हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी की हाल ही में दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक सम्पन्न हुई। वैसे जो कहा जाता है कि देश में सबसे ज्यादा युवा तरुणाई यदि कहीं किसी देश के पास है तो वह भारत वर्ष है, ऐसे ही संवाद सिमितियों के विषय में भी भारत में कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । देश में आज जितनी भी न्यूज एजेंसियां कार्यरत हैंं शायद ही किसी के पास इस तरह की युवा टीम होगी जैैसी की वर्तमान में हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के पास है।
देश के प्राय: अधिकतम राज्यों के ब्यूरो चीफ युवा हैं। दिल्ली राजधानी केंद्र की कमान भी एक युवा जितेंद्र तिवारी के कंधों पर दी गई है। मध्यप्रदेश में मैं डॉ. मयंक चतुर्वेदी, उत्तरप्रदेश में राजेश तिवारी, छत्तीसगढ़ में संजय दुबे, झारखण्ड में मंगल पाण्डेय, उत्तराखण्ड में धीरेंद्र प्रताप सिंह और अनिल कुमार उपाध्याय, राजस्थान में डॉ. ईश्वर बेरागी, हरियाणा में पंकज मिश्रा, जम्मू-कश्मीर में बलवान सिंंह, बिहार में रजनी शंंकर, असम में अरविंद राय और पूर्वी भारत में विशाल गौरांग, टेगू निंंजी, नावेंदू भट्टाचार्य, संतोष मंडल, उड़ीसा में संजय जैना एवं समन्वय नंद, गुजरात में हर्ष शाह, हिमाचल प्रदेश में सुनिल कुमार, महाराष्ट्र में चंद्रहास मिरासदार, मनीष कुलकर्णी, दक्षिण में महादेवन स्वामीनाथन, नागराज राव, पं. बंगाल में संताेेष मधूप यहां तक कि समुचे विपणन की जिम्मेदारी भी युवा कुमार विशाल सिन्हा तथा सुश्री भारती ओझा मुख्य प्रबंधक (विपणन एवं आयोजन) के हाथों में सौंपी गई है । यही बात आई टी डिपार्टमेंट में सुमित रावत और मानवसंसाधन में समीक्षा विष्ट एवं अर्थ विभाग में अमित पाण्डेेेय पर लागू होती है। इसके अलावा भी अन्य इतने हमारे युवा सहयोगी हैं, जिनके बारे में यहां लिखा जाए तो शायद स्थान भी कम पड़ जाएगा।
ये सभी आज बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार को नए स्वरूप में गढ़ने का कार्य कर रहे हैं। सभी एक स्वर में बोलते हैं और एक स्वर में गाते हैं.....
ध्येय निष्ठ जीवन हमारा, करना
हमको सतत कार्य
हिन्दुस्थान
समाचार प्रगति, अंतिम जीवन ध्येय...
अंत में यही कि संगठन का निर्माण तब होता है जब एक से दो लोगों के विचार, उद्देश्य समान होते हैं । संगठन में दूसरे व्यक्ति की भावनाओं, विचारों तथा कार्यों का सम्मान किया जाता हैं तब संगठन बढ़ता है। जब संगठन में दूसरे व्यक्ति को सम्मान नहीं दिया जाता, जब उसके सुझावों, विचारों, कार्यों जो की संगठन के हित में होते हैं उन पर ध्यान नहीं दिया जाता, केवल खाना पूर्ति सदस्यो से काम लिया मात्र जाता है, उपयोग जैसा किया जाता है- तब विखण्डन विघटन प्रारंभ हो जाता है। इस विघटन का कारण होता है अभिमान। संयोग से हिन्दुस्थान समाचार की वर्तमान टीम में यह अभिमान अभी दिखाई नहीं देता है और यही बात इसके लिए इन दिनों वरदान है.....
बहुत सुंदर आलेख। इसमें मैं सिर्फ इतना जोड़ना चाहता हूं कि अनुभवी व समर्पित पत्रकार आरके सिन्हा जी और रामबहादुर राय जी भी युवकोचित उत्साह के साथ सबको ऊर्जा से भरने और दिशा दिखाने में लगे हैं।
जवाब देंहटाएंहां, अच्छा ध्यान दिलाया आपने, यह बिल्कुल सत्य है कि यदि हमारे अध्यक्ष श्रद्धेेेय श्री रविन्द्र किशोर सिन्हा जी एवं परम आदरणीय श्री रामबहादुर राय जी का साथ नहीं होता तो शायद वह गति और संगठन शक्ति इस समय जो दिखाई दे रही है, कदाचित वह हिन्दुस्थान समाचार में वर्तमान नहीं होती। ये दोनों आदरणीय भी युवा ही हैंं ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-09-2017) को "सूखी मंजुल माला क्यों" (चर्चा अंक 2724) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्रीजी आप सदैव से मेरा ख्याल रखते आए हैं, इसके लिए मैं आपका ह्दय से आभार व्यक्त करता हूं...
हटाएंमयंक जी आपने संपादकीय विभाग की चर्चा इस आलेख में नहीं की
जवाब देंहटाएंऐसा क्यों?
संपादकीय विभाग हमारा प्राणतत्व है, जैसे आत्मा अजर अमर है, वैैैैसे ही हमारा संपादकीय विभाग है, श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने श्रीमुख से स्वयं कहा भी है....
हटाएंनैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||
न – कभी नहीं; एनम् – इस आत्मा को; छिन्दन्ति – खण्ड-खण्ड कर सकते हैं; शस्त्राणि – हथियार; न – कभी नहीं; एनम् – इस आत्मा को; दहति – जला सकता है; पावकः – अग्नि; न – कभी नहीं; च – भी; एनम् – इस आत्मा को; क्लेदयन्ति – भिगो सकता है; आपः – जल; न – कभी नहीं; शोषयति – सुखा सकता है; मारुतः – वायु |
भावार्थ जानें...
यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है | वस्तुत: यहां सुनीत जी कहने का आशय इतना ही है कि आपसभी संपादकगण है तभी तो हम हैं....किंंतु यर्थाथ यही है कि आत्मा कभी श्रेय नहीं लेती, वह अदृश्य रहकर सभी कुछ संचालित करती है। देह स्थूल है प्रकटीकरण भी इसी का ही है....
नागराजजी, आपके स्नेह के बहुत बहुत धन्यवाद है। इस बार जिस तरह से माननीय अध्यक्ष जी ने सभी का उत्साहवर्धन किया है, उससे इतना तो तय हो ही गया है कि हिन्दुस्थान समाचार देवता रूपी मूर्ति को गढ़ने का कार्य जो वर्ष 1948 में दादासाहब आपटेजी ने आरंभ किया था जिसे आगे श्री बालेश्वर अग्रवाल, बापूराव लेलेेे, रामशंकर अग्निहोत्री,ओमप्रकाश कुंद्रा, बनवारी लाल बजाज जैसे अनगिनत कलम और ध्येय निष्ठ योद्धाअाेें ने आगे गढ़ा उसमें माननीय श्रीकांत जोशी जी ने समय के साथ कलर भरने का कार्य किया था। अब वह मूरत हमारे वर्तमान अध्यक्ष श्री रविन्द्र किशोर सिन्हाजी के सफल नेतृत्व में अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराने के लिए तत्पर है। कहीं कहीं तो उसके विराट स्वरूप के दर्शन होना आरंभ भी हो गया है। यह मूरत समय के साथ जितनी भव्य होगी, निश्चित मानिए नागराजजी इसके साथ हम सब भी भव्य होते चले जाएंगे.....
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