा। यह एक काम ही
मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में विकास के कई नए अवसरों का कारक बनेगा।
मुख्यमंत्री ने रीवा हवाई पट्टी को अंतरराष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा बनाने की
घोषणा के साथ सतना हवाई पट्टी का विस्तार करने की बात कही है, जिससे कि दुनियाभर से पर्यटक सफेद बाघों को देखने यहां
आ सके। दुनिया के वन्यजीव प्रेमी और विशेषज्ञों में यह स्वाभाविक जिज्ञासा रही है
कि सफेद बाघ के मूल स्थान को जाना जाए। इस दिशा में मुकुन्दपुर ऐसे सभी लोगों की
सहज जिज्ञासाओं को शांत कर पाएगा,
आज इसके शुरू हो जाने से यह आस
बंध गई है।
प्राणी जगत के लिए
सफेद बाघ प्रकृति के दिए किसी उपहार से कम नहीं है। मध्यप्रदेश के लिए यह सौभाग्य
की बात है कि इस प्रकार के बाघ को सबसे पहले यहीं देखा गया और यहां से होकर यह
दुनिया के कई देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचा। निश्चित ही आज विश्वभर
के वन्यप्राणी उद्यानों में जो भी सफेद बाघ विचरण कर रहे हैं, वे सभी मध्यप्रदेश की दुनिया को दी गई अनुपम सौगात है।
वस्तुत: स्वस्थ्य पर्यावरण के लिए प्रत्येक जीव का कितना महत्व है, आज यह बात किसी से छिपी नहीं है, किंतु यह कम ही देखने को मिलता है कि इसके संरक्षण के
प्रयास संवेदनात्मक स्तर पर जाकर किए जाएं, इस दिशा
में कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश का सफेद बाघ उद्यान एक अनुपम मिशाल के रूप में
सभी के समक्ष प्रस्तुत हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अभिनव प्रयोग और प्रयास का अनुसरण अन्य राज्य
सरकारें भी करेंगी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-07-2016) को "सच्ची समाजसेवा" (चर्चा अंक-2407) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी खबर है
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