बड़े नोटों को बंद करने का निर्णय जिस तरह से सामने आया, उसके बाद देशभर से मिली-जुली प्रक्रिया अब तक आ ही रही है। विपक्ष जहाँ इसके लिए सरकार पर कई आरोप लगा रहा है, यहाँ तक कि देश की जीडीपी ग्रोथ गिरने तक की बात करने के साथ इससे जोडक़र अन्ये मुद्दों को भी प्रमुखता से उठा रहा है तो वहीं केंद्र सरकार से लेकर कई ऐसे संगठन भी हैं जो इस निर्णय के पक्ष में नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने देश से दो माह का समय व्यवस्था सुधारने एवं नोटबंदी की असुविधा से मुक्त होने के लिए मांगा, देश ने वह भी प्रधानमंत्री जी को दिया है। इससे जुड़ा एक पक्ष यह भी सामने आया है कि नोट बंदी का फैसला पूर्व में लिया जा चुका था, कांग्रेस सरकार के समय भी इस पर विचार हुआ था किंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राजनीतिक कारणों से अपनी मजबूरियों के चलते इसे लागू नहीं कर पाए थे, जिसे कि मोदी ने अपने शासनकाल में पूरा किया है।
यानि की देर सवेर यह होना ही था जो हुआ। किंतु अब सरकार को जरूर वे निर्णय लेने चाहिए जिससे कि लोगों को आ रही तकलीफों से उसे पूरी तरह मुक्ति दिलाई जा सके। मसलन, सरकार को इस नोटबंदी से अपना मुख्य उद्देश्य क्या पूरा करना था ? सभी जानते हैं कि नकली नोटों को व्यवस्था से बाहर करने के साथ आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी देश विरोधी गतिविधियों की कमर तोडऩे के साथ देश के लोगों को यह अहसास कराना था कि देश के विकास के लिए धन की आवश्यकता होती है, यह धन जनता से कर के रूप में सरकारें प्राप्त करती हैं और उस कर के माध्यम से आया धन समग्र विकास की योजनाओं में व्यय किया जाता है।
देश में जितने भी लोग हैं यदि वे अपने हिस्से का ईमानदारी से कर देने लगें तो निश्चित मानिए कि हमारा देश दुनिया का सबसे अमीर देश बन जाएगा । विकास के मामले में हम अमेरिका, फ्र ास, जर्मनी, जापान, इंलैण्ड जैसे समृद्ध देशों को अपने से कई मील पीछे छोडऩे का सामथ्र्य रखते हैं। आगे दूसरे किसी लेख में इसका गणित भी समझाने का प्रयास होगा कि प्रत्येक व्यक्ति का कर कैसे किसी देश को अमीर और गरीब बनाता है, फिलहाल यहाँ इतना ही कि केंद्र सरकार जो अपना संदेश देना चाहती थी, वह देने में सरकार पूरी तरह सफल रही है। यह इससे भी समझा जा सकता है कि दुनिया में अमेरिका के राष्ट्रपति से ज्योदा भारत के प्रधानमंत्री की जय-जयकार हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णयों पर पूरी दुनिया में आज बहुत अधिक चर्चा है। यह चर्चा भारत को छोडक़र अन्य देशों में सकारात्मक दृष्टिकोण से ही की जा रही है। निश्चित ही यह सरकार की एक बड़ी उपलब्धी है, पर अब जबकि नोटबंदी को एक माह से अधिक गुजर चुका है, सरकार के सिर्फ आश्वासन देनेभर से काम चलनेवाला नहीं है।
बाजार में जो अब नई समस्या आ रही है, वह है ज्यादातर एटीएम मशीने 100 और 500 के नोट देने के बदले 2000 का नोट उगल रही हैं। यदि किसी को अधिक रुपयों की जरूरत है तो वह या तो किसी से उधार ले अथवा अपना काम छोडक़र अपने खाता वाली बैंक में भागे, किसी तरह रुपए प्राप्त करे एवं काम चलाए। इसमें जो सबसे बड़ा सवाल उठाया जा रहा है, वह यह भी है कि हमारा पैसा है और उसे हम ही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं ? शायद ही कोई हो जो रोज एटीएम की लाइन में लगकर प्रति सप्ताह 24 हजार रुपए निकालने में कामयाब रहा होगा। जहाँ तक कैसलेस सोसायटी बनाने का कार्य है, वह कुछ दिनों में तो हो नहीं जाएगा। केंद्र सरकार ने पहले चरण में ज्यादातर लोगों के जनधन योजना में ही सही खाते खुलवाए। खाते अभी भी नए खोले ही जा रहे हैं। दूसरे चरण में कहें कि यह नोटबंदी सामने आई है। इसका फायदा हुआ, गरीबों को भी जिनके बैंक खाते थे, इसका लाभ मिला। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जो रोजमर्रा के छोटे-मोटे धंधे करके अपना घर चलानेवाले हैं, उनका काम कैसे चले ? जबकि एटीएम मशीने छोटे नोट देने के स्थान पर बड़े नोट उगल रही हों। इसलिए यहाँ कहा जा रहा है कि एसोचैम (दि एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया) की ओर से जिन चिंताओं को व्याक्त किया गया है, उन्हें सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।
एसोचैम कह रहा है कि नोटबंदी के बाद एफएमसीजी, ज्वैलरी और छोटे-मझोले उपक्रमों (एसएमई) सहित अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। जबकि असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में नौकरियाँ जा रही हैं। इसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी असर होगा। जिस तरह से इसका क्रियान्वयन हुआ उससे शायद प्रधानमंत्री भी खुश नहीं होंगे। कंज्यूमर गुड्स सेक्टर और छोटे व मझोले उद्यम भी इससे प्रभावित हुए हैं। एसोचैम की सरकार को सलाह है कि वह काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा नोटबंदी के वांछित नतीजों को हासिल करने के लिए बड़े कर सुधारों पर प्रमुखता से कार्य करे,जिसमें सरकार को टैक्स की दरें इस हद तक कम करनी होंगी जिससे काले धन का सृजन करने वाले हतोत्साहित हों। आयकर छूट की सीमा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये की जानी चाहिए। इसी तरह 15 से 20 लाख रुपये की आय पर 10 फीसद की दर से कर लगना चाहिए। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की औसत दर को 18 से घटाकर 15 फीसद किया जाना चाहिए।
इसके अलावा जो कार्य सबसे जल्दी और अधिक केंद्र सरकार को करना है, वह है देश में छोटे नोटों की आवक एटीएम मशीनों तक ज्यादा से ज्यादा बनाना न कि 2000 के नोटों की । क्यों कि इन्हीं छोटे नोटों पर छोटी पूंजीवाले की अर्थव्यवस्था टिकी है और 70 प्रतिशत ग्रामीणजन पर आधारित भारत देश का मूल आधार भी यही छोटी पूंजीवाले लोक के जन हैं।
लेखक : सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्य एवं पत्रकार हैं।
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