सोमवार, 9 जून 2014

नयी सरकार से उद्योग जगत को सफलता की आस : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

पिछले कई सालों से सरकार की नीतियों से मुरझाया और कुमलाहट से भरा उद्योग जगत आम चुनाव के बाद देश में बनने वाली नयी सरकार से बड़ीउम्मीदें लगाए बैठा है, 

वास्‍तव में इस भरोसे का कारण कांग्रेस की व्‍यापार जगत को लेकर लिए गए वो निर्णय रहे हैं जिनके कारण पिछले एक दशक में भारत का अर्थ व्‍यवस्‍था और उद्योग जगत पर बुरा असर पड़ा है। यही कारण है कि नई सरकार को लेकर किसी सरकार से आस की उम्मीद लगाने के मामले में यह उद्योग जगत दो दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
उद्योग जगत यह सोचकर कि सरकार परिवर्तित हो रही है, खुशी की स्थिति में आ गया है, ज‍िसके परिणामस्‍वरूप आर्थिक हालात में निरंतर सुधार होता द‍िख रहा है। भारत में इसे शेयर बाजार में आए जर्बदस्त उछाल के रूप में भी देखा जा सकता है। विदेशी संस्थागत निवेशकों-एफआईआई के द्वारा इसमें बढ़-चढ़कर रूचि लेना दर्शाता है कि आने वाली नई सरकार से क्‍या भारतीय बल्कि विदेशी उद्योग जगत बड़ी उम्‍मीद लगाए बैठा है। सेंसेक्स के लगातार 25 हजार का सूंचकांक पार करे रहने को आज हम इस संकेत के तहत महसूस कर रहे हैं।
नई सरकार के विकास में क्‍या मायने हैं यह विभिन्‍न्‍ा सर्वे रपटों से भी देखा जा सकता है, रेटिंग एजेंसी क्रिसिल रिसर्च का जो सर्वे है वह भी बता रहा है कि भारतीय कंपनियों (वित्तीय सेवाएं एवं तेल कंपनियों को छोड़कर) की आय में वृद्धि सालाना आधार पर वित्त वर्ष 2014-15 में 11 से 12 प्रतिशत रह सकती है। अटकी पड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन, घरेलू और निर्यात मांग में वृद्धि से औद्योगिक उत्पादन में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है। जबकि पिछली वृद्धि देखें तो यह 7 से 9 प्रतिशत रही है।

इस बार एक विशेष बात यह भी देखने को मिल रही है कि भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ, फिक्की और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने आर्थिक मसलों से जुड़े सुझावों का एक प्रस्ताव देश की सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों को भेजा था और सभी ने इसे गंभीरता से लिया।
प्रस्ताव में उद्योग संगठनों ने कहा था कि राजनितिक पार्टियों को समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए अपना घोषणा पत्र तैयार करना चाहिए। साथ ही उद्योग और सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने आने वाली सरकार की प्राथमिकता तय होनी चाहिए। राजनितिक दलों को सौपें गए अपने आर्थिक एजेंडे में फिक्की और सीआईआई ने सबसे ज्यादा जोर विनिर्माण क्षेत्र में सुधार और रोजगार के बेहतर मौकों पर दिया था। उन्होंने कहा था कि देश में सालाना 1.5 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जानी चाहिए। साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में एफडीआई की छूट की भी व्यवस्था होनी चाहिए। देखा जाए तो देश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने इन सभी बातों को इस बार के अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया !
 भाजपा  ने घोषणा पत्र के माध्‍यम से जनता और उद्योग जगत दोनों को यह संदेश देने की कोशिश की कि वे अब देश के सामने विकास का मॉडल रखना खहते हैं। यही कारण है कि नई सरकार से व्‍यापार जगत को सफलता की आस बंध गई है।

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