रविवार, 11 दिसंबर 2016

परंपरा, आधुनिकता और परिवार : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

साहित्‍यकारोंविद्वानों एवं ज्ञानियों के बीच यह चर्चा लम्‍बे समय से चल रही है कि परिवारपरंपरा और आधुनिकता का आपस में कोई संबंध है भी या नहीं। इन तीनों के बीच सदियों से सतत चली आ रही परिवार व्‍यवस्‍था आज कितनी प्रासंगिक रह गई हैयह बहुत गौर करने वाली बात है। यह इसलिए कि ग्‍लोबल विश्‍व की अवधारणा के बीच इंटरनेट के सहयोग से सभी भौतिक सुविधाएँ आपके एक छोटे से कमरे में सिमट चुकी हैं। वस्‍तुत: इस विषय की गहराई में जितना जाने की कोशिश की जाती हैलगता है, यह विषय उतना ही जटिल होता जा रहा हैहम किसी निष्‍कर्ष पर पहुँचे तो कैसे पहुँचें। किंतु जब खुले मन से सकुंचन से मुक्‍त होकर इसकी विवेचना की जाती है और जो निष्‍कर्ष निकलता हैवह यही है कि परिवार,आधुनिकता और परम्‍परा यह तीनों ही आपस में इतने गुंफित हैं कि आप इन्‍हें एक बार भी अलग करके नहीं देख सकते हैं।

देखा जाए तो परंपरा ही आधुनिकता हैजो आधुनिक नहींयदि वह किसी कारण से परंपरा का हिस्‍सा भी बना हुआ है तो उसे समय के साथ समाप्‍त होना ही होगायह सुनिश्‍चि‍त मानिए। आधुनिकता कालवाह्य हैइस पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए कहा भी जाता है कि आधुनिकता तो अपने समय में सदैव वर्तमान रहती है। पिछली 18वीं, 19वीं या बीते 20 वीं सदी के वक्‍त में जो वर्तमान था आज उसे हम अतीत कहेंगेवहीं आज जो वर्तमान है कल वह अतीत का हिस्‍सा हो जाएगा। यानि जो वर्तमान हैवह सदैव अपने समय में वर्तमान ही रहता है और जो व्‍यवस्‍था वर्तमान में है वे आधुनिक कहलाती हैफिर ये व्‍यवस्‍था परिवार स्‍तर पर हो या अन्‍य किसी भी स्‍तर पर।




इस संदर्भ में कुछ बातों को ओर देखा जा सकता है।  यह जरूरी नहीं है कि आपके लिए जो आधुनिक है वह दूसरे के लिए भी आधुनिक होसाथ में यह कि जिसे आप बीता हुआ पुराना परंपरा का बेकार हिस्‍सा मानते हैं वे दूसरे के लिए पुरातन हो। आधुनिकता स्‍थान-स्‍थान के अनुसार सुनिश्‍चित होती है। इस समय अमेरिका या अन्‍य युरोपीय देशों में जो सामाजिक व्‍यवस्‍था चल रही हैवह भारत सहित विकासशील देशों के साथ अफ्रिका के तीसरी दुनिया के देशों में एक साथ चल पड़ेयह संभव नहींयदि तीनों स्‍थानों की एक साथ समीक्षा करेंगे तो अमेरिका या यूरोप के देश यदि अपने समय में आधुनिक कहलाएंगे तो भारत एवं अफ्रिका के देश अपने वर्तमान में भी पुरातन कहलाने लगेंगेजबकि ऐसा नहीं है।

उदाहरण के लिए कुछ विषयों पर दृष्टि डाली जा सकती हैजैसे उत्‍तर आधुनिकता। उत्‍तर आधुनिकता का सीधा अर्थ है आधुनिकता के बाद की स्‍थति या सामाजिक परिवेश । पश्‍चिमी मानव विज्ञानी किवेन्टन स्किन्नर का कहना है कि यह उत्तर आधुनिकता का युग है, यह उत्तर आधुनिकता फिल्म से लेकर फैशन तकसाहित्य से संस्कृति तककामशास्त्र से कॉमिक्स तक और विज्ञान से विज्ञापन तक हर वस्तु को प्रभावित कर रही है। यहां तक कि दर्शनसमाज और मीडिया सब इसके दायरे में है। इसी प्रकार की बात लियोतार की पुस्तक 'द पोस्ट माडर्नमें कही गई है।

दूसरी ओर मार्शल मेकलुहान कि पुस्तक 'द मीडियम इज द मैसेजमें व्यापक परिवर्तनों को रेखाकिंत करते हुए यह बताया गया कि उत्तर आधुनिकता ने एक नई विचारधारा का रूप प्राप्त कर लिया है। यह भी कहा गया कि आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता में मूलभेद यही है कि आधुनिकता एक महान आख्यान को ठोस और इतिहास के दिशाहीन बहाव पर हावी करती है। जबकि उत्तर आधुनिकता के साथ ऐसा बिल्‍कुल नहीं हैवह लोक कथाओंजातीय कहानियों और स्थानीय मुहावरों को महत्व देती है । दूसरे शब्‍दों में कहें तो यह उत्तर आधुनिकता संरचना को तोड़ने की कोशिश है। आधुनिकता के अंत की घोषणा कर उत्तर आधुनिकता में व्यक्ति कि मृत्यु को इतने बार दोहराना गया है कि इसके बारे में जितना पढ़ो यही लगता है कि अब मनुष्य जीवित ही नहीं बचा है। उसकी भाव संवेदनाएँ बाजार में तब्‍दील हो चुकी हैं। सभी कुछ बाजार तय करता हैआप क्‍या खाएंगेक्‍या पहनेंगेअपने जीवन में कौन से क्षेत्र में सफल होने की मंशा से शिक्षा का विस्‍तार करेंगेइत्‍यादि ।


वस्‍तुत: इस स्‍थि‍ति को देखकर एक बार तो लगता है कि सच में आधुनिकता का अंत हो गया है पर क्या वास्तव में आधुनिकता का अंत हो गया है या केवल उसका स्वरुप बदल गया हैआज यह भी एक बड़ा प्रश्‍न हैजिसके उत्‍तर में हम कह सकते हैं कि जिस सूचना व्यवस्थाजनसंचारसमाज संस्कृति और अर्थव्यवस्था के परिवर्तन की बात की जाती हैवह आधुनिकता की प्रक्रिया से अलग नहीं है। पश्‍चिमी जगत अपने समय की परिवार व्‍यवस्‍था और परंपरागत व्‍यवस्‍था से मुक्‍त होने के लिए प्रयत्‍नशील रहा होगाजिसके बाद उसका जीवन एकाकी रूप से आगे बढ़ता हुआ दिखाई देता है। जहां डे परंपरा का विकास इस मायने में हुआ है कि किसी के प्रति यदि आपको कृतज्ञता ज्ञापित करनी है तो वर्ष में एक दिन करलोयथा- फादर डेमदर डेइत्‍यादिकिंतु भारत के संदर्भ में या भारत जैसे देश चीन और जापान आदि‍ के लिए उत्‍त्‍र आधुनिकता जैसा कोई विचार ही नहीं पैदा हुआ है। हम आज भी आधुनिक जीवन में जी रहे हैं न कि उत्‍तर आधुनिक हुए हैं। यहां की संस्‍कृति सनातन काल से आधुनिक हैयहां कोई डे नहीं हर दिन मातृ देवो भव:पितृ देवो भव: और आचार्य देवो भव: हैअर्थात ईश्‍वर के समतुल्‍य मानकर बल्‍कि उससे भी अधिक सम्‍मान एवं श्रद्धा का भागी मानकर उन्‍हें पूजित करने की परंपरा यहां हैजोकि परिवारिक संस्‍कारों से विचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्‍तान्‍तरित होते हैं।

वस्‍तुत: देखा जाए तो उत्‍तर आधुनिकता की शुरूआत परिवार व्‍यवस्‍था से मुक्‍त होने एवं स्‍वच्‍छन्‍दता से जीवन जीने की राह पकड़ लेने के बाद शुरू होती हैजिसमें कि ऋण लेकर घी पीने में किसी को कोई गुरैज नहीं होता। परन्‍तु युरोप की तुलना में भारत में ऐसा नहीं है। भारत में अभी उत्‍तर आधुनिकतावाद नहीं आया हैये न आए इसके लिए लगातार यहां परंपरावादी कहें या परंपरा के साथ आधुनिक सोच रखनेवाला जन लगातार सक्रिय है। तुलनात्‍मक रूप से देखें तो भारत और पश्‍चिम में बड़ा वैचारिक भेद यह है कि पाश्चात्य विचारों में शक्तिसफलता एवं धन संग्रह पर जोर है। वहां उपभोग और प्रतिस्पर्धा पर बल दिया जाता है। भारतीय परंपरा के केंद्र बिंदु में परिवारसम्मान और सहयोग है। यहां आधुनिकता का मतलब सभी के विचार-बिंदुओं को समझना है। हमारी भारतीय परंपरा जीवन जीने का तरीका सिखाती है। दूसरी ओरपाश्चात्य विचार जीवन-शैली पर ध्यान देते हैंवह उत्‍तर आधुनिकता के दौर में अपने को मानने लगी हैजहां सब कुछ बाजार हैऔरत को आदमी की जरूरत और आदमी एक औरत की जरूरत तभी महसूस करता है जबकि उसे देह की गंध अनुभूत करनी होती हैजिसके कि उलट भारत में स्‍त्री और पुरुष भी एक संस्‍कार हैजिसे विवाह संस्‍कार कहा जाता है और उसके माध्‍यम से वर-वधु को सम्‍पूर्ण समाज यह आशीर्वाद देता है कि एक सुखद और आनन्‍दमय परिवार का दोनों मिलकर श्रृजन करोजिसमें अपने माता-पिताभाई-बहनों एवं अन्‍य सगे-संबंधियोंमित्रों के साथ पशु-पक्षी एवं वनस्‍पतियों के लिए भी एक सम्‍मान जनक स्‍थान सुनिश्‍चित हो 


भारतीय वांग्‍मय में इसे देखें तो वेद कहते हैं- सं गच्छध्वं सं वदध्वंसं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते –  ऋग्.10.191.2। अर्थात् (हे जना:) हे मनुष्यो, (सं गच्छध्वम्) मिलकर चलो। (सं वदध्वम्) मिलकर बोलो । (वः) तुम्हारे, (मनांसि) मन, (सं जानताम्) एक प्रकार के विचार करे । (यथा) जैसे, (पूर्वे) प्राचीन, (देवा:) देवो या विद्वानों ने, (संजानाना:) एकमत होकर, (भागम्) अपने – अपने भाग को, (उपासते) स्वीकार कियाइसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग स्वीकार करो । सीधे-सीधे इसे इस अर्थ से समझें कि (हे मनुष्यों) मिलकर चलो। मिलकर बोलो। तुम्हारे मन एक प्रकार के विचार करें। जिस प्रकार प्राचीन विद्वान एकमत होकर अपना-अपना भाग ग्रहण करते थे, (उसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग ग्रहण करो)। वास्‍तव में वेद का यह मंत्र परिवार की उच्‍चावस्‍था को प्रकट करता है। यहां सिर्फ रक्‍त संबंधों को जोड़कर ही परिवार  की व्‍याख्‍या नहीं की गई हैबल्कि सभी मनुष्‍यों को एक परिवार मानकर उनके बारे में लिखा गया। यह मनुष्‍य समूह एक छोटी इकाई से शुरू होकर ग्रामनगरराष्‍ट्र और यहां तक की संपूर्ण वसुधा तक के बारे में विचार कर लेंसभी को इस मंत्र के माध्‍यम से यही संदेश दिया गया है कि संगठन और परस्पर का संवाद वह मंत्र है जिसके माध्‍यम से परिवार अपने अस्‍तित्‍व को व्‍यापक रूप से प्रकट करता  है।

इसे ऐसे भी देख सकते हैं कि ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व वेदों का निर्माण हुआ,  किंतु उसमें जो उस समय लिखा गया वह तत्‍कालीन समय की आधुनिकता थी लेकिन यह आज हमारे लिए परंपरा का हिस्‍सा हैकिंतु जब हम उसका आज भी अध्‍ययन करते हैं तो यही लगता है कि इसमें जो कहा गया है वह वर्तमान संदर्भों में भी आधुनिक है। यानि जो परंपराआधुनिकता एवं परिवार की आवश्‍यकता पर जोर भारत में कई हजार वर्ष पहले दिया गया था वह आज भी अधुनातन है।अत: इस निष्‍कर्ष पर पहुंचने के बाद स्‍पष्‍टत: कहा जा सकता है कि आधुनिकता हमेशा परंपरा से ही आती हैक्योंकि उसमें समस्याओं का उत्तर देने की क्षमता होती है। इसलिए भारत अपनी जीवन-शैली को कभी नहीं भूलेगा।

परिवार भारतीय समाज व्‍यवस्‍था की जड़ हैजिसमें बालक जन्‍म लेते ही जो संस्‍कार प्राप्‍त करता हैउसी आधार पर वह अपने भविष्‍य का निर्माण करता है। आज दुनिया भी इस बात को समझने लगी है कि एकागी जीवन व्‍यर्थ हैजिसमें चहचहाना न होजिसमें बच्‍चों की कोमल मुस्‍कान न हो,जिसमें मां एवं पिता का आशीर्वाद न होजिसमें अपने से बड़ों का दुलार और गलती करने पर फटकार न हो वह जीवन तो व्‍यर्थ है। आखिरविकास कहां तक और कब तक उचित हैविकास की यह अंधी दौड़ जिसमें मारकाट हैप्रतिस्‍पर्धा के लिए संबंधों का दाव हैउससे कहीं अच्‍छा है कि परिवार व्‍यवस्‍था में अपने भाग को सभी के बीच बांटकर सुख का अनुभव करना। सदियों से भारत अपनी परिवार व्‍यवस्‍था के माध्‍यम से यही कर रहा है,वह अपने भाग को सभी के बीच बांटकर सभी के चेहरों को मुस्‍कुराते हुए देखकर सुख का अनुभव करता आ रहा है।

अत: अंत में यही कहना होगा कि वर्तमान परिवेश में परिवार व्‍यवस्‍था को लोक के हित मेंजनता के लिए विश्‍व को आनंद का सतत भागी बनाने एवं बनाए रखने के लिए ओर अधिक सुदृढ़ता से बनाए रखने की आवश्‍यकता हैउत्‍तर आधुनिकता की चल रही भोगमय आंधी के बीच यह जरूरी हो गया है कि हम स्‍वयं बचे रहें और इस अपनी परिवार व्‍यवस्‍था से ध्‍वस्‍त होती मानव संवेदनाओं को विश्‍वभर में बचाने में सफलता पूर्वक अपने सकारात्‍मक प्रयत्‍न करते रहें।

लेखक : हिन्‍दुस्‍थान समाचार न्‍यूज एजेंसी के मध्‍यक्षेत्र प्रमुख एवं सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं। 

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