वाद का अपना एक विवाद हो सकता है। कई बार वाद को लेकर छिड़ी बहसों ने संसद और विधानसभाओं में विवाद को इतना बढ़ाया है कि माननीय अपने क्रोध की सीमाएं तक त्याग गए, किंतु इसके बाद कहना होगा कि वाद इस धरती पर उस सनातन व्यवस्था का हिस्सा है जब से मनुष्य का सृष्टि में जन्म हुआ और संवाद की परंपरा का विकास हुआ है । मनुष्य का ही क्यों जीव-जन्तु और पशु-पक्षी, सरीसर्प तक जो भी चराचर जगत में विचार रखता है। वहां यह वाद आपको देखने को मिल जाएगा, भले ही फिर उसका स्वरूप क्षणिक या खण्डित ही क्यों न हो।
वस्तुत: यह दृष्टि ही है जो आपको भिन्न बनाती है, विशेष बनाती है और परस्पर एक जैसी या लगभग सहमति के स्तर पर एक-दूसरे के नजदीक लाती है। इन अनेक वादों-विवादों और दृष्टि के बीच एक राष्ट्रवाद का संवाद भी है, जो विचार सांस्कृतिक एवं भौतिक स्वरूप के साथ अपने समूह, समाज एवं राज्य की सीमाओं, कई बार इससे इतर आगे होकर भी एक संस्कृति के आधार पर राज्य, भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध देश व इससे मुक्त समाज को एक बनाता है। अनेक लोग अपने देश और समाज के लिए करना बहुत कुछ चाहते हैं, करते भी हैं, किंतु इसके बीच कुछ विशेष ही होते हैं जो कुछ विलक्षण कर जाते हैं।
भारतीय पत्रकारिता में मामाजी यानी कि माणिकचंद वाजपेयी भी एक ऐसा नाम हैं, जिनका संपूर्ण जीवन एक दृष्टि, एक वाद, संवाद के एक सुर को साकार करने में व्यतीत हुआ, जिसमें भारत और मां भारती ही प्रथम एवं अंतिम रहे । किसी ने उन्हें भारतीय बल्कि विश्व भर के पत्रकारिता जगत की अमूल्य औऱ अनुकरणीय निधि कहा, तो किसी ने उन्हें निर्मोही औऱ परमहंस।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनीजी का उनके लिए कहा गया यहां स्मरण हो आता है। उन्होंने हाल ही में भोपाल में आयोजित एक आयोजन के दौरान कहा था कि मामा जी जिस धारा में विकसित हुए, उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परंपरा में व्यक्ति का व्यक्तित्व इस नाते से जानकारी बहुत कम हो पाती है, क्योंकि इस धारा में यही कहा गया है कि सामने जो कुछ है वह राष्ट्र और समाज का है इसलिए जो कुछ यश गान करना है राष्ट्र और समाज का ही करना है, फिर भी मामा जी को आज हम याद कर रहे हैं वह इसलिए कि उन्होंने पत्रकारिता में जो कुछ किया वह अद्वितीय है । भारतीय सनातन आदर्श को अभिव्यक्त करने वाले वह व्यक्ति रहे हैं, व्यक्ति एक संज्ञा है लेकिन यह संज्ञा अपने आदर्श के कारण विशेषण बन जाती है, जैसे एक प्रतिज्ञा-संकल्प है। भीष्म ने उसे ऐसा जिया की प्रतिज्ञा और भीष्म में कोई अंतर नहीं रहा । यहां संज्ञा और विशेषण एक हो गए । वैसे ही आज माणिकचन्द्र वाजपेयी यह नाम एक विशेषण बन गया है। जैसे कोई कहता है राष्ट्र समर्पित जीवन तो मामाजी जैसा जीवन याद आता है। यानी कि मानिकचंद बाजपेई मामाजी का जीवन भी राष्ट्र समर्पित इस प्रकार से रहा कि वह और राष्ट्र उनका पूरा जीवन, उनक संपूर्ण चित्त एक हो गए थे।
इसी प्रकार से उनके बारे में प्रख्यात पत्रकार श्री राजेन्द्र शर्मा का कहा करते हैं कि मामाजी का मूलतः एक ही सार्वजनिक व्यक्तित्व था जिसमें निश्छलता औऱ निष्कपटता के अलावा कोई दूसरा तत्व समाहित ही नहीं, इसीलिए वे हर सम्पर्क वाले आदमी को अपने आत्मीयजन का अहसास कराते। उनके लेखन का मूल्यांकन केवल राष्ट्रीयता को प्रतिबिंबित औऱ प्रतिध्वनित करता है। सादगी, सरलता और निश्छलता के पर्याय मामाजी उन विरले पत्रकारों में शामिल हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को देश, समाज और राष्ट्रीय विचार की सेवा का माध्यम बनाया और सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर उन्होंने सदैव समाज को जागरूक किया।
वास्तुत: जिसका उदाहरण सिर्फ दैनिक स्वदेश का संपादकत्व नहीं इससे आगे उनकी लिखी पुस्तकें व लेख मालाएं हैं। आपातकाल, हिन्दुत्व, जम्मू-कश्मीर, स्वदेशी, श्रीराम जन्मभूमि, जातिवाद, छद्म धर्मनिरपेक्षता, शिक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के स्वाभिमान से जुड़े विषयों पर लगातार उनकी लेखनी चली । वे अक्सर कहा करते थे, ‘मेरी पहचान मेरे कपड़ों से नहीं, मेरे विचारों से है’। न कोई व्यक्तिगत इच्छा, न आकांक्षा, न सम्मान और न अपमान की चिंता। मूल्य आधारित पत्रकारिता और उसके प्रति समर्पण का भाव ही उनके जीवन का सदैव आदर्श रहा । लेकिन उन्हें लेकर वह दौर भी आया जब राजनीतिक इच्छाओं ने ऐसे महान ध्येय निष्ठ पत्रकार को सिर्फ राजनीति के चश्मे से भी देखा। यह कहकर कि वे आरएसएस से जुड़े थे।
पिछली सरकार में हम सभी ने देखा कि कैसे राष्ट्रवादी पत्रकारिता के लिए ध्येय निष्ठ पत्रकारिता के राष्ट्रीय सम्मान को एक झटके में बंद कर दिया गया था। वास्तव में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद जिस तरह से फिर मामाजी को याद किया जा रहा है, वह सिर्फ इस सरकार की वाहवाही नहीं है, बल्कि उन सभी ध्येय निष्ठ पत्रकारों का भी सम्मान है, जिनके लिए कवि ''रामावतार त्यागी'' के शब्दों में कहें तो ‘मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ’ है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, हरियाणा और त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी और भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर जी ने प्रख्यात पत्रकार स्व. माणिक चंद्र वाजपेयी के जन्म शताब्दी वर्ष के समापन अवसर कार्यक्रम में डाक टिकट अनावरण किया है । संयोग से इन तीनों महानुभावों का मामाजी से जीवंत संपर्क रहा है। इस अवसर पर इन तीनों महानुभावों ने जो कुछ कहा, उससे यह स्पष्ट है कि मामा माणिकचंद्र वाजपेयी का महत्व ध्येयनिष्ठता की पत्रकारिता करनेवालों और भारत को परमवैभव पर देखनेवाले पत्रकारों के लिए कभी कम नहीं होनेवाला है ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह कहना बिल्कुल सही है कि आज भी लाखों कार्यकर्ताओं और सैकड़ों पत्रकारों के लिए मामाजी का समर्पित जीवन प्रेरणापुंज है । भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व वरिष्ठ साहित्यकार श्रीधर पराड़कर का कथन भी उनके लिए सही है, जो हम कहानियों में पढ़ते हैं, गणेश शंकर विद्यार्थी, लोकमान्य तिलक के बारे में कि वे कैसे श्रेष्ठ पत्रकार और संपादक रहे, वास्तव में वैसे ही हमारी आंखों के सामने व्यक्ति हुए हैं जिन्हें देखकर कहा जाए कि पत्रकार को कैसा होना चाहिए तो आचरण के स्तर पर मामाजी के रूप में हमें वे प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं।
वहीं, उनके नाम से मध्यप्रदेश सरकार द्वारा ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के लिए स्थापित राष्ट्रीय पुरस्कार पुन: प्रारंभ करना और इस अवसर पर यह कहना कि वास्तव में मामाजी को अपने जीते जी किसी पुरस्कार की इच्छा नहीं थी वह इससे ऊपर थे, लेकिन हमारे लिए उनके आदर्श को आगे बढ़ाते हुए चलने के लिए यह जरूरी है कि उनके चरणों में यह राष्ट्रीय पुरस्कार अर्पित रहे, ताकि हम उनके विचारों से निरंतर अच्छी बातें सीखते रहें और उनसे प्रेरणा लेकर पत्रकारिता में एक राष्ट्रवादी धारा निरंतर प्रवाहमान बनी रहे।
ऐसे में सही पूछा जाए तो यह मामाजी का सम्मान समूचे पत्रकारिता जगत का ही सम्मान है, जिनके लिए राष्ट्रवाद का विचार एवं दर्शन ही सर्वोपरि है । मध्य प्रदेश सरकार को बहुत साधुवाद।
लेखक फिल्म प्रमाणन बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं ।
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