देखते ही देखते मोदी सरकार में पेट्रोल के दाम 3 साल में सर्वाधिक हो गए, इस दौरान क्रूड 45 फीसदी सस्ता रहा, किंतु भारतीय उपभोक्ताओं से पेट्रोल की कीमत कम होने के स्थान पर बढ़ोत्तरी के साथ ली गई। यह जो कीमतों का विरोधाभास है, जिसमें की एक ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमते कम हो रही हैं और देश में उपभोक्ता से कम कीमत के स्थान पर प्रति लीटर पूर्व की अपेक्षा अधिक राशि रोजमर्रा के हिसाब से सुनिश्चित कर वसूली जा रही है उससे लगता यही है कि 16 जून से पेट्रोल के दाम घटाना-बढ़ाने का जो निर्णय केंद्र सरकार ने देशभर में यह कहकर लागू किया था कि रोज पेट्रोल के दाम तय करने से आम जनता को लाभ होगा कहीं यह जनता के साथ तो सीधा छलावा नहीं है?
मनमोहन सरकार में जबकि ऐसा नहीं था, पिछली सरकार ने प्रतिदिन के हिसाब से कभी पेट्रो कीमतें निर्धारित नहीं की, जिसके कारण जनता की जेब पर सीधा इसका नकारात्मक असर कम-ज्यादा प्रतिदिन कभी नहीं पड़ता था। हालांकि वह भी लगातार अधिक कीमते रखकर पेट्रोल पर मुनाफा कमाती थी। उस समय वैश्विक स्तर पर अधिक कीमते होने पर देश में पेट्रो दाम अधिक होते ही थे किंतु कम होने के बाद भी लम्बे समय तक अधिक बने रहते थे,जिसका की समय समय पर देशभर में विरोध भी हुआ था, लेकिन सोचनीय यह है कि आज के हालातों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार में इसे कितना सही ठहराया जा सकता है ? जिस पर की सबसे ज्यादा जोर वर्तमान केंद्र सरकार का पारदर्शिता पर ही है। वस्तुत: इसकी गंभीरता को देखें तो वर्तमान में इस निर्णय से लाभ के स्थान पर आमजन की जेब मनमोहन सरकार के वक्त से अधिक खाली हो रही है।
मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी कहलाती है, यहां 11 सितम्बर को पेट्रोल की कीमत 79.41 रुपए थी, जबकि देश की राजधानी दिल्ली में 70.30 रुपए लीटर, इसी तारतम्य में दो दिन बाद 13 सितम्बर की स्थिति में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रति एक लीटर पेट्रोल की कीमत देखें तो 79.52 रुपए पॉवर एवं 76.77 रुपए सादा पेट्रोल के दाम थे, डीजल 65.17 रुपए के दाम पर था। जिसके लिए कहा जा सकता है कि यह कीमत भाजपा सरकार के केंद्र में आने के बाद पिछले तीन साल में सबसे अधिक है। वस्तुत: जब से पेट्रोल के दाम रोज तय किए जा रहे हैं, तब से दाम 7% से ज्यादा बढ़ चुके हैं। यहां देश की आमजनता का अपनी चुनी हुई सरकार से पूछना यही कि ऐसी स्थिति में पेट्रोल की खुदरा कीमतें तीन साल से उच्च स्तर क्यों रखी गई हैं, जबकि कच्चे तेल का भारतीय बास्केट 45% से ज्यादा सस्ता हुआ है।
इस संबंध में आंकड़े सीधे तौर पर कह रहे हैं कि पेट्रोलियम मंत्रालय ने अपनी जो दर संबंधी नीति बनाई है उसमें बहुत कमी है। अगस्त 2014 में क्रूड का भाव 6,291.91 रु. प्रति बैरल था, जिसके कारण से उस समय 1 अगस्त 2014 को मुंबई में पेट्रोल की कीमत 80.60 रुपए और 15 अगस्त 2014 को दिल्ली में 70.33 रुपए तक पहुँच गई थी, किंतु क्या वर्तमान में ऐसा है? जिसका उत्तर है नहीं। आज क्रूड का भाव 3,424.94 रु. है। जिसके की यह एक बैरल 159 लीटर के बराबर होता है। इसी के साथ ही भारतीय बास्केट में दुबई और ओमान के'सावर ग्रेड' की 73% हिस्सेदारी भी मौजूद है। शुरूआती स्तर पर देखें तो अप्रैल से 15 जून तक हर पखवाड़े पेट्रोल की कीमत घट-बढ़ रही थी। लेकिन दो जुलाई के बाद से इसके दाम लगातार बढ़ते रहे हैं।
माना कि सरकार को तेल कंपनियों को अपना खर्च निकालना है। केंद्र के साथ हर राज्य सरकार को इससे अपना मुनाफा कमाना है, परन्तु उसका कोई सिस्टम तो होगा ? मुनाफा कितना और कैसे कमाया जाए ? पेट्रोल देश के हर आदमी की आज आवश्यक जरूरत बन चुका है। वह उसकी कहीं न कहीं मजबूरी भी है। इसलिए ऐसा नहीं होना चाहिए कि वह पेट्रोल के दामों में बेतहाशा वृद्धि को लेकर सरकार द्वारा स्वयं को ठगा हुआ महसूस करे। आम उपभोक्ता की जेब से इस तरह से उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर ज्यादा से ज्यादा रुपए विविधकर एवं खर्चे के नाम से पेट्रोल के माथे डालकर निकालने को कोई उचित नहीं ठहरा सकता है। स्वयं सरकार के अंदर भी लोग इस तरह से पेट्रोल दामों का आज घटना-बढ़ना सही नहीं मान रहे हैं।
इसी के साथ देश को यह भी जानना चाहिए कि भारत में पेट्रोल और डीजल का कुल उत्पादन घरेलू खपत से ज्यादा है । पिछले वर्ष अप्रैल से दिसंबर की अवधि में देश में 2.71 करोड़ टन पेट्रोल का उत्पादन किया गया, जबकि इस दौरान खपत 1.80 करोड़ टन रही। जहां तक डीजल की बात है इसका घरेलू उत्पादन 7.65 करोड़ टन और खपत 5.72 करोड़ टन रही थी । इस सब के बीच सच यह भी है कि आवश्यकता के अनुरूप भारत में पिछले चालू वित्त वर्ष अप्रैल से दिसंबर अवधि में कुल मिलाकर 8,20,000 टन डीजल का और 4,76,000 टन पेट्रोल का आयात किया गया। इन नौ महीनों में सिंगापुर के मुकाबले यूएई ने सबसे अधिक 2,43,000 टन पेट्रोल की आपूर्ति की गई थी और डीजल में भी यूएई से सबसे अधिक 3,80,000 टन डीजल आयात किया गया था, जबकि सिंगापुर से 1,69,000 टन पेट्रोल आयात किया गया था।
अत: सरकार को वस्तुस्थिति को देखते हुए करना यह चाहिए कि वह देश में अधिक से अधिक ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों को बढ़ाए, पेट्रोल के स्थान सस्ता ईंधन इथनॉल को भारत में भी अब बढ़ावा दिया जाना चाहिए । इसे जब वैज्ञानिकों ने पेट्रोल के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है और आज कई यूरोपीय देशों में जब इथनॉल का उपयोग भी सफलतापूर्वक शुरू कर दिया है तो भारत को फिर क्यों इसके उपयोग से अछूता रहना चाहिए। इसके अलावा बायोफ्यूल, सौर ऊर्जा और हाईड्रोजन ईधन के भी कुछ विकल्प हमारे पास मौजूद हैं। यहपर्यावरण को जीवाश्म ईधन की तुलना में नुकसान भी कम पहुंचाते हैं।
वस्तुत: केंद्र सरकार यदि जीवाश्म ईंधन की तुलना में इन्हें बढ़ावा देगी तो देश का बहुत सा धन भी खाड़ी एवं अन्य देशों को जाने से बचेगा और देश में नए रोजगार का भी बहुतायत में श्रृजन होगा। इसके अलावा पेट्रोल की कीमतें भी बहुत कम हो जाएगी, इतना ही नहीं तो इन दिनों जो बढ़ती पेट्रोल कीमतों के कारण से सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं,उनका शमन भी अपने आप हो जाएगा। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान अब इस विषय पर गंभीरतापूर्वक ध्यान दें।
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