सोमवार, 6 नवंबर 2017

मध्‍यप्रदेश में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों का होनेवाला राज्य-स्तरीय सम्मेलन ?

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का राज्य-स्तरीय सम्मेलन 17-18 नवम्बर को भोपाल में आयोजित होने जा रहा है। इसे लेकर यहां तक तो ठीक है कि जिस परंपरा का आरंभ पिछले वर्ष ही राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन लघु उद्योग भारती के प्रयासों से हुआ है, उसे आगे सतत बनाए रखने के लिए इस वर्ष भी इस तरह का यह आयोजन राज्‍य में हो रहा है। सम्मेलन में आकर्षक प्रदर्शनी में राज्य के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमी अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के साथ ही वृहद उद्योगों एवं सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम भी यहां अपने स्टॉल लगाएंगे। सरकार उम्‍मीद कर रही है कि यह प्रदर्शनी वृहद उद्योगों एवं एमएसएमई उद्योगों के लिए एक ऐसा प्लेटफार्म होगा, जहाँ दोनों तरह की इकाइयों को आपसी संवाद के अवसर मिलेंगे। इन इकाइयों के बीच व्यापार की व्यापक संभावनाएँ बढ़ेंगी। किंतु जिस तरह की चिंताएं लघु उद्योग के सामने जीएसटी की जटिलता और राज्‍य में अब तक सिंगल विंडो सिस्टम पूरी तरह खड़ा न होने से बनी हुई है, ऐसे में क्‍या यह संभव है कि सरकार अपने जिन उद्देश्‍यों को लेकर यह आयोजन कर रही है वह सफल हो सकेगा ?

यहां राज्‍य सरकार प्रदेश में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम का राज्य-स्तरीय सम्मेलन करने के पूर्व उद्यमी विकास योजना प्रशिक्षण का शुभारंभ भी करने जा रही है, जिसमें कि प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के शिक्षित युवाओं को स्वयं का उद्यम लगाने और उद्यमी बनाने के लिए एक माह का प्रशिक्षण दिया जाना है। प्रशिक्षण के बाद प्रदेश में प्रचलित योजनाओं के माध्यम से ऋण दिलाकर उद्यम स्थापित कराए जाने है। किंतु इस पर प्रश्‍न यही है कि क्‍या इन नए खोले गए उद्यमों की आगे चलते रहने की भी कोई गारंटी होगी ?  यदि जीएसटी में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों को ध्‍यान में रखकर आवश्‍यक सुधार जीएसटी कांउन्‍सिलिंग द्वारा नहीं किए जाते हैं तो सच यही है कि प्रदेश में हो रहा यह सम्‍मेलन अपनी पूर्णता को प्राप्‍त करनेवाला बिल्‍कुल नहीं है।

लघु उद्योग भारती के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जितेंद्र गुप्‍ता, राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष डॉ. अजय नारंग और राष्‍ट्रीय सह महामंत्री सुधीर दाते जोकि मध्‍यप्रदेश के ही उद्यमी हैं, बार-बार केंद्र से लेकर राज्‍य सरकार के समक्ष सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमियों की चिंताओं को रख चुके हैं और निरंतर रख भी रहे हैं, लेकिन कहना यही होगा कि जितनी सफलता उन्‍हें अब तक मिलजानी चाहिए थी वह उनसे अभी भी बहुत दूर है।


वस्‍तुत: मध्‍यप्रदेश में ऐसे हज़ारों छोटे कारखाने हैं जिनकी सालाना कमाई 20 लाख से कम है और वे जीएसटी से बाहर हैं लेकिन वर्तमान में इन उद्योगों को कोई भी काम इसलिए देना नहीं चाहता क्योंकि इनके पास जीएसटी नंबर नहीं है। यदि यह जीएसटी का नंबर लेते हैं तो वह सरकारी व्‍यवस्‍था के झंझट में पड़ते हैं। जीएसटी में लेखा प्रणाली की जटिलता, बड़े उद्योगों के समान कर दर एवं इन्सेंटिव का बंद होना, कम्प्यूटर की अनिवार्यता जीएसटी रिटर्न में विभिन्न सूचनाएं जैसे स्टॉक विवरण, वेट वैल्यू, दोनों, विभिन्न प्रकार की सप्लाई में सप्लायर संबंधी अनेकों सूचनाएं बड़ी कम्पनियों के बराबर मांगी गई है। छोटे उद्यमियों के लिए इसकी एचसीएन कोड के अनुसार कर दरें समझ से परे हैं। अब तक छोटी इकाईयों के उत्पाद पर सरकार इन्सेंटिव के जरिये सहायता प्रदान कर रही थी, किंतु एक जुलाई से सभी छूट बंद हो चुकी है। वस्‍तुत: यह ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिनके कारण से प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों पर आज संकट के बादल छाए हुए हैं। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि  जीएसटी काउंसिल स्वयं संज्ञान लेकर राहत प्रदान करे।

सरकार को यह समझना होगा कि लघु उद्यमी वन मैन आर्मी होता है। जैसे सरकार ने इनकम टैक्स में 6 प्रतिशत नेट प्रोफिट दिखाने पर लेखा संबंधी छूट दी हुई है। इसी प्रकार जीएसटी में भी 15 प्रतिशत ग्रोस प्रोफिट दिखाने वाले लघु उद्यमियों को वेट और वैल्यू दोनों की जगह केवल वैल्यू आधारित विवरणी प्रस्तुत करने की छूट दी जाए। इस संबंध में यहां सीधा कहना है कि मध्‍यप्रदेश के वित्‍तमंत्री जयंत मलैया जीएसटी कांउन्‍सिल के सदस्‍य हैं, क्‍या वह सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के हित में केंद्र स्‍तर पर आवश्‍यक परिवर्तन कराएंगे ? यदि हां तो निश्‍चित ही इसका लाभ मध्‍यप्रदेश सहित समुचे देश को होगा।

देखाजाए तो सरकार को चाहिए कि वह इंटर स्टेट विक्रय को सरल बनाए, व्‍यवस्‍था ऐसी हो कि कम्पोजिट व्यवसायी भी अन्तरराज्यीय विक्रय कर सके। छोटे निर्माताओं को आरसीएम में छूट जारी रखी जाए। अंग्रेजी के साथ राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में भी विवरणी का ऑप्शन हो ताकि छोटे उद्यमी भी स्वयं विवरणी भर सके। अत: यह आवश्‍यक हो जाता है‍ कि मध्‍यप्रदेश में पहले एक खड़की योजना पर शीघ्र अमल हो, जिससे कि एक ही स्‍थान से सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों में आनेवाले लोग सरलता और सहजता से अपने सभी शासकीय कार्यों की खानापूर्ति करवा सकें। दूसरा यह कि मध्‍यप्रदेश के वित्‍तमंत्री जयंत मलैया एवं स्‍वयं मुख्‍यमंत्री जीएसटी की जटिलताओं पर ध्‍यान देकर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उदाहरण सहित इससे जुड़ी समस्‍याओं से अवगत कराएं। एक देश एक कर कोई बुरा नहीं, किंतु इसमें पर्याप्‍त सुधार की आज भी आवश्‍यकता है। वस्‍तुत: तभी आगे चलकर इस तरह के प्रदेश में होनेवाले कार्यक्रमों की सफलता है, नहीं तो यह भी अन्‍य कई आयोजनों की तरह ही सिर्फ एक पूर्ति आयोजन बनकर ही रह जाएगा ? जिसका कोई भले ही राजनीतिक उद्देश्‍य निकलता हो लेकिन सामाजिक समृद्धि‍ तो कतई नहीं होगा।

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हाल ही में  अमेरिका प्रवास से लौटे हैं, वे वहां एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता पर व्याख्यान के लिये वहां आमंत्रित किये गये थे । उनके अनुसार अब दुनिया में एकात्म मानववाद का विचार ही आशा का केन्द्र है। पं. दीनदयाल उपाध्‍याय का यह दर्शन वह भी जानते हैं कि पूंजीवाद का समर्थन नहीं करता और विकास में पीछे छूट चुके अंतिम व्‍यक्‍ति की चिंता की सीख देता है। आज सोचनीय यही है कि क्‍या मध्‍यप्रदेश में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यमों के स्‍तर पर यह सोच दिखाई दे रही है ?

शनिवार, 4 नवंबर 2017

आर्थ‍िक मोर्चे पर प्रधानमंत्री

: डॉ. मयंक चतुर्वेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर प्रतिपक्ष एवं अपनी पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा लगाए गए आरोपों का जिस तरह से एक के बाद एक उत्‍तर दिया हैउसके बाद उन सभी लोगों को अवश्‍य ही यह समझ जाना चाहिए कि केंद्र की भाजपा सरकार मोदी नेतृत्‍व में जो भी निर्णय ले रही हैवह देश को स्‍थायी शक्‍ति सम्‍पन्‍न एवं अर्थ व्‍यवस्‍था की दृष्‍ट‍ि से मजबूत बनाने वाले ही हैं। सच यही है कि केंद्र में मोदी सरकार अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही राष्‍ट्र को हर मोर्चे पर तकतवर बनाने की दिशा में स्‍थायी कार्य कर रही है ।

आज विपक्ष जो केंद्र पर सबसे बड़ा आरोप लगा रहा हैवह है कि देश की अर्थव्‍यवस्‍था पटरी से नीचे उतर गई हैजिसके कारण से रोजगार के अवसर कम हुए है। जीडीपी का बुरा हाल है। महंगाई चरम पर है। इस बार इन सभी आरोपों के उत्‍तर प्रधानमंत्री ने पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन के सहारे देकर अपने आलोचकों को बिन्दुवार जवाब देने का प्रयास किया है। इस प्रस्‍तुतिकरण में प्रधानमंत्री मोदी ने कई पैरामीटर्स का जिक्र किया हैजिससे कि वर्तमान में देश की अर्थव्यवसथा की मजबूत स्थितिसरकार की निर्णय शक्ति और विकास की दिशा और गति को साक्ष्‍य सहित समझाया जा सके।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आलोचकों से प्रश्‍न किया है कि क्या ऐसा पहली बार हुआ है जब देश के जीडीपी की वृद्धि किसी तिमाही में 5.7 प्रतिशत पर पहुंची है पिछली सरकार में छह साल में आठ बार ऐसे अवसर आए,जब विकास दर 5.7 प्रतिशत या उससे नीचे गिरी थी। इतना ही नहीं तो देश की अर्थव्यवस्था ने ऐसी तिमाही भी देखी हैं जब विकास दर 0.2 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत थी और उस समय भारत की मुद्रास्फीति और चालू खाते का घाटा भी अधिक था। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की स्थिति इतनी नाजुक हो गई थी कि भारत को "फ्रेजाइल फाइव" ग्रुप का सदस्य कहा जाने लगा था। उस समय बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के रहते ऐसा कैसे हो गयाहमारे देश में जीडीपी से ज्यादा महंगाई की दर थी और बढ़ते राजकोषीय घाटे तथा बेकाबू चालू खाते के घाटे पर ही चर्चा होती थी।

प्रधानमंत्री ने यूपीए और एनडीए सरकार के तीन सालों के कार्यकाल की कुछ इस तरह से तुलना प्रस्‍तुत की कि उसे पढ़ लेने के बाद कोई यह नहीं कह सकताकि इस सरकार में देश आर्थ‍िक सुधारों की ओर अग्रसर न होकर एक पल के लिए भी अर्थ की कमजोर स्‍थ‍िति में आया दिखाई दिया हो। तुलनात्‍मक रूप से देखे तो पिछली सरकार के आखिरी तीन सालों में गांवों में 80 हजार किलोमीटर सड़क बनी थी और वर्तमान सरकार ने तीन साल में 1 लाख 20 हजार किलोमीटर सड़क बनाई है। यानि 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण सड़कों का निर्माण हुआ है। पिछली सरकार आखरी के तीन साल में 15 हजार किलोमीटर राष्‍ट्रीय राजमार्ग बनाने के काम कियाजबकि भाजपा सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में 34 हजार किलोमीटर से ज्यादा राष्‍ट्रीय राजमार्ग बनवाया है।

इसी तरह रेलवे सेक्टर में पिछली सरकार के आखिरी तीन वर्षों में लगभग 1100 किलोमीटर नई रेल लाइन का निर्माण हुआ था और भाजपा शासन में 2100 किलोमीटर से ज्यादा तक पहुंच गए । वहीं इतने समय में पिछली सरकार ने 1300 किलोमीटर रेल लाइनों का दोहरीकरण किया तो मोदी सरकार में 2600 किलोमीटर रेल लाइन का दोहरीकरण किया गया है। पिछली सरकार के आखिरी के तीन वर्षों में 1 लाख 49 हजार करोड़ का पूंजीगत व्यय किया था तो इतने ही वर्षों में लगभग 2 लाख 64 हजार करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय एनडीए के कार्यकाल में संभव हुआ है । नवीकरणीय ऊर्जासौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा क्षेत्र में पिछली सरकार के बीते तीन वर्षों के कुल कार्यकाल में 12 हजार मेगावॉट की नई क्षमता जोड़ने के स्‍थान पर आज  इतने ही समय में 22 हजार मेगावॉट से ज्यादा ऊर्जा की नई क्षमता को ग्रिड पावर से जोड़ने में मोदी सरकार सफल रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि देश में विमुद्रीकरण के बाद सकल घरेलू उत्पाद अनुपात नकद में  नौ प्रतिशत आ गया हैजबकि यह पहले 12 प्रतिशत था । 10 प्रतिशत से ज्यादा की मुद्रास्फीति कम होकर अब इस साल औसतन 2.5 प्रतिशत पर आ गई है। केंद्र सरकार अपना राजकोषीय घाटा पिछली सरकार के 4.5% प्रतिशत से घटाकर 3.5% प्रतिशत पर ले आई है। भारत का विदेशी मुद्रा भण्‍डार आज 40 हजार करोड़ डॉलर के पार पहुंच गया है। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि अगली तिमाही के जो आने वाले आंकड़े हैं उसमें जीडीपी ग्रोथ 7.7 तक होने की संभावना है ।

आंकड़ों को देखें तो कोयलाबिजलीस्‍टील और प्राकृतिक गैस से प्राप्‍त आय में भी काफी अच्छी वृद्धि दर्ज की जा रही है। देश में लोन के क्षेत्र में ग्रोथ देखने योग्‍य है। केपिटल मार्केटम्‍युचल फंड और बीमा क्षेत्र आज तेजी से प्रगति पथ पर है। कंपनियों ने आइपीओ के द्वारा इस साल पहले 6 महीने में ही 25 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि मोबलाइज की है। गैर-वित्तीय संस्थान में कॉरपोरेट बॉन्ड और निजी नियुक्तियों के द्वारा सिर्फ चार महीने में ही 45 हजार करोड़ रुपयों का निवेश किया जा चुका है। मोदी कहते हैं कि ये ये सारे आंकड़े देश की मजबूत आर्थ‍िक स्‍थिति को दर्शाते हैं । इस सरकार ने समय और संसाधन  दोनों के द्वारा उसके सही इस्तेमाल पर लगातार जोर दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस एक बात पर विशेष ध्‍यान दिलाया हैवह हैहमें देश में निराशा का माहौल पैदा करने से बचना चाहिए। इस वक्‍त देश आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हैजिसमें हमें चाहिए कि देश के आम नागरिक होने के नाते हम अपने प्रधानमंत्री को इस रास्‍ते पर चलने के लिए और अधिक प्रोत्‍साहित करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थ‍िक मोर्चे पर कही सभी तार्किक बातों को समझकर यदि हम सभी व्‍यवहार करेंगे तो निश्‍च‍ित मानिए वह दिन भी अतिशीघ्र आएगा जब देश विकासशील देशों की सूची से बाहर निकलकर विकसित देशों की श्रेणी में आ खड़ा होगा। 

जीएसटी की समस्‍या से निपटने के लिए सरकार की तैयारियाँ

: डॉ. मयंक चतुर्वेदी


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी दरें घटाने का जिस तरह से संकेत दिया हैउसके बाद लगने लगा है कि देश में जीएसटी लागू होने के बाद से जैसी परिस्‍थ‍ितियां केंद्र सरकार के विरोध में निर्मित हुई हैंउनको सरकार बहुत ही गंभीरता से ले रही है। शायद सरकार को भी यह उम्‍मीद नहीं होगी कि इसके लागू होने के तीन माह बाद ही ऐसी स्‍थ‍िति आ जाएगी कि सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक पुनर्विचार करना पड़े। वस्‍तुत: जब इसकी गहराई में जाएं तो स्‍थ‍िति बहुत स्‍पष्‍ट हो जाती है। असल में आज हो यह रहा है कि देश में 1 जुलाई से टैक्स की नई व्‍यवस्‍था तो लागू कर दी गईकिंतु लोभियों पर कैसे लगाम लगेइसकी पुख्‍ता व्‍यवस्‍था नहीं की गई। परिणामस्‍वरूप देश का आम नागरिक जीएसटी के नाम पर पहले से ज्‍यादा लूटा जा रहा है और बदनाम केंद्र की मोदी सरकार हो रही है।

जीएसटी को लेकर देश में किस तरह का वातावरण निर्मित किया जा रहा हैइसके दो उदाहरण यहां दृष्टव्‍य हैं। जब देश का आम उपभोक्‍ता दाम अधिक मांगे जाने पर दुकानदार से पूछता है कि इतना दाम क्‍यों लिया जा रहा हैतो उसे दुकानदार बतलाता है कि इस पर जीएसटी लग गया है इसलिए दाम बढ़े हैं। यही बात जब एक उपभोक्‍ता से उसके केबल नेटवर्क वाले ने अचानक 50 रुपए की बढ़ोत्‍तरी करते हुए कही तो उपभोक्‍ता ने पलटकर सवाल  किया-कितना लगा है जीएसटीवह बोला 28 प्रतिशत । उसके बाद जब उससे फिर कहा गया कि टैक्स तो पहले भी लगता था अब एकदम 50 रूपए क्यों बढ़ाएतो केवल नेटवर्क वाले का उत्‍तर था कि पहले 12 प्रतिशत था अब 28 हो गया। इस पर जब उससे कहा गया कि 28 प्रतिशत होने के बाद भी आपका 50 रुपए लेना नहीं बनता तो उस केबल नेटवर्क वाले का उत्‍तर था कि आपको जो देना है सो दे दीजिए। यह हुई एक जागरुक उपभोक्‍ता की बातलेकिन क्‍या देश का हर नागरिक इतना ही जागरूक है?

इस के इतर दूसरा उदाहरण देखिए- कहा जा रहा है कि जीएसटी के कारण मऊ का हैण्डलूम साड़ी उद्योग बर्बाद हो गया। ऐसा प्रचारित करने वालों का तर्क है कि पहले जहाँ रोज़ाना 10-12 ट्रक साड़ियां मऊ से बाहर जाती थीअब सिर्फ एकाध ट्रक ही बाहर जा रहा है। बताया जा रहा हैहैंडलूम की साड़ी पर सरकार ने 12 प्रतिशत तक टैक्‍स लगा दिया है। किंतु ऐसा बिल्‍कुल नहीं हैहैंडलूम की सस्ती साड़ि‍यों पर जीएसटी है ही नहीं। सच यही है कि जीएसटी का हौव्वा बताकर देश में आज बहुत से व्यापारी जनता की जेब पर सीधा डाका डाल रहे हैं और जनता में दुष्प्रचार यह फैला रहे हैं कि मोदी सरकार ने देश को आर्थ‍िक कमजोरी के रास्‍ते पर ढकेल दिया है। उसके सत्‍ता में आने के बाद से लगातार देश में महंगाई बढ़ रही है और जीएसटी लागू होने के बाद से देश की अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैवगैरह..वगैरह। ऐसा माहौल बनाने में कुछ मीडिया संस्‍थान और भाजपा संगठन तथा सत्‍ता से जुड़े यशवंत सिन्हा जैसे असन्तुष्टों का भी बहुत बड़ा हाथ है।

ऐसे में जीएसटी के ढांचे में सुधार की गुंजाइश को लेकर वित्‍तमंत्री अरुण जेटली की कही बात को अवश्‍य ही हमें समझना चाहिए। वे कह रहे हैं कि रेवेन्यू न्यूट्रल” होने की स्थिति में दरें घटाएंगे। छोटे करदाताओं के लिए जेटली के संकेत अवश्‍य ही जहां राहत भरे हैंअर्थात् सरकार जल्‍द ही छोटे करदाताओं को कागजी खानापूर्ति के बोझ से मुक्त करने की तैयारी में है। यहां वित्त मंत्री की इस बात पर अवश्‍य ही गौर किया जाना चाहिए कि जो लोग देश के विकास की मांग करते हैंमौका आने पर उन्हें उसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी।’ स्‍वभाविक हैविकास के लिए पैसों की जरूरत होती हैइसके संकेत अभी-अभी सरकार ने दिए भी हैं । सरकार टैक्स की चोरी करने वालों के प्रति और सख्त होगी। टैक्स अथॉरिटी आने वाले समय में सोशल मीडिया की मदद से टैक्स चोरों की पहचान करेगी। इसके लिए सोशल मीडिया ऐनालिटिक्स परियोजना का 650 करोड़ रुपए का ठेका लारसन एंड टूब्रो इन्फोटेक कंपनी को दिया गया है। वस्‍तुत: यह कंपनी टैक्स चोरी करने वालों को पकड़ने के लिए वेब पेज तैयार कर रही हैजो यह बता सकेंगे कि आपके पास कितना धन हैउस हिसाब से आप सरकार को कर अदा कर रहे हैं या नहीं। जिसके बाद आपकी जानकारी टैक्स अथॉरिटी को दे दी जाएगी।

इस सब के बीच हमें यह अवश्‍य ही जानना चाहिए कि भारत आज जीएसटी लागू कर दुनिया के उन 140 देशों की सूची में शामिल हो गया हैजिनमें जीएसटी पहले ही लागू है। भारत ने जीएसटी के कनाडियन मॉडल को चुना हैजिसमें डबल जीएसटी का मॉडल चलता है। डबल जीएसटी में केन्‍द्र और राज्‍य को कर वसूलने की शक्‍ति दी जाती है। वहीं यह भी सच है कि भारत में जो जीएसटी दर देश के आम उपभोक्‍ता से ली जा रही हैवह विश्‍व के कई देशों की तुलना में अधिक है जैसे कि फ्रांस और यूके में जीएसटी की दर 20 प्रतिशत है। अभी कनाडा में जीएसटी की दर 13 से 15 प्रतिशत के बीच है। न्‍यूजीलैंड में जीएसटी को 15 प्रतिशत की दर से तथा मलेशिया में जीएसटी की दर 6 प्रतिशत और सिंगापुर में जीएसटी की दर मात्र 7 प्रतिशत है। इसी प्रकार की स्‍थ‍िति कम-ज्‍यादा जीएसटी लागू करने वाले अन्‍य देशों की है। जबकि इसके इतर भारत में जीएसटी की चार प्रभावी दरें 51218 व 28 फीसदी तक रखी गई हैं। जिसमें कि चुनिंदा वस्तुओं पर कर के अलावा जीएसटी मुआवजा उपकर भी लगाया गया है।

इन्‍हीं सब तथ्‍यों के बीच वित्‍त मंत्री आज सही कह रहे हैं कि राजस्व सरकार की जीवन रेखा होती है। इसके माध्यम से ही देश को विकासशील से विकसित राष्ट्र में तब्दील किया जा सकता है। एक बार बदलाव स्थापित हो जाएंगेफिर हमारे पास सुधार के लिए जगह होगी। भारत में अप्रत्यक्ष करों से सरकार की कमाई बढ़ रही है।अर्थव्यवस्था भी विकास कर रही है इसीलिए हमने जरूरी चीजों पर सबसे कम टैक्स लगाने का फैसला किया है।

वस्तुतः जीएसटी की दरों को लेकर सरकार के समग्र  विचार से लोगों में यह संदेश गया है कि सरकार आम लोगोंछोटे व्यापारियों की समस्याओं को लेकर संवेदनशील है और इसीलिए ही देश में आर्थ‍िक मोर्चे पर आज आशा भी जगी है कि भविष्य में उन समस्याओं और आपत्तियों का कोई न कोई निदान खोज लिया जाएगाजिनके लिए मोदी सरकार को व्यर्थ ही कटघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया जा रहा है।

भारत का विश्‍व गौरव, आत्‍ममंथन करें

 : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

श्रीराम ने जिस तरह से विपरीत परिस्‍थ‍ितियों के दौरान भी जैसा साहस दिखाया और कम संसाधन होने एवं रावण जैसी प्रशिक्षित सेना के अभाव में भी युद्ध को अपने पक्ष में कर लिया था, देखाजाए तो वैसी ही स्‍थ‍िति आज दुनियाभर में भारत को लेकर दिखाई दे रही है।  भारत की शक्‍ति का डंका आज विश्‍वभर में बज रहा है, हालांकि जितने भी प्रकार के दबाव हो सकते हैं,जनसंख्‍या घनत्‍व, स्‍वास्‍थ इत्‍यादि के वह भी हमारे सामने चुनौतियां हैं इसके बाद भी भारत जिस गति से विश्‍व में आगे बढ़ रहा है, उसे देखकर यही कहना होगा कि आजादी के 70 सालों बाद शायद ही यह स्‍वर्ण‍िम समय पूर्व में कभी आया हो। वस्‍तुत: यही निष्‍कर्ष  दुनिया के सबसे बड़े जनसंगठन राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ का भी है।

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहनराव भागवत कहते हैं कि हम 70 साल से स्वतंत्र हैं फिर भी पहली बार अहसास हो रहा है कि भारत की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। सारी दुनिया में हमारी साख बढ़ी है। भारत पहले भी था, हम सब भी थे, लेकिन भारत को गंभीरतापूर्वक देखना और भारत में दखल देने से पहले दस बार विचार करना, यह बातें केवल आज सामने ही आई हैं। सीमाओं पर सुरक्षा को चुनौती देने वालों को हमने जवाब दिया। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उन्हें जवाब मिला है। कश्मीर में देश विरोधी ताकतों की आर्थिक रूप से कमर टूट गई है। यदि हम सभी गंभीरतापूर्वक संघ सर संघचालक की कही इन बातों को समझें तो यह सभी बातें पूर्व सत्‍य प्रतीत होती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में सामरिक, आर्थ‍िक, विदेश सभी मोर्चों पर भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। दुनिया जितनी गंभीरता से आज भारत की कही बातों को ले रही है, उतना उसने कभी पहले नहीं लिया है।

इसी के साथ संघ प्रमुख यह कहने से भी नहीं चूके हैं कि हमारी सुरक्षा के लिए सीमा पर जवान जान की बाजी लगाकर कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। उनको कैसी सुविधाएं मिल रही हैं। उनको साधन संपन्न बनाने के लिए हमें अपनी गति बढ़ानी होगी। शासन के अच्छे संकल्प तो हैं, मगर इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है। कश्मीर घाटी में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं जैसी चाहिए वैसी नहीं पहुंच रही है।शासन-प्रशासन और समाज के समन्वयित प्रयास से राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई जारी रखते हुए सामान्य जनता को भारत की अत्मीयता का अनुभव कराना चाहिए। इस काम में अगर कुछ पुराने प्रावधान आड़े आ रहे हैं तो उनको बदलना पड़ेगा।

यहां वे स्‍वयंसेवक नरेंद्र मोदी एवं अन्‍य जो आज शासन तंत्र में स्‍वयंसेवक संचालन की भूमिका में हैं उनसे यह कहने से भी पीछे नहीं हटे कि शासन के अच्छे संकल्प तो हैं लेकिन इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है। लोगों के लाभ के लिए अनेक योजनाएं चलीं, साहस करने में भी शासन कम नहीं है। लेकिन जो किया है उसका हो क्या रहा है, इसे समझना चाहिए। आर्थिक सुधार के लिए देश के लिए एक मानक सही नहीं हो सकता है। देश में हर हाथ को काम मिलना चाहिए। स्वरोजगार, लघु, मध्यम और कुटीर उद्योग से सबसे ज्यादा काम मिलता है, इसलिए ही अब तक विश्व के आर्थिक भूचालों का असर भारत पर सबसे कम हुआ है । अत: इन सभी के पूर्व विकास पर अवश्‍य ध्‍यान दिया जाए।  

वहीं केरल और पश्‍चिम बंगाल राज्‍यों को लेकर भागवत का कहना सही है कि वहां जिहादी और राष्ट्र विरोधी ताकतें अपना खेल खेल रही हैं। शासन प्रशासन वहां का वैसा ध्यान नहीं देता है। वह भी उन्हीं का साथ देता है। राजनीति में वोटों की खुशामद करनी पड़ती है, पर हमें यह अवश्‍य ध्‍यान रखना चाहिए कि समाज मालिक है। अत: उस समाज को हम सभी को जागरूक बनाना चाहिए। उन्‍होंने  यह प्रश्‍न भी सही खड़ा किया है कि म्यांमार से रोहिंग्या आ क्यों गए ? उनकी अलगाववादी, हिंसक गतिविधियां जिम्मेदार हैं। इन लोगों को अगर आश्रय दिया गया तो वे सुरक्षा के लिए चुनौती बनेंगे। इस देश से उनका नाता क्या है? मानवता तो ठीक है, लेकिन इसके अधीन होकर कोई खुद को समाप्त तो नहीं कर सकता। प्रशासन और समाज के समन्वयित प्रयास से राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई जारी रखते हुए सामान्य जनता को भारत की अत्मीयता का अनुभव कराना चाहिए। इस काम में अगर कुछ पुराने प्रावधान आड़े आ रहे हैं तो उनको बदलना चाहिए।

वस्‍तुत: राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सर संघचालक ने आज अपने उद्बोधन में दो बातें बहुत स्‍पष्‍ट तरीके से स्‍वयंसेवकों और देश के समक्ष रखी है पहली यह कि देश की जनता के लिए यह बहुत गौरव का क्षण है, दुनिया आज भारत की कही बातों को बहुत गंभीरता से ले रही है और दूसरी जो सबसे महत्‍वपूर्ण बात है, वह यही है कि हम स्‍वयं का आत्‍ममंथन करें, हमने जो पिछले 70 वर्षों में प्राप्‍त किया है, क्‍या हम इतने वर्षों की सतत यात्रा में इतनाभर ही प्राप्‍त करने के अधिकारी हैं ? इसी के साथ यह कि देश में आज भी तमाम मोर्चों पर आंतरिक संघर्ष एवं चुनौतियां हैं, जिनसे सिर्फ जनता के वैचारिक जागरण से ही विजय प्राप्‍त की जा सकती है,  कुल मिलाकर भागवत संदेश यही है हम उन तमाम चुनौतियों पर विजय प्राप्‍त करने में सफल हों जो देश को कमजोर बनाती हैं।

लेखक, हिन्‍दुस्‍थान समाचार के वरिष्‍ठ पत्रकार एवं फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं ।