शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

महाराष्ट्र-हरियाणा चुनावों में मोदी मंत्र की सफलता : डॉ. मयंक चतुर्वेदी


लोकसभा चुनावों में तो सभी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक प्रबंधन देखा ही था लेकिन एक राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी की ताकत क्या होती है यह दो राज्यों के विधानसभा चुनावों के आए परिणामों ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है। अपने सफल नेतृत्व के माध्यम से नमो ने सभी को बता दिया कि भले ही विरोधी कुछ भी कहें वे राजनीति के महागुरू हैं। जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लोकसभा चुनावों में परचम फहराने के कुछ ही महीनों के बाद भारतीय जनता पार्टी को उपचुनावों में बड़ा झटका लगा । जिसमें कि दस राज्यों में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 33 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले रहे। तब सभी विरोधि‍यों ने कहना शुरू कर दिया था‍ कि मोदी का मैजिक खत्म हो गया किंतु उस वक्त नमो अपने सहयोगियों के साथ क्या रणनीति बनाने में लगे थे यह किसी को नहीं पता था।

वस्तुत: महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के आए परिणामों को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। मोदी यह भलि-भांति समझते हैं कि सरकारों के निर्माण में उपचुनावों का बहुत महत्व नहीं, हां यदि महत्व होता है तो वह प्रतिपक्ष के लिए जरूर है, क्यों कि वहां सदन में संख्याबल बढ़ने से अपनी बात रखने में विपक्ष के नाते मजबूती मिलती है। इसलिए संभतया मोदी का पूरा ध्यान इस बात पर लगा रहा कि कैसे दो राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनावों को भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में किया जाए। अब जब महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए चुनावी परिणाम सामने हैं तो कहा जा सकता है कि न केवल उनकी पार्टी में बल्कि जनता के बीच भी लोकसभा चुनावों की तरह मोदी मंत्र का प्रबंधन जादू चल गया।

नमो यह अच्छी तरह जान गए हैं कि जीत का सेहरा अपने सिर बांधने के लिए प्रचार का क्या महत्व है। सोशल मीडिया और प्रचार मध्यमों का अपने पक्ष में उपयोग करने के बाद इस बार उन्होंने महाराष्ट्र और हरियाणा में जो बेहतर प्रयोग किया, वह है अन्य राज्यों से पार्टी कार्यकर्ताओं को इन दो राज्यों में बुलाकर उनका स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल बैठाकर चुनावी प्रचार में बेहतर उपयोग करना । अब इसके बेहतर और पार्टी पक्ष में सकारात्मक नतीजे सभी के सामने हैं। महाराष्ट्र में 288 सीटों के लिए और हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 1 नम्बर की राजनैतिक पार्टी बनकर सामने आई है।

वस्तुत: यहां यह भी देखना लाजमी होगा कि आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव शुरू होने से लेकर अब तक के सफर में किस तरह अपनी टीम के खासमखास लोगों को भाजपा एवं अन्य जगह केंद्र बिन्दु बनाया और बनवाया। यह तो सिर्फ एक बानगी है कि पहले वह केंद्र की राजनीति में अपनी जीत मुकर्रर करने के लिए अमित शाह को उत्तर प्रदेश का चुनावी प्रभारी बनवाते हैं, क्यों कि वे यह जानते हैं कि देश में राजनीति की सफलता नब्ज यूपी से होकर गुजरती है। शाह का ही कमाल था कि उप्र में कांग्रेस के सफाए के साथ ही भाजपा ने वहां पर 80 में से 71 सीटें हासिल कीं। शाह की सार्वजनिक स्वीकार्यता करवाकर उन्हें फिर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष की आसंदी पर पहुंचाना आखि‍र मोदीजी की दूरदिृष्ट ही तो कहलाएगी।

आज उत्तर प्रदेश की जीत के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा की जीत का सेहरा नमो के सहारे अमित शाह के सर बंध गया है जैसा मोदी चाहते थे। इस जीत के पीछे यह भी सही है कि स्वयं मोदी और अमित शाह की सटीक रणनीति, एग्रेसिव स्टाइल और उनकी एक खास टीम की कड़ी मेहनत का भी हाथ है, जो सामने न आकर पर्दे के पीछे से अपना काम करती रहती है।

महाराष्ट्र-हरियाणा चुनावों में मोदी टीम ने सफलता के लिए इस बार जो खास काम किया वह है अपने राष्ट्रीय संगठन की शक्ति का भरपूर उपयोग, जो कि अभी तक भाजपा नहीं कर सकी थी। जुलाई माह से ही मोदी टीम महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनावों की तैयारियों के लिए सक्रिय हो गई। पूरी-पूरी रात पार्टी के राज्य स्तर के नेताओं संग बैठ कर रणनीतियां बनाई गईं। भाजपा की झोली में हर एक वोट आए इसके लिए गहरे मंथन और निष्कर्ष का दौर शुरू हुआ। महाराष्ट्र में बीजेपी-शि‍वसेना गठबंधन टूटने के बाद तो परस्थितियाँ और भी चुनौतिपूर्ण थीं लेकिन नरेंद्र मोदी को अपने राष्ट्रीय संगठन पर भरोसा था। मोदी को लगता था कि यदि इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में बाहरी प्रदेशों के पार्टी कर्यकर्ताओं का सही उपयोग किया जाएगा तो जीत उन्हीं की पार्टी की होगी, वस्तुत: देखा जाए तो हुआ भी यही। यहां आकर यदि बड़ी तादात में भाजपा समर्थक चुनाव प्रचार नहीं करते तो कभी भी चुनावी सर्वे उसके पक्ष में आनेवाले नहीं थे।

महाराष्ट्र के 8.35 करोड़ मतदाताओं में से करीब 64 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल 3 हजार 843 पुरुष और 276 महिला उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य के लिए किया। हरियाणा में 1.63 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने राज्य की 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए रिकार्ड 76.54 फीसदी मतदान किया था। 1,351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में जिनमें 116 महिला उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रही थीं।
वस्तुत: केडरबैस पार्टी होने से क्या लाभ हैं, आज यह दोनों राज्यों के चुनावी परिणामों ने साफ बता दिया। अकेले भाजपा का चुनाव प्रचार करने महाराष्ट्र पहुंचने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या ढाई लाख से ऊपर थी। भाजपा-शि‍वसेना गठबंधन टूटने के बाद एनसीपी, शि‍वसेना और कांग्रेस के जिन विधानसभा गढ़ों में जहां कभी भाजपा कार्यकर्ता ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते थे इस बार ऐसा बिल्कुल नहीं दिखा । ऐसे सभी क्षेत्रों में बाहरी राज्यों आए भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस बार चुनावी मोर्चा बहुत बेहतर तरीके से संभाल रखा था।

हालत यह हो गई थी कि मुंबई में यदि आप गौर करते तो हर चौथा आदमी चुनाव प्रचार में बाहर का नजर आ रहा था। यही हाल अमूमन पूरे प्रदेश का था। भाजपा ने इस बार इन दोनों राज्यों के चुनाव प्रचार के लिए जितने कार्यकर्ताओं से इसमें सहयोग करने का आग्रह किया था उसकी तुलना में कई गुना ज्यादा लोग महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव प्रचार के साक्षी बनने जा पहुंचे थे। जिनमें ज्यादातर लोग अपने खर्चे पर ही पार्टी का काम करते देखे गए ।

यदि इतनी बड़ी संख्या में भाजपा वॉलेंटियर नहीं आते तो कभी भी महाराष्ट्र में शि‍वसेना, कांग्रेस और एनसीपी का आत्मविश्वास कमजोर नहीं किया जा सकता था और ना हरियाणा जैसे जाट बहुल राज्य में भाजपा अकेले दम कांग्रेस और इनेलो को हाशिए पर ला पाती। करीब तीन दशकों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए भाजपा ने 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा चुनाव में 47 सीटें हासिल करके अपने बल पर बहुमत हासिल कर लिया। इससे पहले भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1987 में था जब उसने 20 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 16 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इससे बेहतर चुनावी प्रदर्शन भाजपा यहां आज तक नहीं कर सकी थी। हरियाणा में पहली बार भाजपा की सरकार का बनना निश्चित ही मोदी मंत्र की सांगठनिक सफलता मानी जाएगी।

आज भले ही चुनाव से आए परिणाम महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार का सच बता रहे हों लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भाजपा हरियाणा जैसे राज्य मे पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है और महाराष्ट्र में वह कुल 288 सीटों में से 122 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है।

यहां हमें यह याद रखना होगा कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी इसके पहले राष्ट्रीय दल होने के बाद भी कभी यह हिम्मत नहीं कर पाई थी कि अपने दम पर अकेले चुनाव लड़े, उसे क्षेत्रीय दल का सहारा चाहिए ही था लेकिन यह प्रयोग मोदी ही पहली बार कर पाए और सभी को बता पाए कि सांगठनिक शक्ति के लिए अपने पैरों पर चलना ही भला होता है। तभी अपनी शक्ति का सही परिक्षण होता है तथा बाद में स्वयं पर सफलता का मान होता है।

वस्तुत: महाराष्ट्र-हरियाणा चुनावों को लेक‍र आज बार-बार यही कहा जाएगा कि यह अकेली भारतीय जनता पार्टी की सफलता नहीं मोदी के संगठनात्मक तंत्र के सही उपयोग के मंत्र की सफलता है।

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