ऋण को विकास के लिए जितना अधिक अपरिहार्य माना गया है, उतना ही लगातार इससे डूबे रहने को जनमानस में घोर विपत्तिकारक स्वीकार्य किया गया है। भारत पर आज दुनियाभर का कितना कर्ज है, यह जानकर जितनी अधिक चिंता होती है, वहीं इन दिनों इससे भी सतुष्टी का भाव जाग्रत होता है कि कम से कम यह ऋणभार मोदी सरकार में कम होना तो शुरू हुआ। वित्त मंत्रालय की ‘भारत पर विदेशी ऋण: स्थिति हालिया आई रिपोर्ट 2016-17’ बता रही है कि पुराने ऋण को समाप्त करने में केंद्र सरकार कितनी अधिक सक्रिय है।
एक दृष्टि में देखाजाए तो मार्च 2017 के आखिर में भारत पर 471.9 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी ऋण था, यह मार्च 2016 के आखिर में आंके गए विदेशी ऋण की तुलना में 13.1 अरब अमेरिकी डॉलर (2.7 फीसदी) कम हुआ है। लगने को यह ऋण के कम होने का आंकड़ा एक दम से देखने पर अधिक नहीं लगता है, किंतु इसके सांख्यीकि एवं व्यवहारिक पक्ष को देखाजाए तो देश के स्तर पर भारत के लिए अवश्य ही यह एक सुखभरी खबर है।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा तैयार की गई ‘भारत पर विदेशी ऋण: स्थिति रिपोर्ट इस बात को विस्तार से बताती है कि आखिर में किस तरह संभावनाओं के प्रयोग एवं नवाचारों से भारत पर विदेशी ऋण की स्थिति में सतत सुधार आ रहा है। रिपोर्ट तुलनात्मक रूप से भारत पर विदेशी ऋण के रुझान, संरचना और ऋण भुगतान का विश्लेषण करने के साथ ही अन्य देशों, विशेषकर विकासशील देशों के सापेक्ष भारत पर विदेशी ऋण की एक तुलनात्मक तस्वीर सफलता के साथ प्रस्तुत करने में भी सफल रही है ।
वस्तुत: केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद से लगातार आर्थिक मोर्चों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जो निर्णय लिए गए, उसमें विशेषकर नोटबंदी जैसे मुद्दों को लेकर यही प्रयास होता रहा है कि किसी न किसी तरह सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाए। विपक्ष ने इसके लिए कोई कसर भी नहीं छोड़ी, किंतु इसके बाद जो उसके सकारात्मक परिणाम अब सामने आ रहे हैं उससे लगने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदृष्टा हैं, वे स्पष्ट जानते हैं कि हमें विकास के कौन से रास्ते पर चलकर देश को आगे ले जाना है और किस तरह से अपने ऊपर लगातार बढ़ते कर्ज को कम करने की दिशा में आगे बढ़ते रहना है। तभी तो मार्च 2017 के आखिर में भारत पर 471.9 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी ऋण था, यह मार्च 2016 के आखिर में आंके गए विदेशी ऋण की तुलना में 13.1 अरब अमेरिकी डॉलर (2.7 फीसदी) कम हो गया है।
वास्तव में यह विदेशी ऋण में कमी दीर्घकालिक ऋण विशेषकर एनआरआई जमाराशि और वाणिज्यिक उधारियों में गिरावट की वजह से संभव हो पायी है।भारत पर विदेशी ऋण: स्थिति रिपोर्ट के आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि मार्च 2017 के आखिर में दीर्घकालिक विदेशी ऋण 383.9 अरब अमेरिकी डॉलर का था, जो कि मार्च 2016 के आखिर में आंके गए आंकड़े की तुलना में 4.4 फीसदी की गिरावट को दर्शाता है। मार्च 2017 के आखिर में कुल विदेशी ऋण का 81.4 प्रतिशत दीर्घकालिक विदेशी ऋण था, जो मार्च 2016 के अंत में 82.8 प्रतिशत । इसी प्रकार देश पर मार्च 2017 के आखिर में अल्पकालिक विदेशी ऋण 5.5 प्रतिशत बढ़कर 88.0 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। यह मुख्य रूप से व्यापार संबंधी क्रेडिट (ऋण) में वृद्धि के कारण हुआ, जो 98.3 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अल्पकालिक ऋण का एक प्रमुख घटक है।
इस तरह यदि भारत पर विदेशी ऋण रिपोर्ट को ओर गंभीरता से देखें तो विदेशी मुद्रा भंडार कवर एवं ऋण के अनुपात के 74.3 प्रतिशत से बढ़कर 78.4 प्रतिशत हो जाने और विदेशी ऋण-जीडीपी अनुपात के 23.2 प्रतिशत से गिरकर 20.2 प्रतिशत पर आ जाने से भारत पर विदेशी ऋण इस वक्त बहुत ही नियंत्रित दायरे में गया है और वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 में विदेशी ऋण की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है।
यह स्थिति विश्व बैंक की "अंतर्राष्ट्रीय ऋण सांख्यिकी 2017", के ऋण आंकड़ों के संदर्भ में भी आगे आश्वस्त करती है कि हमारे देश भारत की गणना वर्तमान में विश्व के ‘कम असुरक्षित’ देशों में की जा रही है। आज मोदी सरकार में भारत के विदेशी ऋण संकेतक अन्य ऋणी या ऋणग्रस्त विकासशील देशों की तुलना में बहुत ही अच्छी स्थिति में हैं। भारत पर विदेशी ऋण और सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) का अनुपात 23.4 प्रतिशत है, जो पांचवें न्यूनतम पायदान को दर्शाता है। इसी तरह विदेशी ऋण के लिए विदेशी मुद्रा भंडार द्वारा उपलब्ध कराए गए कवर के लिहाज से भी भारत इनदिनों बहुत ही श्रेष्ठ और उच्चावस्था में दिखाई दे रहा है। अब इसके बाद भी आर्थिक विषयों को लेकर जिन्हें केंद्र सरकार की आलोचना ही करना है, उनके लिए कुछ नहीं कहा जा सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें