भारत में जनसंख्या अभी 121 करोड़ पहुंच चुकी है और इसका निरंतर यहां तेजी से बढ़ने का क्रम जारी है। आगे यदि यह इसी तरह बढ़ती रही तो शीघ्र ही देश की जनसंख्या 150 करोड़ और फिर 200 करोड़ पर पहुंच जाएगी। खतरा आगे इसी बढ़ती जनसंख्या के आंकड़े से है। वस्तुत: जब किसी भी देश की जनसंख्या उसके आवश्यक संसाधनों की पूर्ति के समर्थन में हो तो वह उस देश के लिए लाभकारी होती है, किेंतु जब वही जनसंख्या मांग और पूर्ति से आगे होकर अपना विकराल रूप धारण करले तो वह उस देश के लिए मुख्य मानवसंसाधन का केंद्र न रहकर वहां के लिए अभिशाप बन जाती है।
वैसे देखाजाए तो भारत की वर्तमान ताकत उसका युवा मानव संसाधन का होना है। किंतु इसी के साथ जो सबसे बड़ा सवाल है, क्या हमारे पास अपनी बढ़ती युवा जनसंख्या के लिए पर्याप्त रोजगार और उनको एक विकासपरक जीवन दे सकने के लिए आवश्यक पर्यावरणीय संसाधन हैं? निश्चित तौर पर इसका जवाब नहीं है। भारत के कई लाख युवा आज दुनिया के अनेक देशों में कार्य कर रहे हैं और वे वहां अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ भारत में भी निरंतर विदेशी पूंजी का प्रवाह बनाए हुए हैं। जिससे कारण कहना होगा कि देश की अर्थव्यवस्था को उनसे पर्याप्त ताकत मिल रही है।
वहीं दूसरी तरफ जो तस्वीर भारत में युवाओं की है उसके कारण जो स्थितियां निर्मित हो रही हैं, उसको यदि देखें तो यहां युवाओं की संख्या 24 करोड़ 30 लाख से ज़्यादा है, अपनी इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए आज न तो केंद्र सरकार के पास पर्याप्त रोजगार है और न ही किसी राज्य सरकार के पास इन युवाओं की क्षमताओं का भरपूर उपयोग कर लेने की कोई ठोस योजना है। केंद्र सरकार का एक आंकड़ा बताता है कि देश की आबादी के लगभग 11 फीसदी अर्थात् 12 करोड़ लोगों को नौकरियों की तलाश है। इन बेरोजगारों में 25 फीसदी 20 से 24 आयुवर्ग के हैं, जबकि 25 से 29 वर्ष की उम्र वाले युवकों की तादाद 17 फीसदी है। 20 साल से ज्यादा उम्र के 14.30 करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है। इसमें भी 12वीं तक पढ़े युवाओं की तादाद लगभग 2.70 करोड़ है, जिन्हें रोजगार की तलाश है। तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले 16 फीसदी युवा भी बेरोजागारों की कतार में हैं, यानी की तकनीकि दक्षता प्राप्त कर लेना भी रोजगार मिलने की गारंटी नहीं है।
इन आंकड़ों से साफ है कि देश में युवाओं की तादाद के अनुपात में नौकरियां नहीं हैं। दूसरी ओर देश में यह दृष्य आम है कि नौकरियां पैदा करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार के साथ ही सभी राज्य सरकारें अपने स्तर पर कौशल विकास और लघु उद्योगों को बढ़ावा दे रही हैं, लेकिन इसके बावजूद देश से बेरोजगारी की मुक्ति का कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ रहा। इस अनियंत्रित हो रही जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कड़े उपाय, नीति व कानून लागू करने की मांग करते हुए हाल में सुप्रीम कोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं भी दाखिल हुई हैं।
याचिकाओं में कहा गया है कि सरकार को एक ऐसी नीति बनाने का आदेश दिया जाए जिसमें दो बच्चों की नीति अपनाने वालों को प्रोत्साहन और नीति का उल्लंघन करने वालों को उचित दंड देने की व्यवस्था हो।
उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दाखिल करनेवालों ने जनसंख्या से देश की प्रगति, संसाधन और विकास पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को बताते हुए इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी नीतिगत उपाय किये जाने की जरूरत बताई है। साथ में यह भी बताया है कि कैसे जनसंख्या वृद्धि का बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, खराब सेहत, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण पर असर पड़ रहा है क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधन सीमित हैं।
यहां कहा गया है कि जनसंख्या वृद्धि पर रोक सिर्फ कड़े नीतिगत उपायों से ही संभव है। याचिकाओं में मांग की गई है कि कोर्ट सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक ऐसी नीति बनाने का आदेश दे जिसमें दो बच्चों की नीति अपनाने वाले परिवारों को प्रोत्साहन और उसका उल्लंघन करने वालों को उचित दंड की व्यवस्था हो याचिकाकर्ताओं के कुलमिलाकर करने का अर्थ यही है कि जनसंख्या विस्फोट से देश का सारा विकास गड़बड़ा गया है। इसे तुरंत ठीक किया जाए। इसके बावजूद प्रश्न यही है कि क्या यह जनसंख्या विस्फोट सरकार के या न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद बने नियमों से रुक सकता है? कहना होगा नहीं । आज देश में जनसंख्या वृद्धिके जो महत्वपूर्ण कारण हैं, उनमें अशिक्षा तो है ही साथ में कुछ धार्मिक कारण भी जिम्मेदार हैं।
इसके अतिरिक्त भारत की जनसंख्या बढ़ाने में विदेशी घुसपैठियों का भी बहुत बड़ा योगदान है। देश में आज भी परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को इस्लाम विरोधी बताया जाता है। ऐसा कहनेवालों का मत है कि महिलाएं बच्चा पैदा करने के लिए ही होती हैं। मुस्लिम परिवार गर्भ निरोधक का इस्तेमाल बंद करें और ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे पैदा करें।
वस्तुत: इससे देश में पिछले दिनों में हुआ यह है कि एक हिन्दू महिला की तुलना में मुस्लिम महिला 1.1 अधिक बच्चों को जन्म देती है। केवल दिल्ली में ही मुसलमानों की जनसंख्या साढ़े दस गुना बढ़ी है। हरियाणा में यह तीन गुना बढ़ी है। कोलकाता में मुसलमान 18 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं। असम के कुछ भागों में मुस्लिम संख्या 31.8 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रही है।
स्वतंत्रता से पूर्व मुस्लिम जन्म दर 10 प्रतिशत थी जो अब 25 प्रतिशत से अधिक हो गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार शहरी क्षेत्र में हिन्दू जनसंख्या 26 प्रतिशत तो मुस्लिम जनसंख्या 36 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जबकि उनकी मृत्यु दर हिन्दुओं की तुलना में कम है। एच.एफ.एच.एस. के आंकड़े बतलाते हैं कि हिन्दुओं की मृत्यु दर 9.6 प्रतिशत है तो मुस्लिम की 8.9 प्रतिशत।
बात यहां केवल हिन्दू मुस्लिम या अन्य किसी धर्म की नहीं है। विषय यह है कि जनसंख्या पर कैसे नियंत्रण किया जा सके। केंद्र और राज्य सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के लिए कई वर्षों से जनजागरण के प्रयास कर रही हैं। पहले हम दो हमारे तीन से होते हुए, हम दो हमारे दो पर आकर अब बच्चा एक ही अच्छा के स्लोगन पर सरकार का जनसंख्या नियंत्रण कैंपेन चल रहा है। सरकार इससे आगे, ‘नहीं चाहिए हम को बच्चा’ पर चाहकर भी नहीं जा सकती है।
वस्तुत: ऐसे में समाज को ही आगे आकर इस विकराल हो चुकी जनसंख्या को काबू में करना होगा। प्रकृति के संसाधन सीमित हैं उन्हें असीमित नहीं किया जा सकता जबकि बढ़ती जनसंख्या संसाधनों पर भारी बोझ है।
वास्तव में बच्चे भगवान की देन और अल्लाह की नेमत हैं, इस सोच से ऊपर जब भारतीय समुदाय उठेगा तभी भारत में जनसंख्या की बड़ती समस्या से समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है।