: डॉ. मयंक चतुर्वेदी
श्रीराम ने जिस तरह से विपरीत परिस्थितियों के दौरान भी जैसा साहस दिखाया और कम संसाधन होने एवं रावण जैसी प्रशिक्षित सेना के अभाव में भी युद्ध को अपने पक्ष में कर लिया था, देखाजाए तो वैसी ही स्थिति आज दुनियाभर में भारत को लेकर दिखाई दे रही है। भारत की शक्ति का डंका आज विश्वभर में बज रहा है, हालांकि जितने भी प्रकार के दबाव हो सकते हैं,जनसंख्या घनत्व, स्वास्थ इत्यादि के वह भी हमारे सामने चुनौतियां हैं इसके बाद भी भारत जिस गति से विश्व में आगे बढ़ रहा है, उसे देखकर यही कहना होगा कि आजादी के 70 सालों बाद शायद ही यह स्वर्णिम समय पूर्व में कभी आया हो। वस्तुत: यही निष्कर्ष दुनिया के सबसे बड़े जनसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहनराव भागवत कहते हैं कि हम 70 साल से स्वतंत्र हैं फिर भी पहली बार अहसास हो रहा है कि भारत की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। सारी दुनिया में हमारी साख बढ़ी है। भारत पहले भी था, हम सब भी थे, लेकिन भारत को गंभीरतापूर्वक देखना और भारत में दखल देने से पहले दस बार विचार करना, यह बातें केवल आज सामने ही आई हैं। सीमाओं पर सुरक्षा को चुनौती देने वालों को हमने जवाब दिया। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उन्हें जवाब मिला है। कश्मीर में देश विरोधी ताकतों की आर्थिक रूप से कमर टूट गई है। यदि हम सभी गंभीरतापूर्वक संघ सर संघचालक की कही इन बातों को समझें तो यह सभी बातें पूर्व सत्य प्रतीत होती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सामरिक, आर्थिक, विदेश सभी मोर्चों पर भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। दुनिया जितनी गंभीरता से आज भारत की कही बातों को ले रही है, उतना उसने कभी पहले नहीं लिया है।
इसी के साथ संघ प्रमुख यह कहने से भी नहीं चूके हैं कि हमारी सुरक्षा के लिए सीमा पर जवान जान की बाजी लगाकर कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। उनको कैसी सुविधाएं मिल रही हैं। उनको साधन संपन्न बनाने के लिए हमें अपनी गति बढ़ानी होगी। शासन के अच्छे संकल्प तो हैं, मगर इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है। कश्मीर घाटी में शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं जैसी चाहिए वैसी नहीं पहुंच रही है।शासन-प्रशासन और समाज के समन्वयित प्रयास से राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई जारी रखते हुए सामान्य जनता को भारत की अत्मीयता का अनुभव कराना चाहिए। इस काम में अगर कुछ पुराने प्रावधान आड़े आ रहे हैं तो उनको बदलना पड़ेगा।
यहां वे स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी एवं अन्य जो आज शासन तंत्र में स्वयंसेवक संचालन की भूमिका में हैं उनसे यह कहने से भी पीछे नहीं हटे कि शासन के अच्छे संकल्प तो हैं लेकिन इसको लागू कराना और पारदर्शिता का ध्यान रखना जरूरी है। लोगों के लाभ के लिए अनेक योजनाएं चलीं, साहस करने में भी शासन कम नहीं है। लेकिन जो किया है उसका हो क्या रहा है, इसे समझना चाहिए। आर्थिक सुधार के लिए देश के लिए एक मानक सही नहीं हो सकता है। देश में हर हाथ को काम मिलना चाहिए। स्वरोजगार, लघु, मध्यम और कुटीर उद्योग से सबसे ज्यादा काम मिलता है, इसलिए ही अब तक विश्व के आर्थिक भूचालों का असर भारत पर सबसे कम हुआ है । अत: इन सभी के पूर्व विकास पर अवश्य ध्यान दिया जाए।
वहीं केरल और पश्चिम बंगाल राज्यों को लेकर भागवत का कहना सही है कि वहां जिहादी और राष्ट्र विरोधी ताकतें अपना खेल खेल रही हैं। शासन प्रशासन वहां का वैसा ध्यान नहीं देता है। वह भी उन्हीं का साथ देता है। राजनीति में वोटों की खुशामद करनी पड़ती है, पर हमें यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि समाज मालिक है। अत: उस समाज को हम सभी को जागरूक बनाना चाहिए। उन्होंने यह प्रश्न भी सही खड़ा किया है कि म्यांमार से रोहिंग्या आ क्यों गए ? उनकी अलगाववादी, हिंसक गतिविधियां जिम्मेदार हैं। इन लोगों को अगर आश्रय दिया गया तो वे सुरक्षा के लिए चुनौती बनेंगे। इस देश से उनका नाता क्या है? मानवता तो ठीक है, लेकिन इसके अधीन होकर कोई खुद को समाप्त तो नहीं कर सकता। प्रशासन और समाज के समन्वयित प्रयास से राष्ट्र के शत्रुओं से लड़ाई जारी रखते हुए सामान्य जनता को भारत की अत्मीयता का अनुभव कराना चाहिए। इस काम में अगर कुछ पुराने प्रावधान आड़े आ रहे हैं तो उनको बदलना चाहिए।
वस्तुत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक ने आज अपने उद्बोधन में दो बातें बहुत स्पष्ट तरीके से स्वयंसेवकों और देश के समक्ष रखी है पहली यह कि देश की जनता के लिए यह बहुत गौरव का क्षण है, दुनिया आज भारत की कही बातों को बहुत गंभीरता से ले रही है और दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यही है कि हम स्वयं का आत्ममंथन करें, हमने जो पिछले 70 वर्षों में प्राप्त किया है, क्या हम इतने वर्षों की सतत यात्रा में इतनाभर ही प्राप्त करने के अधिकारी हैं ? इसी के साथ यह कि देश में आज भी तमाम मोर्चों पर आंतरिक संघर्ष एवं चुनौतियां हैं, जिनसे सिर्फ जनता के वैचारिक जागरण से ही विजय प्राप्त की जा सकती है, कुल मिलाकर भागवत संदेश यही है हम उन तमाम चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने में सफल हों जो देश को कमजोर बनाती हैं।
लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं ।
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