आर्थिक मोर्चे पर केंद्र की मोदी सरकार को विपक्ष द्वारा लगातार कटघरे में खड़ा करने का प्रयास होता रहा है। इसके उलट वास्तविकता यह है कि पिछले सात साल के दौरान जिस तेजी के साथ भारत ने अर्थ से जुड़े प्रत्येक क्षेत्र में विकास किया है, वह इससे पहले कभी किसी भी सरकार में देखने को नहीं मिला है। सरकार के सामने एक तरफ जनसंख्या बढ़ने के साथ बेरोजगार युवाओं की संख्या को रोजगार देने का दबाव था तो दूसरी ओर उन तमाम योजनाओं पर भरोसा था, जो भारत के वर्तमान और भविष्य को दुनिया की नजर में शक्ति सम्पन्न बनाने जा रही थीं। वस्तुत: यह उन आर्थिक क्षेत्र के लिए गए सही निर्णयों का ही परिणाम है कि वित्त वर्ष 2020-21 में कोविड महामारी के बावजूद भारत में 81.72 अरब डालर का विदेशी निवेश (एफडीआइ) आया।
अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनी डेलाय की रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश के लिए पहले से ज्यादा तैयार हैं। इसे मोदी के नेतृत्व का चमत्कार ही कहिए, जो अमेरिका एवं ब्रिटिश कंपनियां सिंगापुर एवं जापान की तुलना में भारत को अपने लिए सबसे मुफीद और आकर्षक बाजार के तौर पर देख रही हैं।
देखा जाए तो केंद्र सरकार आर्थिक क्षेत्र में अनेक बिन्दुओं पर गहराई से एक साथ कार्य करती हुई नजर आ रही है, उसे जहां गरीब की पूरी चिंता है तो वहीं उन सभी के लिए भी उसके पास कुछ ना कुछ है जो नवाचारों के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को तेज गति देने का सामर्थ्य रखते हैं। आज जेएएम (जनधन-आधार-मोबाइल) ट्रिनिटी भारत के लिए एक गेम चेंजर साबित हुई है, जो उन्हें भविष्य में वित्तीय समावेशन प्रारूप को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाती है। यही कारण है कि वित्तीय रूप से बहिष्कृत लोगों को आगे लाकर, बचत करके और वास्तविक लाभार्थियों को सरकारी लाभ वितरित करके, नागरिकों को उनके बैंक लेनदेन पर एसएमएस अपडेट प्रदान करके जेएमएम ट्रिनिटी ने हमारी बैंकिंग प्रणाली को पूरी तरह से पारदर्शी बना दिया है।
सरकार का कोविड-19 महामारी के बीच में जनधन द्वारा लाया गया वित्तीय समावेश महत्वपूर्ण रहा, इसके कारण ही कई लोगों और छोटे व्यवसायों को जमानत-मुक्त ऋण मिल सका और जिसने कि उनके पूरे जीवन को ही बदलकर रख दिया।
इसी तरह से आधार लिंकेज ने देश को बहुत अधिक चोरी से बचाया है। इस माध्यम से सरकार वास्तविक लाभार्थियों तक पैसा पहुंचाने में सक्षम हुई है। बैंक खातों की आधार सीडिंग ने हमें तत्काल केवाईसी लाभ दिया। इस समय भारत में पीएमजेडीवाई के तहत 43.23 करोड़ लाभार्थियों के खाते हैं। ये खाताधारी स्वयं तो सक्षम बन ही रहे हैं, अन्यों को भी सक्षम करने के लिए प्रयासरत हैं। यह मोदी सरकार की सही नीतियों का ही परिणाम है जो आज दुनिया की कंपनियां 60 फीसद निवेश नवीकरणीय ऊर्जा, हेल्थ सेक्टर, वित्तीय सेवा और फाइनेंशियल टेक्नोलाजी जैसे क्षेत्रों करने आगे आ रही हैं । देश में डिफेंस, टेक्सटाइल, खाद्य प्रसंस्करण का क्षेत्र भी विदेशी कंपनियों को आकर्षित कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का आकलन भी यही है, वह कह रहा है कि इस पूरे वित्त वर्ष में सबसे तेजी से उभरने वाली इकॉनमी भारत की रहेगी।
यह एक तथ्य है कि देश के जीडीपी में कुल 10 गुना बढ़ोतरी हुई है और महंगाई दर छह फीसदी के आसपास स्थिर हो गई है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 76 गुना की बढ़ोतरी हुई है। वस्तुत: हाल ही में आई लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट इस बात पर एकमत हैं कि भारत पांच लाख करोड़ डालर की इकोनामी बनने में सक्षम है और इसमें एफडीआइ की अहम भूमिका होगी। भारत की इकॉनमी को लेकर अमेरिका के उद्योगपतियों में चीन, ब्राजील, वियतनाम, मेक्सिको जैसे दूसरी समकक्ष इकॉनमी के मुकाबले ज्यादा प्रतिष्ठा है। अमेरिका एवं ब्रिटेन के कारोबारी भारत के संस्थानों की मजबूती व बेहद प्रशिक्षित श्रम शक्ति को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। अधिकांश कारोबारियों का कहना यही है कि वे भारत में नया निवेश करेंगे और यहां पूर्व से चल रही अपनी कंपनियों में निवेश बढ़ाएंगे।
आंकड़े बता रहे हैं कि वर्ष 2020-21 (54.18 अरब डॉलर) के पहले 10 महीने में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 28 प्रतिशत बढ़ गया है। वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीने में एफडीआई इक्विटी के जरिए निवेश करने वाले देशों में 30.28 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ सिंगापुर सबसे अव्वल रहा। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका (24.28) और यूएई (7.31%) का स्थान है। इसके साथ ही जनवरी 2021 के दौरान कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 29.09 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ जापान सबसे आगे रहा। इसके बाद सिंगापुर (25.46%) और उसके बाद यू.एस.ए. (12.06%) का स्थान है । आज दुनिया की कई कंपनियां भारत को वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग हब के तौर पर देख रही हैं। जापान की कंपनियां भारतीय बाजार को ध्यान में रखते हुए निवेश कर रही हैं। इनकी भावी योजना भारत को एक निर्यात हब के तौर पर इस्तेमाल करने की है। यही वह कारण भी है जोकि सरकार के कदमों से देश में एफडीआई का प्रवाह निरंतर बढ़ा है।
अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच भारत में 72.12 अरब डॉलर का एफडीआई आया। यह वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना (62.72 अरब डॉलर) में 15 फीसदी ज्यादा एफडीआई था। यह किसी भी वित्तीय वर्ष के पहले 10 महीने में आया सबसे अधिक एफडीआई रहा है। कोविड महामारी के बाद भारतीय इकॉनमी के प्रदर्शन एवं इसकी मजबूती को देख कर वैश्विक समुदाय प्रभावित है। अमेरिकी कंपनियों के सीइओ में भारत के भविष्य को लेकर बहुत भरोसा दिखा रहे हैं । इसी तरह का भरोसा दुनिया के कई देशों का इन दिनों भारत को लेकर बना है, जिसके बाद कहना होगा कि जो भारत को पांच लाख करोड़ डालर की इकॉनमी बनने में आठ लाख करोड़ डालर के सकल पूंजी निर्माण की जरूरत है और अगले छह से आठ वर्षों में 400 अरब डालर के एफडीआइ की आवश्यकता है, वह इस भरोसे के आधार पर भारत प्राप्त करने में सफल हो जाएगा। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक नीतियों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि उनकी सरकार निवेश का महौल बनाने के लिए काफी कुछ कर रही है। पीएलआइ देना, बीमा समेत कई सेक्टर में एफडीआइ सीमा बढ़ाना, रेट्रो टैक्स व्यवस्था को खत्म करने जैसे फैसले इसी दिशा में हैं।
इस वर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में इन्फ्रास्ट्रक्चर में 1.4 लाख करोड़ डालर के निवेश की बात कही थी, जोकि दुनिया भर में बहुत सकारात्मक तरीके से ली गई है। इन्वेस्टर या निवेशक चाहते भी यही हैं कि भारत का जितना बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा उतना ही अधिक उनके लाभ में भी बढ़ोत्तरी होगी, साथ ही भारतीयों के जीवनस्तर में भी और अधिक सुधार आएगा। कहना होगा कि मोदी सरकार की तरफ से उठाए जा रहे आर्थिक क्षेत्र के कदम लम्बे समय तक भारतीय इकॉनमी की विकास दर को तेज बनाए रखने में मददगार साबित होंगे। भविष्य का भारत निश्चित ही एक मजबूत भारत बनकर हम सभी के सामने आनेवाला है, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आर्थिक नीतियों को श्रेय दिया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा।